[सूत्र] जे भिक्खू नायगं वा अनायगं वा उवासयं वा अनुवासयं वा अंतो उवस्सयस्स अद्धं वा रातिं कसिणं वा रातिं संवसावेति, संवसावेंतं वा सातिज्जति।
Sutra Meaning :
जो साधु स्व परिचित या अपरिचित श्रावक या अन्य मतावलम्बी के साथ वसति में (उपाश्रय में) आधी या पूरी रात संवास करे यानि रहे, यह यहाँ है ऐसा मानकर बाहर जाए या बाहर से आए, या उसे रहने की मना न करे (तब वो गृहस्थ रात्रि भोजन, सचित्त संघट्टन, आरम्भ – समारम्भ करे वैसी संभावना होने से) प्रायश्चित्त। (उसी तरह से साध्वीजी श्राविका या अन्य गृहस्थ स्त्री के साथ निवास करे, करवाए, अनुमोदना करे, उसे आश्रित करके बाहर आए – जाए, उस स्त्री को वहाँ रहने की मना न करे, न करवाए या अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
सूत्र – ५७२–५७४
Mool Sutra Transliteration :
[sutra] je bhikkhu nayagam va anayagam va uvasayam va anuvasayam va amto uvassayassa addham va ratim kasinam va ratim samvasaveti, samvasavemtam va satijjati.
Sutra Meaning Transliteration :
Jo sadhu sva parichita ya aparichita shravaka ya anya matavalambi ke satha vasati mem (upashraya mem) adhi ya puri rata samvasa kare yani rahe, yaha yaham hai aisa manakara bahara jae ya bahara se ae, ya use rahane ki mana na kare (taba vo grihastha ratri bhojana, sachitta samghattana, arambha – samarambha kare vaisi sambhavana hone se) prayashchitta. (usi taraha se sadhviji shravika ya anya grihastha stri ke satha nivasa kare, karavae, anumodana kare, use ashrita karake bahara ae – jae, usa stri ko vaham rahane ki mana na kare, na karavae ya anumodana kare to prayashchitta.
Sutra – 572–574