Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000186 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ द्युत |
Section : | उद्देशक-१ स्वजन विधूनन | Translated Section : | उद्देशक-१ स्वजन विधूनन |
Sutra Number : | 186 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ओबुज्झमाणे इह माणवेसु आघाइ से नरे। जस्सिमाओ जाईओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवंति, अक्खाइ से नाणमणेलिसं। से किट्टति तेसिं समुट्ठियाणं णिक्खित्तदंडाणं समाहियाणं पण्णाणमंताणं इह मुत्तिमग्गं। एवं पेगे महावीरा विप्परक्कमंति। पासह एगेवसीयमाणे अणत्तपण्णे। से बेमि–से जहा वि कुम्मे हरए विनिविट्ठचित्ते, पच्छन्न-पलासे, उम्मग्गं से णोलहइ। भंजगा इव सन्निवेसं णोचयंति, एवं पेगे – ‘अनेगरूवेहिं कुलेहिं’ जाया, ‘रूवेहिं सत्ता’ कलुणं थणंति, नियाणाओ ते न लभंति मोक्खं। अह पास ‘तेहिं-तेहिं’ कुलेहिं आयत्ताए जाया– | ||
Sutra Meaning : | इस मर्त्यलोक में मनुष्यों के बीच में ज्ञाता वह पुरुष आख्यान करता है। जिसे ये जीव – जातियाँ सब प्रकार से भली – भाँति ज्ञात होती हैं, वही विशिष्ट ज्ञान का सम्यग् आख्यान करता है। वह (सम्बुद्ध पुरुष) इस लोक में उनके लिए मुक्ति – मार्ग का निरूपण करता है, जो (धर्माचरण के लिए) सम्यक् उद्यत है, मन, वाणी और काया से जिन्होंने दण्डरूप हिंसा का त्याग कर स्वयं को संयमित किया है, जो समाहित हैं तथा सम्यग् ज्ञानवान हैं। कुछ (विरले लघुकर्मा) महान् वीर पुरुष इस प्रकार के ज्ञान के आख्यान को सूनकर (संयममें) पराक्रम भी करते हैं। (किन्तु) उन्हें देखो, जो आत्मप्रज्ञा से शून्य हैं, इसलिए (संयममें) विषाद पाते हैं मैं कहता हूँ – जैसे एक कछुआ होता है, उसका चित्त (एक) महाह्रद में लगा हुआ है। वह सरोवर शैवाल और कमल के पत्ते से ढका हुआ है। वह कछुआ उन्मुक्त आकाश को देखने के लिए (कहीं) छिद्र को भी नहीं पा रहा है। जैसे वृक्ष अपने स्थान को नहीं छोड़ते, वैसे ही कुछ लोग हैं (जो अनेक सांसारिक कष्ट, आदि बार – बार पाते हुए भी गृहवास को नहीं छोड़ते)। इसी प्रकार कईं (गुरुकर्मा) लोग अनेक कुलों में जन्म लेते हैं, किन्तु रूपादि विषयों में आसक्त होकर (अनेक प्रकार के दुःखों से, उपद्रवों से आक्रान्त होने पर) करुण विलाप करते हैं, (लेकिन गृहवास को नहीं छोड़ते)। ऐसा व्यक्ति दुःखों के हेतुभूत कर्मों से मुक्त नहीं हो पाते। अच्छा तू देख वे (मूढ़ मनुष्य) उन कुलों में आत्मत्व के लिए निम्नोक्त रोगों के शिकार हो जाते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] obujjhamane iha manavesu aghai se nare. Jassimao jaio savvao supadilehiyao bhavamti, akkhai se nanamanelisam. Se kittati tesim samutthiyanam nikkhittadamdanam samahiyanam pannanamamtanam iha muttimaggam. Evam pege mahavira vipparakkamamti. Pasaha egevasiyamane anattapanne. Se bemi–se jaha vi kumme harae vinivitthachitte, pachchhanna-palase, ummaggam se nolahai. Bhamjaga iva sannivesam nochayamti, evam pege – ‘anegaruvehim kulehim’ jaya, ‘ruvehim satta’ kalunam thanamti, niyanao te na labhamti mokkham. Aha pasa ‘tehim-tehim’ kulehim ayattae jaya– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa martyaloka mem manushyom ke bicha mem jnyata vaha purusha akhyana karata hai. Jise ye jiva – jatiyam saba prakara se bhali – bhamti jnyata hoti haim, vahi vishishta jnyana ka samyag akhyana karata hai. Vaha (sambuddha purusha) isa loka mem unake lie mukti – marga ka nirupana karata hai, jo (dharmacharana ke lie) samyak udyata hai, mana, vani aura kaya se jinhomne dandarupa himsa ka tyaga kara svayam ko samyamita kiya hai, jo samahita haim tatha samyag jnyanavana haim. Kuchha (virale laghukarma) mahan vira purusha isa prakara ke jnyana ke akhyana ko sunakara (samyamamem) parakrama bhi karate haim. (kintu) unhem dekho, jo atmaprajnya se shunya haim, isalie (samyamamem) vishada pate haim Maim kahata hum – jaise eka kachhua hota hai, usaka chitta (eka) mahahrada mem laga hua hai. Vaha sarovara shaivala aura kamala ke patte se dhaka hua hai. Vaha kachhua unmukta akasha ko dekhane ke lie (kahim) chhidra ko bhi nahim pa raha hai. Jaise vriksha apane sthana ko nahim chhorate, vaise hi kuchha loga haim (jo aneka samsarika kashta, adi bara – bara pate hue bhi grihavasa ko nahim chhorate). Isi prakara kaim (gurukarma) loga aneka kulom mem janma lete haim, kintu rupadi vishayom mem asakta hokara (aneka prakara ke duhkhom se, upadravom se akranta hone para) karuna vilapa karate haim, (lekina grihavasa ko nahim chhorate). Aisa vyakti duhkhom ke hetubhuta karmom se mukta nahim ho pate. Achchha tu dekha ve (murha manushya) una kulom mem atmatva ke lie nimnokta rogom ke shikara ho jate haim. |