Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005761
Scripture Name( English ): Rajprashniya Translated Scripture Name : राजप्रश्नीय उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Translated Chapter :

प्रदेशीराजान प्रकरण

Section : Translated Section :
Sutra Number : 61 Category : Upang-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी–एवं खलु चउहिं ठाणेहिं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए, तं जहा– आरामगयं वा उज्जानगयं वा समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए। उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए। गोयरग्गगयं समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ नो विउलेणं असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए। जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धिं अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरित्ता चिट्ठइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए। एएहिं च णं चित्ता! चउहिं ठाणेहिं जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभइ सवणयाए, तं जहा–आरामगयं वा उज्जानगयं वा समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ नमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभइ सवणयाए। उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ नमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभइ सवणयाए। गोयरग्गगयं समणं वा माहणं वा अभिगच्छइ वंदइ नमंसइ सक्कारेइ सम्माणेइ कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभइ सवणयाए। जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धिं अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं नो हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरेत्ताणं चिट्ठइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं लभइ सवणयाए। तुज्झं च णं चित्ता! पएसी राया–आरामगयं वा उज्जानगयं वा समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खिस्सामो? उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खिस्सामो? गोयरग्गगयं समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्मानेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो विउलेणं असनपानखाइमसाइमेणं पडिलाभेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। तं कहं णं चित्ता! पएसिस्स रन्नो धम्ममा-इक्खिस्सामो? जत्थ वि य णं समणेण वा माहणेण वा सद्धिं अभिसमागच्छइ तत्थ वि य णं हत्थेण वा वत्थेण वा छत्तेण वा अप्पाणं आवरेत्ता चिट्ठइ। तं कहं णं चित्ता! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खिस्सामो? तए णं से चित्ते सारही केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–एवं खलु भंते! अन्नया कयाइ कंबोएहिं चत्तारि आसा उवायणं उवनीया, ते मए पएसिस्स रन्नो अन्नया चेव उवणेया। तं एएणं खलु भंते! कारणेणं अहं पएसिं रायं देवानुप्पियाणं अंतिए हव्वमाणेस्सामि। तं मा णं देवानुप्पिया! तुब्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खमाणा गिलाएज्जाह। अगिलाए णं भंते! तुब्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जाह। छंदेणं भंते! तुब्भे पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जाह। तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहिं एवं वयासी–अवियाइं चित्ता! जाणिस्सामो। तए णं से चित्ते सारही केसिं कुमारसमणं वंदइ नमंसइ, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए।
Sutra Meaning : केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी को समझाया – हे चित्त ! जीव निश्चय ही इन चार कारणों से केवलि – भाषित धर्म को सूनने का लाभ प्राप्त नहीं कर पाता है। १. आराम में अथवा उद्यान में स्थित श्रमण या माहन के अभिमुख जो नहीं जाता है, स्तुति, नमस्कार, सत्कार एवं सम्मान नहीं करता है तथा कल्याण, मंगल, देव एवं विशिष्ट ज्ञान स्वरूप मानकर जो उनकी पर्युपासना नहीं करता है; जो अर्थ, हेतुओं, प्रश्नों को, कारणों को, व्याख्याओं को नहीं पूछता है, तो हे चित्त ! वह जीव केवलि – प्रज्ञप्त धर्म को सून नहीं पाता है। २. उपाश्रय में स्थित श्रमण आदि का वन्दन, यावत्‌ उनसे व्याकरण नहीं पूछता, तो हे चित्त ! वह जीव केवलि – भाषित धर्म को सून नहीं पाता है। ३. गोचरी – गये हुए श्रमण अथवा माहन का सत्कार यावत्‌ उनकी पर्युपासना नहीं करता तथा विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य से उन्हें प्रतिलाभित नहीं करता, एवं शास्त्र के अर्थ यावत्‌ व्याख्या को उनसे नहीं पूछता, तो चित्त ! केवली भगवान द्वारा निरूपित धर्म को सून नहीं पाता है। ४. कहीं श्रमण या माहन का सुयोग मिल जाने पर भी वहाँ अपने आप को छिपाने के लिए, वस्त्र से, छत से स्वयं को आवृत्त कर लेता है, एवं उनसे अर्थ आदि नहीं पूछता है, तो हे चित्त! वह जीव केवलिप्रज्ञप्त धर्म श्रवण करने का अवसर प्राप्त नहीं कर सकता है उक्त चार कारणों से हे चित्त ! जीव केवलिभाषित धर्म श्रवण करने का लाभ नहीं ले पाता है, किन्तु हे चित्त ! इन चार कारणों से जीव केवलिप्रज्ञप्त धर्म को सूनने का अवसर प्राप्त कर सकता है। १. आराम अथवा उद्यान में पधारे हुए श्रमण या माहन को जो वन्दन करता है, नमस्कार करता है यावत्‌ उनकी पर्युपासना करता है, अर्थों को यावत्‌ पूछता है तो हे चित्त ! वह जीव केवलिप्ररूपित धर्म को सूनने का अवसर प्राप्त कर सकता है। २. इसी प्रकार जो जीव उपाश्रय में रहे हुए श्रमण या माहन को वन्दन – नमस्कार करता है यावत्‌ वह केवलि – प्रज्ञप्त धर्म को सून सकता है। ३. इसी प्रकार जो जीव गोचरी के लिए गए हुए श्रमण या माहन को वन्दन – नमस्कार करता है यावत्‌ उनकी पर्युपासना करता है यावत्‌ उन्हें प्रतिलाभित करता है, वह जीव केवलिभाषित अर्थ को सूनने का अवसर प्राप्त कर सकता है। ४. इसी प्रकार जो जीव जहाँ कहीं श्रमण या माहन का सुयोग मिलने पर हाथों, वस्त्रों, छत्ता आदि से स्वयं को छिपाता नहीं है, हे चित्त ! वह जीव केवलिप्रज्ञप्त धर्म सूनने का लाभ प्राप्त कर सकता है। लेकिन हे चित्त ! तुम्हारा प्रदेशी राजा जब पधारे हुए श्रमण या माहन के सन्मुख ही नहीं आता है यावत्‌ अपने को आच्छादित कर लेता है, तो मैं कैसे धर्म का उपदेश दे सकूँगा ? चित्त सारथीने निवेदन किया – हे भदन्त ! किसी समय कम्बोज देशवासियोंने चार घोड़े उपहार रूप भेंट किये थे। मैंने उनको प्रदेशी राजा के यहाँ भिजवा दिया था, इन घोड़ों के बहाने मैं शीघ्र ही प्रदेशी राजा को आपके पास लाऊंगा। तब आप प्रदेशी राजा को धर्मकथा कहते हुए लेशमात्र ग्लानि मत करना। हे भदन्त ! आप अग्लानभाव से प्रदेशी राजा को धर्मोपदेश देना। आप स्वेच्छानुसार धर्म का कथन करना। तब केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी से कहा – हे चित्त ! अवसर आने पर देखा जाएगा। तत्पश्चात्‌ चित्त सारथीने केशी कुमारश्रमण को वन्दना की, नमस्कार किया, चार घंटोंवाले अश्वरथ पर आरूढ़ हुआ। जिस दिशा से आया था उसी ओर लौट गया
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam kesi kumarasamane chittam sarahim evam vayasi–evam khalu chauhim thanehim chitta! Jive kevalipannattam dhammam no labhejja savanayae, tam jaha– Aramagayam va ujjanagayam va samanam va mahanam va no abhigachchhai no vamdai no namamsai no sakkarei no sammanei no kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam no labhai savanayae. Uvassayagayam samanam va mahanam va no abhigachchhai no vamdai no namamsai no sakkarei no sammanei no kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam no labhai savanayae. Goyaraggagayam samanam va mahanam va no abhigachchhai no vamdai no namamsai no sakkarei no sammanei no kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei no viulenam asanapanakhaimasaimenam padilabhei, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam no labhai savanayae. Jattha vi ya nam samanena va mahanena va saddhim abhisamagachchhai tattha vi ya nam hatthena va vatthena va chhattena va appanam avaritta chitthai, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam no labhai savanayae. Eehim cha nam chitta! Chauhim thanehim jive kevalipannattam dhammam labhai savanayae, tam jaha–aramagayam va ujjanagayam va samanam va mahanam va abhigachchhai vamdai namamsai sakkarei sammanei kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam labhai savanayae. Uvassayagayam samanam va mahanam va abhigachchhai vamdai namamsai sakkarei sammanei kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam labhai savanayae. Goyaraggagayam samanam va mahanam va abhigachchhai vamdai namamsai sakkarei sammanei kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, viulenam asanapanakhaimasaimenam padilabhei, atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam labhai savanayae. Jattha vi ya nam samanena va mahanena va saddhim abhisamagachchhai tattha vi ya nam no hatthena va vatthena va chhattena va appanam avarettanam chitthai. Eena vi thanenam chitta! Jive kevalipannattam dhammam labhai savanayae. Tujjham cha nam chitta! Paesi raya–aramagayam va ujjanagayam va samanam va mahanam va no abhigachchhai no vamdai no namamsai no sakkarei no sammanei no kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Tam kaham nam chitta! Paesissa ranno dhammamaikkhissamo? Uvassayagayam samanam va mahanam va no abhigachchhai no vamdai no namamsai no sakkarei no sammanei no kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Tam kaham nam chitta! Paesissa ranno dhammamaikkhissamo? Goyaraggagayam samanam va mahanam va no abhigachchhai no vamdai no namamsai no sakkarei no sammanei no kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasei, no viulenam asanapanakhaimasaimenam padilabhei, no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim puchchhai. Tam kaham nam chitta! Paesissa ranno dhammama-ikkhissamo? Jattha vi ya nam samanena va mahanena va saddhim abhisamagachchhai tattha vi ya nam hatthena va vatthena va chhattena va appanam avaretta chitthai. Tam kaham nam chitta! Paesissa ranno dhammamaikkhissamo? Tae nam se chitte sarahi kesim kumara-samanam evam vayasi–evam khalu bhamte! Annaya kayai kamboehim chattari asa uvayanam uvaniya, te mae paesissa ranno annaya cheva uvaneya. Tam eenam khalu bhamte! Karanenam aham paesim rayam devanuppiyanam amtie havvamanessami. Tam ma nam devanuppiya! Tubbhe paesissa ranno dhammamaikkhamana gilaejjaha. Agilae nam bhamte! Tubbhe paesissa ranno dhammamaikkhejjaha. Chhamdenam bhamte! Tubbhe paesissa ranno dhammamaikkhejjaha. Tae nam se kesi kumara-samane chittam sarahim evam vayasi–aviyaim chitta! Janissamo. Tae nam se chitte sarahi kesim kumarasamanam vamdai namamsai, jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, chaugghamtam asaraham duruhai, jameva disim paubbhue tameva disim padigae.
Sutra Meaning Transliteration : Keshi kumarashramana ne chitta sarathi ko samajhaya – he chitta ! Jiva nishchaya hi ina chara karanom se kevali – bhashita dharma ko sunane ka labha prapta nahim kara pata hai. 1. Arama mem athava udyana mem sthita shramana ya mahana ke abhimukha jo nahim jata hai, stuti, namaskara, satkara evam sammana nahim karata hai tatha kalyana, mamgala, deva evam vishishta jnyana svarupa manakara jo unaki paryupasana nahim karata hai; jo artha, hetuom, prashnom ko, karanom ko, vyakhyaom ko nahim puchhata hai, to he chitta ! Vaha jiva kevali – prajnyapta dharma ko suna nahim pata hai. 2. Upashraya mem sthita shramana adi ka vandana, yavat unase vyakarana nahim puchhata, to he chitta ! Vaha jiva kevali – bhashita dharma ko suna nahim pata hai. 3. Gochari – gaye hue shramana athava mahana ka satkara yavat unaki paryupasana nahim karata tatha vipula ashana, pana, khadya, svadya se unhem pratilabhita nahim karata, evam shastra ke artha yavat vyakhya ko unase nahim puchhata, to chitta ! Kevali bhagavana dvara nirupita dharma ko suna nahim pata hai. 4. Kahim shramana ya mahana ka suyoga mila jane para bhi vaham apane apa ko chhipane ke lie, vastra se, chhata se svayam ko avritta kara leta hai, evam unase artha adi nahim puchhata hai, to he chitta! Vaha jiva kevaliprajnyapta dharma shravana karane ka avasara prapta nahim kara sakata hai Ukta chara karanom se he chitta ! Jiva kevalibhashita dharma shravana karane ka labha nahim le pata hai, kintu he chitta ! Ina chara karanom se jiva kevaliprajnyapta dharma ko sunane ka avasara prapta kara sakata hai. 1. Arama athava udyana mem padhare hue shramana ya mahana ko jo vandana karata hai, namaskara karata hai yavat unaki paryupasana karata hai, arthom ko yavat puchhata hai to he chitta ! Vaha jiva kevaliprarupita dharma ko sunane ka avasara prapta kara sakata hai. 2. Isi prakara jo jiva upashraya mem rahe hue shramana ya mahana ko vandana – namaskara karata hai yavat vaha kevali – prajnyapta dharma ko suna sakata hai. 3. Isi prakara jo jiva gochari ke lie gae hue shramana ya mahana ko vandana – namaskara karata hai yavat unaki paryupasana karata hai yavat unhem pratilabhita karata hai, vaha jiva kevalibhashita artha ko sunane ka avasara prapta kara sakata hai. 4. Isi prakara jo jiva jaham kahim shramana ya mahana ka suyoga milane para hathom, vastrom, chhatta adi se svayam ko chhipata nahim hai, he chitta ! Vaha jiva kevaliprajnyapta dharma sunane ka labha prapta kara sakata hai. Lekina he chitta ! Tumhara pradeshi raja jaba padhare hue shramana ya mahana ke sanmukha hi nahim ata hai yavat apane ko achchhadita kara leta hai, to maim kaise dharma ka upadesha de sakumga\? Chitta sarathine nivedana kiya – he bhadanta ! Kisi samaya kamboja deshavasiyomne chara ghore upahara rupa bhemta kiye the. Maimne unako pradeshi raja ke yaham bhijava diya tha, ina ghorom ke bahane maim shighra hi pradeshi raja ko apake pasa laumga. Taba apa pradeshi raja ko dharmakatha kahate hue leshamatra glani mata karana. He bhadanta ! Apa aglanabhava se pradeshi raja ko dharmopadesha dena. Apa svechchhanusara dharma ka kathana karana. Taba keshi kumarashramana ne chitta sarathi se kaha – he chitta ! Avasara ane para dekha jaega. Tatpashchat chitta sarathine keshi kumarashramana ko vandana ki, namaskara kiya, chara ghamtomvale ashvaratha para arurha hua. Jisa disha se aya tha usi ora lauta gaya