Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000184 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ लोकसार |
Section : | उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन | Translated Section : | उद्देशक-६ उन्मार्गवर्जन |
Sutra Number : | 184 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | अच्चेइ जाइ-मरणस्स वट्टमग्गं वक्खाय-रए। सव्वे सरा णियट्टंति। तक्का जत्थ न विज्जइ। मई तत्थ न गहिया। ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयन्ने। से न दोहे, न हस्से, न वट्टे, न तंसे, न चउरंसे, न परिमण्डले। न किण्हे, न णीले, न लोहिए, न हालिद्दे, न सुक्किल्ले। न सुब्भिगंधे, न दुरभिगंधे। न तित्ते, न कडुए, न कसाए, न अंबिले, न महुरे। न कक्खडे, न मउए, न गरुए, न लहुए, न सीए, न उण्हे, न णिद्धे, न लुक्खे। न काऊ। न रुहे। न संगे। न इत्थी, न पुरिसे, न अन्नहा। परिण्णे सण्णे। उवमा न विज्जए। अरूवी सत्ता। अपयस्स पयं नत्थि। | ||
Sutra Meaning : | इस प्रकार वह जीवों की गति – आगति के कारणों का परिज्ञान करके व्याख्यानरत मुनि जन्म – मरण के वृत्त मार्ग को पार कर जाता है। (उस मुक्तात्मा का स्वरूप या अवस्था बताने के लिए) सभी स्वर लौट जाते हैं – वहाँ कोई तर्क नहीं है। वहाँ मति भी प्रवेश नहीं कर पाती, वह (बुद्धि ग्राह्य नहीं है)। वहाँ वह समस्त कर्ममल से रहित ओजरूप प्रतिष्ठान से रहित और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) ही है। वह न दीर्घ है, न ह्रस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है और न परिमण्डल है। वह न कृष्ण है, न नीला है, न लाल है, न पीला है और न शुक्ल है। न सुगन्ध(युक्त) है और न दुर्गन्ध(युक्त) है। वह न तिक्त है, न कड़वा है, न कसैला है, न खट्टा है और न मीठा है, वह न कर्कश है, न मृदु है, न गुरु है, न लघु है, न ठण्डा है, न गर्म है, न चिकना है, और न रूखा है। वह कायवान् नहीं है। वह जन्मधर्मा नहीं है, वह संगरहित है, वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है। वह (मुक्तात्मा) परिज्ञ है, संज्ञ है। वह सर्वतः चैतन्यमय है। (उसके लिए) कोई उपमा नहीं है। वह अरूपी (अमूर्त्त) सत्ता है। वह पदातीती है, उसको बोध कराने के लिए कोई पद नहीं है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Achchei jai-maranassa vattamaggam vakkhaya-rae. Savve sara niyattamti. Takka jattha na vijjai. Mai tattha na gahiya. Oe appatitthanassa kheyanne. Se na dohe, na hasse, na vatte, na tamse, na chauramse, na parimandale. Na kinhe, na nile, na lohie, na halidde, na sukkille. Na subbhigamdhe, na durabhigamdhe. Na titte, na kadue, na kasae, na ambile, na mahure. Na kakkhade, na maue, na garue, na lahue, na sie, na unhe, na niddhe, na lukkhe. Na kau. Na ruhe. Na samge. Na itthi, na purise, na annaha. Parinne sanne. Uvama na vijjae. Aruvi satta. Apayassa payam natthi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa prakara vaha jivom ki gati – agati ke karanom ka parijnyana karake vyakhyanarata muni janma – marana ke vritta marga ko para kara jata hai. (usa muktatma ka svarupa ya avastha batane ke lie) sabhi svara lauta jate haim – vaham koi tarka nahim hai. Vaham mati bhi pravesha nahim kara pati, vaha (buddhi grahya nahim hai). Vaham vaha samasta karmamala se rahita ojarupa pratishthana se rahita aura kshetrajnya (atma) hi hai. Vaha na dirgha hai, na hrasva hai, na vritta hai, na trikona hai, na chatushkona hai aura na parimandala hai. Vaha na krishna hai, na nila hai, na lala hai, na pila hai aura na shukla hai. Na sugandha(yukta) hai aura na durgandha(yukta) hai. Vaha na tikta hai, na karava hai, na kasaila hai, na khatta hai aura na mitha hai, vaha na karkasha hai, na mridu hai, na guru hai, na laghu hai, na thanda hai, na garma hai, na chikana hai, aura na rukha hai. Vaha kayavan nahim hai. Vaha janmadharma nahim hai, vaha samgarahita hai, vaha na stri hai, na purusha hai aura na napumsaka hai. Vaha (muktatma) parijnya hai, samjnya hai. Vaha sarvatah chaitanyamaya hai. (usake lie) koi upama nahim hai. Vaha arupi (amurtta) satta hai. Vaha padatiti hai, usako bodha karane ke lie koi pada nahim hai. |