Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1006462 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-२ स्थान |
Translated Chapter : |
पद-२ स्थान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 162 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से किं तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया य भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया य। से किं तं उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? उरपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्ख-जोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अही अयगरा आसालिया महोरगा। से किं तं अही? अही दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–दव्वीकरा य मउलिणो य। से किं तं दव्वीकरा? दव्वीकरा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–आसीविसा दिट्ठीविसा उग्गविसा भोगविसा तयाविसा लालाविसा उस्सासविसा निस्सासविसा कण्हसप्पा सेदसप्पा काओदरा दब्भपुप्फा कोलाहा मेलिमिंदा। जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं दव्वीकरा। से किं तं मउलिणो? मउलिणो अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–दिव्वा गोनसा कसाहिया वइउला चित्तलिणो मंडलिणो मालिणो अही अहिसलागा पडागा। जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं मउलिणो। से त्तं अही। से किं तं अयगरा? अयगरा एगागारा पन्नत्ता, से त्तं अयगरा। से किं तं आसालिया? आसालिया एगागारा पन्नत्ता। कहि णं भंते! आसालिया सम्मुच्छति? गोयमा! अंतोमनुस्सखित्ते अड्ढाइज्जेसु दीवेसु, निव्वाघाएणं पन्नरससु कम्मभूमीसु, वाघातं पडुच्च पंचसु महाविदेहेसु, चक्कवट्टिखंधावारेसु वासुदेवखंधावारेसु बलदेवखंधावारेसु मंडलियखंधावारेसु महामंडलियखंधावारेसु गामनिवेसेसु नगरनिवेसेसु निगमणिवेसेसु खेडनिवेसेसु कब्बडनिवेसेसु मडंबनिवेसेसु दोणमुहनिवेसेसु पट्टण-निवेसेसु आगरनिवेसेसु आसमनिवेसेसु संबाहनिवेसेसु रायहाणीनिवेसेसु एतेसि णं चेव विनासेसु एत्थ णं आसालिया सम्मुच्छंति, जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए उक्कोसेणं बारसजोयणाइं, तयनुरूवं च णं विक्खंभबाहल्लेणं भूमिं दालित्ताणं समुट्ठेति अस्सण्णी मिच्छद्दिट्ठी अन्नाणी अंतोमुहुत्तद्धाउयाचेव कालं करेइ। से त्तं आसालिया। से किं तं महोरगा? महोरगा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगइया अंगुलं पि अंगुलपुहत्तिया वि वियत्थिं पि वियत्थिपुहत्तिया वि रयणिं पि रयणिपुहत्तिया वि कुच्छिं पि कुच्छिपुहत्तिया वि धणुं पि धणुपुहत्तिया वि गाउयं पि गाउयपुहत्तिया वि जोयणं पि जोयणपुहत्तिया वि जोयणसतं पि जोयणसतपुहत्तिया वि जोयणसहस्सं पि। ते णं थले जाता जले वि चरंति थले वि चरंति। ते नत्थि इहं, बाहिरएसु दीव-समुद्दएसु हवंति। जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं महोरगा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य। तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। तत्थ णं जेते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–इत्थी पुरिसा नपुंसगा। एएसि णं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं उरपरिसप्पाणं दस जाइकुलकोडीजोणिप्पमुह-सतसहस्सा हवंतीति मक्खातं। से त्तं उरपरिसप्पा। से किं तं भुयपरिसप्पा? भुयपरिसप्पा अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–नउला गोहा सेहा सरडा सल्ला सरंडा सारा घरोइला विस्संभरा मूसा मंगुसा पयलाइया छीरविरालिया जाहा चउप्पाइया। जे यावऽन्ने तहप्पगारा। ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य। तत्थ णं जेते सम्मुच्छिमा ते सव्वे नपुंसगा। तत्थ णं जेते गब्भवक्कंतिया ते णं तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–इत्थी पुरिसा नपुंसगा। एतेसि णं एवमाइयाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं भुयपरिसप्पाणं नव जाइकुलकोडि-जोणीपमुहसयसहस्सा हवंतीति मक्खायं। से त्तं भुयपरिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। से त्तं परिसप्पथलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणिया। | ||
Sutra Meaning : | वे परिसर्प – स्थलचर० दो प्रकार के हैं। उरःपरिसर्प० एवं भुजपरिसर्प – स्थलचर – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक। उरःपरिसर्प – स्थलचर – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक किस प्रकार के हैं ? चार प्रकार के। अहि, अजगर, आसालिक और महोरग। वे अहि किस प्रकार के होते हैं ? दो प्रकार के। दर्वीकर और मुकुली। वे दर्वीकर सर्प किस प्रकार के होते हैं? अनेक प्रकार के हैं। वे इस प्रकार हैं – आशीविष (दाढ़ों में विषवाले), दृष्टिविष (दृष्टि में विषवाले), उग्रविष (तीव्र विषवाले), भोगविष (फन या शरीर में विषवाले), त्वचाविष (चमड़ी में विषवाले), लालाविष (लार में विष – वाले), उच्छ्वासविष (श्वास लेने में विषवाले), निःश्वासविष (श्वास छोड़ने में विषवाले), कृष्णसर्प, श्वेतसर्प, काकोदर, दह्यपुष्प (दर्भपुष्प), कोलाह, मेलिभिन्द और शेषेन्द्र। इसी प्रकार के और भी जितने सर्प हों, वे सब दर्वीकर के अन्तर्गत समझना चाहिए। यह हुई दर्वीकर सर्प की प्ररूपणा। वे मुकुली सर्प कैसे होते हैं ? अनेक प्रकार के। दिव्याक, गोनस, कषाधिक, व्यतिकुल, चित्रली, मण्डली, माली, अहि, अहिशलाका और वातपताका। अन्य जितने भी इसी प्रकार के सर्प हैं, (वे सब मुकुली सर्प समझना)। वे अजगर किस प्रकार के हैं ? एक ही आकार के। आसालिक किस प्रकार के होते हैं ? भगवन् ! आसालिक कहाँ सम्मूर्च्छित होते हैं ? गौतम ! वे मनुष्य क्षेत्र के अन्दर ढ़ाई द्वीपों में, निर्व्याघातरूप से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात की अपेक्षा से पाँच महाविदेह क्षेत्रों में, अथवा चक्रवर्ती, वासुदेवों, बलदेवों, माण्डलिकों, और महामाण्डलिकों के स्कन्धावारों में, ग्राम, नगर, निगम, निवेशों में, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टण, आकार, आश्रम, सम्बाध और राजधानीनिवेशों में। इन सब का विनाश होनेवाला हो तब इन स्थानों में आसालिक सम्मूर्च्छिमरूप से उत्पन्न होते हैं। वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग – मात्र और उत्कृष्ट बारह योजन की अवगाहना से (उत्पन्न होते हैं)। उसके अनुरूप ही उसका विष्कम्भ और बाहल्य होता है। वह (आसालिक) चक्रवर्ती के स्कन्धावर आदि के नीचे की भूमि को फाड़ कर प्रादुर्भूत होता है। वह असंज्ञी, मिथ्यादृष्टि और अज्ञानी होता है, तथा अन्तर्मुहूर्त्तका की आयु भोग कर मर जाता है। महोरग किस प्रकार के होते हैं ? अनेक प्रकार के। कई – कई महोरग एक अंगुल के, अंगुलपृथक्त्व, वितस्ति, वितस्तिपृथक्त्व, एक रत्नि, रत्निपृथक्त्व, कुक्षिप्रमाण, कुक्षिपृथक्त्व, धनुष, धनुषपृथक्त्व, गव्यूति, गव्यूतिपृथक्त्व, योजनप्रमाण, योजन पृथक्त्व, सौ योजन, योजनशतपृथक्त्व, और कोई हजार योजन के भी होते हैं। वे स्थल में उत्पन्न होते हैं, किन्तु जल में विचरण करते हैं, स्थल में भी विचरते हैं। वे मनुष्यक्षेत्र के बाहर के द्वीप – समुद्रों मे होते हैं। इसी प्रकार के अन्य जो भी उरःपरिसर्प हों, उन्हें भी महोरगजाति के समझना। वे उरःपरिसर्प स्थलचर संक्षेप में दो प्रकार के हैं – सम्मूर्च्छिम और गर्भज। इनमें से जो सम्मूर्च्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं। इनमें से जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं। स्त्री, पुरुष और नपुंसक। उरःपरिसर्पों के दस लाख जाति – कुलकोटि – योनि – प्रमुख होते हैं। भुजपरिसर्प किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के। नकुल, गोह, सरट, शल्य, सरंठ, सार, खार, गृह – कोकिला, विषम्भरा, मूषक, मंगुसा, पयोलातिक, क्षीरविडालिका, चतुष्पद स्थलचर के समान इनको समझना। इसी प्रकार के अन्य जितने भी (भुजा से चलने वाले प्राणी हों, उन्हें भुजपरिसर्प समझना)। वे भुजपरिसर्प संक्षेप में दो प्रकार के हैं। सम्मूर्च्छिम और गर्भज। जो सम्मूर्च्छिम हैं, वे सभी नपुंसक होते हैं। जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के हैं। स्त्री, पुरुष और नपुंसक। भुजपरिसर्पों के नौ लाख जाति – कुलकोटि – योनि – प्रमुख होते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se kim tam parisappathalayarapamchemdiyatirikkhajoniya? Parisappathalayarapamchemdiyatirikkhajoniya duviha pannatta, tam jaha– uraparisappathalayarapamchemdiyatirikkhajoniya ya bhuyaparisappathalayarapamchemdiya-tirikkhajoniya ya. Se kim tam uraparisappathalayarapamchemdiyatirikkhajoniya? Uraparisappathalayarapamchemdiyatirikkha-joniya chauvviha pannatta, tam jaha–ahi ayagara asaliya mahoraga. Se kim tam ahi? Ahi duviha pannatta, tam jaha–davvikara ya maulino ya. Se kim tam davvikara? Davvikara anegaviha pannatta, tam jaha–asivisa ditthivisa uggavisa bhogavisa tayavisa lalavisa ussasavisa nissasavisa kanhasappa sedasappa kaodara dabbhapuppha kolaha melimimda. Je yavanne tahappagara. Se ttam davvikara. Se kim tam maulino? Maulino anegaviha pannatta, tam jaha–divva gonasa kasahiya vaiula chittalino mamdalino malino ahi ahisalaga padaga. Je yavanne tahappagara. Se ttam maulino. Se ttam ahi. Se kim tam ayagara? Ayagara egagara pannatta, se ttam ayagara. Se kim tam asaliya? Asaliya egagara pannatta. Kahi nam bhamte! Asaliya sammuchchhati? Goyama! Amtomanussakhitte addhaijjesu divesu, nivvaghaenam pannarasasu kammabhumisu, vaghatam paduchcha pamchasu mahavidehesu, chakkavattikhamdhavaresu vasudevakhamdhavaresu baladevakhamdhavaresu mamdaliyakhamdhavaresu mahamamdaliyakhamdhavaresu gamanivesesu nagaranivesesu nigamanivesesu khedanivesesu kabbadanivesesu madambanivesesu donamuhanivesesu pattana-nivesesu agaranivesesu asamanivesesu sambahanivesesu rayahaninivesesu etesi nam cheva vinasesu ettha nam asaliya sammuchchhamti, jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagamettie ogahanae ukkosenam barasajoyanaim, tayanuruvam cha nam vikkhambhabahallenam bhumim dalittanam samuttheti assanni michchhadditthi annani amtomuhuttaddhauyacheva kalam karei. Se ttam asaliya. Se kim tam mahoraga? Mahoraga anegaviha pannatta, tam jaha–atthegaiya amgulam pi amgulapuhattiya vi viyatthim pi viyatthipuhattiya vi rayanim pi rayanipuhattiya vi kuchchhim pi kuchchhipuhattiya vi dhanum pi dhanupuhattiya vi gauyam pi gauyapuhattiya vi joyanam pi joyanapuhattiya vi joyanasatam pi joyanasatapuhattiya vi joyanasahassam pi. Te nam thale jata jale vi charamti thale vi charamti. Te natthi iham, bahiraesu diva-samuddaesu havamti. Je yavanne tahappagara. Se ttam mahoraga. Te samasato duviha pannatta, tam jaha–sammuchchhima ya gabbhavakkamtiya ya. Tattha nam jete sammuchchhima te savve napumsaga. Tattha nam jete gabbhavakkamtiya te nam tiviha pannatta, tam jaha–itthi purisa napumsaga. Eesi nam evamaiyanam pajjattapajjattanam uraparisappanam dasa jaikulakodijonippamuha-satasahassa havamtiti makkhatam. Se ttam uraparisappa. Se kim tam bhuyaparisappa? Bhuyaparisappa anegaviha pannatta, tam jaha–naula goha seha sarada salla saramda sara gharoila vissambhara musa mamgusa payalaiya chhiraviraliya jaha chauppaiya. Je yavanne tahappagara. Te samasato duviha pannatta, tam jaha–sammuchchhima ya gabbhavakkamtiya ya. Tattha nam jete sammuchchhima te savve napumsaga. Tattha nam jete gabbhavakkamtiya te nam tiviha pannatta, tam jaha–itthi purisa napumsaga. Etesi nam evamaiyanam pajjattapajjattanam bhuyaparisappanam nava jaikulakodi-jonipamuhasayasahassa havamtiti makkhayam. Se ttam bhuyaparisappathalayarapamchemdiyatirikkhajoniya. Se ttam parisappathalayarapamchemdiyatirikkhajoniya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ve parisarpa – sthalachara0 do prakara ke haim. Urahparisarpa0 evam bhujaparisarpa – sthalachara – pamchendriya – tiryamchayonika. Urahparisarpa – sthalachara – pamchendriya – tiryamchayonika kisa prakara ke haim\? Chara prakara ke. Ahi, ajagara, asalika aura mahoraga. Ve ahi kisa prakara ke hote haim\? Do prakara ke. Darvikara aura mukuli. Ve darvikara sarpa kisa prakara ke hote haim? Aneka prakara ke haim. Ve isa prakara haim – ashivisha (darhom mem vishavale), drishtivisha (drishti mem vishavale), ugravisha (tivra vishavale), bhogavisha (phana ya sharira mem vishavale), tvachavisha (chamari mem vishavale), lalavisha (lara mem visha – vale), uchchhvasavisha (shvasa lene mem vishavale), nihshvasavisha (shvasa chhorane mem vishavale), krishnasarpa, shvetasarpa, kakodara, dahyapushpa (darbhapushpa), kolaha, melibhinda aura sheshendra. Isi prakara ke aura bhi jitane sarpa hom, ve saba darvikara ke antargata samajhana chahie. Yaha hui darvikara sarpa ki prarupana. Ve mukuli sarpa kaise hote haim\? Aneka prakara ke. Divyaka, gonasa, kashadhika, vyatikula, chitrali, mandali, mali, ahi, ahishalaka aura vatapataka. Anya jitane bhi isi prakara ke sarpa haim, (ve saba mukuli sarpa samajhana). Ve ajagara kisa prakara ke haim\? Eka hi akara ke. Asalika kisa prakara ke hote haim\? Bhagavan ! Asalika kaham sammurchchhita hote haim\? Gautama ! Ve manushya kshetra ke andara rhai dvipom mem, nirvyaghatarupa se pandraha karmabhumiyom mem, vyaghata ki apeksha se pamcha mahavideha kshetrom mem, athava chakravarti, vasudevom, baladevom, mandalikom, aura mahamandalikom ke skandhavarom mem, grama, nagara, nigama, niveshom mem, kheta, karbata, madamba, dronamukha, pattana, akara, ashrama, sambadha aura rajadhaniniveshom mem. Ina saba ka vinasha honevala ho taba ina sthanom mem asalika sammurchchhimarupa se utpanna hote haim. Ve jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga – matra aura utkrishta baraha yojana ki avagahana se (utpanna hote haim). Usake anurupa hi usaka vishkambha aura bahalya hota hai. Vaha (asalika) chakravarti ke skandhavara adi ke niche ki bhumi ko phara kara pradurbhuta hota hai. Vaha asamjnyi, mithyadrishti aura ajnyani hota hai, tatha antarmuhurttaka ki ayu bhoga kara mara jata hai. Mahoraga kisa prakara ke hote haim\? Aneka prakara ke. Kai – kai mahoraga eka amgula ke, amgulaprithaktva, vitasti, vitastiprithaktva, eka ratni, ratniprithaktva, kukshipramana, kukshiprithaktva, dhanusha, dhanushaprithaktva, gavyuti, gavyutiprithaktva, yojanapramana, yojana prithaktva, sau yojana, yojanashataprithaktva, aura koi hajara yojana ke bhi hote haim. Ve sthala mem utpanna hote haim, kintu jala mem vicharana karate haim, sthala mem bhi vicharate haim. Ve manushyakshetra ke bahara ke dvipa – samudrom me hote haim. Isi prakara ke anya jo bhi urahparisarpa hom, unhem bhi mahoragajati ke samajhana. Ve urahparisarpa sthalachara samkshepa mem do prakara ke haim – sammurchchhima aura garbhaja. Inamem se jo sammurchchhima haim, ve sabhi napumsaka hote haim. Inamem se jo garbhaja haim, ve tina prakara ke haim. Stri, purusha aura napumsaka. Urahparisarpom ke dasa lakha jati – kulakoti – yoni – pramukha hote haim. Bhujaparisarpa kisa prakara ke haim\? Aneka prakara ke. Nakula, goha, sarata, shalya, saramtha, sara, khara, griha – kokila, vishambhara, mushaka, mamgusa, payolatika, kshiravidalika, chatushpada sthalachara ke samana inako samajhana. Isi prakara ke anya jitane bhi (bhuja se chalane vale prani hom, unhem bhujaparisarpa samajhana). Ve bhujaparisarpa samkshepa mem do prakara ke haim. Sammurchchhima aura garbhaja. Jo sammurchchhima haim, ve sabhi napumsaka hote haim. Jo garbhaja haim, ve tina prakara ke haim. Stri, purusha aura napumsaka. Bhujaparisarpom ke nau lakha jati – kulakoti – yoni – pramukha hote haim. |