Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1001699 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ आहार परिज्ञा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-३ आहार परिज्ञा |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 699 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरं पुरक्खायं–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता नानाविहजोणिया नानाविहसंभवा नानाविह-वक्कमा, सरीरजोणिया सरीरसंभवा सरीरवक्कमा, सरीराहारा कम्मोवगा कम्मणियाणा कम्मगइया कम्मठिइया कम्मणा चेव विप्परियासमुवेंति। सेवमायाणह सेवमायाणित्ता आहारगुत्ते समिए सहिए सया जए। | ||
Sutra Meaning : | समस्त प्राणी, सर्व भूत, सर्व सत्त्व और सर्व जीव नाना प्रकार की योनियों में उत्पन्न होते हैं, वहीं वे स्थित रहते हैं, वहीं वृद्धि पाते हैं। वे शरीर से ही उत्पन्न होते हैं, शरीर में ही रहते हैं, तथा शरीर में ही बढ़ते हैं, एवं वे शरीर का ही आहार करते हैं। वे अपने – अपने कर्म का अनुसरण करते हैं, कर्म ही उस – उस योनि में उनकी उत्पत्ति का प्रधान कारण है। उनकी गति और स्थिति भी कर्म अनुसार होती है। वे कर्म के ही प्रभाव से सदैव भिन्न – भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त करते हुए दुःख के भागी होते हैं। हे शिष्यो ! ऐसा ही जानो, और इस प्रकार जानकर सदा आहारगुप्त, ज्ञान – दर्शन – चारित्रसहित, समितियुक्त एवं संयमपालनमें सदा यत्नशील बनो। ऐसा मैं कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavaram purakkhayam–savve pana savve bhuya savve jiva savve satta nanavihajoniya nanavihasambhava nanaviha-vakkama, sarirajoniya sarirasambhava sariravakkama, sarirahara kammovaga kammaniyana kammagaiya kammathiiya kammana cheva vippariyasamuvemti. Sevamayanaha sevamayanitta aharagutte samie sahie saya jae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Samasta prani, sarva bhuta, sarva sattva aura sarva jiva nana prakara ki yoniyom mem utpanna hote haim, vahim ve sthita rahate haim, vahim vriddhi pate haim. Ve sharira se hi utpanna hote haim, sharira mem hi rahate haim, tatha sharira mem hi barhate haim, evam ve sharira ka hi ahara karate haim. Ve apane – apane karma ka anusarana karate haim, karma hi usa – usa yoni mem unaki utpatti ka pradhana karana hai. Unaki gati aura sthiti bhi karma anusara hoti hai. Ve karma ke hi prabhava se sadaiva bhinna – bhinna avasthaom ko prapta karate hue duhkha ke bhagi hote haim. He shishyo ! Aisa hi jano, aura isa prakara janakara sada aharagupta, jnyana – darshana – charitrasahita, samitiyukta evam samyamapalanamem sada yatnashila bano. Aisa maim kahata hum. |