Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004215 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र | Translated Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र |
Sutra Number : | 215 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार 16 | ||
Mool Sutra : | दर्शनज्ञानचारित्राणि, सेवितव्यानि साधुना नित्यम्। तानि पुनर्जानीहि, त्रीण्यप्यात्मानं चैव निश्चयतः।।८।। | ||
Sutra Meaning : | साधु को नित्य दर्शन, ज्ञान और चारित्र का पालन करना चाहिए। निश्चयनय से इन तीनों को आत्मा ही समझना चाहिए। ये तीनों आत्मस्वरूप ही हैं। अतः निश्चय से आत्मा का सेवन ही उचित है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Darshanajnyanacharitrani, sevitavyani sadhuna nityam. Tani punarjanihi, trinyapyatmanam chaiva nishchayatah..8.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sadhu ko nitya darshana, jnyana aura charitra ka palana karana chahie. Nishchayanaya se ina tinom ko atma hi samajhana chahie. Ye tinom atmasvarupa hi haim. Atah nishchaya se atma ka sevana hi uchita hai. |