Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004216 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र | Translated Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र |
Sutra Number : | 216 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | पंचास्तिकाय 169 | ||
Mool Sutra : | निश्चयनयेन भणित-स्त्रिभिस्तैः, समाहितः खलु यः आत्मा। न करोति किंचिदप्यन्यं, न मुञ्चति स मोक्षमार्ग इति।।९।। | ||
Sutra Meaning : | जो आत्मा इन तीनों से समाहित हो जाता है और अन्य कुछ नहीं करता है और न कुछ छोड़ता है, उसीको निश्चयनय से मोक्षमार्ग कहा गया है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Nishchayanayena bhanita-stribhistaih, samahitah khalu yah atma. Na karoti kimchidapyanyam, na munchati sa mokshamarga iti..9.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo atma ina tinom se samahita ho jata hai aura anya kuchha nahim karata hai aura na kuchha chhorata hai, usiko nishchayanaya se mokshamarga kaha gaya hai. |