Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001701 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 701 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ चोयए पण्णवगं एवं वयासी–असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मेनो कज्जइ। कस्स णं तं हेउं? चोयए एवं ब्रवीति–अन्नयरेणं मणेणं पावएणं मणवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरीए वईए पावियाए वइवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरेणं काएणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, हणंतस्स समणक्खस्स सवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुवि-णमवि पासओ–एवंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कज्जइ। पुणरवि चोयए एवं ब्रवीति–तत्थणं जेते एवमाहंसु–असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइ– [तत्थ णं जे ते एवमाहंसु] मिच्छं ते एवमाहंसु। तत्थ पण्णवए चोयगं एवं वयासी–जं मए पुव्वं वुत्तं असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंत-एणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मे कज्जइ–तं सम्मं। कस्स णं तं हेउं? आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउ-काइया, वणस्सइकाइया तसकाइया। इच्चेतेहिं छहिं जीवणिकाएहिं आया अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे, निच्चं पसढ-विओ-वात-चित्त-दंडे, तं जहा– ‘पाणाइवाए मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे मायाए लोहे पेज्जे दोसे कलहे अब्भ-क्खाणे पेसुण्णे परपरिवाए अरइरईए मायामोसे मिच्छादंसणसल्ले’। आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया वहए दिट्ठंते पन्नत्ते–से जहानामए वहए सिया गाहावइस्स वा गाहावइपुत्तस्स वा रण्णो वा रायपुरिसस्स वा खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लद्धून वहिस्सामित्ति पहारेमाणे। से किं णु हु नाम से वहए ‘तस्स वा’ गाहावइस्स तस्स वा गाहावइपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लद्धूणं वहिस्सामित्ति पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ -विओवाय-चित्तदंडे भवइ? एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरे? चोयए–हंता भवइ। आचार्य आह–जहा से वहए तस्स वा गाहावइस्स तस्स वा गाहावइपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स खणं णिदाए पविसिस्सामि खणं लद्धून वहिस्सामित्ति पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ-विओवाय-चित्तदंडे, एवामेव बाले वि सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ-विओवाय-चित्तदंडं, तं जहा–पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले। एस खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते ‘यावि भवइ’। से बाले अवियारमण-वयण-काय-वक्के सुविणमवि न पस्सइ, पावे य से कम्मे कज्जइ। [सूत्र] जहा से वहए तस्स वा गाहावइस्स तस्स वा गाहावइपुत्तस्स तस्स वा रण्णो तस्स वा रायपुरिसस्स ‘पत्तेयं-पत्तेयं’ ‘चित्तं समादाय’ दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ-विओवाय-चित्तदंडे भवइ, एवा-मेव बाले सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं पत्तेयं-पत्तेयं चित्तं समादाय दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ-विओवाय-चित्तदंडे भवइ। | ||
Sutra Meaning : | इस विषय में प्रेरक ने प्ररूपक से इस प्रकार कहा – पापयुक्त मन न होने पर, पापयुक्त वचन न होने पर, तथा पापयुक्त काया न होने पर जो प्राणियों की हिंसा नहीं करता, जो अमनस्क है, जिसका मन, वचन, शरीर और वाक्य हिंसादि पापकर्म के विचार से रहित है, जो पापकर्म करने का स्वप्न भी नहीं देखता ऐसे जीव के पापकर्म का बन्ध नहीं होता। किस कारण से उसे पापकर्म का बन्ध नहीं होता ? प्रेरक इस प्रकार कहता है – किसी का मन पापयुक्त होने पर ही मानसिक पापकर्म किया जाता है, तथा पापयुक्त वचन होने पर ही वाचिक पापकर्म किया जाता है, एवं पापयुक्त शरीर होने पर ही कायिक पापकर्म किया जाता है। जो प्राणी हिंसा करता है, हिंसायुक्त मनोव्यापार से युक्त है, जो जानबूझ कर मन, वचन, काया और वाक्य का प्रयोग करता है, जो स्पष्ट विज्ञानयुक्त भी है। इस प्रकार के गुणों से युक्त जीव पापकर्म करता है। पुनः प्रेरक कहता है – ‘इस विषय में जो लोग ऐसा कहते हैं कि मन पापयुक्त न हो, वचन भी पापयुक्त न हो, तथा शरीर भी पापयुक्त न हो, किसी प्राणी का घात न करता हो, अमनस्क हो, मन, वचन, काया और वाक्य के द्वारा भी विचार से रहित हो, स्वप्न में भी (पाप) न देखता हो, तो भी (वह) पापकर्म करता है।’ जो इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं। इस सम्बन्ध में प्रज्ञापक ने प्रेरक से कहा – जो मैंने पहले कहा था कि मन पापयुक्त न हो, वचन भी पाप – युक्त न हो, तथा काया भी पापयुक्त न हो, वह किसी प्राणी की हिंसा भी न करता हो, मनोविकल हो, चाहे वह मन, वचन, काया और वाक्य का समझ – बुझकर प्रयोग न करता हो, और वैसा (पापकारी) स्वप्न भी न देखता हो, ऐसा जीव भी पापकर्म करता है, वही सत्य है। ऐसे कथन के पीछे कारण क्या है ? आचार्य ने कहा – इस विषय में श्री तीर्थंकर भगवान ने षट्जीवनिकाय कर्मबन्ध के हेतु के रूप में बताए हैं। इन छह प्रकार के जीवनिकाय के जीवों की हिंसा से उत्पन्न पाप को जिस आत्मा ने नष्ट नहीं किया, तथा भावी पाप को प्रत्याख्यान द्वारा रोका नहीं, बल्कि सदैव निष्ठुरतापूर्वक प्राणियों की घात में चित्त लगाए रखता है, और उन्हें दण्ड देता है तथा प्राणातिपात से लेकर परिग्रह – पर्यन्त तथा क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक के पापस्थानों से निवृत्त नहीं होता है। आचार्य पुनः कहते हैं – इसके विषय में भगवान महावीर ने वधक का दृष्टान्त बताया है – कोई हत्यारा हो, वह गृहपति की अथवा गृहपति के पुत्र की अथवा राजा की या राजपुरुष की हत्या करना चाहता है। अवसर पाकर मैं घर में प्रवेश करूँगा और अवसर पाते ही प्रहार करके हत्या कर दूँगा। इस प्रकार वह हत्यारा दिन को या रात को, सोते या जागते प्रतिक्षण इसी उधेड़बुन में रहता है, जो उन सबका अमित्र भूत है, उन सबसे मिथ्या व्यवहार करने में जुटा हुआ है, जो चित्तरूपी दण्ड में सदैव विविध प्रकार से निष्ठुरतापूर्वक घात का दुष्ट विचार रखता है, क्या ऐसा व्यक्ति उन पूर्वोक्त व्यक्तियों का हत्यारा कहा जा सकता है, या नहीं ? आचार्यश्री के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर प्रेरक समभाव के साथ कहता है – ‘‘हाँ, पूज्यवर ! ऐसा पुरुष हत्यारा ही है।’’ आचार्य न कहा – जैसे उस गृहपति या गृहपति के पुत्र को अथवा राजा या राजपुरुष को मारना चाहने वाला वह वधक पुरुष सोचता है कि मैं अवसर पाकर इसके मकान में प्रवेश करूँगा और मौका मिलते ही इस पर प्रहार कर वध कर दूँगा; ऐसे कुविचार से वह दिन – रात, सोते – जागते हरदम घात लगाये रहता है, सदा उनका शत्रु बना रहता है, मिथ्या कुकृत्य करने पर तुला हुआ है, विभिन्न प्रकार से उनके घात के लिए नित्य शठतापूर्वक दुष्टचित्त में लहर चलती रहती है, इसी तरह बाल जीव भी समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का दिन – रात, सोते या जागते सदा वैरी बना रहता है, मिथ्याबुद्धि से ग्रस्त रहता है, उन जीवों को नित्य निरन्तर शठतापूर्वक हनन करने की बात चित्त में जमाए रखता है, क्योंकि वह प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह ही पापस्थानों में ओतप्रोत रहता है। इसीलिए भगवान ने ऐसे जीव के लिए कहा है कि वह असंयत, अविरत, पापकर्मों का नाश एवं प्रत्याख्यान न करने वाला, पापक्रिया से युक्त, संवररहित, एकान्तरूप से प्राणियों को दण्ड देने वाल, सर्वथा बाल एवं सर्वथा सुप्त भी होता है। वह अज्ञानी जीव चाहे मन, वचन, काया और वाक्य का विचारपूर्वक (पापकर्म में) प्रयोग न करता हो, भले ही वह स्वप्न भी न देखता हो, तो भी वह (अप्रत्याख्यानी होने के कारण) पापकर्म का बन्ध करता रहता है। जैसे वध का विचार करने वाला घातक पुरुष उस गृहपति या गृहपतिपुत्र की अथवा राजा या राजपुरुष की प्रत्येक की अलग हलग हत्या करने का दुर्विचार चित्त में लिये हुए अहर्निश, सोते या जागते उसी धुन में रहता है, वह उनका शत्रु – सा बना रहता है, उसके दिमाग में धोखे देने के दुष्ट विचार घर किये रहते हैं, वह सदैव उनकी हत्या करने की धुन में रहता है, शठतापूर्वक प्राणी – दण्ड के पुष्ट विचार ही चित्त में किया करता है, इसी तरह समस्त प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों के, प्रत्येक के प्रति चित्त में निरन्तर हिंसा के भाव रखने वाला और प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक के पापस्थानों से अविरत, अज्ञानी जीव दिन – रात, सोते या जागते सदैव उन प्राणियों का शत्रु – सा बना रहता है, उन्हें धोखे से मारने का दुष्ट विचार करता है, एवं नित्य उन जीवों के शठतापूर्वक घात की बात चित्त में घोटता रहता है। स्पष्ट है कि ऐसे अज्ञानी जीव जब तक प्रत्याख्यान नहीं करते, तब तक वे पापकर्म से जरा भी विरत नहीं होते, इसलिए पापकर्म का बन्ध होता रहता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha choyae pannavagam evam vayasi–asamtaenam manenam pavaenam, asamtiyae vaie paviyae, asamtaenam kaenam pavaenam, ahanamtassa amanakkhassa aviyara-mana-vayana-kaya-vakkassa suvinamavi apassao pave kammeno kajjai. Kassa nam tam heum? Choyae evam braviti–annayarenam manenam pavaenam manavattie pave kamme kajjai, annayarie vaie paviyae vaivattie pave kamme kajjai, annayarenam kaenam pavaenam kayavattie pave kamme kajjai, hanamtassa samanakkhassa saviyara-mana-vayana-kaya-vakkassa suvi-namavi pasao–evamgunajatiyassa pave kamme kajjai. Punaravi choyae evam braviti–tatthanam jete evamahamsu–asamtaenam manenam pavaenam, asamtiyae vaie paviyae, asamtaenam kaenam pavaenam, ahanamtassa amanakkhassa aviyara-mana-vayana-kaya-vakkassa suvinamavi apassao pave kamme kajjai– [tattha nam je te evamahamsu] michchham te evamahamsu. Tattha pannavae choyagam evam vayasi–jam mae puvvam vuttam asamtaenam manenam pavaenam, asamtiyae vaie paviyae, asamta-enam kaenam pavaenam, ahanamtassa amanakkhassa aviyara-mana-vayana-kaya-vakkassa suvinamavi apassao pave kamme kajjai–tam sammam. Kassa nam tam heum? Acharya aha–tattha khalu bhagavaya chhajjivanikaya heu pannatta, tam jaha–pudhavikaiya, aukaiya, teukaiya, vau-kaiya, vanassaikaiya tasakaiya. Ichchetehim chhahim jivanikaehim aya appadihayapachchakkhaya-pavakamme, nichcham pasadha-vio-vata-chitta-damde, tam jaha– ‘panaivae musavae adinnadane mehune pariggahe kohe mane mayae lohe pejje dose kalahe abbha-kkhane pesunne paraparivae arairaie mayamose michchhadamsanasalle’. Acharya aha–tattha khalu bhagavaya vahae ditthamte pannatte–se jahanamae vahae siya gahavaissa va gahavaiputtassa va ranno va rayapurisassa va khanam nidae pavisissami khanam laddhuna vahissamitti paharemane. Se kim nu hu nama se vahae ‘tassa va’ gahavaissa tassa va gahavaiputtassa tassa va ranno tassa va rayapurisassa khanam nidae pavisissami khanam laddhunam vahissamitti paharemane diya va rao va sutte va jagaramane va amittabhue michchhasamthie nichcham pasadha -viovaya-chittadamde bhavai? Evam viyagaremane samiyae viyagare? Choyae–hamta bhavai. Acharya aha–jaha se vahae tassa va gahavaissa tassa va gahavaiputtassa tassa va ranno tassa va rayapurisassa khanam nidae pavisissami khanam laddhuna vahissamitti paharemane diya va rao va sutte va jagaramane va amittabhue michchhasamthie nichcham pasadha-viovaya-chittadamde, evameva bale vi savvesim pananam savvesim bhuyanam savvesim jivanam savvesim sattanam diya va rao va sutte va jagaramane va amittabhue michchhasamthie nichcham pasadha-viovaya-chittadamdam, tam jaha–panaivae java michchhadamsanasalle. Esa khalu bhagavaya akkhae asamjae avirae appadihayapachchakkhaya-pavakamme sakirie asamvude egamtadamde egamtabale egamtasutte ‘yavi bhavai’. Se bale aviyaramana-vayana-kaya-vakke suvinamavi na passai, pave ya se kamme kajjai. [sutra] jaha se vahae tassa va gahavaissa tassa va gahavaiputtassa tassa va ranno tassa va rayapurisassa ‘patteyam-patteyam’ ‘chittam samadaya’ diya va rao va sutte va jagaramane va amittabhue michchhasamthie nichcham pasadha-viovaya-chittadamde bhavai, eva-meva bale savvesim pananam savvesim bhuyanam savvesim jivanam savvesim sattanam patteyam-patteyam chittam samadaya diya va rao va sutte va jagaramane va amittabhue michchhasamthie nichcham pasadha-viovaya-chittadamde bhavai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa vishaya mem preraka ne prarupaka se isa prakara kaha – papayukta mana na hone para, papayukta vachana na hone para, tatha papayukta kaya na hone para jo praniyom ki himsa nahim karata, jo amanaska hai, jisaka mana, vachana, sharira aura vakya himsadi papakarma ke vichara se rahita hai, jo papakarma karane ka svapna bhi nahim dekhata aise jiva ke papakarma ka bandha nahim hota. Kisa karana se use papakarma ka bandha nahim hota\? Preraka isa prakara kahata hai – kisi ka mana papayukta hone para hi manasika papakarma kiya jata hai, tatha papayukta vachana hone para hi vachika papakarma kiya jata hai, evam papayukta sharira hone para hi kayika papakarma kiya jata hai. Jo prani himsa karata hai, himsayukta manovyapara se yukta hai, jo janabujha kara mana, vachana, kaya aura vakya ka prayoga karata hai, jo spashta vijnyanayukta bhi hai. Isa prakara ke gunom se yukta jiva papakarma karata hai. Punah preraka kahata hai – ‘isa vishaya mem jo loga aisa kahate haim ki mana papayukta na ho, vachana bhi papayukta na ho, tatha sharira bhi papayukta na ho, kisi prani ka ghata na karata ho, amanaska ho, mana, vachana, kaya aura vakya ke dvara bhi vichara se rahita ho, svapna mem bhi (papa) na dekhata ho, to bhi (vaha) papakarma karata hai.’ jo isa prakara kahate haim, ve mithya kahate haim. Isa sambandha mem prajnyapaka ne preraka se kaha – jo maimne pahale kaha tha ki mana papayukta na ho, vachana bhi papa – yukta na ho, tatha kaya bhi papayukta na ho, vaha kisi prani ki himsa bhi na karata ho, manovikala ho, chahe vaha mana, vachana, kaya aura vakya ka samajha – bujhakara prayoga na karata ho, aura vaisa (papakari) svapna bhi na dekhata ho, aisa jiva bhi papakarma karata hai, vahi satya hai. Aise kathana ke pichhe karana kya hai\? Acharya ne kaha – isa vishaya mem shri tirthamkara bhagavana ne shatjivanikaya karmabandha ke hetu ke rupa mem batae haim. Ina chhaha prakara ke jivanikaya ke jivom ki himsa se utpanna papa ko jisa atma ne nashta nahim kiya, tatha bhavi papa ko pratyakhyana dvara roka nahim, balki sadaiva nishthuratapurvaka praniyom ki ghata mem chitta lagae rakhata hai, aura unhem danda deta hai tatha pranatipata se lekara parigraha – paryanta tatha krodha se lekara mithyadarshanashalya taka ke papasthanom se nivritta nahim hota hai. Acharya punah kahate haim – isake vishaya mem bhagavana mahavira ne vadhaka ka drishtanta bataya hai – koi hatyara ho, vaha grihapati ki athava grihapati ke putra ki athava raja ki ya rajapurusha ki hatya karana chahata hai. Avasara pakara maim ghara mem pravesha karumga aura avasara pate hi prahara karake hatya kara dumga. Isa prakara vaha hatyara dina ko ya rata ko, sote ya jagate pratikshana isi udherabuna mem rahata hai, jo una sabaka amitra bhuta hai, una sabase mithya vyavahara karane mem juta hua hai, jo chittarupi danda mem sadaiva vividha prakara se nishthuratapurvaka ghata ka dushta vichara rakhata hai, kya aisa vyakti una purvokta vyaktiyom ka hatyara kaha ja sakata hai, ya nahim\? Acharyashri ke dvara isa prakara kahe jane para preraka samabhava ke satha kahata hai – ‘‘ham, pujyavara ! Aisa purusha hatyara hi hai.’’ Acharya na kaha – jaise usa grihapati ya grihapati ke putra ko athava raja ya rajapurusha ko marana chahane vala vaha vadhaka purusha sochata hai ki maim avasara pakara isake makana mem pravesha karumga aura mauka milate hi isa para prahara kara vadha kara dumga; aise kuvichara se vaha dina – rata, sote – jagate haradama ghata lagaye rahata hai, sada unaka shatru bana rahata hai, mithya kukritya karane para tula hua hai, vibhinna prakara se unake ghata ke lie nitya shathatapurvaka dushtachitta mem lahara chalati rahati hai, isi taraha bala jiva bhi samasta praniyom, bhutom, jivom aura sattvom ka dina – rata, sote ya jagate sada vairi bana rahata hai, mithyabuddhi se grasta rahata hai, una jivom ko nitya nirantara shathatapurvaka hanana karane ki bata chitta mem jamae rakhata hai, kyomki vaha pranatipata se lekara mithyadarshanashalya taka atharaha hi papasthanom mem otaprota rahata hai. Isilie bhagavana ne aise jiva ke lie kaha hai ki vaha asamyata, avirata, papakarmom ka nasha evam pratyakhyana na karane vala, papakriya se yukta, samvararahita, ekantarupa se praniyom ko danda dene vala, sarvatha bala evam sarvatha supta bhi hota hai. Vaha ajnyani jiva chahe mana, vachana, kaya aura vakya ka vicharapurvaka (papakarma mem) prayoga na karata ho, bhale hi vaha svapna bhi na dekhata ho, to bhi vaha (apratyakhyani hone ke karana) papakarma ka bandha karata rahata hai. Jaise vadha ka vichara karane vala ghataka purusha usa grihapati ya grihapatiputra ki athava raja ya rajapurusha ki pratyeka ki alaga halaga hatya karane ka durvichara chitta mem liye hue aharnisha, sote ya jagate usi dhuna mem rahata hai, vaha unaka shatru – sa bana rahata hai, usake dimaga mem dhokhe dene ke dushta vichara ghara kiye rahate haim, vaha sadaiva unaki hatya karane ki dhuna mem rahata hai, shathatapurvaka prani – danda ke pushta vichara hi chitta mem kiya karata hai, isi taraha samasta pranom, bhutom, jivom aura sattvom ke, pratyeka ke prati chitta mem nirantara himsa ke bhava rakhane vala aura pranatipata se lekara mithyadarshana shalya taka ke papasthanom se avirata, ajnyani jiva dina – rata, sote ya jagate sadaiva una praniyom ka shatru – sa bana rahata hai, unhem dhokhe se marane ka dushta vichara karata hai, evam nitya una jivom ke shathatapurvaka ghata ki bata chitta mem ghotata rahata hai. Spashta hai ki aise ajnyani jiva jaba taka pratyakhyana nahim karate, taba taka ve papakarma se jara bhi virata nahim hote, isalie papakarma ka bandha hota rahata hai. |