Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005759
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Translated Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 59 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से केसी कुमारसमणे अन्नया कयाइ पाडिहारियं पीढ फलग सेज्जा संथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जनवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवने उज्जानेतेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसन्निवाए इ वा जाव परिसा निग्गच्छइ। तए णं ते उज्जानपालगा इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया जेणेव केसी कुमारसमणे तेणेव उवागच्छंति, केसिं कुमारसमणं वंदंति नमंसंति, अहापडिरूवं ओग्गहं अनुजाणंति, पाडिहारिएणं पीढ फलग सेज्जा संथारएणं उवनिमंतंति, नामं गोयं पुच्छंति ओघारेंति, एगंतं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता अन्नमन्नं एवं वयासी–जस्स णं देवानुप्पिया! चित्ते सारही दंसणं कंखइ दंसणं पत्थेइ दंसणं पीहेइ दंसणं अभिलसइ, जस्स णं णामगोयस्स वि सवणयाए हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए भवति, से णं एस केसी कुमारसमणे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सेयवियाए नगरीए बहिया मियवने उज्जानेअहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ... ...तं गच्छामो णं देवानुप्पिया! चित्त स्स सारहिस्स एयमट्ठं पियं निवेएमो पियं से भवउ, अन्नमन्नस्स अंतिए एयमट्ठं पडिसुणेंति जेणेव सेयविया नगरी जेणेव चित्तस्स सारहिस्स गिहे जेणेव चित्ते सारही तेणेव उवागच्छंति, चित्तं सारहिं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेंति, बद्धावेत्ता एवं वयासी–जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति दंसणं पत्थेंति दंसणं पीहेंति दंसणं अभिलसंति, जस्स णं नामगोयस्स वि सवणयाए हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया भवह, से णं अयं पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमारसमणे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सेयवियाए नगरीए बहिया मियवने उज्जानेअहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से चित्ते सारही तेसिं उज्जानपालगाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए विगसियवरकमलनयने पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब-पलंबमाण घोलंत भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं सारही आसणाओ अब्भुट्ठेति, पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पाउयाओ ओमुयइ, एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, अंजलि मउलियग्गहत्थे केसि कुमार समणाभिमुहे सत्तट्ठ पयाइं अनुगच्छइ, करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– नमोत्थु णं अरहंताणं जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोत्थु णं केसिस्स कुमार-समणस्स मम धम्मायरियस्स धम्मोवदेसगस्स। वंदामि णं भगवंतं तत्थगयं इहगए, पासइ मे भगवं तत्थगए इहगयं ति कट्टु वंदइ नमंसइ, ते उज्जानपालए विउलेणं वत्थगंधमल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ, कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं सज्झयं जाव उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से चित्ते सारही कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता सकोरेंट-मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया भडचडगर वंदपरिखित्ते सेयवियानगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव मियवने उज्जाने जेणेव केसी कुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसिकुमारसमणस्स अदूरसामंते तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेइ, ठवेत्ता रहाओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता जेणेव केसी कुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता केसिं कुमारसमणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे पंजलिउडे विनएणं पज्जुवासइ। तए णं से केसी कुमारसमणे चित्तस्स सारहिस्स तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मे कहेइ, तं जहा–सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं। तए णं सा महतिमहालिया महच्च-परिसा केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ किसी समय प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि उन – उनके स्वामियों को सौंपकर केशी कुमारश्रमण श्रावस्ती नगरी और कोष्ठक चैत्य से बाहर नीकले। पाँच सौ अन्तेवासी अनगारों के साथ यावत्‌ विहार करते हुए जहाँ केकयधर्म जनपद था, जहाँ सेयविया नगरी थी और उस नगरी का मृगवन नामक उद्यान था, वहाँ आए। यथाप्रतिरूप अवग्रह लेकर संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात्‌ सेयविया नगरी के शृंगाटकों आदि स्थानों पर लोगों में बातचीत होने लगी यावत्‌ परिषद्‌ वंदना करने नीकली। वे उद्यानपालक भी इस संवाद को सूनकर और समझकर हर्षित, सन्तुष्ट हुए यावत्‌ विकसितहृदय होते हुए जहाँ केशी कुमारश्रमण थे, वहाँ आकर केशी कुमारश्रमण को वन्दना की, नमस्कार किया एवं यथाप्रतिरूप अवग्रह प्रदान की। प्रातिहारिक यावत्‌ संस्तारक आदि ग्रहण करने के लिये उपनिमंत्रित किया। इसके बाद उन्होंने नाम एवं गोत्र पूछकर फिर एकान्त में वे परस्पर एक दूसरे से इस प्रकार बातचीत करने लगे – ‘देवानुप्रियो ! चित्त सारथी जिनके दर्शन की आकांक्षा करते हैं, प्रार्थना करते हैं, स्पृहा करते हैं, अभिलाषा करते हैं, जिनका नाम, गोत्र सूनते ही हर्षित, सन्तुष्ट यावत्‌ विकसितहृदय होते हैं, ये वही केशी कुमारश्रमण पूर्वा – नुपूर्वी से गमन करते हुए, एक गाँव से दूसरे गाँव में विहार करते हुए यहाँ आये हैं, तथा इसी सेयविया नगरी के बाहर मृगवन उद्यान में यथाप्रतिरूप अवग्रह ग्रहण करके यावत्‌ बिराजते हैं। अत एव देवानुप्रिय ! हम चलें और चित्त सारथी के प्रिय इस अर्थ को उनसे निवेदन करें। हमारा यह निवेदन उन्हें बहुत ही प्रिय लगेग।’ एक दूसरे ने इस विचार को स्वीकार किया। इसके बाद वे वहाँ आये जहाँ सेयविया नगरी, चित्त सारथी का घर तथा घर में जहाँ चित्त सारथी थे। वहाँ आकर दोनों हाथ जोड़ यावत्‌ चित्त सारथी को बधाया और इस प्रकार निवेदन किया – देवानुप्रिय ! आपको जिनके दर्शन की ईच्छा है यावत्‌ जिनके नाम एवं गोत्र को सूनकर आप हर्षित होते हैं, ऐसे केशी कुमारश्रमण पूर्वानुपूर्वी से विचरते हुए यहाँ पधार गए हैं यावत्‌ विचर रहे हैं। तब वह चित्त सारथी उन उद्यानपालकों से इस संवाद को सूनकर एवं हृदय में धारण कर हर्षित, संतुष्ट हुआ। चित्त में आनंदित हुआ, मन में प्रीति हुई। परम सौमनस्य को प्राप्त हुआ। हर्षातिरेक से विकसितहृदय होता हुआ अपने आसन से उठा, पादपीठ से नीचे ऊतरा, पादुकाएं उतारी, एकशाटिक उत्तरासंग किया और मुकुलित हस्ताग्रहपूर्वक अंजलि करके जिस ओर केशी कुमारश्रमण बिराजमान थे, उस ओर सात – आठ डग चला और फिर दोनों हाथ जोड़ आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके उनकी इस प्रकार स्तुति करने लगा – अरिहंत भगवंतों को नमस्कार हो यावत्‌ सिद्धगति को प्राप्त सिद्ध भगवंतों को नमस्कार हो। मेरे धर्माचार्य, मेरे धर्मोपदेशक केशी कुमारश्रमण को नमस्कार हो। उनकी मैं वन्दना करता हूँ। वहाँ बिराजमान वे भगवान्‌ यहाँ विद्यमान मुझे देखें, इस प्रकार कहकर वंदन – नमस्कार किया। इसके पश्चात्‌ उन उद्यानपालकों का विपुल वस्त्र, गंध, माला, अलंकारों से सत्कार – सम्मान किया तथा जीविकायोग्य विपुल प्रीतिदान देकर उन्हें बिदा किया। तदनन्तर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनको आज्ञा दी – शीघ्र ही तुम चार घंटों वाला अश्वरथ जोतकर उपस्थित करो यावत्‌ हमें इसकी सूचना दो। तब वे कौटुम्बिक पुरुष यावत्‌ शीघ्र ही छत्र एवं ध्वजा – पताकाओं से शोभित रथ को उपस्थित कर आज्ञा वापस लौटाते हैं – कौटुम्बिक पुरुषों से रथ लाने की बात सूनकर एवं हृदय में धारण कर हृष्ट – तुष्ट यावत्‌ विकसितहृदय होते हुए चित्त सारथी ने स्नान किया, बलिकर्म किया यावत्‌ आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। चार घण्टों वाले रथ पर आरूढ़ होकर कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र को धारण कर विशाल सुभटों के समुदाय सहित रवाना हुआ। वहाँ पहुँच कर पर्युपासना करने लगा। केशी कुमारश्रमण ने धर्मोपदेश दिया। इत्यादि पूर्ववत्‌ जानना।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se kesi kumarasamane annaya kayai padihariyam pidha phalaga sejja samtharagam pachchappinai, savatthio nagario kotthagao cheiyao padinikkhamai, pamchahim anagarasaehim saddhim samparivude puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane suhamsuhenam viharamane jeneva keyai-addhe janavae jeneva seyaviya nagari jeneva miyavane ujjaneteneva uvagachchhai, ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharati. Tae nam seyaviyae nagarie simghadaga tiya chaukka chachchara chaummuha mahapahapahesu mahaya janasadde i va janavuhe i va janabole i va janakalakale i va janaummi i va janasannivae i va java parisa niggachchhai. Tae nam te ujjanapalaga imise kahae laddhattha samana hatthatutthachittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamanahiyaya jeneva kesi kumarasamane teneva uvagachchhamti, kesim kumarasamanam vamdamti namamsamti, ahapadiruvam oggaham anujanamti, padiharienam pidha phalaga sejja samtharaenam uvanimamtamti, namam goyam puchchhamti ogharemti, egamtam avakkamamti, avakkamitta annamannam evam vayasi–jassa nam devanuppiya! Chitte sarahi damsanam kamkhai damsanam patthei damsanam pihei damsanam abhilasai, jassa nam namagoyassa vi savanayae hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae bhavati, se nam esa kesi kumarasamane puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane ihamagae iha sampatte iha samosadhe iheva seyaviyae nagarie bahiya miyavane ujjaneahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai.. ..Tam gachchhamo nam devanuppiya! Chitta ssa sarahissa eyamattham piyam niveemo piyam se bhavau, annamannassa amtie eyamattham padisunemti jeneva seyaviya nagari jeneva chittassa sarahissa gihe jeneva chitte sarahi teneva uvagachchhamti, chittam sarahim karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam baddhavemti, baddhavetta evam vayasi–jassa nam devanuppiya! Damsanam kamkhamti damsanam patthemti damsanam pihemti damsanam abhilasamti, jassa nam namagoyassa vi savanayae hatthatuttha chittamanamdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamanahiyaya bhavaha, se nam ayam pasavachchijje kesi namam kumarasamane puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane ihamagae iha sampatte iha samosadhe iheva seyaviyae nagarie bahiya miyavane ujjaneahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam se chitte sarahi tesim ujjanapalaganam amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae vigasiyavarakamalanayane payaliya varakadaga tudiya keura mauda kumdala hara virayamtaraiyavachchhe palamba-palambamana gholamta bhusanadhare sasambhamam turiyam chavalam sarahi asanao abbhuttheti, payapidhao pachchoruhai, pauyao omuyai, egasadiyam uttarasamgam karei, amjali mauliyaggahatthe kesi kumara samanabhimuhe sattattha payaim anugachchhai, karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi– Namotthu nam arahamtanam java siddhigainamadheyam thanam sampattanam, namotthu nam kesissa kumara-samanassa mama dhammayariyassa dhammovadesagassa. Vamdami nam bhagavamtam tatthagayam ihagae, pasai me bhagavam tatthagae ihagayam ti kattu vamdai namamsai, te ujjanapalae viulenam vatthagamdhamallalamkarenam sakkarei sammanei, viulam jiviyariham piidanam dalayai, dalaitta padivisajjei, kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho! Devanuppiya! Chaugghamtam asaraham juttameva uvatthaveha, uvatthavetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa taheva padisunitta khippameva sachchhattam sajjhayam java uvatthavetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se chitte sarahi kodumbiyapurisanam amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae nhae kayabalikamme kayakouyamamgala-payachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavaraparihite appamahagghabharanalamkiyasarire jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham duruhai, duruhitta sakoremta-malladamenam chhattenam dharijjamanenam mahaya bhadachadagara vamdaparikhitte seyaviyanagarie majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva miyavane ujjane jeneva kesi kumarasamane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kesikumarasamanassa adurasamamte turae niginhai, raham thavei, thavetta rahao pachchoruhati, pachchoruhitta jeneva kesi kumarasamane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kesim kumarasamanam tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne natidure sussusamane namamsamane abhimuhe pamjaliude vinaenam pajjuvasai. Tae nam se kesi kumarasamane chittassa sarahissa tise mahatimahaliyae mahachchaparisae chaujjamam dhamme kahei, tam jaha–savvao panaivayao veramanam, savvao musavayao veramanam, savvao adinnadanao veramanam, savvao pariggahao veramanam. Tae nam sa mahatimahaliya mahachcha-parisa kesissa kumarasamanassa amtie dhammam sochcha nisamma jameva disim paubbhuya tameva disim padigaya.
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat kisi samaya pratiharika pitha, phalaka, shayya, samstaraka adi una – unake svamiyom ko saumpakara keshi kumarashramana shravasti nagari aura koshthaka chaitya se bahara nikale. Pamcha sau antevasi anagarom ke satha yavat vihara karate hue jaham kekayadharma janapada tha, jaham seyaviya nagari thi aura usa nagari ka mrigavana namaka udyana tha, vaham ae. Yathapratirupa avagraha lekara samyama evam tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Tatpashchat seyaviya nagari ke shrimgatakom adi sthanom para logom mem batachita hone lagi yavat parishad vamdana karane nikali. Ve udyanapalaka bhi isa samvada ko sunakara aura samajhakara harshita, santushta hue yavat vikasitahridaya hote hue jaham keshi kumarashramana the, vaham akara keshi kumarashramana ko vandana ki, namaskara kiya evam yathapratirupa avagraha pradana ki. Pratiharika yavat samstaraka adi grahana karane ke liye upanimamtrita kiya. Isake bada unhomne nama evam gotra puchhakara phira ekanta mem ve paraspara eka dusare se isa prakara batachita karane lage – ‘devanupriyo ! Chitta sarathi jinake darshana ki akamksha karate haim, prarthana karate haim, spriha karate haim, abhilasha karate haim, jinaka nama, gotra sunate hi harshita, santushta yavat vikasitahridaya hote haim, ye vahi keshi kumarashramana purva – nupurvi se gamana karate hue, eka gamva se dusare gamva mem vihara karate hue yaham aye haim, tatha isi seyaviya nagari ke bahara mrigavana udyana mem yathapratirupa avagraha grahana karake yavat birajate haim. Ata eva devanupriya ! Hama chalem aura chitta sarathi ke priya isa artha ko unase nivedana karem. Hamara yaha nivedana unhem bahuta hi priya lagega.’ eka dusare ne isa vichara ko svikara kiya. Isake bada ve vaham aye jaham seyaviya nagari, chitta sarathi ka ghara tatha ghara mem jaham chitta sarathi the. Vaham akara donom hatha jora yavat chitta sarathi ko badhaya aura isa prakara nivedana kiya – devanupriya ! Apako jinake darshana ki ichchha hai yavat jinake nama evam gotra ko sunakara apa harshita hote haim, aise keshi kumarashramana purvanupurvi se vicharate hue yaham padhara gae haim yavat vichara rahe haim. Taba vaha chitta sarathi una udyanapalakom se isa samvada ko sunakara evam hridaya mem dharana kara harshita, samtushta hua. Chitta mem anamdita hua, mana mem priti hui. Parama saumanasya ko prapta hua. Harshatireka se vikasitahridaya hota hua apane asana se utha, padapitha se niche utara, padukaem utari, ekashatika uttarasamga kiya aura mukulita hastagrahapurvaka amjali karake jisa ora keshi kumarashramana birajamana the, usa ora sata – atha daga chala aura phira donom hatha jora avartapurvaka mastaka para amjali karake unaki isa prakara stuti karane laga – arihamta bhagavamtom ko namaskara ho yavat siddhagati ko prapta siddha bhagavamtom ko namaskara ho. Mere dharmacharya, mere dharmopadeshaka keshi kumarashramana ko namaskara ho. Unaki maim vandana karata hum. Vaham birajamana ve bhagavan yaham vidyamana mujhe dekhem, isa prakara kahakara vamdana – namaskara kiya. Isake pashchat una udyanapalakom ka vipula vastra, gamdha, mala, alamkarom se satkara – sammana kiya tatha jivikayogya vipula pritidana dekara unhem bida kiya. Tadanantara kautumbika purushom ko bulaya aura unako ajnya di – shighra hi tuma chara ghamtom vala ashvaratha jotakara upasthita karo yavat hamem isaki suchana do. Taba ve kautumbika purusha yavat shighra hi chhatra evam dhvaja – patakaom se shobhita ratha ko upasthita kara ajnya vapasa lautate haim – kautumbika purushom se ratha lane ki bata sunakara evam hridaya mem dharana kara hrishta – tushta yavat vikasitahridaya hote hue chitta sarathi ne snana kiya, balikarma kiya yavat abhushanom se sharira ko alamkrita kiya. Chara ghantom vale ratha para arurha hokara koramta pushpom ki malaom se yukta chhatra ko dharana kara vishala subhatom ke samudaya sahita ravana hua. Vaham pahumcha kara paryupasana karane laga. Keshi kumarashramana ne dharmopadesha diya. Ityadi purvavat janana.