Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006005 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | लवण समुद्र वर्णन | Translated Section : | लवण समुद्र वर्णन |
Sutra Number : | 205 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कति णं भंते! वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे सिवए संखे मणोसिलए। एतेसि णं भंते! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वत्ता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे दओभासे संखे दगसीमे। कहि णं भंते! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारिं तीसे जोयणसते कोसं च उव्वेधेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते आयाम-विक्खंभेणं, मज्झे सत्त तेवीसे जोयणसते आयामविक्खंभेणं उवरिं चत्तारि चउवीसे जोयणसए आयामविक्खंभेणं, मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं दोन्नि य बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूने परिक्खेवेणं, मज्झे दो जोयणसहस्साइं दोन्नि य छलसीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, उवरिं एगं जोयणसहस्सं तिन्नि य ईयाले जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पिं तणुए गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वकणगामए अच्छे जाव पडिरूवे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ। गोथूभस्स णं आवासपव्वतस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव आसयंति। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए बावट्ठिं जोयणद्धं च उड्ढं उच्चत्तेणं तं चेव पमाणं अद्ध आयामविक्खंभेणं वण्णओ जाव सीहासनं सपरिवारं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–गोथूभे आवासपव्वए? गोथूभे आवासपव्वए? गोयमा! गोथूभे णं आवासपव्वते खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं गोथूभप्पभाइं गोथूभागाराइं गोथूभवण्णाइं गोथूभवण्णाभाइं, गोथूभे य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव पलिओवमट्ठितीए परिवसति। से णं तत्थ चउण्हं सामानियसाहस्सीणं जाव गोथूभस्स आवासपव्वतस्स गोथूभाए रायहाणीए जाव विहरति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–गोथूभे आवासपव्वते, गोथूभे आवासपव्वते जाव निच्चे। रायहाणिपुच्छा। गोयमा! गोथूभस्स आवासपव्वतस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीतिवइत्ता अन्नंमि लवणसमुद्दे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता जहा विजया। कहि णं भंते! सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभासनामे आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभासे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। जहा गोथूभो जाव सीहासनं सपरिवारं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–दओभासे आवासपव्वते? दओभासे आवासपव्वते? गोयमा! दओभासे णं आवासपव्वते लवणसमुद्दे अट्ठजोयणिए खेत्ते दगं सव्वतो समंता ओभासेति उज्जोवेति तावेति पभासेति। सिवए एत्थ देवे महिड्ढीए जाव रायहाणी से दक्खिणेणं सिविगा दओभासस्स सेसं तं चेव। कहि णं भंते! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते गोथूभगमो जाव सीहासनं सपरिवारं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–संखे आवासपव्वते? संखे आवासपव्वते? गोयमा! संखे आवासपव्वते खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं संखप्पभाइं संखागाराइं संखवण्णाइं संखवण्णाभाइं संखे य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव विहरति। से तेणट्ठेणं। रायहाणी संखपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं विजयारायहाणी गमो। कहि णं भंते! मनोसिलकस्स वेलंधरणागरायस्स दगसीमे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स दगसीमे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। गोथूभगमेणं जाव सीहासनं सपरिवारं। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–दगसीमे आवासपव्वते? दगसीमे आवासपव्वते? गोयमा! दगसीमे णं आवासपव्वते सीतासीतोदाणं महानदीणं सोता तत्थ गता ततो पडिहता पडिनियत्तंति, मनोसिलए य एत्थ देवे महिड्ढीए जाव विहरति, से तेणट्ठेणं। मनोसिला रायहाणी? दगसीमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीतिवतित्ता अन्नंमि लवणे तहेव। कहि णं भंते मनोसिलगस्स वेलंधरनागरायस्स मनोसिला नाम रायहाणी गोयमा दगसीमस्स आवास-पव्वयस्स उत्तरेणं तिरि अण्णमि लवणे एत्थ णं मनोसिलया नाम रायहाणी पन्नत्ता तं चेव पमाणं जाव मनोसिलए देवे। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! वेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, शिवक, शंख और मनःशिलाक। हे भगवन् ! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत कहे गये हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, उदकभास, शंख और दकसीम। हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नामक आवासपर्वत कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बू – द्वीप के मेरुपर्वत के पूर्वमें लवणसमुद्र में ४२००० योजन जाने पर है। वह १७२१ योजन ऊंचा, ४३० योजन एक कोस पानी में गहरा, मूल में १०२२ योजन लम्बा – चौड़ा, बीच में ७२३ योजन लम्बा – चौड़ा, ऊपर ४२४ योजन लम्बा – चौड़ा है। उसकी परिधि मूलमें ३२३२ योजन से कुछ कम, मध्यमें २२८४ योजन से कुछ अधिक और ऊपर १३४१ योजन से कुछ कम हैं। यावत् प्रतिरूप हैं। वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से चारों ओर से परिवेष्टित है। गोस्तूप आवासपर्वत के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है, यावत् वहाँ बहुत से नागकुमार देव और देवियाँ स्थित हैं। उसमें एक बड़ा प्रासादावतंसक है जो साढ़े बासठ योजन ऊंचा है, सवा इकतीस योजन का लम्बा – चौड़ा है। हे भगवन् ! गोस्तूप आवासपर्वत, गोस्तूप आवासपर्वत क्यों कहा जाता है ? हे गौतम ! गोस्तूप आवास – पर्वत पर बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ आदि हैं, जिनमें गोस्तूप वर्ण के बहुत सारे उत्पल कमल आदि हैं यावत् वहाँ गोस्तूप नामक महर्द्धिक और एक पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है। वह गोस्तूप देव ४००० सामानिक देवों यावत् गोस्तूपा राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। यावत् वह गोस्तूपा आवासपर्वत नित्य है। हे भगवन् ! गोस्तूप देव की गोस्तूपा राजधानी कहाँ है ? हे गौतम ! गोस्तूप आवासपर्वत के पूर्व में तिर्यक्दिशा में असंख्यात द्वीप – समुद्र पार करने के बाद अन्य लवणसमुद्र में है। हे भगवन् ! शिवक वेलंधर नागराज का दकाभास नामक आवासपर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में लवणसमुद्र में ४२००० योजन आगे जाने पर है। गोस्तूप आवासपर्वत समान इसका प्रमाण है। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना अंकरत्नमय है, यावत् प्रतिरूप है। यावत् यह दकाभास क्यों कहा जाता है? गौतम ! लवणसमुद्र में दकाभास नामक आवासपर्वत आठ योजन के क्षेत्र में पानी को सब ओर अति विशुद्ध अंकरत्नमय होने से अपनी प्रभा से अवभासित, उद्योतित और तापित करता है, चमकाता है तथा शिवक नाम का महर्द्धिक देव यहाँ रहता है, इसलिए यह दकाभास कहा जाता है। यावत् शिवका राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। वह शिवका राजधानी दकाभास पर्वत के दक्षिण में अन्य लवणसमुद्र में है, आदि। हे भगवन् ! शंख नामक वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपर्वत कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के पश्चिम में ४२००० योजन आगे जाने पर है। उसका प्रमाण गोस्तूप की तरह है। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ है। वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से घिरा हुआ है यावत् उस शंख आवासपर्वत पर छोटी – छोटी वावड़ियाँ आदि हैं, जिनमें बहुत से कमलादि हैं। जो शंख की आभावाले, शंख के रंगवाले हैं और शंख की आकृति वाले हैं तथा वहाँ शंख नामक महर्द्धिक देव रहता है। वह शंख नामक राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। शंख नामक राजधानी शंख आवासपर्वत के पश्चिम में है, आदि कहना। हे भगवन् ! मनःशिलक वेलंधर नागराज का दकसीम नामक आवासपर्वत कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत की उत्तरदिशा में लवणसमुद्र में ४२००० योजन आगे जाने पर है। यावत् यह दकसीम क्यों कहा जाता है ? गौतम! इस दकसीम आवासपर्वत से शीता – शीतोदा महानदियों का प्रवाह यहाँ आकर प्रतिहत हो जाता है। इसलिए यह उदक की सीमा करने वाला होने से ‘दकसीम’ कहलाता है। यह शाश्वत है। यहाँ मनःशिलक नाम का महर्द्धिक देव रहता है यावत् वह ४००० सामानिक देवों आदि का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। हे भगवन् ! मनः – शिलक वेलंधर नागराज की मनःशिला राजधानी कहाँ है ? गौतम ! दकसीम आवासपर्वत के उत्तर में तिरछी दिशा में असंख्यात द्वीप – समुद्र पार करने पर अन्य लवणसमुद्र में है। उसका प्रमाण आदि विजया राजधानी के तुल्य कहना यावत् वहाँ मनःशिलक नामक देव महर्द्धिक और एक पल्योपम की स्थिति वाला रहता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kati nam bhamte! Velamdharanagarayano pannatta? Goyama! Chattari velamdharanagarayano pannatta, tam jaha–gothubhe sivae samkhe manosilae. Etesi nam bhamte! Chaunham velamdharanagarayanam kati avasapavvatta pannatta? Goyama! Chattari avasapavvata pannatta, tam jaha–gothubhe daobhase samkhe dagasime. Kahi nam bhamte! Gothubhassa velamdharanagarayassa gothubhe namam avasapavvate pannatte? Goyama! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa puratthimenam lavanasamuddam bayalisam joyanasahassaim ogahitta ettha nam gothubhassa velamdharanagarayassa gothubhe namam avasapavvate pannatte. Sattarasaekkavisaim joyanasataim uddham uchchattenam, chattarim tise joyanasate kosam cha uvvedhenam, mule dasabavise joyanasate ayama-vikkhambhenam, majjhe satta tevise joyanasate ayamavikkhambhenam uvarim chattari chauvise joyanasae ayamavikkhambhenam, mule tinni joyanasahassaim donni ya battisuttare joyanasae kimchivisesune parikkhevenam, majjhe do joyanasahassaim donni ya chhalasite joyanasate kimchivisesahie parikkhevenam, uvarim egam joyanasahassam tinni ya iyale joyanasate kimchivisesune parikkhevenam, mule vitthinne majjhe samkhitte uppim tanue gopuchchhasamthanasamthie savvakanagamae achchhe java padiruve. Se nam egae paumavaraveiyae egena ya vanasamdenam savvato samamta samparikkhitte, donhavi vannao. Gothubhassa nam avasapavvatassa uvarim bahusamaramanijje bhumibhage pannatte java asayamti. Tassa nam bahusamaramanijjassa bhumibhagassa bahumajjhadesabhae, ettha nam ege maham pasayavademsae bavatthim joyanaddham cha uddham uchchattenam tam cheva pamanam addha ayamavikkhambhenam vannao java sihasanam saparivaram. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–gothubhe avasapavvae? Gothubhe avasapavvae? Goyama! Gothubhe nam avasapavvate khuddakhuddiyasu java bilapamtiyasu bahuim uppalaim java sahassapattaim gothubhappabhaim gothubhagaraim gothubhavannaim gothubhavannabhaim, gothubhe ya ettha deve mahiddhie java paliovamatthitie parivasati. Se nam tattha chaunham samaniyasahassinam java gothubhassa avasapavvatassa gothubhae rayahanie java viharati. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchati–gothubhe avasapavvate, gothubhe avasapavvate java nichche. Rayahanipuchchha. Goyama! Gothubhassa avasapavvatassa puratthimenam tiriyamasamkhejje divasamudde vitivaitta annammi lavanasamudde barasa joyanasahassaim ogahitta jaha vijaya. Kahi nam bhamte! Sivagassa velamdharanagarayassa daobhasaname avasapavvate pannatte? Goyama! Jambuddive nam dive mamdarassa pavvayassa dakkhinenam lavanasamuddam bayalisam joyanasahassaim ogahitta, ettha nam sivagassa velamdharanagarayassa daobhase namam avasapavvate pannatte. Jaha gothubho java sihasanam saparivaram. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–daobhase avasapavvate? Daobhase avasapavvate? Goyama! Daobhase nam avasapavvate lavanasamudde atthajoyanie khette dagam savvato samamta obhaseti ujjoveti taveti pabhaseti. Sivae ettha deve mahiddhie java rayahani se dakkhinenam siviga daobhasassa sesam tam cheva. Kahi nam bhamte! Samkhassa velamdharanagarayassa samkhe namam avasapavvate pannatte? Goyama! Jambuddive nam dive mamdarassa pavvayassa pachchatthimenam bayalisam joyanasahassaim ogahitta, ettha nam samkhassa velamdharanagarayassa samkhe namam avasapavvate pannatte gothubhagamo java sihasanam saparivaram. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–samkhe avasapavvate? Samkhe avasapavvate? Goyama! Samkhe avasapavvate khuddakhuddiyasu java bilapamtiyasu bahuim uppalaim java sahassapattaim samkhappabhaim samkhagaraim samkhavannaim samkhavannabhaim samkhe ya ettha deve mahiddhie java viharati. Se tenatthenam. Rayahani samkhapavvayassa pachchatthimenam vijayarayahani gamo. Kahi nam bhamte! Manosilakassa velamdharanagarayassa dagasime namam avasapavvate pannatte? Goyama! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa uttarenam lavanasamuddam bayalisam joyanasahassaim ogahitta, ettha nam manosilagassa velamdharanagarayassa dagasime namam avasapavvate pannatte. Gothubhagamenam java sihasanam saparivaram. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–dagasime avasapavvate? Dagasime avasapavvate? Goyama! Dagasime nam avasapavvate sitasitodanam mahanadinam sota tattha gata tato padihata padiniyattamti, manosilae ya ettha deve mahiddhie java viharati, se tenatthenam. Manosila rayahani? Dagasimassa avasapavvayassa uttarenam tiriyamasamkhejje divasamudde bitivatitta annammi lavane taheva. Kahi nam bhamte manosilagassa velamdharanagarayassa manosila nama rayahani goyama dagasimassa avasa-pavvayassa uttarenam tiri annami lavane ettha nam manosilaya nama rayahani pannatta tam cheva pamanam java manosilae deve. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Velamdhara nagaraja kitane haim\? Gautama ! Chara – gostupa, shivaka, shamkha aura manahshilaka. He bhagavan ! Ina chara velamdhara nagarajom ke kitane avasaparvata kahe gaye haim\? Gautama ! Chara – gostupa, udakabhasa, shamkha aura dakasima. He bhagavan ! Gostupa velamdhara nagaraja ka gostupa namaka avasaparvata kaham hai\? He gautama ! Jambu – dvipa ke meruparvata ke purvamem lavanasamudra mem 42000 yojana jane para hai. Vaha 1721 yojana umcha, 430 yojana eka kosa pani mem gahara, mula mem 1022 yojana lamba – chaura, bicha mem 723 yojana lamba – chaura, upara 424 yojana lamba – chaura hai. Usaki paridhi mulamem 3232 yojana se kuchha kama, madhyamem 2284 yojana se kuchha adhika aura upara 1341 yojana se kuchha kama haim. Yavat pratirupa haim. Vaha eka padmavaravedika aura eka vanakhanda se charom ora se pariveshtita hai. Gostupa avasaparvata ke upara bahusamaramaniya bhumibhaga hai, yavat vaham bahuta se nagakumara deva aura deviyam sthita haim. Usamem eka bara prasadavatamsaka hai jo sarhe basatha yojana umcha hai, sava ikatisa yojana ka lamba – chaura hai. He bhagavan ! Gostupa avasaparvata, gostupa avasaparvata kyom kaha jata hai\? He gautama ! Gostupa avasa – parvata para bahuta – si chhoti – chhoti bavariyam adi haim, jinamem gostupa varna ke bahuta sare utpala kamala adi haim yavat vaham gostupa namaka maharddhika aura eka palyopama ki sthitivala deva rahata hai. Vaha gostupa deva 4000 samanika devom yavat gostupa rajadhani ka adhipatya karata hua vicharata hai. Yavat vaha gostupa avasaparvata nitya hai. He bhagavan ! Gostupa deva ki gostupa rajadhani kaham hai\? He gautama ! Gostupa avasaparvata ke purva mem tiryakdisha mem asamkhyata dvipa – samudra para karane ke bada anya lavanasamudra mem hai. He bhagavan ! Shivaka velamdhara nagaraja ka dakabhasa namaka avasaparvata kaham hai\? Gautama ! Jambudvipa ke meruparvata ke dakshina mem lavanasamudra mem 42000 yojana age jane para hai. Gostupa avasaparvata samana isaka pramana hai. Visheshata yaha hai ki yaha sarvatmana amkaratnamaya hai, yavat pratirupa hai. Yavat yaha dakabhasa kyom kaha jata hai? Gautama ! Lavanasamudra mem dakabhasa namaka avasaparvata atha yojana ke kshetra mem pani ko saba ora ati vishuddha amkaratnamaya hone se apani prabha se avabhasita, udyotita aura tapita karata hai, chamakata hai tatha shivaka nama ka maharddhika deva yaham rahata hai, isalie yaha dakabhasa kaha jata hai. Yavat shivaka rajadhani ka adhipatya karata hua vicharata hai. Vaha shivaka rajadhani dakabhasa parvata ke dakshina mem anya lavanasamudra mem hai, adi. He bhagavan ! Shamkha namaka velamdhara nagaraja ka shamkha namaka avasaparvata kaham hai\? Gautama ! Jambudvipa ke meruparvata ke pashchima mem 42000 yojana age jane para hai. Usaka pramana gostupa ki taraha hai. Visheshata yaha hai ki yaha sarvatmana ratnamaya hai, svachchha hai. Vaha eka padmavaravedika aura eka vanakhanda se ghira hua hai yavat usa shamkha avasaparvata para chhoti – chhoti vavariyam adi haim, jinamem bahuta se kamaladi haim. Jo shamkha ki abhavale, shamkha ke ramgavale haim aura shamkha ki akriti vale haim tatha vaham shamkha namaka maharddhika deva rahata hai. Vaha shamkha namaka rajadhani ka adhipatya karata hua vicharata hai. Shamkha namaka rajadhani shamkha avasaparvata ke pashchima mem hai, adi kahana. He bhagavan ! Manahshilaka velamdhara nagaraja ka dakasima namaka avasaparvata kaham hai\? He gautama ! Jambudvipa ke meruparvata ki uttaradisha mem lavanasamudra mem 42000 yojana age jane para hai. Yavat yaha dakasima kyom kaha jata hai\? Gautama! Isa dakasima avasaparvata se shita – shitoda mahanadiyom ka pravaha yaham akara pratihata ho jata hai. Isalie yaha udaka ki sima karane vala hone se ‘dakasima’ kahalata hai. Yaha shashvata hai. Yaham manahshilaka nama ka maharddhika deva rahata hai yavat vaha 4000 samanika devom adi ka adhipatya karata hua vicharata hai. He bhagavan ! Manah – shilaka velamdhara nagaraja ki manahshila rajadhani kaham hai\? Gautama ! Dakasima avasaparvata ke uttara mem tirachhi disha mem asamkhyata dvipa – samudra para karane para anya lavanasamudra mem hai. Usaka pramana adi vijaya rajadhani ke tulya kahana yavat vaham manahshilaka namaka deva maharddhika aura eka palyopama ki sthiti vala rahata hai. |