Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )

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Sr No : 1000176
Scripture Name( English ): Acharang Translated Scripture Name : आचारांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

Section : उद्देशक-५ ह्रद उपमा Translated Section : उद्देशक-५ ह्रद उपमा
Sutra Number : 176 Category : Ang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : सड्ढिस्स णं समणुण्णस्स संपव्वयमाणस्स–समियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ। समियंति मण्णमा-णस्स एगया असमिया होइ। असमियंति मण्णमाणस्स एगया समिया होइ। असमियंति मण्णमाणस्स एगया असमिया होइ। समियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, समिया होइ उवेहाए। असमियंति मण्णमाणस्स समिया वा, असमिया वा, असमिया होइ उवेहाए। उवेहमानो अणुवेहमाणं बूया उवेहाहि समियाए। इच्चेवं तत्थ संधी झोसितो भवति। उट्ठियस्स ठियस्स गतिं समणुपासह। एत्थवि बालभावे अप्पाणं णोउवदंसेज्जा।
Sutra Meaning : श्रद्धावान्‌ सम्यक्‌ प्रकार से अनुज्ञा शील एवं प्रव्रज्या को सम्यक्‌ स्वीकार करने या पालने वाला (१) कोई मुनि जिनोक्त तत्त्व को सम्यक्‌ मानता है और उस समय (उत्तरकाल में) भी सम्यक्‌ (मानता) रहता है। (२) कोई प्रव्रज्याकाल में सम्यक्‌ मानता है, किन्तु बाद में किसी समय उसका व्यवहार असम्यक्‌ हो जाता है। (३) कोई मुनि (प्रव्रज्याकाल में) असम्यक्‌ मानता है किन्तु एक दिन सम्यक्‌ हो जाता है। (४) कोई साधक उसे असम्यक्‌ मानता है और बाद में भी असम्यक्‌ मानता रहता है। (५) (वास्तव में) जो साधक सम्यक्‌ हो या असम्यक्‌, उसकी सम्यक्‌ उत्प्रेक्षा के कारण वह सम्यक्‌ ही होती है। (६) जो साधक किसी वस्तु को असम्यक्‌ मान रहा है, वह सम्यक्‌ हो या असम्यक्‌, उसके लिए वह असम्यक्‌ ही होती है। (इस प्रकार) उत्प्रेक्षा करने वाला उत्प्रेक्षा नहीं करने वाले से कहता है – सम्यक्‌ भाव समभाव – माध्यस्थ भाव से उत्प्रेक्षा करो। इस (पूर्वोक्त) प्रकार से व्यवहार में होने वाली सम्यक्‌ – असम्यक्‌ की गुत्थी सुलझाई जा सकती है। तुम (संयम में सम्यक्‌ प्रकार से) उत्थित और स्थिति की गति देखो। तुम बाल भाव में भी अपने – आपको प्रदर्शित मत करो।
Mool Sutra Transliteration : Saddhissa nam samanunnassa sampavvayamanassa–samiyamti mannamanassa egaya samiya hoi. Samiyamti mannama-nassa egaya asamiya hoi. Asamiyamti mannamanassa egaya samiya hoi. Asamiyamti mannamanassa egaya asamiya hoi. Samiyamti mannamanassa samiya va, asamiya va, samiya hoi uvehae. Asamiyamti mannamanassa samiya va, asamiya va, asamiya hoi uvehae. Uvehamano anuvehamanam buya uvehahi samiyae. Ichchevam tattha samdhi jhosito bhavati. Utthiyassa thiyassa gatim samanupasaha. Etthavi balabhave appanam nouvadamsejja.
Sutra Meaning Transliteration : Shraddhavan samyak prakara se anujnya shila evam pravrajya ko samyak svikara karane ya palane vala (1) koi muni jinokta tattva ko samyak manata hai aura usa samaya (uttarakala mem) bhi samyak (manata) rahata hai. (2) koi pravrajyakala mem samyak manata hai, kintu bada mem kisi samaya usaka vyavahara asamyak ho jata hai. (3) koi muni (pravrajyakala mem) asamyak manata hai kintu eka dina samyak ho jata hai. (4) koi sadhaka use asamyak manata hai aura bada mem bhi asamyak manata rahata hai. (5) (vastava mem) jo sadhaka samyak ho ya asamyak, usaki samyak utpreksha ke karana vaha samyak hi hoti hai. (6) jo sadhaka kisi vastu ko asamyak mana raha hai, vaha samyak ho ya asamyak, usake lie vaha asamyak hi hoti hai. (isa prakara) utpreksha karane vala utpreksha nahim karane vale se kahata hai – samyak bhava samabhava – madhyastha bhava se utpreksha karo. Isa (purvokta) prakara se vyavahara mem hone vali samyak – asamyak ki gutthi sulajhai ja sakati hai. Tuma (samyama mem samyak prakara se) utthita aura sthiti ki gati dekho. Tuma bala bhava mem bhi apane – apako pradarshita mata karo.