Sutra Navigation: Dashvaikalik ( दशवैकालिक सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1021506 | ||
Scripture Name( English ): | Dashvaikalik | Translated Scripture Name : | दशवैकालिक सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चूलिका-१ रतिवाक्या |
Translated Chapter : |
चूलिका-१ रतिवाक्या |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 506 | Category : | Mool-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] इह खलु भो! पव्वइएणं, उप्पन्नदुक्खेणं, संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं, ओहानुप्पेहिणा अनो-हाइएणं चेव, हयरस्सि-गयंकुस-पोयपडागाभूयाइं इमाइं अट्ठारस ठाणाइं सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवंति, तं जहा– १. हं भो! दुस्समाए दुप्पजीवी। २. लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा। ३. भुज्जो य साइबहुला मणुस्सा। ४. इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ। ५. ओमजनपुरक्कारे। ६. वंतस्स य पडियाइयणं। ७. अहरगइवासोवसंपया। ८. दुल्लभे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं। ९. आयंके से वहाय होइ। १०. संकप्पे से वहाय होइ। ११. सोवक्केसे गिहवासे। निरुवक्केसे परियाए। १२. बंधे गिहवासे। मोक्खे परियाए। १३. सावज्जे गिहवासे। अणवज्जे परियाए। १४. बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा। १५. पत्तेयं पुण्णपावं। १६. अनिच्चे खलु भो! मनुयाण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले। १७. बहुं च खलु पाव कम्मं पगडं। १८. पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुव्विं दुच्चिवण्णाणं दुप्पडिकंताणं वेयइत्ता मोक्खो नत्थि अवेयइत्ता, तवसा वा ज्झोसइत्ता अट्ठारसमं पयं भवइ। भवइ य इत्थ सिलोगो– | ||
Sutra Meaning : | इस निर्ग्रन्थ – प्रवचन में जो प्रव्रजित हुआ है, किन्तु कदाचित् दुःख उत्पन्न हो जाने से संयम में उसका चित्त अरतियुक्त हो गया। अतः वह संयम का परित्याग कर जाना चाहता है, किन्तु संयम त्यागा नहीं है, उससे पूर्व इन अठारह स्थानों का सम्यक् प्रकार से आलोचन करना चाहिए। ये अठारह स्थान अश्व के लिए लगाम, हाथी के लिए अंकुश और पोत के लिए पताका समान हैं। जैसे – ओह ! दुष्षमा आरे में जीवन दुःखमय है। गृहस्थों के कामभोग असार एवं अल्पकालिक हैं। मनुष्य प्रायः कपटबहुल हैं। मेरा यह दुःख चिरकाल नहीं होगा। गृहवास में नीच जनों का पुरस्कार – सत्कार (करना पड़ेगा।) पुनः गृहस्थवास में जानेका अर्थ है – वमन किये हुए का वापिस पीना। नीच गतियों में निवास को स्वीकार करना। अहो ! गृहवास में गृहस्थों के लिए शुद्ध धर्म निश्चय ही दुर्लभ है। वहाँ आतंक उसके वध का कारण होता है। वहाँ संकल्प वध के लिए होता है। गृहवास क्लेश – युक्त है, मुनिपर्याय क्लेशरहित है। गृहवास बन्ध है, श्रमणपर्याय मोक्ष है। गृहवास सावद्य है, मुनिपर्याय अनवद्य है। गृहस्थों के कामभोग बहुजन – साधारण हैं। प्रत्येक के पुण्य और पाप अपने – अपने हैं। मनुष्यों का जीवन कुश के अग्र भाग पर स्थित जलबिन्दु के समान चंचल है, निश्चय ही अनित्य है। मैंने पूर्व बहुत ही पापकर्म किये हैं। दुष्ट भावों से आचरित तथा दुष्पराक्रम से अर्जित पूर्वकृत पापकर्मों का फल भोग लेने पर ही मोक्ष होता है, अथवा तप के द्वारा क्षय करने पर ही मोक्ष होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] iha khalu bho! Pavvaienam, uppannadukkhenam, samjame araisamavannachittenam, ohanuppehina ano-haienam cheva, hayarassi-gayamkusa-poyapadagabhuyaim imaim attharasa thanaim sammam sampadilehiyavvaim bhavamti, tam jaha– 1. Ham bho! Dussamae duppajivi. 2. Lahussaga ittariya gihinam kamabhoga. 3. Bhujjo ya saibahula manussa. 4. Ime ya me dukkhe na chirakalovatthai bhavissai. 5. Omajanapurakkare. 6. Vamtassa ya padiyaiyanam. 7. Aharagaivasovasampaya. 8. Dullabhe khalu bho! Gihinam dhamme gihivasamajjhe vasamtanam. 9. Ayamke se vahaya hoi. 10. Samkappe se vahaya hoi. 11. Sovakkese gihavase. Niruvakkese pariyae. 12. Bamdhe gihavase. Mokkhe pariyae. 13. Savajje gihavase. Anavajje pariyae. 14. Bahusaharana gihinam kamabhoga. 15. Patteyam punnapavam. 16. Anichche khalu bho! Manuyana jivie kusaggajalabimduchamchale. 17. Bahum cha khalu pava kammam pagadam. 18. Pavanam cha khalu bho! Kadanam kammanam puvvim duchchivannanam duppadikamtanam veyaitta mokkho natthi aveyaitta, tavasa va jjhosaitta attharasamam payam bhavai. Bhavai ya ittha silogo– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa nirgrantha – pravachana mem jo pravrajita hua hai, kintu kadachit duhkha utpanna ho jane se samyama mem usaka chitta aratiyukta ho gaya. Atah vaha samyama ka parityaga kara jana chahata hai, kintu samyama tyaga nahim hai, usase purva ina atharaha sthanom ka samyak prakara se alochana karana chahie. Ye atharaha sthana ashva ke lie lagama, hathi ke lie amkusha aura pota ke lie pataka samana haim. Jaise – oha ! Dushshama are mem jivana duhkhamaya hai. Grihasthom ke kamabhoga asara evam alpakalika haim. Manushya prayah kapatabahula haim. Mera yaha duhkha chirakala nahim hoga. Grihavasa mem nicha janom ka puraskara – satkara (karana parega.) punah grihasthavasa mem janeka artha hai – vamana kiye hue ka vapisa pina. Nicha gatiyom mem nivasa ko svikara karana. Aho ! Grihavasa mem grihasthom ke lie shuddha dharma nishchaya hi durlabha hai. Vaham atamka usake vadha ka karana hota hai. Vaham samkalpa vadha ke lie hota hai. Grihavasa klesha – yukta hai, muniparyaya klesharahita hai. Grihavasa bandha hai, shramanaparyaya moksha hai. Grihavasa savadya hai, muniparyaya anavadya hai. Grihasthom ke kamabhoga bahujana – sadharana haim. Pratyeka ke punya aura papa apane – apane haim. Manushyom ka jivana kusha ke agra bhaga para sthita jalabindu ke samana chamchala hai, nishchaya hi anitya hai. Maimne purva bahuta hi papakarma kiye haim. Dushta bhavom se acharita tatha dushparakrama se arjita purvakrita papakarmom ka phala bhoga lene para hi moksha hota hai, athava tapa ke dvara kshaya karane para hi moksha hota hai. |