Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004217 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र | Translated Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र |
Sutra Number : | 217 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | भावपाहुड 31 | ||
Mool Sutra : | आत्मा आत्मनि रतः, सम्यग्दृष्टिः भवति स्फुटं जीवः। जानाति तत् संज्ञानं, चरतीह चारित्रमार्ग इति।।१०।। | ||
Sutra Meaning : | (इस दृष्टि से) आत्मा में लीन आत्मा ही सम्यग्दृष्टि होता है। जो आत्मा को यथार्थरूप में जानता है वही सम्यग्ज्ञान है, और उसमें स्थित रहना ही सम्यक्चारित्र है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Atma atmani ratah, samyagdrishtih bhavati sphutam jivah. Janati tat samjnyanam, charatiha charitramarga iti..10.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (isa drishti se) atma mem lina atma hi samyagdrishti hota hai. Jo atma ko yathartharupa mem janata hai vahi samyagjnyana hai, aura usamem sthita rahana hi samyakcharitra hai. |