Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005756
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Translated Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 56 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से जियसत्तुराया अन्नया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जेइ, सज्जेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं तुमं चित्ता! सेयवियं नगरिं, पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि, मम पाउग्गं च णं जहाभणियं अवितहमसंदिद्धं वयणं विण्णवेहि त्ति कट्टु विसज्जिए। तए णं से चित्ते सारही जियसत्तुणा रन्ना विसज्जिए समाणे तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गिण्हइ, गिण्हित्ता जियसत्तुस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सावत्थीनयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, जेणेव रायमग्गमोगाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं ठवेइ, ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महया पायविहारचारेणं महया पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ते रायमग्गमोगाढाओ आवासाओ निग्गच्छइ, सावत्थीनगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छति, ... ... जेणेव कोट्ठए चेइए जेणेव केसी कुमार-समणे तेणेव उवागच्छति, केसिस्स कुमार-समणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता केसिं कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु अहं भंते! जियसत्तुणा रन्ना पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि त्ति कट्टु विसज्जिए। तं गच्छामि णं अहं भंते! सेयवियं नगरिं। पासादीया णं भंते! सेयविया नगरी। दरिसणिज्जा णं भंते! सेयविया नगरी। अभिरूवा णं भंते! सेयविया नगरी। पडिरूवा णं भंते! सेयविया नगरी। समोसरह णं भंते! तुब्भे सेयवियं नगरिं। तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिणा एवं वुत्ते समाणे चित्तस्स सारहिस्स एयमट्ठं नो आढाइ नो परिजाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं चित्ते सारही केसिं कुमारसमणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–एवं खलु अहं भंते! जियसत्तुणा रन्ना पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि त्ति कट्टु विसज्जिए। तं गच्छामि णं अहं भंते! सेयवियं नगरिं। पासादीया णं भंते! सेयविया नगरी। दरिसणिज्जा णं भंते! सेयविया नगरी। अभिरूवा णं भंते! सेयविया नगरी। पडिरूवा णं भंते! सेयविया नगरी। समोसरह णं भंते! तुब्भे सेयवियं नगरिं। तए णं केसी कुमार-समणे चित्तेणं सारहिण, दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे चित्तं सारहिं एवं वयासी– चित्ता! से जहानामए वनसंडे सिया–किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे णिद्धे णिद्धोभासे तिव्वे तिव्वो भासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीअच्छाए णिद्धे णिद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकड-च्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए जाव पडिरूवे। से णूणं चित्ता! से वनसंडे बहूणं दुपय चउप्पय मिय पसु पक्खी सिरीसिवाणं अभिगमणिज्जे? हंता अभिगमणिज्जे। तंसि च णं चित्ता! वनसंडंसि बहवे भिलुंगा नाम पावसउणा परिवसंति। जे णं तेसिं बहूणं दुपय चउप्पय मिय पसु पक्खी सिरीसिवाणं ठियाणं चेव मंससोणियं आहारेंति। से नूनं चित्ता! से वनसंडे तेसि णं बहूणं दुपय चउप्पय मिय पसु पक्खी सिरी सिवाणं अभिगमणिज्जे? नो ति, कम्हा णं? भंते! सोवसग्गे, एवमेव चित्ता! तुब्भं पि सेयवियाए नयरीए पएसी नामं राया परिवसइ–अहम्मिए जाव नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ। तं कहं णं अहं चित्ता! सेयवियाए नगरीए समोसरिस्सामि?
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ जितशत्रु राजा ने किसी समय महाप्रयोजनसाधक यावत्‌ प्राभृत तैयार किया और चित्त सारथी को बुलाया। उससे कहा – हे चित्त ! तुम वापस सेयविया नगरी जाओ और महाप्रयोजनसाधक यावत्‌ इस उपहार को प्रदेशी राजा के सन्मुख भेंट करना तथा मेरी ओर से विनयपूर्वक उनसे निवेदन करना कि आपने मेरे लिये जो संदेश भिजवाया है, उसे उसी प्रकार अवितथ, प्रमाणिक एवं असंदिग्ध रूप से स्वीकार करता हूँ। चित्त सारथी को सम्मानपूर्वक बिदा किया। तत्पश्चात्‌ जितशत्रु राजा द्वारा बिदा किये गये चित्त सारथी ने उस महाप्रयोजन – साधक यावत्‌ उपहार को ग्रहण किया यावत्‌ जितशत्रु राजा के पास से रवाना होकर श्रावस्ती नगरी के बीचों – बीच से नीकला। राजमार्ग पर स्थित अपने आवास में आया और उस महार्थक यावत्‌ उपहार को एक ओर रखा। फिर स्नान किया, यावत्‌ शरीर को विभूषित किया, कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र को धारण कर विशाल जनसमुदाय के साथ पैदल ही राजमार्ग स्थित आवासगृह से नीकला और श्रावस्ती नगरी के बीचों – बीच से चलता हुआ जहाँ कोष्ठक चैत्य था, जहाँ केशी कुमारश्रमण बिराजमान थे, वहाँ आकर केशी कुमारश्रमण से धर्म सूनकर यावत्‌ इस प्रकार निवेदन किया – भगवन्‌ ! ‘प्रदेशी राजा के लिए यह महार्थक यावत्‌ उपहार ले जाओ’ कहकर जितशत्रु राजा ने आज मुझे बिदा किया है। अत एव हे भदन्त ! मैं सेयविया नगरी लौट रहा हूँ। हे भदन्त ! सेयविया नगरी प्रासादीया, प्रतिरूपा है। अत एव हे भदन्त ! आप सेयविया नगरी में पधारने की कृपा करें। इस प्रकार से चित्त सारथी द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भी केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी के कथन का आदर नहीं किया। वे मौन रहे। तब चित्त सारथी ने पुनः दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार कहा – हे भदन्त ! प्रदेशी राजा के लिए महाप्रयोजन साधक उपहार देकर जितशत्रु राजा ने मुझे बिदा कर दिया है। अत एव आप वहाँ पधारने की अवश्य कृपा करें। चित्त सारथी द्वारा दूसरी और तीसरी बार भी इसी प्रकार से बिनती किये जाने पर केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी से कहा – हे चित्त ! जैसे कोई एक कृष्णवर्ण एवं कृष्णप्रभा वाला वनखण्ड हो तो हे चित्त ! वह वनखण्ड अनेक द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी, सरीसृपों आदि के गमन योग्य है, अथवा नहीं है? हाँ, भदन्त ! वह उनके गमन योग्य होता है। इसके पश्चात्‌ पुनः केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी से पूछा – और यदि उसी वनखण्ड में, हे चित्त ! उन बहुत – से द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी और सर्प आदि प्राणियों के रक्त – माँस को खाने वाले भीलुंगा नामक पाप – शकुन रहते हों तो क्या वह वनखण्ड उन अनेक द्विपदों यावत्‌ सरीसृपों के रहने योग्य हो सकता है ? चित्त ने उत्तर दिया – यह अर्थ समर्थ नहीं है। पुनः केशी कुमारश्रमण ने पूछा – क्यों ? क्योंकि भदन्त ! वह वनखण्ड उपसर्ग सहित होने से रहना योग्य नहीं है। इसी प्रकार हे चित्त ! तुम्हारी सेयविया नगरी कितनी ही अच्छी हो, परन्तु वहाँ भी प्रदेशी नामक राजा रहता है। वह अधार्मिक यावत्‌ प्रजाजनों से राज – कर लेकर भी उनका अच्छी तरह से पालन – पोषण और रक्षण नहीं करता है। अत एव हे चित्त ! मैं उस सेयविया नगरी में कैसे आ सकता हूँ ?
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se jiyasatturaya annaya kayai mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam sajjei, sajjetta chittam sarahim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhahi nam tumam chitta! Seyaviyam nagarim, paesissa ranno imam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam uvanehi, mama pauggam cha nam jahabhaniyam avitahamasamdiddham vayanam vinnavehi tti kattu visajjie. Tae nam se chitte sarahi jiyasattuna ranna visajjie samane tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam ginhai, ginhitta jiyasattussa ranno amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta savatthinayarie majjhammajjhenam niggachchhai, jeneva rayamaggamogadhe avase teneva uvagachchhai, tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam thavei, nhae kayabalikamme kayakouya mamgalapayachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihite appamahagghabharanalamkiyasarire sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam mahaya payaviharacharenam mahaya purisavagguraparikkhitte rayamaggamogadhao avasao niggachchhai, savatthinagarie majjhammajjhenam niggachchhati,.. .. Jeneva kotthae cheie jeneva kesi kumara-samane teneva uvagachchhati, kesissa kumara-samanassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa-visappamanahiyae utthae utthei, utthetta kesim kumara-samanam tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– evam khalu aham bhamte! Jiyasattuna ranna paesissa ranno imam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam uvanehi tti kattu visajjie. Tam gachchhami nam aham bhamte! Seyaviyam nagarim. Pasadiya nam bhamte! Seyaviya nagari. Darisanijja nam bhamte! Seyaviya nagari. Abhiruva nam bhamte! Seyaviya nagari. Padiruva nam bhamte! Seyaviya nagari. Samosaraha nam bhamte! Tubbhe seyaviyam nagarim. Tae nam se kesi kumara-samane chittenam sarahina evam vutte samane chittassa sarahissa eyamattham no adhai no parijanai tusinie samchitthai. Tae nam chitte sarahi kesim kumarasamanam dochcham pi tachcham pi evam vayasi–evam khalu aham bhamte! Jiyasattuna ranna paesissa ranno imam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam uvanehi tti kattu visajjie. Tam gachchhami nam aham bhamte! Seyaviyam nagarim. Pasadiya nam bhamte! Seyaviya nagari. Darisanijja nam bhamte! Seyaviya nagari. Abhiruva nam bhamte! Seyaviya nagari. Padiruva nam bhamte! Seyaviya nagari. Samosaraha nam bhamte! Tubbhe seyaviyam nagarim. Tae nam kesi kumara-samane chittenam sarahina, dochcham pi tachcham pi evam vutte samane chittam sarahim evam vayasi– chitta! Se jahanamae vanasamde siya–kinhe kinhobhase nile nilobhase harie hariobhase sie siobhase niddhe niddhobhase tivve tivvo bhase kinhe kinhachchhae nile nilachchhae harie hariyachchhae sie siachchhae niddhe niddhachchhae tivve tivvachchhae ghanakadiyakada-chchhae ramme mahamehanikurambabhue java padiruve. Se nunam chitta! Se vanasamde bahunam dupaya chauppaya miya pasu pakkhi sirisivanam abhigamanijje? Hamta abhigamanijje. Tamsi cha nam chitta! Vanasamdamsi bahave bhilumga nama pavasauna parivasamti. Je nam tesim bahunam dupaya chauppaya miya pasu pakkhi sirisivanam thiyanam cheva mamsasoniyam aharemti. Se nunam chitta! Se vanasamde tesi nam bahunam dupaya chauppaya miya pasu pakkhi siri sivanam abhigamanijje? No ti, kamha nam? Bhamte! Sovasagge, evameva chitta! Tubbham pi seyaviyae nayarie paesi namam raya parivasai–ahammie java no sammam karabharavittim pavattei. Tam kaham nam aham chitta! Seyaviyae nagarie samosarissami?
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat jitashatru raja ne kisi samaya mahaprayojanasadhaka yavat prabhrita taiyara kiya aura chitta sarathi ko bulaya. Usase kaha – he chitta ! Tuma vapasa seyaviya nagari jao aura mahaprayojanasadhaka yavat isa upahara ko pradeshi raja ke sanmukha bhemta karana tatha meri ora se vinayapurvaka unase nivedana karana ki apane mere liye jo samdesha bhijavaya hai, use usi prakara avitatha, pramanika evam asamdigdha rupa se svikara karata hum. Chitta sarathi ko sammanapurvaka bida kiya. Tatpashchat jitashatru raja dvara bida kiye gaye chitta sarathi ne usa mahaprayojana – sadhaka yavat upahara ko grahana kiya yavat jitashatru raja ke pasa se ravana hokara shravasti nagari ke bichom – bicha se nikala. Rajamarga para sthita apane avasa mem aya aura usa maharthaka yavat upahara ko eka ora rakha. Phira snana kiya, yavat sharira ko vibhushita kiya, koramta pushpa ki malaom se yukta chhatra ko dharana kara vishala janasamudaya ke satha paidala hi rajamarga sthita avasagriha se nikala aura shravasti nagari ke bichom – bicha se chalata hua jaham koshthaka chaitya tha, jaham keshi kumarashramana birajamana the, vaham akara keshi kumarashramana se dharma sunakara yavat isa prakara nivedana kiya – bhagavan ! ‘pradeshi raja ke lie yaha maharthaka yavat upahara le jao’ kahakara jitashatru raja ne aja mujhe bida kiya hai. Ata eva he bhadanta ! Maim seyaviya nagari lauta raha hum. He bhadanta ! Seyaviya nagari prasadiya, pratirupa hai. Ata eva he bhadanta ! Apa seyaviya nagari mem padharane ki kripa karem. Isa prakara se chitta sarathi dvara prarthana kiye jane para bhi keshi kumarashramana ne chitta sarathi ke kathana ka adara nahim kiya. Ve mauna rahe. Taba chitta sarathi ne punah dusari aura tisari bara bhi isi prakara kaha – he bhadanta ! Pradeshi raja ke lie mahaprayojana sadhaka upahara dekara jitashatru raja ne mujhe bida kara diya hai. Ata eva apa vaham padharane ki avashya kripa karem. Chitta sarathi dvara dusari aura tisari bara bhi isi prakara se binati kiye jane para keshi kumarashramana ne chitta sarathi se kaha – he chitta ! Jaise koi eka krishnavarna evam krishnaprabha vala vanakhanda ho to he chitta ! Vaha vanakhanda aneka dvipada, chatushpada, mriga, pashu, pakshi, sarisripom adi ke gamana yogya hai, athava nahim hai? Ham, bhadanta ! Vaha unake gamana yogya hota hai. Isake pashchat punah keshi kumarashramana ne chitta sarathi se puchha – aura yadi usi vanakhanda mem, he chitta ! Una bahuta – se dvipada, chatushpada, mriga, pashu, pakshi aura sarpa adi praniyom ke rakta – mamsa ko khane vale bhilumga namaka papa – shakuna rahate hom to kya vaha vanakhanda una aneka dvipadom yavat sarisripom ke rahane yogya ho sakata hai\? Chitta ne uttara diya – yaha artha samartha nahim hai. Punah keshi kumarashramana ne puchha – kyom\? Kyomki bhadanta ! Vaha vanakhanda upasarga sahita hone se rahana yogya nahim hai. Isi prakara he chitta ! Tumhari seyaviya nagari kitani hi achchhi ho, parantu vaham bhi pradeshi namaka raja rahata hai. Vaha adharmika yavat prajajanom se raja – kara lekara bhi unaka achchhi taraha se palana – poshana aura rakshana nahim karata hai. Ata eva he chitta ! Maim usa seyaviya nagari mem kaise a sakata hum\?