Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005986 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | जंबुद्वीप वर्णन | Translated Section : | जंबुद्वीप वर्णन |
Sutra Number : | 186 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरकुराए कुराए जमगा नाम दुवे पव्वता पन्नत्ता? गोयमा! नीलवंतस्स वासधर-पव्वयस्स दाहिणिल्लाओ चरिमंताओ अट्ठचोत्तीसे जोयणसते चत्तारि य सत्तभागे जोयणस्स अबाधाए सीताए महानदीए पुरत्थिम पच्चत्थिमेणं उभओ कूले, एत्थ णं उत्तरकुराए जमगा नाम दुवे पव्वता पन्नत्ता–एगमेगं जोयणसहस्सं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसताणि उव्वेहेणं, मूले एगमेगं जोयणसहस्सं आयामविक्खंभेणं मज्झे अद्धट्ठमाइं जोयणसताइं आयामविक्खंभेणं उवरिं पंचजोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं, मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं जोयणसतं किंचिविसेसाहियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता, मज्झे दो जोयणसहस्साइं तिन्नि य बावत्तरे जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता, उवरिं एगं जोयणसहस्सं पंच य एक्कासीते जोयणसते किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं पन्नत्ता, मूले विच्छिण्णा, मज्झे संखित्ता, उप्पिं तनुया गोपुच्छ-संठाणसंठिता सव्वकणगामया अच्छा जाव पडिरूवा पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं-पत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ता, वण्णओ। तेसि णं जमगपव्वयाणं उप्पिं बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पन्नत्ता, वण्णओ जाव आसयंति। तेसि णं बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्झदेसभाए पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता। ते णं पासायवडेंसगा बावट्ठिं जोयणाइं अद्धजोयणं च उड्ढं उच्चत्तेणं, एकत्तीसं जोयणाइं कोसं च विक्खंभेणं, अब्भुग्गतमूसितपहसिता वण्णओ उल्लोए भूमीभागो, मणिपेढिया दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं, सीहासनं विजयदूसे अंकुसा दामा णं च मुणेतव्वे विधी जाव– तेसि णं सीहासनाणं अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमेणं एत्थ णं जमगाणं देवाणं पत्तेयंपत्तेयं चउण्हं सामानियसाहस्सीणं चत्तारि भद्दासनसाहस्सीओ पन्नत्ताओ, परिवारो वत्तव्वो। तेसि णं पासायवडेंसगाणं उप्पिं अट्ठट्ठमंगलगा जाव सहस्सपत्तहत्थगा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जमगा पव्वता? जमगा पव्वता? गोयमा! जमगपव्वतेसु णं खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहूइं उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताइं जमगप्पभाइं जमगागाराइं जमगवण्णाइं जमगवण्णाभाइं, जमगा य एत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति। ते णं तत्थ पत्तेयंपत्तेयं चउण्हं सामानियसाहस्सीणं जाव सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं जमगपव्वताणं जमगाण य रायहाणीणं, अन्नेसिं च बहूणं वाणमंतराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा ईसर सेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा विहरंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं–वुच्चति जमगा पव्वता जमगा पव्वता। अदुत्तरं च णं गोयमा! जाव निच्चा। कहि णं भंते! जमगाणं देवाणं जमगाओ नाम रायहाणीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! जमग-पव्वयाणं उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवइत्ता अन्नंमि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं जमगाणं देवाणं जमगाओ नाम रायहाणीओ पन्नत्ताओ–बारस जोयणसहस्साइं जहा विजयस्स जाव एमहिड्ढिया जमगा देवा जमगा देवा। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में यमक नामक दो पर्वत कहाँ पर हैं ? गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में ८३४ योजन और एक योजन के ४/७ भाग आगे जाने पर शीता महानदी के पूर्व – पश्चिम के दोनों किनारों पर उत्तरकुरु क्षेत्र में हैं। ये एक – एक हजार योजन ऊंचे हैं, २५० योजन जमीन में हैं, मूल में एक – एक हजार योजन लम्बे – चौड़े हैं, मध्य में ७५० योजन लम्बे – चौड़े हैं और ऊपर पाँच सौ योजन आयाम – विष्कम्भवाले हैं। मूल में इनकी परिधि ३१६२ योजन से कुछ अधिक है। मध्य में इनकी परिधि २३७२ योजन से कुछ अधिक है और ऊपर १५८१ योजन से कुछ अधिक की परिधि है। ये मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर में पतले हैं। ये गोपुच्छ के आकार के हैं, सर्वात्मना कनकमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं। ये प्रत्येक पर्वत पद्मवरवेदिका से परिक्षिप्त हैं और प्रत्येक पर्वत वनखंड से युक्त हैं। उन यमक पर्वतों के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है। यावत् वहाँ से वानव्यन्तर देव और देवियाँ ठहरती हैं, लेटती हैं यावत् पुण्य – फल का अनुभव करती हुई विचरती हैं। उन दोनों बहुसमरमणीय भूमिभागों के मध्यभाग में अलग – अलग प्रासादावतंसक हैं। वे साढ़े बासठ योजन ऊंचे और इकतीस योजन एक कोस के चौड़े हैं, वहाँ दो योजन की मणिपीठिका है। उस पर श्रेष्ठ सिंहासन है। ये सिंहासन सपरिवार हैं। यावत् उन पर यमक देव बैठते हैं। हे भगवन् ! ये यमक पर्वत, यमक पर्वत क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! उन यमक पर्वतों पर जगह – जगह बहुत – सी छोटी छोटी बावडियाँ यावत् बिलपंक्तियाँ हैं, उनमें बहुत से उत्पल कमल यावत् सहस्रपत्र हैं जो यमक के आकार के हैं, यमक के समान वर्ण वाले हैं और यावत् पल्योपम की स्थिति वाले दो महान् ऋद्धि वाले देव रहते हैं। वे देव वहाँ अपने चार हजार सामानिक देवों का यावत्, यमक राजधानियों का और बहुत से अन्य वानव्यन्तर देवों और देवियों का आधिपत्य करते हुए यावत् उनका पालन करते हुए विचरते हैं। इसलिए यमक पर्वत कहलाते हैं। ये यमक पर्वत शाश्वत हैं यावत् नित्य हैं। हे भगवन् ! इन यमक देवों की यमका नामक राजधानियाँ कहाँ हैं ? गौतम ! इन यमक पर्वतों के उत्तर में तिर्यक् असंख्यात द्वीप – समुद्रों को पार करने के पश्चात् प्रसिद्ध जम्बूद्वीप से भिन्न अन्य जम्बूद्वीपमें १२००० योजन आगे जाने पर हैं यावत् यमक नाम के दो महर्द्धिक देव उनके अधिपति हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kahi nam bhamte! Uttarakurae kurae jamaga nama duve pavvata pannatta? Goyama! Nilavamtassa vasadhara-pavvayassa dahinillao charimamtao atthachottise joyanasate chattari ya sattabhage joyanassa abadhae sitae mahanadie puratthima pachchatthimenam ubhao kule, ettha nam uttarakurae jamaga nama duve pavvata pannatta–egamegam joyanasahassam uddham uchchattenam, addhaijjaim joyanasatani uvvehenam, mule egamegam joyanasahassam ayamavikkhambhenam majjhe addhatthamaim joyanasataim ayamavikkhambhenam uvarim pamchajoyanasayaim ayamavikkhambhenam, mule tinni joyanasahassaim egam cha bavattham joyanasatam kimchivisesahiyam parikkhevenam pannatta, majjhe do joyanasahassaim tinni ya bavattare joyanasate kimchivisesahie parikkhevenam pannatta, uvarim egam joyanasahassam pamcha ya ekkasite joyanasate kimchivisesahie parikkhevenam pannatta, mule vichchhinna, majjhe samkhitta, uppim tanuya gopuchchha-samthanasamthita savvakanagamaya achchha java padiruva patteyampatteyam paumavaraveiyaparikkhitta patteyam-patteyam vanasamdaparikkhitta, vannao. Tesi nam jamagapavvayanam uppim bahusamaramanijja bhumibhaga pannatta, vannao java asayamti. Tesi nam bahusamaramanijjanam bhumibhaganam bahumajjhadesabhae patteyampatteyam pasayavademsaga pannatta. Te nam pasayavademsaga bavatthim joyanaim addhajoyanam cha uddham uchchattenam, ekattisam joyanaim kosam cha vikkhambhenam, abbhuggatamusitapahasita vannao ulloe bhumibhago, manipedhiya do joyanaim ayamavikkhambhenam, joyanam bahallenam, sihasanam vijayaduse amkusa dama nam cha munetavve vidhi java– Tesi nam sihasananam avaruttarenam uttarenam uttarapuratthimenam ettha nam jamaganam devanam patteyampatteyam chaunham samaniyasahassinam chattari bhaddasanasahassio pannattao, parivaro vattavvo. Tesi nam pasayavademsaganam uppim atthatthamamgalaga java sahassapattahatthaga. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchati–jamaga pavvata? Jamaga pavvata? Goyama! Jamagapavvatesu nam khuddakhuddiyasu java bilapamtiyasu bahuim uppalaim java sahassapattaim jamagappabhaim jamagagaraim jamagavannaim jamagavannabhaim, jamaga ya ettha do deva mahiddhiya java paliovamatthitiya parivasamti. Te nam tattha patteyampatteyam chaunham samaniyasahassinam java solasanham ayarakkhadevasahassinam jamagapavvatanam jamagana ya rayahaninam, annesim cha bahunam vanamamtaranam devana ya devina ya ahevachcham porevachcham samittam bhattittam mahattaragatam ana isara senavachcham karemana palemana viharamti. Se tenatthenam goyama! Evam–vuchchati jamaga pavvata jamaga pavvata. Aduttaram cha nam goyama! Java nichcha. Kahi nam bhamte! Jamaganam devanam jamagao nama rayahanio pannattao? Goyama! Jamaga-pavvayanam uttarenam tiriyamasamkhejje divasamudde viivaitta annammi jambuddive dive barasa joyanasahassaim ogahitta, ettha nam jamaganam devanam jamagao nama rayahanio pannattao–barasa joyanasahassaim jaha vijayassa java emahiddhiya jamaga deva jamaga deva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Uttarakuru namaka kshetra mem yamaka namaka do parvata kaham para haim\? Gautama ! Nilavamta varshadhara parvata ke dakshina mem 834 yojana aura eka yojana ke 4/7 bhaga age jane para shita mahanadi ke purva – pashchima ke donom kinarom para uttarakuru kshetra mem haim. Ye eka – eka hajara yojana umche haim, 250 yojana jamina mem haim, mula mem eka – eka hajara yojana lambe – chaure haim, madhya mem 750 yojana lambe – chaure haim aura upara pamcha sau yojana ayama – vishkambhavale haim. Mula mem inaki paridhi 3162 yojana se kuchha adhika hai. Madhya mem inaki paridhi 2372 yojana se kuchha adhika hai aura upara 1581 yojana se kuchha adhika ki paridhi hai. Ye mula mem vistirna, madhya mem samkshipta aura upara mem patale haim. Ye gopuchchha ke akara ke haim, sarvatmana kanakamaya haim, svachchha haim, yavat pratirupa haim. Ye pratyeka parvata padmavaravedika se parikshipta haim aura pratyeka parvata vanakhamda se yukta haim. Una yamaka parvatom ke upara bahusamaramaniya bhumibhaga hai. Yavat vaham se vanavyantara deva aura deviyam thaharati haim, letati haim yavat punya – phala ka anubhava karati hui vicharati haim. Una donom bahusamaramaniya bhumibhagom ke madhyabhaga mem alaga – alaga prasadavatamsaka haim. Ve sarhe basatha yojana umche aura ikatisa yojana eka kosa ke chaure haim, vaham do yojana ki manipithika hai. Usa para shreshtha simhasana hai. Ye simhasana saparivara haim. Yavat una para yamaka deva baithate haim. He bhagavan ! Ye yamaka parvata, yamaka parvata kyom kahalate haim\? Gautama ! Una yamaka parvatom para jagaha – jagaha bahuta – si chhoti chhoti bavadiyam yavat bilapamktiyam haim, unamem bahuta se utpala kamala yavat sahasrapatra haim jo yamaka ke akara ke haim, yamaka ke samana varna vale haim aura yavat palyopama ki sthiti vale do mahan riddhi vale deva rahate haim. Ve deva vaham apane chara hajara samanika devom ka yavat, yamaka rajadhaniyom ka aura bahuta se anya vanavyantara devom aura deviyom ka adhipatya karate hue yavat unaka palana karate hue vicharate haim. Isalie yamaka parvata kahalate haim. Ye yamaka parvata shashvata haim yavat nitya haim. He bhagavan ! Ina yamaka devom ki yamaka namaka rajadhaniyam kaham haim\? Gautama ! Ina yamaka parvatom ke uttara mem tiryak asamkhyata dvipa – samudrom ko para karane ke pashchat prasiddha jambudvipa se bhinna anya jambudvipamem 12000 yojana age jane para haim yavat yamaka nama ke do maharddhika deva unake adhipati haim. |