Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000364 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
Section : | उद्देशक-५ | Translated Section : | उद्देशक-५ |
Sutra Number : | 364 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–समणं वा, माहणं वा, गाम-पिंडोलगं वा, अतिहिं वा पुव्वपविट्ठं पेहाए णोउवाइक्कम्म पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा। से त्तमायाए एगंतमव-क्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता अनावायमसंलोए चिट्ठेज्जा। अहं पुणेवं जाणेज्जा–पडिसेहिए व दिन्ने वा, तओ तम्मि नियत्तिए। संजयामेव पविसेज्ज वा, ओभासेज्ज वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए। | ||
Sutra Meaning : | वह भिक्षु या भिक्षुणी यदि यह जाने कि वहाँ शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, ग्रामपिण्डोलक या अतिथि आदि पहले से प्रविष्ट हैं, तो यह देख वह उन्हें लाँघकर उस गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे और न ही दाता से आहारादि की याचना करे परन्तु एकांत स्थान में चला जाए, वहाँ जाकर कोई न आए – जाए तथा न देखे, इस प्रकार से खड़ा रहे। जब यह जान ले कि गृहस्थ ने श्रमणादि को आहार देने से इन्कार कर दिया है, अथवा उन्हें दे दिया है और वे उस घर से निपटा दिये गए हैं; तब संयमी साधु स्वयं उस गृहस्थ के घर में प्रवेश करे, अथवा आहारादि की याचना करे यही उस भिक्षु अथवा भिक्षुणी के लिए ज्ञान आदि के आचार की समग्रता – सम्पूर्णता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va gahavai-kulam pimdavaya-padiyae anupavitthe samane sejjam puna janejja–samanam va, mahanam va, gama-pimdolagam va, atihim va puvvapavittham pehae nouvaikkamma pavisejja va, obhasejja va. Se ttamayae egamtamava-kkamejja, egamtamavakkametta anavayamasamloe chitthejja. Aham punevam janejja–padisehie va dinne va, tao tammi niyattie. Samjayameva pavisejja va, obhasejja va. Eyam khalu tassa bhikkhussa va bhikkhunie va samaggiyam, jam savvatthehim samie sahie saya jae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha bhikshu ya bhikshuni yadi yaha jane ki vaham shakyadi shramana, brahmana, gramapindolaka ya atithi adi pahale se pravishta haim, to yaha dekha vaha unhem lamghakara usa grihastha ke ghara mem na to pravesha kare aura na hi data se aharadi ki yachana kare parantu ekamta sthana mem chala jae, vaham jakara koi na ae – jae tatha na dekhe, isa prakara se khara rahe. Jaba yaha jana le ki grihastha ne shramanadi ko ahara dene se inkara kara diya hai, athava unhem de diya hai aura ve usa ghara se nipata diye gae haim; taba samyami sadhu svayam usa grihastha ke ghara mem pravesha kare, athava aharadi ki yachana kare yahi usa bhikshu athava bhikshuni ke lie jnyana adi ke achara ki samagrata – sampurnata hai. |