Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004219 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १८. सम्यग्दर्शनसूत्र | Translated Section : | १८. सम्यग्दर्शनसूत्र |
Sutra Number : | 219 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | रयणसार 4 | ||
Mool Sutra : | सम्यक्त्वरत्नसारं, मोक्षमहावृक्षमूलमिति भणितम्। तज्ज्ञायते निश्चय-व्यवहारस्वरूपद्विभेदम्।।१।। | ||
Sutra Meaning : | रत्नत्रय में सम्यग्दर्शन ही श्रेष्ठ है और इसीको मोक्षरूपी महावृक्ष का मूल कहा गया है। यह निश्चय और व्यवहार के रूप में दो प्रकार का है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Samyaktvaratnasaram, mokshamahavrikshamulamiti bhanitam. Tajjnyayate nishchaya-vyavaharasvarupadvibhedam..1.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ratnatraya mem samyagdarshana hi shreshtha hai aura isiko moksharupi mahavriksha ka mula kaha gaya hai. Yaha nishchaya aura vyavahara ke rupa mem do prakara ka hai. |