Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011346 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Translated Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Section : | 9. परमात्म तत्त्व | Translated Section : | 9. परमात्म तत्त्व |
Sutra Number : | 343 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | परमात्म प्रकाश । १.३३; तुलना: योग शास्त्र। १२.८ | ||
Mool Sutra : | देहदेवलि जो वसइ, देउ अणाइ अणंतु। केवलणाणफुरंततणु, सो परमम्पु णिभंतु ।। | ||
Sutra Meaning : | जो व्यवहार दृष्टि से देह रूपी देवालय में बसता है, और परमार्थतः देह से भिन्न है, वह मेरा उपास्य देव अनाद्यनन्त अर्थात् त्रिकाल शाश्वत है। वह केवलज्ञान-स्वभावी है। निस्सन्देह वही अचलित स्वरूप कारण-परमात्मा है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Dehadevali jo vasai, deu anai anamtu. Kevalananaphuramtatanu, so paramampu nibhamtu\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo vyavahara drishti se deha rupi devalaya mem basata hai, aura paramarthatah deha se bhinna hai, vaha mera upasya deva anadyananta arthat trikala shashvata hai. Vaha kevalajnyana-svabhavi hai. Nissandeha vahi achalita svarupa karana-paramatma hai. |