Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2011348 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Translated Chapter : |
13. तत्त्वार्थ अधिकार |
Section : | 9. परमात्म तत्त्व | Translated Section : | 9. परमात्म तत्त्व |
Sutra Number : | 345 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | अध्यात्मसार । २०.२४; तुलना: =देखो गाथा ३४४। | ||
Mool Sutra : | ज्ञानं केवलसंज्ञं, योगनिरोधः समग्रकर्म्महतिः। सिद्धिनिवासश्च यदा, परमात्मा स्यात्तदा व्यक्तः ।। | ||
Sutra Meaning : | उस जीवात्मा को जब केवलज्ञान उत्पन्न हो जाता है, योगनिरोध के द्वारा समस्त कर्म नष्ट हो जाते हैं और वह जब लोक-शिखर पर सिद्धालय में जा बसता है, तब उसमें ही वह कारण-परमात्मा व्यक्त हो जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Jnyanam kevalasamjnyam, yoganirodhah samagrakarmmahatih. Siddhinivasashcha yada, paramatma syattada vyaktah\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa jivatma ko jaba kevalajnyana utpanna ho jata hai, yoganirodha ke dvara samasta karma nashta ho jate haim aura vaha jaba loka-shikhara para siddhalaya mem ja basata hai, taba usamem hi vaha karana-paramatma vyakta ho jata hai. |