Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017843 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Translated Chapter : |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 1143 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] (१३) चिंतमाणीए चेव उप्पन्नं केवलं णाणं कया य देवेहिं केवलिमहिमा। (१४) केवलिणा वि नर सुरासुराणं पणासियं संसय तम पडलं अज्जियाणं च। (१५) तओ भत्तिब्भरनिब्भराए पणामपुव्वं पुट्ठो केवली रज्जाए जहा भयवं किमट्ठमहं एमहंताणं महा वाहि वेयणाणं भायणं संवुत्ता (१६) ताहे गोयमा सजल जलहर सुरदुंदुहि निग्घोस मणोहारि गंभीर सरेणं भणियं केव-लिणा जहा–सुणसु दुक्करकारिए। जं तुज्झ सरीर विहडण कारणं ति। (१७) तए रत्त पित्त दूसिए अब्भंतरओ सरीरगे सिणिद्धाहारमाकंठाए कोलियग मीसं परिभुत्तं (१८) अन्नं च एत्थ गच्छे एत्तिए सए साहु साहुणीणं, तहा वि जावइएणं अच्छीणि पक्खालि-ज्जंति तावइयं पि बाहिर पाणगं सागारियट्ठाय निमित्तेणावि नो णं कयाइ परिभुज्जइ। (१९) तए पुन गोमुत्तं पडिग्गहणगयाए तस्स मच्छियाहिं भिणिहिणिंत सिंघाणग लाला लोलिय वयणस्स णं सड्ढगसुयस्स बाहिरपाणगं संघट्टिऊणं मुहं पक्खालियं। (२०) तेण य बाहिर पाणय संघट्टण विराहणेणं ससुरासुर जग वंदाणं पि अलंघणिज्जा गच्छमेरा अइक्कमिया। (२१) तं च न खमियं तुज्झ पवयण देवयाए जहा–साहूणं साहूणीणं च पाणोवरमे वि न छिप्पे हत्थेणा वि जं कूव तलाय पोक्खरिणि सरियाइ मतिगयं उदगं ति। (२२) केवलं तु जमेव विराहियं ववगय सयल दोसं फासुगं तस्स परिभोगं पन्नत्तं वीयरागेहिं। (२३) ता सिक्खवेमि ताव एसा हु दुरायारा जेण अन्नो को वि न एरिस समायारं पवत्तेइ। (२४) त्ति चिंतिऊणं अमुगं अमुगं चुन्नजोगं समुद्दिसमाणाए पक्खित्तं असण मज्झम्मि ते देवयाए, तं च तेणोवलक्खिउं सक्कियं ति देवयाए चरियं। (२५) एएण कारणेणं ते सरीरं विहडियं ति, न उणं फासुदग-परिभोगेणं ति। (२६) ताहे गोयमा रज्जाए वि भावियं जहा एवमेयं न अन्नह त्ति चिंतिऊण विन्नविओ केवली जहा। (२७) भयवं जइ अहं जहुत्तं पायच्छित्तं चरामि, ता किं पन्नप्पइ मज्झ एयं तनुं (२८) तओ केवलिणा भणियं जहा–जइ कोइ पायच्छित्तं पयच्छइ ता पन्नप्पइ। (२९) रज्जाए भणियं जहा भयवं जइ तुमं चिय पायच्छित्तं पयच्छसि अन्नो को एरिसमहप्पा (३०) तओ केवलिणा भणियं जहा–दुक्करकारिए पयच्छामि अहं ते पच्छित्तं, नवरं पच्छित्तं एव नत्थि जेणं ते सुद्धी भवेज्जा। (३१) रज्जाए भणियं भयवं किं कारणं। (३२) ति केवलिणा भणियं जहा–जं ते संजइ वंद पुरओ गिराइयं जहा मम फासुग पाण परिभोगेण सरीरगं विहडियं ति। (३३) एयं च दुट्ठ पाव महा समुद्दाएक्क पिंडं तुह वयणं सोच्चा संखुद्धाओ सव्वाओ चेव इमाओ संजईओ। (३४) चिंतियं च एयाहिं जहा–निच्छयओ विमुच्चामो फासुओदगं। (३५) तयज्झवसा-यस्स आलोइयं निंदियं गरहियं च एयाहिं दिन्नं च मए एयाण पायच्छित्तं। (३६) एत्थं च एतेव वयण दोसेणं जं ते समज्जियं अच्चंत कडु विरस दारुणं बद्धपुट्ठ निकाइयं तुंगं पावरासिं तं च तए कुट्ठ भगंदर जलोदर वाय गुम्म सास निरोह हरिसागंडमालाइ अनेग वाहि वेयणा परिगय सरीराए दारिद्द दुक्ख दोहग्ग अयस अब्भक्खाण संताव उव्वेग संदीविय पज्जलियाए अनंतेहिं भव-गहणेहिं सुदीह कालेणं तु अहन्निसाणुभवेयव्वं। (३७) एएण कारणेणं एस इमा गोयमा सा रज्जज्जिया जाए अगीयत्थत्त दोसेणं वायामेत्तेण एव एमहंतं दुक्खदायगं पावकम्मं समज्जियं ति। | ||
Sutra Meaning : | ऐसा सोचते हुए उस साध्वीजी को केवलज्ञान पैदा हुआ। उस वक्त देव ने केवलज्ञान का महोत्सव किया। वो केवली साध्वीजी ने मानव, देव, असुर के और साध्वी के संशयरूप अंधकार के पड़ल को दूर किया। उसके बाद भक्ति से भरपूर हृदयवाली रज्जा आर्या ने प्रणाम करके सवाल पूछा कि – हे भगवंत ! किस वजह से मुझे इतनी बड़ी महावेदनावाला व्याधि पैदा हुआ ? तब हे गौतम ! जलवाले मेघ और दुंदुभि के शब्द समान मनोहर गम्भीर स्वरवाले केवलीने कहा कि – हे दुष्करकारिके तु सुन – कि तुम्हारे शरीर का विघटन क्यों हुआ ? तुम्हारा शरीर रक्त और पित्त के दोष से दूषित तो था ही और फिर उसमें उस स्निग्ध आहार के साथ मकड़े के जन्तुवाला आहार भरपेट खाया। दूसरी बजह यह भी है कि – इस गच्छ में सेंकड़ो प्रमाण साधु – साध्वी होने के बावजूद, जितने सचित्त पानी से केवल आँखें धो सकते हैं उतने अल्प लेकिन सचित्त जल का गृहस्थ की वजह से कभी भी साधु को भोगवटा नहीं कर सकते। उसके बजाय तुने तो गौमुत्र ग्रहण करने के लिए जाते – जाते जिस के मुख नासिका में से गलते लींट लपेटे हुए थे पर लगे थे। उस वजह से बणबणनेवाली मधुमक्खी उड़ रही थी, ऐसे श्रावक पुत्र के मुख को सचित्त जल से प्रक्षालन किया वैसे सचित्त जल का संघट्टा करने की विराधना की वजह से देव असुर की वंदन करने के लायक अलंघनीय ऐसी गच्छमर्यादा को भी तोड़ दिया। प्रवचन देवता यह तुम्हारा अघटित व्यवहार सह न सके या साधु – साध्वी ने प्राण के संशय में भी कूए, तालाब, वावड़ी, नदी आदि के जल को हाथ से छूना न कल्पे। वीतराग परमात्मा ने साधु – साध्वी के लिए सर्वथा अचित्त जल हो तो भी समग्र दोष रहित हो, ऊबाला हुआ हो, उसका ही परिभोग करना कल्पे। इसलिए देवता ने चिन्तवन किया कि इस दुराचारी को इस तरह शिक्षा करूँ कि जिससे उसकी तरह दूसरी किसी भी तरह का आचरण या प्रवृत्ति न करे। ऐसा मानकर कुछ कुछ चूर्ण का योग जब तुम भोजन करते थे तब उन देवताओं ने तुम्हारे भोजन में डाला। उन देवता के किए हुए प्रयोग हम जानने के लिए समर्थ नहीं हो सकते। इस वजह से तुम्हारा शरीर नष्ट हुआ है, लेकिन अचित्त जल पीने से नष्ट नहीं हुआ। उस वक्त रज्जा – आर्या ने सोचा कि उस प्रकार ही है। केवली के वचन में फर्क नहीं होगा। ऐसा सोचकर केवली ने बिनती की कि – हे भगवंत ! यदि मैं यथोक्त प्रायश्चित्त का सेवन करूँ तो मेरा यह शरीर अच्छा हो जाए तब केवली ने प्रत्युत्तर दिया कि यदि कोई प्रायश्चित्त दे तो सुधारा हो सके। रज्जा आर्या ने कहा कि – हे भगवंत ! आप ही मुझे प्रायश्चित्त दो। दूसरे कौन तुम्हारे समान आत्मा है ? तब केवली ने कहा कि हे दुष्करकारिके ! मैं तुम्हें प्रायश्चित्त तो दे सकता हूँ लेकिन तुम्हारे लिए ऐसा कोई प्रायश्चित्त ही नहीं है कि जिससे तुम्हारी शुद्धि हो सके। रज्जा ने पूछा कि हे भगवंत ! किस वजह से मेरी शुद्धि नहीं है ? केवली ने कहा कि – तूने जिस साध्वी समुदाय के सामने ऐसा कहा कि अचित्त पानी का उपभोग करने से मेरा शरीर सड़ गया। इस दुष्ट पाप के बड़े समुदाय के एक पिंड़ समान तुम्हारे वचन को सुनकर यह सभी साध्वी के हृदय हिल गए। वो सब सोचने लगे कि अब हम भी अचित्त जल का त्याग कर दे लेकिन उस साध्वीओने तो अशुभ अध्यवसाय की आलोचना निंदा और गुरु साक्षी में गर्हणा कर ली। उन्हें तो मैंने प्रायश्चित्त दे दिया है। इस प्रकार अचित्त जल – त्याग से और वचन – दोष से काफी कष्टदायक विरस भयानक बद्ध स्पृष्ट निकाचित्त बड़े पाप का ढ़ग तूने उपार्जन किया है और उस पाप समुदाय से तुम कोढ़, व्याधि, भगंदर, जलोदर, वायु, गुमड़, साँस फूलना, हरस, मसा, कंठमाल आदि कईं व्याधि की वेदना से भरे शरीरवाली बनोगी। फिर दरिद्र के दुःख, दुर्भाग्य, अपयश, झूठे आरोप, कलंक लगाना, संताप, उद्वेग, क्लेशादि से हंमेशा जलनेवाली ऐसी अनन्त भव तक काफी लम्बे अरसे तक, जैसा दिन में वैसा लगातार रात को दुःख भुगतना पड़ेगा, इस वजह से हे गौतम ! यह वो रज्जा – आर्या अगीतार्थपन के दोष से केवल वचन से ही ऐसे महान दुःखदायक पापकर्म का उपार्जन करनेवाली हुई | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] (13) chimtamanie cheva uppannam kevalam nanam kaya ya devehim kevalimahima. (14) kevalina vi nara surasuranam panasiyam samsaya tama padalam ajjiyanam cha. (15) tao bhattibbharanibbharae panamapuvvam puttho kevali rajjae jaha bhayavam kimatthamaham emahamtanam maha vahi veyananam bhayanam samvutta (16) tahe goyama sajala jalahara suradumduhi nigghosa manohari gambhira sarenam bhaniyam keva-lina jaha–sunasu dukkarakarie. Jam tujjha sarira vihadana karanam ti. (17) tae ratta pitta dusie abbhamtarao sarirage siniddhaharamakamthae koliyaga misam paribhuttam (18) annam cha ettha gachchhe ettie sae sahu sahuninam, taha vi javaienam achchhini pakkhali-jjamti tavaiyam pi bahira panagam sagariyatthaya nimittenavi no nam kayai paribhujjai. (19) tae puna gomuttam padiggahanagayae tassa machchhiyahim bhinihinimta simghanaga lala loliya vayanassa nam saddhagasuyassa bahirapanagam samghattiunam muham pakkhaliyam. (20) tena ya bahira panaya samghattana virahanenam sasurasura jaga vamdanam pi alamghanijja gachchhamera aikkamiya. (21) tam cha na khamiyam tujjha pavayana devayae jaha–sahunam sahuninam cha panovarame vi na chhippe hatthena vi jam kuva talaya pokkharini sariyai matigayam udagam ti. (22) kevalam tu jameva virahiyam vavagaya sayala dosam phasugam tassa paribhogam pannattam viyaragehim. (23) ta sikkhavemi tava esa hu durayara jena anno ko vi na erisa samayaram pavattei. (24) tti chimtiunam amugam amugam chunnajogam samuddisamanae pakkhittam asana majjhammi te devayae, tam cha tenovalakkhium sakkiyam ti devayae chariyam. (25) eena karanenam te sariram vihadiyam ti, na unam phasudaga-paribhogenam ti. (26) tahe goyama rajjae vi bhaviyam jaha evameyam na annaha tti chimtiuna vinnavio kevali jaha. (27) bhayavam jai aham jahuttam payachchhittam charami, ta kim pannappai majjha eyam tanum (28) tao kevalina bhaniyam jaha–jai koi payachchhittam payachchhai ta pannappai. (29) rajjae bhaniyam jaha bhayavam jai tumam chiya payachchhittam payachchhasi anno ko erisamahappa (30) tao kevalina bhaniyam jaha–dukkarakarie payachchhami aham te pachchhittam, navaram pachchhittam eva natthi jenam te suddhi bhavejja. (31) rajjae bhaniyam bhayavam kim karanam. (32) ti kevalina bhaniyam jaha–jam te samjai vamda purao giraiyam jaha mama phasuga pana paribhogena sariragam vihadiyam ti. (33) eyam cha duttha pava maha samuddaekka pimdam tuha vayanam sochcha samkhuddhao savvao cheva imao samjaio. (34) chimtiyam cha eyahim jaha–nichchhayao vimuchchamo phasuodagam. (35) tayajjhavasa-yassa aloiyam nimdiyam garahiyam cha eyahim dinnam cha mae eyana payachchhittam. (36) ettham cha eteva vayana dosenam jam te samajjiyam achchamta kadu virasa darunam baddhaputtha nikaiyam tumgam pavarasim tam cha tae kuttha bhagamdara jalodara vaya gumma sasa niroha harisagamdamalai anega vahi veyana parigaya sarirae daridda dukkha dohagga ayasa abbhakkhana samtava uvvega samdiviya pajjaliyae anamtehim bhava-gahanehim sudiha kalenam tu ahannisanubhaveyavvam. (37) eena karanenam esa ima goyama sa rajjajjiya jae agiyatthatta dosenam vayamettena eva emahamtam dukkhadayagam pavakammam samajjiyam ti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Aisa sochate hue usa sadhviji ko kevalajnyana paida hua. Usa vakta deva ne kevalajnyana ka mahotsava kiya. Vo kevali sadhviji ne manava, deva, asura ke aura sadhvi ke samshayarupa amdhakara ke parala ko dura kiya. Usake bada bhakti se bharapura hridayavali rajja arya ne pranama karake savala puchha ki – he bhagavamta ! Kisa vajaha se mujhe itani bari mahavedanavala vyadhi paida hua\? Taba he gautama ! Jalavale megha aura dumdubhi ke shabda samana manohara gambhira svaravale kevaline kaha ki – he dushkarakarike tu suna – ki tumhare sharira ka vighatana kyom hua\? Tumhara sharira rakta aura pitta ke dosha se dushita to tha hi aura phira usamem usa snigdha ahara ke satha makare ke jantuvala ahara bharapeta khaya. Dusari bajaha yaha bhi hai ki – isa gachchha mem semkaro pramana sadhu – sadhvi hone ke bavajuda, jitane sachitta pani se kevala amkhem dho sakate haim utane alpa lekina sachitta jala ka grihastha ki vajaha se kabhi bhi sadhu ko bhogavata nahim kara sakate. Usake bajaya tune to gaumutra grahana karane ke lie jate – jate jisa ke mukha nasika mem se galate limta lapete hue the para lage the. Usa vajaha se banabananevali madhumakkhi ura rahi thi, aise shravaka putra ke mukha ko sachitta jala se prakshalana kiya vaise sachitta jala ka samghatta karane ki viradhana ki vajaha se deva asura ki vamdana karane ke layaka alamghaniya aisi gachchhamaryada ko bhi tora diya. Pravachana devata yaha tumhara aghatita vyavahara saha na sake ya sadhu – sadhvi ne prana ke samshaya mem bhi kue, talaba, vavari, nadi adi ke jala ko hatha se chhuna na kalpe. Vitaraga paramatma ne sadhu – sadhvi ke lie sarvatha achitta jala ho to bhi samagra dosha rahita ho, ubala hua ho, usaka hi paribhoga karana kalpe. Isalie devata ne chintavana kiya ki isa durachari ko isa taraha shiksha karum ki jisase usaki taraha dusari kisi bhi taraha ka acharana ya pravritti na kare. Aisa manakara kuchha kuchha churna ka yoga jaba tuma bhojana karate the taba una devataom ne tumhare bhojana mem dala. Una devata ke kie hue prayoga hama janane ke lie samartha nahim ho sakate. Isa vajaha se tumhara sharira nashta hua hai, lekina achitta jala pine se nashta nahim hua. Usa vakta rajja – arya ne socha ki usa prakara hi hai. Kevali ke vachana mem pharka nahim hoga. Aisa sochakara kevali ne binati ki ki – he bhagavamta ! Yadi maim yathokta prayashchitta ka sevana karum to mera yaha sharira achchha ho jae taba kevali ne pratyuttara diya ki yadi koi prayashchitta de to sudhara ho sake. Rajja arya ne kaha ki – he bhagavamta ! Apa hi mujhe prayashchitta do. Dusare kauna tumhare samana atma hai\? Taba kevali ne kaha ki he dushkarakarike ! Maim tumhem prayashchitta to de sakata hum lekina tumhare lie aisa koi prayashchitta hi nahim hai ki jisase tumhari shuddhi ho sake. Rajja ne puchha ki he bhagavamta ! Kisa vajaha se meri shuddhi nahim hai\? Kevali ne kaha ki – tune jisa sadhvi samudaya ke samane aisa kaha ki achitta pani ka upabhoga karane se mera sharira sara gaya. Isa dushta papa ke bare samudaya ke eka pimra samana tumhare vachana ko sunakara yaha sabhi sadhvi ke hridaya hila gae. Vo saba sochane lage ki aba hama bhi achitta jala ka tyaga kara de lekina usa sadhvione to ashubha adhyavasaya ki alochana nimda aura guru sakshi mem garhana kara li. Unhem to maimne prayashchitta de diya hai. Isa prakara achitta jala – tyaga se aura vachana – dosha se kaphi kashtadayaka virasa bhayanaka baddha sprishta nikachitta bare papa ka rhaga tune uparjana kiya hai aura usa papa samudaya se tuma korha, vyadhi, bhagamdara, jalodara, vayu, gumara, samsa phulana, harasa, masa, kamthamala adi kaim vyadhi ki vedana se bhare shariravali banogi. Phira daridra ke duhkha, durbhagya, apayasha, jhuthe aropa, kalamka lagana, samtapa, udvega, kleshadi se hammesha jalanevali aisi ananta bhava taka kaphi lambe arase taka, jaisa dina mem vaisa lagatara rata ko duhkha bhugatana parega, isa vajaha se he gautama ! Yaha vo rajja – arya agitarthapana ke dosha se kevala vachana se hi aise mahana duhkhadayaka papakarma ka uparjana karanevali hui |