Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1002334 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-४ |
Translated Chapter : |
स्थान-४ |
Section : | उद्देशक-३ | Translated Section : | उद्देशक-३ |
Sutra Number : | 334 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] चत्तारि पक्खी पन्नत्ता, तं जहा–रुतसंपन्ने नाममेगे नो रूवसंपन्ने, रूवसंपन्ने नाममेगे नो रुतसंपन्ने, एगे रुतसंपन्नेवि रूवसंपन्नेवि, एगे नो रुतसंपन्ने नो रूवसंपन्ने। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–रुतसंपन्ने नाममेगे नो रूवसंपन्ने, रूवसंपन्ने नाममेगे नो रुतसंपन्ने, एगे रुतसंपन्नेवि रूवसंपन्नेवि, एगे नो रुतसंपन्ने नो रूवसंपन्ने। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, पत्तिय करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे पत्तियं करेति, अप्पत्तियं करेमीतेगे अप्पत्तियं करेति। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता,तं०अप्पणो नाममेगे पत्तियं करेति नो परस्स, परस्स नाममेगे पत्तियं करेति नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं करेति परस्सवि, एगे नो अप्पणो पत्तियं करेति नो परस्स। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं०पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, पत्तियं पवेसामीतेगे अप्प-त्तियं पवेसेति अप्पत्तियं पवेसामीतेगे पत्तियं पवेसेति, अप्पत्तियं पवेसामीतेगे अप्पत्तियं पवेसेति। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो नाममेगे पत्तियं पवेसेति नो परस्स, परस्स नाममेगे पत्तियं पवेसेति नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि पत्तियं पवेसेति परस्सवि, एगे नो अप्पणो पत्तियं पवेसेति नो परस्स। | ||
Sutra Meaning : | पक्षी चार प्रकार के हैं। यथा – एक पक्षी रुत सम्पन्न (मधुर स्वर वाला) है, किन्त रूप सम्पन्न नहीं है। एक पक्षी रूप सम्पन्न है किन्तु रुत सम्पन्न (मधुर स्वर वाला) नहीं है। एक पक्षी रूप सम्पन्न भी है और रुत सम्पन्न भी है। एक पक्षी रुत सम्पन्न भी नहीं है और रूप सम्पन्न भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष वर्ग भी चार प्रकार का है। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। यथा – एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक के साथ प्रीति करूँ और उसके साथ प्रीति करता भी है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक के साथ प्रीति करूँ किन्तु उसके साथ प्रीति नहीं करता है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि अमुक के साथ प्रीति न करूँ किन्तु उसके साथ प्रीति कर लेता है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि अमुक के साथ प्रीति न करूँ और उसके साथ प्रीति करता भी नहीं है। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। यथा – एक पुरुष स्वयं भोजन आदि से तृप्त होकर आनन्दित होता है किन्तु दूसरे को तृप्त नहीं करता। एक पुरुष दूसरे को भोजन आदि से तृप्त कर प्रसन्न होता है किन्तु स्वयं को तृप्त नहीं करता। एक पुरुष स्वयं भी भोजन आदि से तृप्त होता है और अन्य को भी भोजन आदि से तृप्त करता है। एक पुरुष स्वयं भी तृप्त नहीं होता और अन्य को भी तृप्त नहीं करता। पुरुष वर्ग चार प्रकार का है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अपने सद्व्यवहार से अमुक में विश्वास उत्पन्न करूँ और विश्वास उत्पन्न करता भी है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अपने सद्व्यवहार से अमुक में विश्वास उत्पन्न करूँ किन्तु विश्वास उत्पन्न नहीं करता। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक में विश्वास उत्पन्न नहीं कर सकूँगा किन्तु विश्वास उत्पन्न करने में सफल हो जाता है। एक पुरुष ऐसा सोचता है कि मैं अमुक में विश्वास उत्पन्न नहीं कर सकूँगा और विश्वास उत्पन्न कर भी नहीं सकता है। एक पुरुष स्वयं विश्वास करता है किन्तु दूसरे में विश्वास उत्पन्न नहीं कर पाता। एक पुरुष दूसरे में विश्वास उत्पन्न कर देता है, किन्तु स्वयं विश्वास नहीं करता। एक पुरुष स्वयं भी विश्वास करता है और दूसरे में भी विश्वास उत्पन्न करता है। एक पुरुष स्वयं भी विश्वास नहीं करता और न दूसरे में विश्वास उत्पन्न करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] chattari pakkhi pannatta, tam jaha–rutasampanne namamege no ruvasampanne, ruvasampanne namamege no rutasampanne, ege rutasampannevi ruvasampannevi, ege no rutasampanne no ruvasampanne. Evameva chattari purisajaya pannatta, tam jaha–rutasampanne namamege no ruvasampanne, ruvasampanne namamege no rutasampanne, ege rutasampannevi ruvasampannevi, ege no rutasampanne no ruvasampanne. Chattari purisajaya pannatta, tam jaha–pattiyam karemitege pattiyam kareti, pattiya karemitege appattiyam kareti, appattiyam karemitege pattiyam kareti, appattiyam karemitege appattiyam kareti. Chattari purisajaya pannatta,tam0appano namamege pattiyam kareti no parassa, parassa namamege pattiyam kareti no appano, ege appanovi pattiyam kareti parassavi, ege no appano pattiyam kareti no parassa. Chattari purisajaya pannatta, tam0pattiyam pavesamitege pattiyam paveseti, pattiyam pavesamitege appa-ttiyam paveseti appattiyam pavesamitege pattiyam paveseti, appattiyam pavesamitege appattiyam paveseti. Chattari purisajaya pannatta, tam jaha–appano namamege pattiyam paveseti no parassa, parassa namamege pattiyam paveseti no appano, ege appanovi pattiyam paveseti parassavi, ege no appano pattiyam paveseti no parassa. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pakshi chara prakara ke haim. Yatha – eka pakshi ruta sampanna (madhura svara vala) hai, kinta rupa sampanna nahim hai. Eka pakshi rupa sampanna hai kintu ruta sampanna (madhura svara vala) nahim hai. Eka pakshi rupa sampanna bhi hai aura ruta sampanna bhi hai. Eka pakshi ruta sampanna bhi nahim hai aura rupa sampanna bhi nahim hai. Isi prakara purusha varga bhi chara prakara ka hai. Purusha varga chara prakara ka hai. Yatha – eka purusha aisa sochata hai ki maim amuka ke satha priti karum aura usake satha priti karata bhi hai. Eka purusha aisa sochata hai ki maim amuka ke satha priti karum kintu usake satha priti nahim karata hai. Eka purusha aisa sochata hai ki amuka ke satha priti na karum kintu usake satha priti kara leta hai. Eka purusha aisa sochata hai ki amuka ke satha priti na karum aura usake satha priti karata bhi nahim hai. Purusha varga chara prakara ka hai. Yatha – eka purusha svayam bhojana adi se tripta hokara anandita hota hai kintu dusare ko tripta nahim karata. Eka purusha dusare ko bhojana adi se tripta kara prasanna hota hai kintu svayam ko tripta nahim karata. Eka purusha svayam bhi bhojana adi se tripta hota hai aura anya ko bhi bhojana adi se tripta karata hai. Eka purusha svayam bhi tripta nahim hota aura anya ko bhi tripta nahim karata. Purusha varga chara prakara ka hai. Eka purusha aisa sochata hai ki maim apane sadvyavahara se amuka mem vishvasa utpanna karum aura vishvasa utpanna karata bhi hai. Eka purusha aisa sochata hai ki maim apane sadvyavahara se amuka mem vishvasa utpanna karum kintu vishvasa utpanna nahim karata. Eka purusha aisa sochata hai ki maim amuka mem vishvasa utpanna nahim kara sakumga kintu vishvasa utpanna karane mem saphala ho jata hai. Eka purusha aisa sochata hai ki maim amuka mem vishvasa utpanna nahim kara sakumga aura vishvasa utpanna kara bhi nahim sakata hai. Eka purusha svayam vishvasa karata hai kintu dusare mem vishvasa utpanna nahim kara pata. Eka purusha dusare mem vishvasa utpanna kara deta hai, kintu svayam vishvasa nahim karata. Eka purusha svayam bhi vishvasa karata hai aura dusare mem bhi vishvasa utpanna karata hai. Eka purusha svayam bhi vishvasa nahim karata aura na dusare mem vishvasa utpanna karata hai. |