Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )

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Sr No : 1006812
Scripture Name( English ): Pragnapana Translated Scripture Name : प्रज्ञापना उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

पद-२१ अवगाहना संस्थान

Translated Chapter :

पद-२१ अवगाहना संस्थान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 512 Category : Upang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] ओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। एगिंदियओरालियस्स वि एवं चेव जहा ओहियस्स। पुढविक्काइयएगिंदियओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरओगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। एवं अपज्जत्तयाण वि पज्जत्तयाण वि। एवं सुहुमाण वि पज्जत्तापज्जत्ताणं। बादराणं पज्जत्तापज्जत्ताण वि एवं। एसो नवओ भेदो। जहा पुढविक्काइयाणं तहा आउक्काइयाण वि तेउक्काइयाण वि वाउक्काइयाण वि। वणस्सइकाइयओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। अपज्जत्तगाणं जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। पज्जत्तगाणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। बादराणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं। पज्जत्ताण वि एवं चेव। अपज्जत्ताणं जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। सुहुमाणं पज्जत्तापज्जत्ताण य तिण्ह वि जहन्नेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। बेइंदियओरालियसरीरस्स णं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। एवं सव्वत्थ वि अपज्जत्तयाणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं जहन्नेण वि उक्कोसेण वि। पज्जत्तयाणं जहेव ओहियस्स। एवं तेइंदियाणं तिन्नि गाउयाइं, चउरिंदियाणं चत्तारि गाउयाइं। पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं उक्कोसेणं जोयणसहस्सं ३, एवं सम्मुच्छिमाणं ३, गब्भ-वक्कंतियाण वि ३। एवं चेव नवओ भेदो भाणियव्वो। एवं जलयराण वि जोयणसहस्सं, नवओ भेदो। थलयराण वि णवओ भेदो ओहियचउप्पयपज्जत्तयगब्भवक्कंतियपज्जत्तयाण य उक्कोसेणं छग्गाउयाइं। सम्मुच्छिमाणं पज्जत्ताण य गाउयपुहत्तं उक्कोसेणं। एवं उरपरिसप्पाण वि ओहियगब्भवक्कंतियपज्जत्ताणं जोयणसहस्सं सम्मुच्छिमाणं जोयणपुहत्तं। भुयपरिसप्पाणं ओहियगब्भवक्कंतियाण य उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं। सम्मुच्छिमाणं धनुपुहत्तं। खहयराणं ओहियगब्भवक्कंतियाणं सम्मुच्छिमाण य तिण्ह वि उक्कोसेणं धनुपुहत्तं। इमाओ संगहणिगाहाओ–
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्टतः कुछ अधिक हजार योजन। एकेन्द्रिय के औदारिकशरीर की अवगाहना औघिक के समान है। पृथ्वी – कायिक – एकेन्द्रिय – औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवा भाग। इसी प्रकार अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक भी जानना। इसी प्रकार सूक्ष्म और बादर पर्याप्तक एवं अपर्याप्तक भी समझना, ये नौ भेद हुए। पृथ्वीकायिकों के समान अप्कायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक के भी नौ भेद जानना। वनस्पतिकायिकों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवा भाग, उत्कृष्ट अधिक हजार योजन। वनस्पतिकायिक अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना भी अंगुल के असंख्यातवें भाग की है और पर्याप्तकों की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन है। बादर० की जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग, उत्कृष्ट कुछ अधिक हजार योजन हैं। पर्याप्तकों की भी इसी प्रकार हैं। अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। और सूक्ष्म, पर्याप्तक और अपर्याप्तक, इन तीनों की जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवा भाग है। द्वीन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट बारह योजन। इसी प्रकार सर्वत्र अपर्याप्त जीवों की औदारिकशरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की जानना। पर्याप्त द्वीन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना उनके औघिक समान है। इसी प्रकार त्रीन्द्रियों की तीन गव्यूति तथा चतुरिन्द्रियों की चार गव्यूति है। पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों के औघिक, उनके पर्याप्तकों तथा अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है तथा सम्मूर्च्छिम० औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना इसी प्रकार है। इस प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यंचों के० कुल ९ भेद होते हैं। इसी प्रकार औघिक और पर्याप्तक जलचरों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन की है। स्थलचर – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों की औदारिकशरीरावगाहना – सम्बन्धी पूर्ववत्‌ ९ विकल्प होते हैं। स्थलचर उत्कृष्टतः छह गव्यूति है। सम्मूर्च्छिम स्थलचर – पं० उनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना गव्यूति – पृथक्त्व है। उनके अपर्याप्तकों की जघन्य और उत्कृष्ट शरीरावगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की है। गर्भज – तिर्यंच – पंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्ट छह गव्यूति की और पर्याप्तकों की भी इतनी ही है। औघक चतुष्पदों, गर्भज – चतुष्पदों के तथा इनके पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अवगाहना उत्कृष्टतः छह गव्यूति की होती है। सम्मूर्च्छिम – चतुष्पद० उनके पर्याप्तकों की उत्कृष्ट रूप से गव्यूतिपृथक्त्व है। इसी प्रकार उरःपरिसर्प० औघिक, गर्भज तथा (उनके) पर्याप्तकों की एक हजार योजन है। सम्मूर्च्छिम० उनके पर्याप्तकों की योजनपृ – थक्त्व है। भुजपरिसर्प० औघिक, गर्भज की उत्कृष्टतः गव्यूति – पृथक्त्व है। सम्मूर्च्छिम० की धनुषपृथक्त्व है। खेचर० औघिकों, गर्भजों एवं सम्मूर्च्छिमों, इन तीनों की उत्कृष्ट अवगाहना धनुषपृथक्त्व है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] oraliyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasahassam. Egimdiyaoraliyassa vi evam cheva jaha ohiyassa. Pudhavikkaiyaegimdiyaoraliyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sariraogahana pannatta? Goyama! Jahannena vi ukkosena vi amgulassa asamkhejjaibhagam. Evam apajjattayana vi pajjattayana vi. Evam suhumana vi pajjattapajjattanam. Badaranam pajjattapajjattana vi evam. Eso navao bhedo. Jaha pudhavikkaiyanam taha aukkaiyana vi teukkaiyana vi vaukkaiyana vi. Vanassaikaiyaoraliyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasahassam. Apajjattaganam jahannena vi ukkosena vi amgulassa asamkhejjaibhagam. Pajjattaganam jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasahassam. Badaranam jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satiregam joyanasahassam. Pajjattana vi evam cheva. Apajjattanam jahannena vi ukkosena vi amgulassa asamkhejjaibhagam. Suhumanam pajjattapajjattana ya tinha vi jahannena vi ukkosena vi amgulassa asamkhejjaibhagam. Beimdiyaoraliyasarirassa nam bhamte! Kemahaliya sarirogahana pannatta? Goyama! Jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam barasa joyanaim. Evam savvattha vi apajjattayanam amgulassa asamkhejjaibhagam jahannena vi ukkosena vi. Pajjattayanam jaheva ohiyassa. Evam teimdiyanam tinni gauyaim, chaurimdiyanam chattari gauyaim. Pamchimdiyatirikkhajoniyanam ukkosenam joyanasahassam 3, evam sammuchchhimanam 3, gabbha-vakkamtiyana vi 3. Evam cheva navao bhedo bhaniyavvo. Evam jalayarana vi joyanasahassam, navao bhedo. Thalayarana vi navao bhedo ohiyachauppayapajjattayagabbhavakkamtiyapajjattayana ya ukkosenam chhaggauyaim. Sammuchchhimanam pajjattana ya gauyapuhattam ukkosenam. Evam uraparisappana vi ohiyagabbhavakkamtiyapajjattanam joyanasahassam sammuchchhimanam joyanapuhattam. Bhuyaparisappanam ohiyagabbhavakkamtiyana ya ukkosenam gauyapuhattam. Sammuchchhimanam dhanupuhattam. Khahayaranam ohiyagabbhavakkamtiyanam sammuchchhimana ya tinha vi ukkosenam dhanupuhattam. Imao samgahanigahao–
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Audarikasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanyatah amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishtatah kuchha adhika hajara yojana. Ekendriya ke audarikasharira ki avagahana aughika ke samana hai. Prithvi – kayika – ekendriya – audarikasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya aura utkrishta amgula ka asamkhyatava bhaga. Isi prakara aparyaptaka evam paryaptaka bhi janana. Isi prakara sukshma aura badara paryaptaka evam aparyaptaka bhi samajhana, ye nau bheda hue. Prithvikayikom ke samana apkayika, tejaskayika aura vayukayika ke bhi nau bheda janana. Vanaspatikayikom ke audarikasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya amgula ke asamkhyatava bhaga, utkrishta adhika hajara yojana. Vanaspatikayika aparyaptakom ki jaghanya aura utkrishta avagahana bhi amgula ke asamkhyatavem bhaga ki hai aura paryaptakom ki jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishta kuchha adhika hajara yojana hai. Badara0 ki jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga, utkrishta kuchha adhika hajara yojana haim. Paryaptakom ki bhi isi prakara haim. Aparyaptakom ki jaghanya aura utkrishta amgula ke asamkhyatavem bhaga ki hai. Aura sukshma, paryaptaka aura aparyaptaka, ina tinom ki jaghanya aura utkrishta amgula ke asamkhyatava bhaga hai. Dvindriyom ke audarikasharira ki avagahana kitani hai\? Gautama ! Jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta baraha yojana. Isi prakara sarvatra aparyapta jivom ki audarikashariravagahana jaghanya aura utkrishta amgula ke asamkhyatavem bhaga ki janana. Paryapta dvindriyom ke audarikasharira ki avagahana unake aughika samana hai. Isi prakara trindriyom ki tina gavyuti tatha chaturindriyom ki chara gavyuti hai. Pamchendriya – tiryamchom ke aughika, unake paryaptakom tatha aparyaptakom ke audarikasharira ki utkrishta avagahana eka hajara yojana ki hai tatha sammurchchhima0 audarikasharira ki utkrishta avagahana isi prakara hai. Isa prakara pamchendriyatiryamchom ke0 kula 9 bheda hote haim. Isi prakara aughika aura paryaptaka jalacharom ke audarikasharira ki utkrishta avagahana eka hajara yojana ki hai. Sthalachara – pamchendriya – tiryamchom ki audarikashariravagahana – sambandhi purvavat 9 vikalpa hote haim. Sthalachara utkrishtatah chhaha gavyuti hai. Sammurchchhima sthalachara – pam0 unake paryaptakom ke audarikasharira ki utkrishta avagahana gavyuti – prithaktva hai. Unake aparyaptakom ki jaghanya aura utkrishta shariravagahana amgula ke asamkhyatavem bhaga ki hai. Garbhaja – tiryamcha – pamchendriyom ke audarikasharira ki avagahana utkrishta chhaha gavyuti ki aura paryaptakom ki bhi itani hi hai. Aughaka chatushpadom, garbhaja – chatushpadom ke tatha inake paryaptakom ke audarikasharira ki avagahana utkrishtatah chhaha gavyuti ki hoti hai. Sammurchchhima – chatushpada0 unake paryaptakom ki utkrishta rupa se gavyutiprithaktva hai. Isi prakara urahparisarpa0 aughika, garbhaja tatha (unake) paryaptakom ki eka hajara yojana hai. Sammurchchhima0 unake paryaptakom ki yojanapri – thaktva hai. Bhujaparisarpa0 aughika, garbhaja ki utkrishtatah gavyuti – prithaktva hai. Sammurchchhima0 ki dhanushaprithaktva hai. Khechara0 aughikom, garbhajom evam sammurchchhimom, ina tinom ki utkrishta avagahana dhanushaprithaktva hai.