Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002078 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-२ |
Translated Chapter : |
स्थान-२ |
Section : | उद्देशक-२ | Translated Section : | उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 78 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नेरइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता, तं जहा– नेरइए नेरइएसु उववज्जमाने मनुस्सेहिंतो वा पंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से नेरइए नेरइयत्तं विप्पजहमाने मनुस्सत्ताए वा पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं असुरकुमारावि, नवरं–से चेव णं से असुरकुमारे असुरकुमारत्तं विप्पजहमाने मनुस्सत्ताए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं– सव्वदेवा। पुढविकाइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाने पुढवि-काएहिंतो वा नो पुढविकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए वा नो पुढविकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं जाव मनुस्सा। | ||
Sutra Meaning : | नैरयिक जीवों की दो गति और दो आगति कही गई है, यथा – नैरयिक जीवों के बीच उत्पन्न होता हुआ या तो मनुष्यों में से या पंचेन्द्रय तिर्यंच जीवों में से उत्पन्न होता है। वही नैरयिक जीव नैरयिकत्व को छोड़ता हुआ मनुष्य अथवा पंचेन्द्रिय तिर्यंच के रूप में उत्पन्न होता है। इसी तरह असुरकुमार असुरकुमारत्व को छोड़ता हुआ मनुष्य अथवा तिर्यंच के रूप में उत्पन्न होता है। इसी तरह सब देवों के लिए समझना चाहिए। पृथ्वीकाय के जीव दो गति और दो आगति वाले कहे गए हैं, यथा – पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकाय में उत्पन्न होता हुआ पृथ्वीकाय में या नो – पृथ्वीकाय में उत्पन्न होता है। वह पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायित्व को छोड़ता हुआ पृथ्वीकाय में अथवा नो – पृथ्वीकाय में उत्पन्न होता है। इसी प्रकार मनुष्य – पर्यन्त समझना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] neraiya dugatiya duyagatiya pannatta, tam jaha– neraie neraiesu uvavajjamane manussehimto va pamchimdiyatirikkha-joniehimto va uvavajjejja. Se cheva nam se neraie neraiyattam vippajahamane manussattae va pamchimdiyatirikkhajoniyattae va gachchhejja. Evam asurakumaravi, navaram–se cheva nam se asurakumare asurakumarattam vippajahamane manussattae va tirikkhajoniyattae va gachchhejja. Evam– savvadeva. Pudhavikaiya dugatiya duyagatiya pannatta, tam jaha–pudhavikaie pudhavikaiesu uvavajjamane pudhavi-kaehimto va no pudhavikaiehimto va uvavajjejja. Se cheva nam se pudhavikaie pudhavikaiyattam vippajahamane pudhavikaiyattae va no pudhavikaiyattae va gachchhejja. Evam java manussa. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Nairayika jivom ki do gati aura do agati kahi gai hai, yatha – nairayika jivom ke bicha utpanna hota hua ya to manushyom mem se ya pamchendraya tiryamcha jivom mem se utpanna hota hai. Vahi nairayika jiva nairayikatva ko chhorata hua manushya athava pamchendriya tiryamcha ke rupa mem utpanna hota hai. Isi taraha asurakumara asurakumaratva ko chhorata hua manushya athava tiryamcha ke rupa mem utpanna hota hai. Isi taraha saba devom ke lie samajhana chahie. Prithvikaya ke jiva do gati aura do agati vale kahe gae haim, yatha – prithvikayika jiva prithvikaya mem utpanna hota hua prithvikaya mem ya no – prithvikaya mem utpanna hota hai. Vaha prithvikayika jiva prithvikayitva ko chhorata hua prithvikaya mem athava no – prithvikaya mem utpanna hota hai. Isi prakara manushya – paryanta samajhana chahie. |