Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011667 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग) |
Translated Chapter : |
8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग) |
Section : | 3. अहिंसा-सूत्र | Translated Section : | 3. अहिंसा-सूत्र |
Sutra Number : | 165 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार । २४७ | ||
Mool Sutra : | यः मन्यते हिनस्मि हिंस्ये च परैः सत्वैः। स मूढ़ोऽज्ञानी ज्ञान्यतस्तु विपरीतः ।। | ||
Sutra Meaning : | जो ऐसा मानता है कि मैं जीवों को मारता हूँ अथवा दूसरों के द्वारा उनकी हिंसा कराता हूँ, वह मूढ़ अज्ञानी है। ज्ञानी इससे विपरीत होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Yah manyate hinasmi himsye cha paraih satvaih. Sa murhojnyani jnyanyatastu viparitah\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo aisa manata hai ki maim jivom ko marata hum athava dusarom ke dvara unaki himsa karata hum, vaha murha ajnyani hai. Jnyani isase viparita hota hai. |