Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005989 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | जंबुद्वीप वर्णन | Translated Section : | जंबुद्वीप वर्णन |
Sutra Number : | 189 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नीलवंतद्दहस्स णं पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं दसदस जोयणाइं अबाधाए, एत्थ णं दसदस कंचनगपव्वत्ता पन्नत्ता। ते णं कंचनगपव्वता एगमेगं जोयणसतं उड्ढं उच्चत्तेणं पणवीसं पणवीसं जोयणाइं उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसतं विक्खंभेणं, मज्झे पण्णत्तरिं जोयणाइं विक्खंभेणं, उवरिं पण्णासं जोयणाइं विक्खंभेणं, मूले तिन्नि सोलसुत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं, मज्झे दोन्नि सत्ततीसे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, उवरिं एगं अट्ठावण्णं जोयणसतं किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं, मूले वित्थिण्णा मज्झे संखित्ता उप्पिं तणुया गोपुच्छसंठाणसंठिता सव्वकंचणामया अच्छा जाव पडिरूवा पत्तेयं-पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ। तेसि णं कंचनगपव्वताणं उप्पिं बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पन्नत्ता जाव आसयंति। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसए पन्नत्ते–सड्ढवावट्ठिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एक्कतीसं जोयणाइं कोसं च विक्खंभेणं, मणिपेढिया दोजोयणिया सीहासना सपरिवारा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–कंचनगपव्वता? कंचनगपव्वता? गोयमा! कंचनगेसु णं पव्वतेसु तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं वावीसु उप्पलाइं जाव कंचनगवण्णाभाइं कंचनगा य एत्थ देवा महिड्ढीया जाव विहरंति। से तेणट्ठेणं। रायहाणीओ वि तहेव उत्तरेणं विजयरायहाणिसरिसियाओ अन्नंमि जंबुद्दीवे। कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए उत्तरकुरुद्दहे नामं दहे पन्नत्ते? गोयमा! नीलवंतद्दहस्स दाहिणिल्लाओ चरिमंतओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसते, एवं सो चेव गमो णेतव्वो जो नीलवंतद्दहस्स, सव्वेसिं सरिसको दहसरिनामा य देवा, सव्वेसिं पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं कंचनगपव्वता दसदस एकप्पमाणा उत्तरेणं रायहाणीओ अन्नंमि जंबुद्दीवे। कहि णं भंते! चंदद्दहे एरावणद्दहे मालवंतद्दहे, एवं एक्केक्को नेयव्वो। | ||
Sutra Meaning : | नीलवंत द्रह के पूर्व – पश्चिम में दस योजन आगे जाने पर दस दस काञ्चनपर्वत हैं। ये कांचन पर्वत एक सौ – एक सौ योजन ऊंचे, पच्चीस – पच्चीस योजन भूमि में, मूल में एक – एक सौ योजन चौड़े, मध्य में ७५ योजन चौड़े और ऊपर पचास – पचास योजन चौड़े हैं। इनकी परिधि मूल में ३१६ योजन से कुछ अधिक, मध्य में २२७ योजन से कुछ अधिक और ऊपर १५८ योजन से कुछ अधिक है। ये मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतले हैं, गोपुच्छ के आकार में संस्थित हैं, ये सर्वात्मना कंचनमय हैं, स्वच्छ हैं। इनके प्रत्येक के चारों ओर पद्मवर – वेदिकाएं और वनखण्ड हैं। उन कांचन पर्वतों के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है, यावत् वहाँ बहुत से वानव्यन्तर देव – देवियाँ बैठती हैं आदि। उन प्रत्येक भूमिभागों में प्रासादातंसक हैं। ये साढ़े बासठ योजन ऊंचे और इकतीस योजन एक कोस चौड़े हैं। इनमें दो योजन की मणिपीठिकाएं हैं और सिंहासन हैं। ये सिंहासन सपरिवार हैं। हे भगवन् ! ये कांचनपर्वत, कांचनपर्वत क्यों कहे जाते हैं ? गौतम ! इन कांचनपर्वतों की बावडियों में बहुत से उत्पल कमल यावत् शतपत्र – सहस्रपत्र – कमल हैं जो स्वर्ण की कान्ति और स्वर्ण – वर्ण वाले हैं यावत् वहाँ कांचनक नाम के महार्द्धिक देव रहते हैं, यावत् विचरते हैं। इसलिए इन कांचन देवों की कांचनिका राजधानियाँ कांचनक पर्वतों से उत्तर में असंख्यात द्वीप – समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में हैं। हे भगवन् ! उत्तरकुरु क्षेत्र का उत्तरकुरुद्रह कहाँ है ? गौतम ! नीलवंतद्रह के दक्षिण में ८३४ – ४/७ योजन दूर उत्तरकुरुद्रह है – आदि। सब द्रहों में उसी – उसी नाम के देव हैं, दस – दस कांचनक पर्वत हैं, इनकी राजधानियाँ उत्तर की ओर असंख्य द्वीप – समुद्र पार करने पर अन्य जम्बूद्वीप में हैं। इसी प्रकार चन्द्रद्रह, एरावतद्रह और मालवंतद्रह के विषय में भी यही कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] nilavamtaddahassa nam puratthimapachchatthimenam dasadasa joyanaim abadhae, ettha nam dasadasa kamchanagapavvatta pannatta. Te nam kamchanagapavvata egamegam joyanasatam uddham uchchattenam panavisam panavisam joyanaim uvvehenam, mule egamegam joyanasatam vikkhambhenam, majjhe pannattarim joyanaim vikkhambhenam, uvarim pannasam joyanaim vikkhambhenam, mule tinni solasuttare joyanasate kimchivisesahie parikkhevenam, majjhe donni sattatise joyanasate kimchivisesune parikkhevenam, uvarim egam atthavannam joyanasatam kimchivisesune parikkhevenam, mule vitthinna majjhe samkhitta uppim tanuya gopuchchhasamthanasamthita savvakamchanamaya achchha java padiruva patteyam-patteyam paumavaraveiyaparikkhitta patteyam-patteyam vanasamdaparikkhitta, vannao. Tesi nam kamchanagapavvatanam uppim bahusamaramanijja bhumibhaga pannatta java asayamti. Tesi nam bahusamaramanijjanam bhumibhaganam bahumajjhadesabhae patteyampatteyam pasayavademsae pannatte–saddhavavatthim joyanaim uddham uchchattenam, ekkatisam joyanaim kosam cha vikkhambhenam, manipedhiya dojoyaniya sihasana saparivara. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchati–kamchanagapavvata? Kamchanagapavvata? Goyama! Kamchanagesu nam pavvatesu tatthatattha dese tahimtahim vavisu uppalaim java kamchanagavannabhaim kamchanaga ya ettha deva mahiddhiya java viharamti. Se tenatthenam. Rayahanio vi taheva uttarenam vijayarayahanisarisiyao annammi jambuddive. Kahi nam bhamte! Uttarakurae kurae uttarakuruddahe namam dahe pannatte? Goyama! Nilavamtaddahassa dahinillao charimamtao atthachottise joyanasate, evam so cheva gamo netavvo jo nilavamtaddahassa, savvesim sarisako dahasarinama ya deva, savvesim puratthimapachchatthimenam kamchanagapavvata dasadasa ekappamana uttarenam rayahanio annammi jambuddive. Kahi nam bhamte! Chamdaddahe eravanaddahe malavamtaddahe, evam ekkekko neyavvo. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Nilavamta draha ke purva – pashchima mem dasa yojana age jane para dasa dasa kanchanaparvata haim. Ye kamchana parvata eka sau – eka sau yojana umche, pachchisa – pachchisa yojana bhumi mem, mula mem eka – eka sau yojana chaure, madhya mem 75 yojana chaure aura upara pachasa – pachasa yojana chaure haim. Inaki paridhi mula mem 316 yojana se kuchha adhika, madhya mem 227 yojana se kuchha adhika aura upara 158 yojana se kuchha adhika hai. Ye mula mem vistirna, madhya mem samkshipta aura upara patale haim, gopuchchha ke akara mem samsthita haim, ye sarvatmana kamchanamaya haim, svachchha haim. Inake pratyeka ke charom ora padmavara – vedikaem aura vanakhanda haim. Una kamchana parvatom ke upara bahusamaramaniya bhumibhaga hai, yavat vaham bahuta se vanavyantara deva – deviyam baithati haim adi. Una pratyeka bhumibhagom mem prasadatamsaka haim. Ye sarhe basatha yojana umche aura ikatisa yojana eka kosa chaure haim. Inamem do yojana ki manipithikaem haim aura simhasana haim. Ye simhasana saparivara haim. He bhagavan ! Ye kamchanaparvata, kamchanaparvata kyom kahe jate haim\? Gautama ! Ina kamchanaparvatom ki bavadiyom mem bahuta se utpala kamala yavat shatapatra – sahasrapatra – kamala haim jo svarna ki kanti aura svarna – varna vale haim yavat vaham kamchanaka nama ke maharddhika deva rahate haim, yavat vicharate haim. Isalie ina kamchana devom ki kamchanika rajadhaniyam kamchanaka parvatom se uttara mem asamkhyata dvipa – samudrom ko para karane ke bada anya jambudvipa mem haim. He bhagavan ! Uttarakuru kshetra ka uttarakurudraha kaham hai\? Gautama ! Nilavamtadraha ke dakshina mem 834 – 4/7 yojana dura uttarakurudraha hai – adi. Saba drahom mem usi – usi nama ke deva haim, dasa – dasa kamchanaka parvata haim, inaki rajadhaniyam uttara ki ora asamkhya dvipa – samudra para karane para anya jambudvipa mem haim. Isi prakara chandradraha, eravatadraha aura malavamtadraha ke vishaya mem bhi yahi kahana. |