Sutra Navigation: Mahanishith ( महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1017544 | ||
Scripture Name( English ): | Mahanishith | Translated Scripture Name : | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Translated Chapter : |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 844 | Category : | Chheda-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ताहे पुणो वि तेहिं भणियं जहा किमेयाइं अरड-बरडाइं असंबद्धाइं दुब्भासियाइं पलवह जइ पारिहारगं णं दाउं सक्के ता उप्फिड, मुयसु आसणं, ऊसर सिग्घं, इमाओ ठाणाओ। किं देवस्स रूसेज्जा। जत्थ तुमं पि पमाणीकाऊणं सव्व संघेणं समय सब्भावं वायरेउं जे समाइट्ठो। तओ पुणो वि सुइरं परितप्पिऊणं गोयमा अन्नं पारिहारगं अलभमाणेणं अंगीकाऊण दीहं संसारं भणियं च सावज्जायरिएणं जहा णं उस्सग्गाववाएहिं आगमो ठिओ तुब्भे न याणहेयं। एगंतो मिच्छत्तं, जिणाणमाणा मणेगंता। एयं च वयणं गोयमा गिम्हायव संताविएहिं सिहिउलेहिं च अहिणव पाउस सजल घणोरल्लिमिव सबहुमाणं समाइच्छियं तेहिं दुट्ठ-सोयारेहिं। तओ एग वयण दोसेणं गोयमा निबंधिऊणाणंत संसारियत्तणं अप्पडिक्कमिऊणं च तस्स पाव समुदाय महाखंध-मेलावगस्स मरिऊणं उववन्नो वाणमंतरेसुं सो सावज्जायरिओ। तओ चुओ समाणो उववन्नो पवसिय भत्ताराए पडिवासुदेव पुरोहिय धूयाए कुच्छिंसु। अहन्नया वियाणियं तीए जननीए पुरोहिय-भज्जाए। जहा णं हा, हा , हा , दिन्नं मसि-कुच्चयं सव्व नियकुलस्स इमीए दुरायाराए मज्झ धूयाए। साहियं च पुरोहियस्स। तओ संतप्पिऊणं सुइरं बहुं च हियएण साहारिउं निव्विसया कया सा तेणं पुरो-हिएणं एमहंता असज्झदुन्निवार अयस भीरुणा। अहन्नया थेव कालंतरेणं कहिं चि थाममलभमाणी सी उण्ह वाय विज्झडिया खु क्खाम कंठा दुब्भिक्ख दोसेणं पविट्ठा दासत्ताए रस वाणिज्जगस्स गेहे। तत्थ य बहूणं मज्ज पाणगाणं संचियं साहरेइ नुसमयमुच्चिट्ठगं ति। अन्नया अनुदिनं साहरमाणीए तमुच्चिट्ठगं दट्ठूणं च बहु मज्ज पाणगे मज्जमावियमाणे पोग्गलं च समुद्दिसंते तहेव तीए मज्ज-मंसस्सोवरिं दोहलगं समुप्पन्नं। जाव णं जं तं बहुमज्ज पाणगं णड णट्ट छत्त चारण भडोड्ड चेड तक्करा सरिस जातीसु मुज्झियं खुर सीस पुंछ कन्न ट्ठिमयगयं उच्चिट्ठं वल्लूरखंडं तं समुद्दिसिउं समारद्धा। तहा तेसु चेव उच्चिट्ठ कोडियगेसुं जं किंचि णाहीए मज्झं वित्थक्के तमेवासाइउमारद्धा। एवं च कइवय दिणाइक्कमेणं मज्जमंसोवरिं दढं गेही संजाया। ताहे तस्सेव रस वाणिज्जगस्स गेहाओ परिमुसिऊणं किंचि कंस दूस दविण जायं अन्नत्थ विक्किणिऊणं मज्जं मंसं परिभुंजइ। ताव णं विण्णायं तेण रसवाणिज्जगेणं साहियं च नरवइणो। तेणा वि वज्झा समाइट्ठा। तत्थ य रायउले एसो गोयमा कुल धम्मो। जहा णं जा काइ आवन्न सत्ता नारी अवराहदोसेणं सा जाव णं नो पसूया ताव णं नो वावायव्वा। तेहिं विणिउत्त गणिगिंतगेहिं सगेहे नेऊण पसूइ समयं जाव णियंतिया रक्खेयव्वा। अहन्नया नीया तेहिं हरिएस जाईहिं स गेहं। कालक्कमेण पसूया य दारगं। तं सावज्जायरिय जीवं। तओ पसूयमेत्ता चेव तं बालयं उज्झिऊण पणट्ठा मरणभयाहितत्था सा गोयमा दिसिमेक्कं गंतूणं वियाणियं च तेहिं पावेहिं। जहा पणट्ठा सा पावकम्मा। साहियं च नरवइणो सूणाहिवइणा। जहा णं देव पणट्ठा सा दुरायारा कयली गब्भोवमं दारगमुज्झिऊणं। रन्ना वि पडिभणियं जहा णं जइ णाम सा गया ता गच्छउ तं बालयं पडिवालेज्जासु सव्वहा तहा कायव्वं जहा तं बालगं न वावज्जे। गिण्हेसु इमे पंच सहस्सा दविणजायस्स। तओ नरवइणो संदेसेणं सुयमिव परिवालिओ सो पंसुली-तणओ। अन्नया कालक्कमेणं मओ सो पाव-कम्मो सूणाहिवई। तओ रन्ना समनुजाणियं तस्सेव बालगस्स घरसारं। कओ पंचण्हं सयाणं अहिवई। तत्थ य सुणाहिवइ पए पइट्ठिओ समाणो ताइं तारिसाइं अकरणिज्जाइं समनुट्ठित्ताणं गओ सो गोयमा सत्तमीए पुढवीए अपइट्ठाण नामे निरयावासे सावज्जायरिय जीवो। एवं तं तत्थ तारिसं घोर पचंड रोद्दं सुदारुणं दुक्खं तेत्तीसं सागरोवमे जाव कह कहवि किलेसेणं समनुभविऊणं इहागओ समाणो उववन्नो अंतरदीवे एगोरुयजाई। तओ वि मरिऊणं उववन्नो तिरिय जोणीए महिसत्ताए। तत्थ य जाइं काइं वि णारग दुक्खाइं तेसिं तु सरिस नामाइं अणुभविऊणं छव्वीसं संवच्छराणि। तओ गोयमा मओ समाणो उववन्नो मनुएसु, तओ वासुदेवत्ताए सो सावज्जायरिय जीवो। तत्थ वि अहाऊयं परिवालिऊणं अनेग संगामारंभ परिग्गह दोसेणं मरिऊणं गओ सत्तमाए। तओ वि उव्वट्टिऊणं सुइर कालाओ उववन्नो गयकन्नो नाम मनुयजाई। तओ वि कुणिमाहारदोसेणं कूरज्झवसायमईगओ, मरिऊणं पुणो वि सत्तमाए। तेहिं चेव अपइट्ठाणे णिरय वासे तओ वि उव्वट्टिऊणं पुणो वि उववन्नो तिरिएसुं महिसत्ताए। तत्था वि णं नरगोवमं दुक्खमनुभवित्ता णं मओ समाणो उववन्नो बाल विहवाए पंसुलीए माहण धूयाए कुच्छिंसि अहन्नया निउत्त पच्छन्न गब्भ साडण पाडणे खार चुन्नजोगदोसेणं अनेगवाहि वेयणा परिगय सरीरो सिडिहिडंत कुट्ठ वाहिए परिगलमाणो सलसलिंत किमिजालेणं खज्जंतो नीहरिओ नरओवमं घोर दुक्ख निवासो गब्भवासाओ गोयमा सो सावज्जायरिय-जीवो। तओ सव्वलोगेहिं निंदिज्जमाणो, गरहिज्जमाणो, खिंसिज्जमाणो, दुगुंछिज्जमाणो सव्व-लोअपरिभूओ पान खान भोगोवभोग परिवज्जिओ गब्भवास पभितीए चेव विचित्तसारीर माणसिग घोर दुक्ख संतत्तो सत्त संवच्छरसयाइं दो मासे य चउरो दिने य जावज्जीविऊणं मतो समाणो उववन्नो वाणमंतरेसुं। तओ चुओ उववन्नो मनुएसुं। पुणो वि सूणाहिवइत्ताए। तओ वि तक्कम्म-दोसेणं सत्तमाए। तओ वि उव्वट्टेऊणं उववन्नो तिरिएसुं चक्कियघरंसि गोणत्ताए। तत्थ य चक्क सगड लंगलायट्टणेणं अहन्नियं जूवारोवणेणं पच्चिऊण कुहियाउव्वियं खंधं, सम्मुच्छिए य किमी। ताहे अक्ख-मीहूयं खंध जूव धरणस्स विण्णाय पट्ठीए वाहिउमारद्धो तेणं चक्किएणं। अहन्नया कालक्कमेणं जहा खंधं तहा पच्चिऊण कुहिया पट्ठी। तत्था वि समुच्छिए किमी। सडिऊण विगयं च पट्ठि चम्मं। ता अकिंचियरं निप्पओयणं ति नाऊण मोक्कलियं गोयमा तेणं चक्किएणं। तं सलसलिंत किमि जालेहिं णं खज्जमाणं बइल्लं सावज्जायरियं जीवं। तओ मोक्कल्लिओ समाणो परिसडिय पट्ठि चम्मो बहु काय साण किमि कुलेहिं सबज्झ-ब्भंतरे विलुप्पमाणो एकूणतीसं संवच्छराइं जावाहाउगं परिवालेऊण मओ समाणो उववन्नो अनेग वाहि वेयणा परिगय सरीरो मनुएसुं महाधणस्स णं इब्भ गेहे। तत्थ वमन विरेयण खार कडु तित्त कसाय तिहला गुग्गुल काढगे आवीयमाणस्स निच्च विसोसणाहिं च असज्झाणुवसम्म घोर दारुण दुक्खेहिं पज्जालियस्सेव गोयमा गओ निप्फलो तस्स मनुयजम्मो। एवं च गोयमा सो सावज्जायरिय जीवो चोद्दस रज्जुयलोगं जम्मण मरणेहिं णं निरंतरं पडिजरिऊणं सुदीहणंत-कालाओ समुप्पन्नो मनुयत्ताए अवरविदेहे। तत्थ य भागवसेणं लोगाणुवत्तीए गओ तित्थयरस्स वंदन वत्तियाए, पडिबुद्धो य पव्व-इओ सिद्धो य इह तेवीसइम तित्थयरस्स पासणामस्स काले। एयं तं गोयमा सावज्जायरिएणं पावियं ति। से भयवं किं पच्चइयं तेणाणुभूयं एरिसं दूसहं घोर दारुणं महादुक्ख सण्णिवाय संघट्टमे-त्तियकालं ति गोयमा जं भणियं तक्काल समयम्मि जहा णं उस्सग्गाववाएहिं आगमो ठिओ, एगंतो मिच्छत्तं, जिणाण आणा अणेगंतो त्ति एय वयणपच्च-इयं। से भयवं किं उस्सग्गाववाएहि णं नो ठियं आगमं, एगंतं च पन्नविज्जइ गोयमा उस्सगाववाएहिं चेव पवयणं ठियं, अणेगंतं च पन्नविज्जइ, नो णं एगंतं, नवरं आउक्काय परिभोगं तेउ कायसमारंभं मेहुणासेवणं च। एते तओ थाणंतरे एगंतेणं ३ निच्छयओ ३ बाढं ३ सव्वहा सव्व पयारेहिं णं आयहियट्ठीणं निसिद्धं ति। एत्थं च सुत्ताइक्कमे संमग्ग विप्पणासणं उम्मग्ग पयरिसणं, तओ य आणाभंगं आणाभंगाओ अनंत संसारी। से भयवं किं ते णं सावज्जायरिएणं मेहुणमासेवियं गोयमा सेवियासेवियं नो सेवियं नो असेवियं। से भयवं के णं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। गोयमा जं तीए अज्जाए तक्कालं उत्तिमंगेणं पाए फरिसिए फरिसिज्जमाणे य नो तेण। आउंटिउं संवरिए, एएणं अट्ठेणं गोयमा वुच्चइ। से भयवं एद्दहमेत्तस्स वि णं एरिसे घोरे दुव्विमोक्खे बद्ध पुट्ठ निकाइए कम्मबंधे गोयमा एवमेयं, न अन्नह त्ति। से भयवं तेण तित्थयरणाम कम्मगोयं आसंकलियं एग भवावसेसीकओ आसी भवोयहि, ता किमेयमणंत संसाराहिंडणं ति गोयमा नियय पमाय दोसेणं। तम्हा एयं वियाणित्ता भवविरह-मिच्छमाणेणं गोयमा सुद्दिट्ठ-समय-सारेणं गच्छाहिवइणा सव्वहा सव्व पयारेहि णं सव्वत्थामेसु अच्चंतं अप्पमत्तेणं भवियव्वं ति बेमि। | ||
Sutra Meaning : | तब भी उस दुराचारी ने कहा कि तुम ऐसे आड़े – टेढ़े रिश्ते के बिना दुर्भाषित वचन का प्रलाप क्यों करते हो? यदि उचित समाधान देने के लिए शक्तिमान न हो तो खड़े हो जाव, आसन छोड़ दे यहाँ से जल्द आसन छोड़कर नीकल जाए। जहाँ तुमको प्रमाणभूत मानकर सर्व संघ ने तुमको शास्त्र का सद्भाव कहने के लिए फरमान किया है। अब देव के उपर क्या दोष डाले ? उसके बाद फिर भी काफी लम्बे अरसे तक फिक्र पश्चात्ताप करके हे गौतम ! दूसरा किसी समाधान न मिलने से लम्बा संसार अंगीकार करके सावद्याचार्य ने कहा कि आगम उत्सर्ग और अपवाद मार्ग से युक्त होता है। तुम यह नहीं जानते कि एकान्त पक्ष मिथ्यात्व है। जिनेश्वर की आज्ञा अनेकान्तवाली होती है। हे गौतम ! जैसे ग्रीष्म के ताप से संताप पानेवाले मोर के कुल को वर्षाकाल के नए मेघ की जलधारा जैसे शान्त करे, अभिनन्दन दे, वैसे वो दुष्ट श्रोताओने उसे काफी मानपूर्वक मान्य करके अपनाया उसके बाद हे गोतम ! एक ही बचन उच्चारने के दोष से अनन्त संसारीपन का कर्म बांधा ? उसका प्रतिक्रमण भी किए बिना पाप – समूह के महास्कंध इकट्ठा करवानेवाले उस उत्सूत्र वचन का पश्चात्ताप किए बिना मरकर वो सावद्याचार्य भी व्यंतर देव में पैदा हुए। वहाँ से च्यवकर वो परदेश गए हुए पतिवाली प्रति वासुदेव के पुरोहित की पुत्री के गर्भ में पैदा हुआ। किसी समय उसकी माता पुरोहित की पत्नी की नजर में आया कि, पति परदेश में गया हुआ है और पुत्री गर्भवती हुई है, वो जानकर हा हा हा यह मेरी दुराचारी पुत्री ने मेरे सर्व कुल पर मशी का कुचड़ा लगाया। इज्जत पर दाग लग गया। यह बात पुरोहित को बताई वो बात सुनकर दीर्घकाल तक काफी संताप पाकर हृदय से निर्धार करके पुरोहित ने उसे देश से निकाल दिया क्योंकि यह महा असाध्य नीवारण न कर सके वैसा अपयश फैलानेवाला बड़ा दोष है, उसका मुझे काफी भय लगता है। अब पिता के नीकाल देने के बाद कहीं भी स्थान न पानेवाले थोड़े समय के बाद शर्दी गर्मी पवन से परेशान होनेवाली अकाल के दोष से क्षुधा से दुर्बल कंठवाली उसने घी, तेल आदि रस के व्यापारी के घर में दासपन से प्रवेश किया। वहाँ काफी मदिरापान करनेवाले के पास से झूठी मदिर पाकर इकट्ठी करते हैं। और बार – बार झूठा भोजन खाते हैं। किसी समय हंमेशा झूठा भोजन करनेवाली और वहाँ काफी मदिरा आदि पीने के लायक चीजे देखकर मदिरा का पान करके और माँस का भोजन करके रही थी। तब उसे उस तरह का दोहला (इच्छा) पैदा हुई कि मैं बहुत मद्यपान करूँ। उसके बाद नट, नाटकिया, छात्र धरनेवाले, चारण, भाट, भूमि खुदनेवाले, नौकर, चोर आदि हल्की जातिवाले ने अच्छी तरह से त्याग करनेवाली, मस्तक, पूँछ, कान, हड्डी, मृतक आदि शरीर अवयव। बछड़े के तोड़े हुए अंग जो खाने के लिए उचित न हो और फेंक दिए हो वैसे हलके झूठे माँस मदिरा का भोजन करने लगी। उसके बाद वो झूठे मीट्टी के कटोरे में जो कोई नाभि के बीच में विशेष तरह से पक्व होनेवाला माँस हो उसका भोजन करने लगी। कुछ दिन बीतने के बाद मद्य और माँस पर काफी गृद्धिवाली हुई। उस रस के व्यापारी के घर में से काँसा के भाजन वस्त्र या दूसरी चीज की चोरी करके दूसरी जगह बेचकर माँस रहित मद्य का भुगवटा करने लगी, व्यापारी को यह सर्व हकीकत ज्ञात हुई। व्यापारी ने राजा को फरियाद की। राजा ने वध करने का हुकुम किया। तब राज्य में इस तरह की कोई कुलधर्म है कि जो किसी गर्भवती स्त्री गुन्हेगार बने और वध की शिक्षा पाए लेकिन जब तक बच्चे को जन्म न दे तब तक उसे मार न डाले। वध करने के लिए नियुक्त किए हुए और कोटवाली आदि उसको अपने घर ले जाकर प्रसव के समय का इन्तजार करने लगे। और उसकी रक्षा करने लगे। किसी समय हरिकेश जातिवाले हिंसक लोग उसे अपने घर ले गए। कालक्रमे उसने सावद्याचार्य के जीव को बच्चे के रूप में जन्म दिया। जन्म देकर तुरन्त ही वो बच्चे का त्याग करके मौत के डर से अति त्रस्त होनेवाली वहाँ से भाग गई। हे गौतम ! जब वो एक दिशा से भागी और उस चंड़ाल को पता चला कि वो पापीणी भाग गई है। वध करनेवाले के आगेवान ने राजा को बिनती की, हे देव ! केल के गर्भ समान कोमल बच्चे का त्याग करके दुराचारिणी तो भाग चली। देव राजा ने प्रत्युत्तर दिया कि भले भाग गई तो उसे जाने दो, लेकिन उस बच्चे की अच्छी तरह देखभाल करना। सर्वथा वैसी कोशीश करना कि जिससे वो बच्चा मर न जाए। उसके खर्च के लिए यह पाँच हजार द्रव्य ग्रहण करो। उसके बाद राजा के हुकुम से पुत्र की तरह उस कुलटा के पुत्र का पालन – पोषण किया, कालक्रम से वो पापकर्मी फाँसी देनेवाले का अधिपति मर गया। तब राजा ने उस बच्चे को उसका बारिस बनाया। पाँचसौ चंड़ाल का अधिपति बनाया। वहाँ कसाई के अधिपति पद पर रहनेवाला वो उस तरह के न करने लायक पापकार्य करके अप्रतिष्ठान नाम की सातवीं नारक पृथ्वी में गया इस प्रकार सावद्याचार्य का जीव सातवीं नारकी के वैसे घोर प्रचंड़, रौद्र, अति भयानक दुःख तेंतीस सागरोपम के लम्बे अरसे तक महाक्लेश पूर्वक महसूस करके वहाँ से नीकलकर यहाँ अंतरद्वीप में एक ऊंरुग जाति में पैदा हुआ। वहाँ से मरकर तिर्यंच योनि में पाड़े के रूप में पैदा हुआ। वहाँ भी किसी नरक के दुःख हो उसके समान नामवाले दुःख छब्बीस साल तक भुगतकर उसके बाद हे गौतम ! मरके मानव में जन्म लिया। वहाँ से नीकलकर उस सावद्याचार्य का जीव वसुदेव के रूप में पैदा हुआ। वहाँ भी यथा उचित आयु परिपूर्ण करके कईं संग्राम आरम्भ महापरिग्रह के दोष से मरकर सातवीं नारकी में गया। वहाँ से नीकलकर काफी दीर्घकाल के बाद गजकर्ण नाम की मानव जाति में पैदा हुआ। वहाँ भी माँसाहार के दोष से क्रूर अध्यवसाय की मतिवाला मरके फिर सातवीं नारकी के अप्रतिष्ठान नरकावास में गया। वहाँ से नीकलकर फिर तिर्यंचगति में पाड़े के रूप में पैदा हुआ। वहाँ नरक समान पारावार दुःख पाकर मरा। फिर बाल विधवा कुलटा ब्राह्मण की पुत्री की कुक्षि में पैदा हुआ। अब उस सावद्याचार्य का जीव कुलटा के गर्भ में था तब गुप्त तरीके से गर्भ को गिराने के लिए, सड़ने के लिए क्षार, औषध योग का प्रयोग करने के दोष से कईं व्याधि और वेदना से व्याप्त शरीरवाले, दुष्ट व्याधि से सड़नेवाले परु झरित, सल सल करते कृमि के समूहवाला वो कीड़ों से खाए जानेवाला, नरक की उपमावाले, घोर दुःख के निवासभूत बाहर नीकला। हे गौतम ! उसके बाद सभी लोग से निन्दित, गर्हित, दुगुंछा करनेवाला, नफरत से सभी लोक से पराभव पानेवाला, खान, पान, भोग, उपभोग रहित गर्भावास से लेकर सात साल, दो महिने, चार दिन तक यावज्जीव जीकर विचित्र शारीरिक, मानसिक, घोर दुःख से परेशानी भुगतते हुए मरकर भी व्यंतर देव के रूप में पैदा हुआ। वहाँ से च्यवकर मनुष्य हुआ। फिर वध करनेवाले का अधिपति और फिर उस पापकर्म के दोष से सातवीं में पहुँचा। वहाँ से नीकलकर तिर्यंच गति में कुम्हार के यहाँ बैल के रूप में पैदा हुआ। वहाँ से च्यवकर मनुष्य हुआ। फिर वध करनेवाले का अधिपति, और फिर उस पापकर्म के दोष से सातवीं में पहुँचा। वहाँ से नीकलकर तिर्यंच गति में कुम्हार के वहाँ बैल के रूप में पैदा हुआ। उसे वहाँ चक्की, गाड़ी, हल, अरघट्ट आदि में जुड़कर रात – दिन घुंसरी में गरदन घिसकर फोल्ले हो गए और भीतर सडा गया। खम्भे में कृमि पैदा हुई। अब जब खांध घोसरी धारण करने के लिए समर्थ नहीं है ऐसा मानकर उसका स्वामी कुम्हार इसलिए पीठ पर बोझ वहन करवाने लगा। अब वक्त गुजरने से जिस तरह खाँध में सडा हो गया उस तरह पीठ भी घिसकर सड़ गई। उसमें भी कीड़े पैदा हो गए। पूरी पीठ भी सड़ गई और उसके ऊपर का चमड़ा नीकल गया और भीतर का माँस दिखने लगा। उसके बाद अब यह कुछ काम नहीं कर सकेगा, इसलिए निकम्मा है, ऐसा मानकर छोड़ दिया। हे गौतम ! उस सावद्याचार्य का जीव सलसल कीड़ों से खाए जानेवाले बैल को छोड़ दिया। उसके बाद काफी सड़े हुए चर्मवाले, कईं कौए – कुत्ते – कृमि के कुल से भीतर और बाहर से खाए जानेवाला काटनेवाला उनतीस साल तक आयु पालन करके मरकर कईं व्याधि वेदना से व्याप्त शरीरवाला मानवगति में अति धनिक किसी बड़े घर के आदमी के वहाँ जन्म लिया। वहाँ भी वमन करने के खाश, कटु, तीखे, कषे हुए, स्वादिष्ट, त्रिफला, गुगल आदि औषधि पीनी पड़ती, हंमेशा उसके सफाई करनी पड़े असाध्य, उपशम न हो, घोर भयानक दुःख से जैसे अग्नि में पकता हो वैसे कठिन दुःख भुगतते भुगतते उनको मिला हुआ मानव भव असफल हुआ। उस प्रकार हे गौतम ! सावद्याचार्य का जीव चौदह राजलोक में जन्म – मरणादिक के दुःख सहकर अनन्त काल के बाद अवरविदेह में मानव के रूप में पैदा हुआ। वहाँ लोक की अनुवृत्ति से तीर्थंकर भगवंत को वंदन करने के लिए गया प्रतिबोध पाया और दीक्षा अंगीकार करके यहाँ श्री २३ वे पार्श्वनाथ तीर्थंकर के काल में सिद्धि पाई। हे गौतम ! सावद्याचार्य ने इस प्रकार दुःख पाया। हे भगवंत ! इस तरह का दुस्सह घोर भयानक दुःख आ पड़ा। उन्हें भुगतना पड़ा। इतने लम्बे अरसे तक यह सभी दुःख किस निमित्त से भुगतने पड़े। हे गौतम ! उस वक्त उसने जैसे ऐसा कहा कि, उत्सर्ग और अपवाद सहित आगम बताया है। एकान्त में प्ररूपणा नहीं की जाती लेकिन अनेकान्त से प्ररूपणा करते हैं, लेकिन अप्काय का परिभोग, तेऊकाय का समारम्भ, मैथुनसेवन यह तीनों दूसरे किसी स्थान में एकान्त में या निश्चय से और दृढ़ता से या सर्वथा सर्व तरह से आत्महित के अर्थि के लिए निषेध किया है। यहाँ सूत्र का उल्लंघन किया जाए तो सम्यग् मार्ग का विनाश, उन्मार्ग का प्रकर्ष होता है, आज्ञा भंग के दोष से अनन्तसंसारी होते हैं। हे भगवंत ! क्या उस सावद्याचार्य ने मैथुन सेवन किया था ? हे गौतम ! सेवन किया और सेवन नहीं किया यानि सेवन किया यह भी नहीं। और सेवन न किया ऐसा भी नहीं। हे भगवंत ! ऐसे दो तरीके से क्यों कहते हो ? हे गौतम ! जो उस आर्या ने उस वक्त मस्तक से पाँव का स्पर्श किया, स्पर्श हुआ उस वक्त उसने पाँव खींचकर सिकुड़ नहीं लिया। इस वजह से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि, मैथुन सेवन किया और सेवन नहीं किया। हे भगवंत ! केवल इतनी वजह में ऐसे घोर दुःख से मुक्त कर सके वैसा बद्ध स्पृष्ट निकाचित कर्मबंध होता है क्या ? हे गौतम ! ऐसा ही है। उसमें कोई फर्क नहीं है। हे भगवंत ! उसने तीर्थंकर नामकर्म इकट्ठा किया था। एक ही भव बाकी रखा था और भवसागर पार कर दिया था। तो फिर अनन्त काल तक संसार में क्यों भटकना पड़ा ? हे गौतम ! अपनी प्रमाद के दोष की वजह से। इसलिए भव विरह इच्छनेवाले शास्त्र का सद्भाव जिसने अच्छी तरह से पहचाना है ऐसे गच्छाधिपति को सर्वथा सर्व तरह से संयम स्थान में काफी अप्रमत्त बने। इस प्रकार मैं तुम्हे कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tahe puno vi tehim bhaniyam jaha kimeyaim arada-baradaim asambaddhaim dubbhasiyaim palavaha jai pariharagam nam daum sakke ta upphida, muyasu asanam, usara siggham, imao thanao. Kim devassa rusejja. Jattha tumam pi pamanikaunam savva samghenam samaya sabbhavam vayareum je samaittho. Tao puno vi suiram paritappiunam goyama annam pariharagam alabhamanenam amgikauna diham samsaram bhaniyam cha savajjayarienam jaha nam ussaggavavaehim agamo thio tubbhe na yanaheyam. Egamto michchhattam, jinanamana manegamta. Eyam cha vayanam goyama gimhayava samtaviehim sihiulehim cha ahinava pausa sajala ghanorallimiva sabahumanam samaichchhiyam tehim duttha-soyarehim. Tao ega vayana dosenam goyama nibamdhiunanamta samsariyattanam appadikkamiunam cha tassa pava samudaya mahakhamdha-melavagassa mariunam uvavanno vanamamtaresum so savajjayario. Tao chuo samano uvavanno pavasiya bhattarae padivasudeva purohiya dhuyae kuchchhimsu. Ahannaya viyaniyam tie jananie purohiya-bhajjae. Jaha nam ha, ha, ha, dinnam masi-kuchchayam savva niyakulassa imie durayarae majjha dhuyae. Sahiyam cha purohiyassa. Tao samtappiunam suiram bahum cha hiyaena saharium nivvisaya kaya sa tenam puro-hienam emahamta asajjhadunnivara ayasa bhiruna. Ahannaya theva kalamtarenam kahim chi thamamalabhamani si unha vaya vijjhadiya khu kkhama kamtha dubbhikkha dosenam pavittha dasattae rasa vanijjagassa gehe. Tattha ya bahunam majja panaganam samchiyam saharei nusamayamuchchitthagam ti. Annaya anudinam saharamanie tamuchchitthagam datthunam cha bahu majja panage majjamaviyamane poggalam cha samuddisamte taheva tie majja-mamsassovarim dohalagam samuppannam. Java nam jam tam bahumajja panagam nada natta chhatta charana bhadodda cheda takkara sarisa jatisu mujjhiyam khura sisa pumchha kanna tthimayagayam uchchittham vallurakhamdam tam samuddisium samaraddha. Taha tesu cheva uchchittha kodiyagesum jam kimchi nahie majjham vitthakke tamevasaiumaraddha. Evam cha kaivaya dinaikkamenam majjamamsovarim dadham gehi samjaya. Tahe tasseva rasa vanijjagassa gehao parimusiunam kimchi kamsa dusa davina jayam annattha vikkiniunam majjam mamsam paribhumjai. Tava nam vinnayam tena rasavanijjagenam sahiyam cha naravaino. Tena vi vajjha samaittha. Tattha ya rayaule eso goyama kula dhammo. Jaha nam ja kai avanna satta nari avarahadosenam sa java nam no pasuya tava nam no vavayavva. Tehim viniutta ganigimtagehim sagehe neuna pasui samayam java niyamtiya rakkheyavva. Ahannaya niya tehim hariesa jaihim sa geham. Kalakkamena pasuya ya daragam. Tam savajjayariya jivam. Tao pasuyametta cheva tam balayam ujjhiuna panattha maranabhayahitattha sa goyama disimekkam gamtunam viyaniyam cha tehim pavehim. Jaha panattha sa pavakamma. Sahiyam cha naravaino sunahivaina. Jaha nam deva panattha sa durayara kayali gabbhovamam daragamujjhiunam. Ranna vi padibhaniyam jaha nam jai nama sa gaya ta gachchhau tam balayam padivalejjasu savvaha taha kayavvam jaha tam balagam na vavajje. Ginhesu ime pamcha sahassa davinajayassa. Tao naravaino samdesenam suyamiva parivalio so pamsuli-tanao. Annaya kalakkamenam mao so pava-kammo sunahivai. Tao ranna samanujaniyam tasseva balagassa gharasaram. Kao pamchanham sayanam ahivai. Tattha ya sunahivai pae paitthio samano taim tarisaim akaranijjaim samanutthittanam gao so goyama sattamie pudhavie apaitthana name nirayavase savajjayariya jivo. Evam tam tattha tarisam ghora pachamda roddam sudarunam dukkham tettisam sagarovame java kaha kahavi kilesenam samanubhaviunam ihagao samano uvavanno amtaradive egoruyajai. Tao vi mariunam uvavanno tiriya jonie mahisattae. Tattha ya jaim kaim vi naraga dukkhaim tesim tu sarisa namaim anubhaviunam chhavvisam samvachchharani. Tao goyama mao samano uvavanno manuesu, tao vasudevattae so savajjayariya jivo. Tattha vi ahauyam parivaliunam anega samgamarambha pariggaha dosenam mariunam gao sattamae. Tao vi uvvattiunam suira kalao uvavanno gayakanno nama manuyajai. Tao vi kunimaharadosenam kurajjhavasayamaigao, mariunam puno vi sattamae. Tehim cheva apaitthane niraya vase tao vi uvvattiunam puno vi uvavanno tiriesum mahisattae. Tattha vi nam naragovamam dukkhamanubhavitta nam mao samano uvavanno bala vihavae pamsulie mahana dhuyae kuchchhimsi ahannaya niutta pachchhanna gabbha sadana padane khara chunnajogadosenam anegavahi veyana parigaya sariro sidihidamta kuttha vahie parigalamano salasalimta kimijalenam khajjamto nihario naraovamam ghora dukkha nivaso gabbhavasao goyama so savajjayariya-jivo. Tao savvalogehim nimdijjamano, garahijjamano, khimsijjamano, dugumchhijjamano savva-loaparibhuo pana khana bhogovabhoga parivajjio gabbhavasa pabhitie cheva vichittasarira manasiga ghora dukkha samtatto satta samvachchharasayaim do mase ya chauro dine ya javajjiviunam mato samano uvavanno vanamamtaresum. Tao chuo uvavanno manuesum. Puno vi sunahivaittae. Tao vi takkamma-dosenam sattamae. Tao vi uvvatteunam uvavanno tiriesum chakkiyagharamsi gonattae. Tattha ya chakka sagada lamgalayattanenam ahanniyam juvarovanenam pachchiuna kuhiyauvviyam khamdham, sammuchchhie ya kimi. Tahe akkha-mihuyam khamdha juva dharanassa vinnaya patthie vahiumaraddho tenam chakkienam. Ahannaya kalakkamenam jaha khamdham taha pachchiuna kuhiya patthi. Tattha vi samuchchhie kimi. Sadiuna vigayam cha patthi chammam. Ta akimchiyaram nippaoyanam ti nauna mokkaliyam goyama tenam chakkienam. Tam salasalimta kimi jalehim nam khajjamanam baillam savajjayariyam jivam. Tao mokkallio samano parisadiya patthi chammo bahu kaya sana kimi kulehim sabajjha-bbhamtare viluppamano ekunatisam samvachchharaim javahaugam parivaleuna mao samano uvavanno anega vahi veyana parigaya sariro manuesum mahadhanassa nam ibbha gehe. Tattha vamana vireyana khara kadu titta kasaya tihala guggula kadhage aviyamanassa nichcha visosanahim cha asajjhanuvasamma ghora daruna dukkhehim pajjaliyasseva goyama gao nipphalo tassa manuyajammo. Evam cha goyama so savajjayariya jivo choddasa rajjuyalogam jammana maranehim nam niramtaram padijariunam sudihanamta-kalao samuppanno manuyattae avaravidehe. Tattha ya bhagavasenam loganuvattie gao titthayarassa vamdana vattiyae, padibuddho ya pavva-io siddho ya iha tevisaima titthayarassa pasanamassa kale. Eyam tam goyama savajjayarienam paviyam ti. Se bhayavam kim pachchaiyam tenanubhuyam erisam dusaham ghora darunam mahadukkha sannivaya samghattame-ttiyakalam ti goyama jam bhaniyam takkala samayammi jaha nam ussaggavavaehim agamo thio, egamto michchhattam, jinana ana anegamto tti eya vayanapachcha-iyam. Se bhayavam kim ussaggavavaehi nam no thiyam agamam, egamtam cha pannavijjai goyama ussagavavaehim cheva pavayanam thiyam, anegamtam cha pannavijjai, no nam egamtam, navaram aukkaya paribhogam teu kayasamarambham mehunasevanam cha. Ete tao thanamtare egamtenam 3 nichchhayao 3 badham 3 savvaha savva payarehim nam ayahiyatthinam nisiddham ti. Ettham cha suttaikkame sammagga vippanasanam ummagga payarisanam, tao ya anabhamgam anabhamgao anamta samsari. Se bhayavam kim te nam savajjayarienam mehunamaseviyam goyama seviyaseviyam no seviyam no aseviyam. Se bhayavam ke nam atthenam evam vuchchai. Goyama jam tie ajjae takkalam uttimamgenam pae pharisie pharisijjamane ya no tena. Aumtium samvarie, eenam atthenam goyama vuchchai. Se bhayavam eddahamettassa vi nam erise ghore duvvimokkhe baddha puttha nikaie kammabamdhe goyama evameyam, na annaha tti. Se bhayavam tena titthayaranama kammagoyam asamkaliyam ega bhavavasesikao asi bhavoyahi, ta kimeyamanamta samsarahimdanam ti goyama niyaya pamaya dosenam. Tamha eyam viyanitta bhavaviraha-michchhamanenam goyama suddittha-samaya-sarenam gachchhahivaina savvaha savva payarehi nam savvatthamesu achchamtam appamattenam bhaviyavvam ti bemi. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Taba bhi usa durachari ne kaha ki tuma aise are – terhe rishte ke bina durbhashita vachana ka pralapa kyom karate ho? Yadi uchita samadhana dene ke lie shaktimana na ho to khare ho java, asana chhora de yaham se jalda asana chhorakara nikala jae. Jaham tumako pramanabhuta manakara sarva samgha ne tumako shastra ka sadbhava kahane ke lie pharamana kiya hai. Aba deva ke upara kya dosha dale\? Usake bada phira bhi kaphi lambe arase taka phikra pashchattapa karake he gautama ! Dusara kisi samadhana na milane se lamba samsara amgikara karake savadyacharya ne kaha ki agama utsarga aura apavada marga se yukta hota hai. Tuma yaha nahim janate ki ekanta paksha mithyatva hai. Jineshvara ki ajnya anekantavali hoti hai. He gautama ! Jaise grishma ke tapa se samtapa panevale mora ke kula ko varshakala ke nae megha ki jaladhara jaise shanta kare, abhinandana de, vaise vo dushta shrotaone use kaphi manapurvaka manya karake apanaya usake bada he gotama ! Eka hi bachana uchcharane ke dosha se ananta samsaripana ka karma bamdha\? Usaka pratikramana bhi kie bina papa – samuha ke mahaskamdha ikattha karavanevale usa utsutra vachana ka pashchattapa kie bina marakara vo savadyacharya bhi vyamtara deva mem paida hue. Vaham se chyavakara vo paradesha gae hue pativali prati vasudeva ke purohita ki putri ke garbha mem paida hua. Kisi samaya usaki mata purohita ki patni ki najara mem aya ki, pati paradesha mem gaya hua hai aura putri garbhavati hui hai, vo janakara ha ha ha yaha meri durachari putri ne mere sarva kula para mashi ka kuchara lagaya. Ijjata para daga laga gaya. Yaha bata purohita ko batai vo bata sunakara dirghakala taka kaphi samtapa pakara hridaya se nirdhara karake purohita ne use desha se nikala diya kyomki yaha maha asadhya nivarana na kara sake vaisa apayasha phailanevala bara dosha hai, usaka mujhe kaphi bhaya lagata hai. Aba pita ke nikala dene ke bada kahim bhi sthana na panevale thore samaya ke bada shardi garmi pavana se pareshana honevali akala ke dosha se kshudha se durbala kamthavali usane ghi, tela adi rasa ke vyapari ke ghara mem dasapana se pravesha kiya. Vaham kaphi madirapana karanevale ke pasa se jhuthi madira pakara ikatthi karate haim. Aura bara – bara jhutha bhojana khate haim. Kisi samaya hammesha jhutha bhojana karanevali aura vaham kaphi madira adi pine ke layaka chije dekhakara madira ka pana karake aura mamsa ka bhojana karake rahi thi. Taba use usa taraha ka dohala (ichchha) paida hui ki maim bahuta madyapana karum. Usake bada nata, natakiya, chhatra dharanevale, charana, bhata, bhumi khudanevale, naukara, chora adi halki jativale ne achchhi taraha se tyaga karanevali, mastaka, pumchha, kana, haddi, mritaka adi sharira avayava. Bachhare ke tore hue amga jo khane ke lie uchita na ho aura phemka die ho vaise halake jhuthe mamsa madira ka bhojana karane lagi. Usake bada vo jhuthe mitti ke katore mem jo koi nabhi ke bicha mem vishesha taraha se pakva honevala mamsa ho usaka bhojana karane lagi. Kuchha dina bitane ke bada madya aura mamsa para kaphi griddhivali hui. Usa rasa ke vyapari ke ghara mem se kamsa ke bhajana vastra ya dusari chija ki chori karake dusari jagaha bechakara mamsa rahita madya ka bhugavata karane lagi, vyapari ko yaha sarva hakikata jnyata hui. Vyapari ne raja ko phariyada ki. Raja ne vadha karane ka hukuma kiya. Taba rajya mem isa taraha ki koi kuladharma hai ki jo kisi garbhavati stri gunhegara bane aura vadha ki shiksha pae lekina jaba taka bachche ko janma na de taba taka use mara na dale. Vadha karane ke lie niyukta kie hue aura kotavali adi usako apane ghara le jakara prasava ke samaya ka intajara karane lage. Aura usaki raksha karane lage. Kisi samaya harikesha jativale himsaka loga use apane ghara le gae. Kalakrame usane savadyacharya ke jiva ko bachche ke rupa mem janma diya. Janma dekara turanta hi vo bachche ka tyaga karake mauta ke dara se ati trasta honevali vaham se bhaga gai. He gautama ! Jaba vo eka disha se bhagi aura usa chamrala ko pata chala ki vo papini bhaga gai hai. Vadha karanevale ke agevana ne raja ko binati ki, he deva ! Kela ke garbha samana komala bachche ka tyaga karake duracharini to bhaga chali. Deva raja ne pratyuttara diya ki bhale bhaga gai to use jane do, lekina usa bachche ki achchhi taraha dekhabhala karana. Sarvatha vaisi koshisha karana ki jisase vo bachcha mara na jae. Usake kharcha ke lie yaha pamcha hajara dravya grahana karo. Usake bada raja ke hukuma se putra ki taraha usa kulata ke putra ka palana – poshana kiya, kalakrama se vo papakarmi phamsi denevale ka adhipati mara gaya. Taba raja ne usa bachche ko usaka barisa banaya. Pamchasau chamrala ka adhipati banaya. Vaham kasai ke adhipati pada para rahanevala vo usa taraha ke na karane layaka papakarya karake apratishthana nama ki satavim naraka prithvi mem gaya Isa prakara savadyacharya ka jiva satavim naraki ke vaise ghora prachamra, raudra, ati bhayanaka duhkha temtisa sagaropama ke lambe arase taka mahaklesha purvaka mahasusa karake vaham se nikalakara yaham amtaradvipa mem eka umruga jati mem paida hua. Vaham se marakara tiryamcha yoni mem pare ke rupa mem paida hua. Vaham bhi kisi naraka ke duhkha ho usake samana namavale duhkha chhabbisa sala taka bhugatakara usake bada he gautama ! Marake manava mem janma liya. Vaham se nikalakara usa savadyacharya ka jiva vasudeva ke rupa mem paida hua. Vaham bhi yatha uchita ayu paripurna karake kaim samgrama arambha mahaparigraha ke dosha se marakara satavim naraki mem gaya. Vaham se nikalakara kaphi dirghakala ke bada gajakarna nama ki manava jati mem paida hua. Vaham bhi mamsahara ke dosha se krura adhyavasaya ki mativala marake phira satavim naraki ke apratishthana narakavasa mem gaya. Vaham se nikalakara phira tiryamchagati mem pare ke rupa mem paida hua. Vaham naraka samana paravara duhkha pakara mara. Phira bala vidhava kulata brahmana ki putri ki kukshi mem paida hua. Aba usa savadyacharya ka jiva kulata ke garbha mem tha taba gupta tarike se garbha ko girane ke lie, sarane ke lie kshara, aushadha yoga ka prayoga karane ke dosha se kaim vyadhi aura vedana se vyapta shariravale, dushta vyadhi se saranevale paru jharita, sala sala karate krimi ke samuhavala vo kirom se khae janevala, naraka ki upamavale, ghora duhkha ke nivasabhuta bahara nikala. He gautama ! Usake bada sabhi loga se nindita, garhita, dugumchha karanevala, napharata se sabhi loka se parabhava panevala, khana, pana, bhoga, upabhoga rahita garbhavasa se lekara sata sala, do mahine, chara dina taka yavajjiva jikara vichitra sharirika, manasika, ghora duhkha se pareshani bhugatate hue marakara bhi vyamtara deva ke rupa mem paida hua. Vaham se chyavakara manushya hua. Phira vadha karanevale ka adhipati aura phira usa papakarma ke dosha se satavim mem pahumcha. Vaham se nikalakara tiryamcha gati mem kumhara ke yaham baila ke rupa mem paida hua. Vaham se chyavakara manushya hua. Phira vadha karanevale ka adhipati, aura phira usa papakarma ke dosha se satavim mem pahumcha. Vaham se nikalakara tiryamcha gati mem kumhara ke vaham baila ke rupa mem paida hua. Use vaham chakki, gari, hala, araghatta adi mem jurakara rata – dina ghumsari mem garadana ghisakara pholle ho gae aura bhitara sada gaya. Khambhe mem krimi paida hui. Aba jaba khamdha ghosari dharana karane ke lie samartha nahim hai aisa manakara usaka svami kumhara isalie pitha para bojha vahana karavane laga. Aba vakta gujarane se jisa taraha khamdha mem sada ho gaya usa taraha pitha bhi ghisakara sara gai. Usamem bhi kire paida ho gae. Puri pitha bhi sara gai aura usake upara ka chamara nikala gaya aura bhitara ka mamsa dikhane laga. Usake bada aba yaha kuchha kama nahim kara sakega, isalie nikamma hai, aisa manakara chhora diya. He gautama ! Usa savadyacharya ka jiva salasala kirom se khae janevale baila ko chhora diya. Usake bada kaphi sare hue charmavale, kaim kaue – kutte – krimi ke kula se bhitara aura bahara se khae janevala katanevala unatisa sala taka ayu palana karake marakara kaim vyadhi vedana se vyapta shariravala manavagati mem ati dhanika kisi bare ghara ke adami ke vaham janma liya. Vaham bhi vamana karane ke khasha, katu, tikhe, kashe hue, svadishta, triphala, gugala adi aushadhi pini parati, hammesha usake saphai karani pare asadhya, upashama na ho, ghora bhayanaka duhkha se jaise agni mem pakata ho vaise kathina duhkha bhugatate bhugatate unako mila hua manava bhava asaphala hua. Usa prakara he gautama ! Savadyacharya ka jiva chaudaha rajaloka mem janma – maranadika ke duhkha sahakara ananta kala ke bada avaravideha mem manava ke rupa mem paida hua. Vaham loka ki anuvritti se tirthamkara bhagavamta ko vamdana karane ke lie gaya pratibodha paya aura diksha amgikara karake yaham shri 23 ve parshvanatha tirthamkara ke kala mem siddhi pai. He gautama ! Savadyacharya ne isa prakara duhkha paya. He bhagavamta ! Isa taraha ka dussaha ghora bhayanaka duhkha a para. Unhem bhugatana para. Itane lambe arase taka yaha sabhi duhkha kisa nimitta se bhugatane pare. He gautama ! Usa vakta usane jaise aisa kaha ki, utsarga aura apavada sahita agama bataya hai. Ekanta mem prarupana nahim ki jati lekina anekanta se prarupana karate haim, lekina apkaya ka paribhoga, teukaya ka samarambha, maithunasevana yaha tinom dusare kisi sthana mem ekanta mem ya nishchaya se aura drirhata se ya sarvatha sarva taraha se atmahita ke arthi ke lie nishedha kiya hai. Yaham sutra ka ullamghana kiya jae to samyag marga ka vinasha, unmarga ka prakarsha hota hai, ajnya bhamga ke dosha se anantasamsari hote haim. He bhagavamta ! Kya usa savadyacharya ne maithuna sevana kiya tha\? He gautama ! Sevana kiya aura sevana nahim kiya yani sevana kiya yaha bhi nahim. Aura sevana na kiya aisa bhi nahim. He bhagavamta ! Aise do tarike se kyom kahate ho\? He gautama ! Jo usa arya ne usa vakta mastaka se pamva ka sparsha kiya, sparsha hua usa vakta usane pamva khimchakara sikura nahim liya. Isa vajaha se he gautama ! Aisa kaha jata hai ki, maithuna sevana kiya aura sevana nahim kiya. He bhagavamta ! Kevala itani vajaha mem aise ghora duhkha se mukta kara sake vaisa baddha sprishta nikachita karmabamdha hota hai kya\? He gautama ! Aisa hi hai. Usamem koi pharka nahim hai. He bhagavamta ! Usane tirthamkara namakarma ikattha kiya tha. Eka hi bhava baki rakha tha aura bhavasagara para kara diya tha. To phira ananta kala taka samsara mem kyom bhatakana para\? He gautama ! Apani pramada ke dosha ki vajaha se. Isalie bhava viraha ichchhanevale shastra ka sadbhava jisane achchhi taraha se pahachana hai aise gachchhadhipati ko sarvatha sarva taraha se samyama sthana mem kaphi apramatta bane. Isa prakara maim tumhe kahata hum. |