Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1006332 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-१ प्रज्ञापना |
Translated Chapter : |
पद-१ प्रज्ञापना |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 32 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से किं तं वाउक्काइया? वाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं० सुहुमवाउक्काइया य बादरवाउक्काइया य। से किं तं सुहुमवाउक्काइया? सुहुमवाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगसुहुम-वाउक्काइया य अपज्जत्तग-सुहुमवाउक्काइया य। से त्तं सुहुमवाउक्काइया। से किं तं बादरवाउक्काइया? बादरवाउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पाईणवाए पडीणवाए दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउब्भामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घनवाए तनुवाए सुद्धवाए। जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तग-निस्साए अपज्जत्तया वक्कमंति–जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा। से त्तं बादरवाउक्काइया। से त्तं वाउक्काइया। | ||
Sutra Meaning : | वायुकायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं। सूक्ष्म और बादर। वे सूक्ष्म वायुकायिक कैसे हैं ? दो प्रकार के हैं – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। वे बादर वायुकायिक किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं। पूर्वी वात, पश्चिमीवायु, दक्षिणीवायु, उत्तरीवायु, ऊर्ध्ववायु, अधोवायु, तिर्यग्वायु, विदिग्वायु, वातोद्भ्राम, वातोत्कलिका, वातमण्डलिका, उत्कलिकावात, मण्डलिकावात, गुंजावात, झंझावात, संवर्त्तकवात, घनवात, तनुवात और शुद्ध – वात। अन्य जितनी भी इस प्रकार की हवाएं हैं, (उन्हें भी बादर वायुकायिक ही समझना।) वे (बादर वायुकायिक) संक्षेप में दो प्रकार के हैं। यथा – पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त हैं। इनमें से जो पर्याप्तक हैं, उनके वर्ण, गन्ध, रस, और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों प्रकार हैं। इनके संख्यात लाख योनिप्रमुख होते हैं। पर्याप्तक वायुकायिक के आश्रय से, अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं। जहाँ एक (पर्याप्तक वायुकायिक) होता है वहाँ नियम से असंख्यात (अपर्याप्तक वायुकायिक) होते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se kim tam vaukkaiya? Vaukkaiya duviha pannatta, tam0 suhumavaukkaiya ya badaravaukkaiya ya. Se kim tam suhumavaukkaiya? Suhumavaukkaiya duviha pannatta, tam jaha–pajjattagasuhuma-vaukkaiya ya apajjattaga-suhumavaukkaiya ya. Se ttam suhumavaukkaiya. Se kim tam badaravaukkaiya? Badaravaukkaiya anegaviha pannatta, tam jaha–painavae padinavae dahinavae udinavae uddhavae ahovae tiriyavae vidisivae vaubbhame vaukkaliya vayamamdaliya ukkaliyavae mamdaliyavae gumjavae jhamjhavae samvattagavae ghanavae tanuvae suddhavae. Je yavanne tahappagara te samasato duviha pannatta, tam jaha–pajjattaga ya apajjattaga ya. Tattha nam jete apajjattaga te nam asampatta. Tattha nam jete pajjattaga etesi nam vannadesenam gamdhadesenam rasadesenam phasadesenam sahassaggaso vihanaim, samkhejjaim jonippamuhasayasahassaim. Pajjattaga-nissae apajjattaya vakkamamti–jattha ego tattha niyama asamkhejja. Se ttam badaravaukkaiya. Se ttam vaukkaiya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vayukayika jiva kisa prakara ke haim\? Do prakara ke haim. Sukshma aura badara. Ve sukshma vayukayika kaise haim\? Do prakara ke haim – paryaptaka aura aparyaptaka. Ve badara vayukayika kisa prakara ke haim\? Aneka prakara ke haim. Purvi vata, pashchimivayu, dakshinivayu, uttarivayu, urdhvavayu, adhovayu, tiryagvayu, vidigvayu, vatodbhrama, vatotkalika, vatamandalika, utkalikavata, mandalikavata, gumjavata, jhamjhavata, samvarttakavata, ghanavata, tanuvata aura shuddha – vata. Anya jitani bhi isa prakara ki havaem haim, (unhem bhi badara vayukayika hi samajhana.) Ve (badara vayukayika) samkshepa mem do prakara ke haim. Yatha – paryaptaka aura aparyaptaka. Inamem se jo aparyaptaka haim, ve asamprapta haim. Inamem se jo paryaptaka haim, unake varna, gandha, rasa, aura sparsha ki apeksha se hajarom prakara haim. Inake samkhyata lakha yonipramukha hote haim. Paryaptaka vayukayika ke ashraya se, aparyaptaka utpanna hote haim. Jaham eka (paryaptaka vayukayika) hota hai vaham niyama se asamkhyata (aparyaptaka vayukayika) hote haim. |