Sutra Navigation: Jambudwippragnapati ( जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1007800 | ||
Scripture Name( English ): | Jambudwippragnapati | Translated Scripture Name : | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Translated Chapter : |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 200 | Category : | Upang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] पंडकवने णं भंते! वने कइ अभिसेयसिलाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अभिसेयसिलाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पंडुसिला पंडुकंबलसिला रत्तसिला रत्तकंबलसिला। कहि णं भंते! पंडगवने वने पंडुसिला नामं सिला पन्नत्ता? गोयमा! मंदरचूलियाए पुरत्थिमेणं, पंडगवणपुरत्थिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवने वने पंडुसिला नामं सिला पन्नत्ता–उत्तरदाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा अद्धचंदसंठाणसंठिया पंचजोयणसयाइं आयामेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयण-सयाइं विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई अच्छा। वेइयावनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, वण्णओ। तीसे णं पंडुसिलाए चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवानपडिरूवगा पन्नत्ता जाव तोरणा, वण्णओ। तीसे णं पंडुसिलाए उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव देवा आसयंति सयंति। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए उत्तरदाहिणेणं, एत्थ णं दुवे अभिसेयसीहासना पन्नत्ता–पंच धनुसयाइं आयामविक्खंभेणं, अड्ढाइज्जाइं धनुसयाइं बाहल्लेणं, सीहासनवण्णओ भाणियव्वो विजयदूसवज्जो। तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले सीहासने तत्थ णं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइसिय वेमानिएहिं देवेहिं देवीहिं य कच्छाइया तित्थयरा अभिसिच्चंति। तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले सीहासने तत्थ णं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइसिय वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य वच्छाईया तित्थयरा अभिसिच्चंति। कहि णं भंते! पंडगवने वने पंडुकंबलसिला नामं सिला पन्नत्ता? गोयमा! मंदरचूलियाए दक्खिणेणं, पंडगवनदाहिणपेरंते, एत्थ णं पंडगवने वने पंडुकंबलसिला नामं सिला पन्नत्ता–पाईणपडीणायया उत्तरदाहिणविच्छिण्णा, एवं तं चेव पमाणं वत्तव्वया य भाणियव्वा जाव– तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगे सीहासने पन्नत्ते, तं चेव सीहासनप्पमाणं, तत्थ णं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइसिय वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य भारहगा तित्थयरा अभिसिच्चंति। कहि णं भंते! पंडगवने वने रत्तसिला नामं सिला पन्नत्ता? गोयमा! मंदरचूलियाए पच्चत्थिमेणं, पंडगवनपच्चत्थिमपेरंते, एत्थ णं पंडगवने वने रत्तसिला नामं सिला पन्नत्ता–उत्तर-दाहिणायया पाईणपडीणविच्छिण्णा जाव तं चेव पमाणं सव्वतवणिज्जामई अच्छा। तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले सीहासने तत्थ णं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइसिय वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य पम्हाइया तित्थयरा अभिसिच्चंति। तत्थ णं जेसे उत्तरिल्ले सीहासने तत्थ णं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइसिय वेमा-णिएहिं देवेहिं देवीहिं य वप्पाइया तित्थयरा अभिसिच्चंति। कहि णं भंते! पंडगवने वने रत्तकंबलसिला नामं सिला पन्नत्ता? गोयमा! मंदरचूलियाए उत्तरेणं, पंडगवन-उत्तरचरिमते, एत्थ णं पंडगवने वने रत्तकंबलसिला नामं सिला पन्नत्ता–पाईण-पडीणायया उदीणदाहिणविच्छिण्णा सव्वतवणिज्जामई अच्छा जाव बहुमज्झदेसभाए सीहासनं, तत्थ णं बहूहिं भवनवइ वाणमंतर जोइसिय वेमानिएहिं देवेहिं देवीहि य एरावयगा तित्थयरा अभिसिच्चंति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! पण्डकवन में कितनी अभिषेक शिलाएं हैं ? गौतम ! चार, – पाण्डुशिला, पाण्डुकम्बलशिला, रक्तशिला तथा रक्तकम्बलशिला। पण्डकवन में पाण्डुशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डकवन के पूर्वी छोर पर है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बी तथा पूर्व – पश्चिम चौड़ी है। उसका आधार अर्ध चन्द्र के आकार – जैसा है। वह ५०० योजन लम्बी, २५० योजन चौड़ी तथा ४ योजन मोटी है। वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है, पद्मवरवेदिका तथा वनखण्ड द्वारा चारों ओर से संपरिवृत्त है। उस पाण्डुशिला के चारों ओर चारों दिशाओं में तीन – तीन सीढ़ियाँ है। उस पाण्डुशिला पर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है। उस पर देव आश्रय लेते हैं। उस भूमिभाग के बीच में उत्तर तथा दक्षिण में दो सिंहासन हैं। वे ५०० धनुष लम्बे – चौड़े और २५० धनुष ऊंचे हैं। वहाँ जो उत्तर दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देव – देवियाँ कच्छ आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरो का अभिषेक करते हैं। वहाँ जो दक्षिण दिग्वर्ती सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति, यावत् वैमानिक देव – देवियाँ वत्स आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक करते हैं। भगवन् ! पण्डकवन में पाण्डुकम्बलशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के दक्षिण में, पण्डकवन के दक्षिणी छोर पर है। उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है। उसके भूमिभाग के बीचोंबीच एक विशाल सिंहासन है। उसका वर्णन पूर्ववत् है। वहाँ भवनपति आदि देव – देवियों द्वारा भरतक्षेत्रोत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। पण्डकवन में रक्तशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के पश्चिम में, पण्डकवन के पश्चिमी छोर पर है। उसका प्रमाण, विस्तार पूर्ववत् है। वह सर्वथा तपनीय स्वर्णमय है, स्वच्छ है। उसके उत्तर – दक्षिण दो सिंहासन हैं। उनमें जो दक्षिणी सिंहासन है, वहाँ बहुत से भवनपति आदि देव – देवियों द्वारा पक्ष्मादिक विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। जो उत्तरी सिंहासन है, वहाँ बहुत से वप्र आदि विजयों में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। भगवन् ! पण्डकवन में रक्तकम्बलशिला कहाँ है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के उत्तर में, पण्डकवन के उत्तरी छोर पर है। सम्पूर्णतः तपनीय स्वर्णमय तथा उज्ज्वल है। उसके बीचों – बीच एक सिंहासन है। वहाँ ऐरावतक्षेत्र में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] pamdakavane nam bhamte! Vane kai abhiseyasilao pannattao? Goyama! Chattari abhiseyasilao pannattao, tam jaha–pamdusila pamdukambalasila rattasila rattakambalasila. Kahi nam bhamte! Pamdagavane vane pamdusila namam sila pannatta? Goyama! Mamdarachuliyae puratthimenam, pamdagavanapuratthimaperamte, ettha nam pamdagavane vane pamdusila namam sila pannatta–uttaradahinayaya painapadinavichchhinna addhachamdasamthanasamthiya pamchajoyanasayaim ayamenam, addhaijjaim joyana-sayaim vikkhambhenam, chattari joyanaim bahallenam, savvakanagamai achchha. Veiyavanasamdenam savvao samamta samparikkhitta, vannao. Tise nam pamdusilae chauddisim chattari tisovanapadiruvaga pannatta java torana, vannao. Tise nam pamdusilae uppim bahusamaramanijje bhumibhage pannatte java deva asayamti sayamti. Tassa nam bahusamaramanijjassa bhumibhagassa bahumajjhadesabhae uttaradahinenam, ettha nam duve abhiseyasihasana pannatta–pamcha dhanusayaim ayamavikkhambhenam, addhaijjaim dhanusayaim bahallenam, sihasanavannao bhaniyavvo vijayadusavajjo. Tattha nam jese uttarille sihasane tattha nam bahuhim bhavanavai vanamamtara joisiya vemaniehim devehim devihim ya kachchhaiya titthayara abhisichchamti. Tattha nam jese dahinille sihasane tattha nam bahuhim bhavanavai vanamamtara joisiya vemaniehim devehim devihi ya vachchhaiya titthayara abhisichchamti. Kahi nam bhamte! Pamdagavane vane pamdukambalasila namam sila pannatta? Goyama! Mamdarachuliyae dakkhinenam, pamdagavanadahinaperamte, ettha nam pamdagavane vane pamdukambalasila namam sila pannatta–painapadinayaya uttaradahinavichchhinna, evam tam cheva pamanam vattavvaya ya bhaniyavva java– Tassa nam bahusamaramanijjassa bhumibhagassa bahumajjhadesabhae, ettha nam maham ege sihasane pannatte, tam cheva sihasanappamanam, tattha nam bahuhim bhavanavai vanamamtara joisiya vemaniehim devehim devihi ya bharahaga titthayara abhisichchamti. Kahi nam bhamte! Pamdagavane vane rattasila namam sila pannatta? Goyama! Mamdarachuliyae pachchatthimenam, pamdagavanapachchatthimaperamte, ettha nam pamdagavane vane rattasila namam sila pannatta–uttara-dahinayaya painapadinavichchhinna java tam cheva pamanam savvatavanijjamai achchha. Tattha nam jese dahinille sihasane tattha nam bahuhim bhavanavai vanamamtara joisiya vemaniehim devehim devihi ya pamhaiya titthayara abhisichchamti. Tattha nam jese uttarille sihasane tattha nam bahuhim bhavanavai vanamamtara joisiya vema-niehim devehim devihim ya vappaiya titthayara abhisichchamti. Kahi nam bhamte! Pamdagavane vane rattakambalasila namam sila pannatta? Goyama! Mamdarachuliyae uttarenam, pamdagavana-uttaracharimate, ettha nam pamdagavane vane rattakambalasila namam sila pannatta–paina-padinayaya udinadahinavichchhinna savvatavanijjamai achchha java bahumajjhadesabhae sihasanam, tattha nam bahuhim bhavanavai vanamamtara joisiya vemaniehim devehim devihi ya eravayaga titthayara abhisichchamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Pandakavana mem kitani abhisheka shilaem haim\? Gautama ! Chara, – pandushila, pandukambalashila, raktashila tatha raktakambalashila. Pandakavana mem pandushila kaham hai\? Gautama ! Mandara parvata ki chulika ke purva mem pandakavana ke purvi chhora para hai. Vaha uttara – dakshina lambi tatha purva – pashchima chauri hai. Usaka adhara ardha chandra ke akara – jaisa hai. Vaha 500 yojana lambi, 250 yojana chauri tatha 4 yojana moti hai. Vaha sarvatha svarnamaya hai, svachchha hai, padmavaravedika tatha vanakhanda dvara charom ora se samparivritta hai. Usa pandushila ke charom ora charom dishaom mem tina – tina sirhiyam hai. Usa pandushila para bahuta samatala evam sundara bhumibhaga hai. Usa para deva ashraya lete haim. Usa bhumibhaga ke bicha mem uttara tatha dakshina mem do simhasana haim. Ve 500 dhanusha lambe – chaure aura 250 dhanusha umche haim. Vaham jo uttara digvarti simhasana hai, vaham bahuta se bhavanapati, vanavyantara, jyotishka evam vaimanika deva – deviyam kachchha adi vijayom mem utpanna tirthamkaro ka abhisheka karate haim. Vaham jo dakshina digvarti simhasana hai, vaham bahuta se bhavanapati, yavat vaimanika deva – deviyam vatsa adi vijayom mem utpanna tirthamkarom ka abhisheka karate haim. Bhagavan ! Pandakavana mem pandukambalashila kaham hai\? Gautama ! Mandara parvata ki chulika ke dakshina mem, pandakavana ke dakshini chhora para hai. Usaka pramana, vistara purvavat hai. Usake bhumibhaga ke bichombicha eka vishala simhasana hai. Usaka varnana purvavat hai. Vaham bhavanapati adi deva – deviyom dvara bharatakshetrotpanna tirthamkarom ka abhisheka kiya jata hai. Pandakavana mem raktashila kaham hai\? Gautama ! Mandara parvata ki chulika ke pashchima mem, pandakavana ke pashchimi chhora para hai. Usaka pramana, vistara purvavat hai. Vaha sarvatha tapaniya svarnamaya hai, svachchha hai. Usake uttara – dakshina do simhasana haim. Unamem jo dakshini simhasana hai, vaham bahuta se bhavanapati adi deva – deviyom dvara pakshmadika vijayom mem utpanna tirthamkarom ka abhisheka kiya jata hai. Jo uttari simhasana hai, vaham bahuta se vapra adi vijayom mem utpanna tirthamkarom ka abhisheka kiya jata hai. Bhagavan ! Pandakavana mem raktakambalashila kaham hai\? Gautama ! Mandara parvata ki chulika ke uttara mem, pandakavana ke uttari chhora para hai. Sampurnatah tapaniya svarnamaya tatha ujjvala hai. Usake bichom – bicha eka simhasana hai. Vaham airavatakshetra mem utpanna tirthamkarom ka abhisheka kiya jata hai. |