Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005752 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 52 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नामं जणवए होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा। तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए कोट्ठए नामं चेइए होत्था–पोराणे जाव पासादीए। तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रन्नो अंतेवासी जियसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। तए णं से पएसी राया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छ णं चित्ता! तुमं सावत्थिं नगरिं जियसत्तुस्स रन्नो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि, जाइं तत्थ रायकज्जाणि य रायकिच्चाणि य रायणीईओ य रायववहारा य ताइं जियसत्तुणा सद्धिं सयमेव पच्चुवेक्खमाणे विहराहि त्ति कट्टु विसज्जिए। तए णं से चित्ते सारही पएसिणा रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ पडिसुणेत्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता पएसिस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सेयवियं नगरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं ठवेइ, ठवेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! सच्छत्तं सज्झयं सघंटं सपडागं सतोरणवरं सनंदिघोसं सखिंखिणि हेमजाल परिखित्तं हेमवय चित्त विचित्त तिणिस कनगनिज्जुत्तदारुयायं सुसंपिणद्धार-कमंडलधुरागं कालायससुकयणेमिजंतकम्मं आइण्णवरतुरगसुसंपउत्तं कुसलनरच्छेयसारहिसुसं-परिग्गहियं सरसयबत्तीसतोणपरिमंडियं सकंकडावयंसगं सचाव सर पहरण आवरण भरियजोह-जुज्झसज्जं चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सच्छत्तं जाव जुद्धसज्जं चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेंति, उवट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से चित्ते सारही कोडुंबियपुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय मंगल-पायच्छित्ते सन्नद्ध बद्ध वम्मियकवए उप्पीलिय सरासणपट्टिए पिणद्धगेविज्जविमलवरचिंधपट्टे गहियाउहपहरणे तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहेति, दुरुहेत्ता बहुहिं पुरिसेहिं सन्नद्ध बद्ध वम्मिय-कवए उप्पीलिय सरासणपट्टिए पिणद्धगेविज्जविमलवरचिंधपट्टे गहियाउहपहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरेज्जमाणेणं-धरेज्जमाणेणं महया भड चडगर रहपहकरविंदपरिक्खित्ते साओ गिहाओ निग्गच्छइ, सेयवियं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ,... ...सुहेहिं वासेहिं पायरासेहिं नाइविकिट्ठेहिं अंतरा वासेहिं वसमाणे-वसमाणे केयइ अद्धस्स जनवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव कुणालाजनवए जेणेव सावत्थी नयरी तेणेव उवागच्छइ, सावत्थीए नयरीए मज्झंमज्झेणं अनुपविसइ, जेणेव जियसत्तुस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेति, रहाओ पच्चोरुहइ, तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गिण्हइ, जेणेव अब्भिंतरिया उवट्ठाणसाला जेणेव जियसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, जियसत्तु रायं करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेइ। तए णं से जियसत्तू राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, चित्तं सारहिं सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ, रायमग्गमोगाढं च से आवासं दलयइ। तए णं से चित्ते सारही विसज्जिते समाणे जियसत्तुस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव रायमग्गमो-गाढे आवासे तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवरपरिहिते अप्पमहग्घाभरणालंकिए जिमियभुत्ततरागए वि य णं समाणे पुव्वावरण्ह-कालसमयंसि गंधव्वेहि य णाडगेहि य उवनच्चिज्जमाणे उवगाइज्जमाणे उवलालिज्जमाणे इट्ठे सद्द फरिस रस रूव गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणे विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में कुणाला नामक जनपद – देश था। वह देश वैभवसंपन्न, स्तिमित – स्वपरचक्र के भय से मुक्त और धन – धान्य से समृद्ध था। उस कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की नगरी थी, जो ऋद्ध, स्तिमित, समृद्ध यावत् प्रतिरूप थी। उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तर – पूर्व दिशा में कोष्ठक नाम का चैत्य था। यह चैत्य अत्यन्त प्राचीन यावत् प्रतिरूप था। उस श्रावस्ती नगरी में प्रदेशी राजा का अन्तेवासी आज्ञापालक जितशत्रु नामक राजा था, जो महाहिमवन्त आदि पर्वतों के समान प्रख्यात था। तत्पश्चात् किसी एक समय प्रदेशी राजा ने महार्थ बहुमूल्य, महान् पुरुषों के योग्य, विपुल, राजाओं को देने योग्य प्राभृत सजाया, चित्त सारथी को बुलाया और उससे इस प्रकार कहा – हे चित्त ! तुम श्रावस्ती नगरी जाओ और वहाँ जितशत्रु राजा को यह महार्थ यावत् भेंट दे आओ तथा जितशत्रु राजा के साथ रहकर स्वयं वहाँ की शासन – व्यवस्था, राजा की दैनिकचर्या, राजनीति और राजव्यवहार को देखो, सूनो और अनुभव करो। तब वह चित्त सारथी प्रदेशी राजा की इस आज्ञा को सूनकर हर्षित यावत् आज्ञा स्वीकार करके उस महार्थक यावत् उपहार को लिया और प्रदेशी राजा के पास से नीकलकर सेयविया नगरी के बीचों – बीच से होता हुआ जहाँ अपना घर था, वहाँ आया। उस महार्थक उपहार को एक तरफ रख दिया और कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उनसे इस प्रकार कहा – देवानुप्रियो ! शीघ्र ही छत्र सहित यावत् चार घंटों वाला अश्वरथ जोतकर तैयार कर लाओ यावत् इस आज्ञा को वापस लौटाओ। तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने चित्त सारथी की आज्ञा सूनकर शीघ्र ही छत्रसहित यावत् युद्ध के लिए सजाये गये चातुर्घटिक अश्वरथ को जोत कर उपस्थित कर दिया और आज्ञा वापस लौटाई, कौटुम्बिक पुरुषों का यह कथन सूनकर चित्त सारथी हृष्ट – तुष्ट हुआ यावत् विकसितहृदय होते हुए उसने स्नान किया, बलिकर्म कौतुक मंगल – प्रायश्चित्त किये और फिर अच्छी तरह से शरीर पर कवच बांधा। धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई, गले में ग्रैवेयक और अपने श्रेष्ठ संकेतपट्टक को धारण किया एवं आयुध तथा प्रहरणों को ग्रहण कर, वह महार्थक यावत् उपहार लेकर वहाँ आया जहाँ चातुर्घंट अश्वरथ खड़ा था। आकर चातुर्घंट अश्वरथ पर आरूढ़ हुआ तत्पश्चात् सन्नद्ध यावत् आयुध एवं प्रहरणों से सुसज्जित बहुत से पुरुषों से परिवृत्त हो, कोरंट पुष्प की मालाओं से विभूषित छत्र को धारण कर, सुभटों और रथों के समूह के साथ अपने घर से रवाना हुआ और सेयविया नगरी के बीचोंबीच से नीकलकर सुखपूर्वक रात्रिविश्राम, प्रातः कलेवा, पास – पास अन्तरावास करते, और जगह – जगह ठहरते केकयअर्ध जनपद के बीचोंबीच से होता हुआ जहाँ कुणाला जनपद था, जहाँ श्रावस्ती नगरी थी, वहाँ पहुँचा। श्रावस्ती नगरी के मध्यभाग में प्रविष्ट कर जितशत्रु राजा की बाह्य उपस्थानशाला थी, वहाँ आकर घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया और रथ से नीचे ऊतरा। तदनन्तर उस महार्थक यावत् भेंट लेकर आभ्यन्तर उपस्थानशाला में जहाँ जितशत्रु राजा बैठा था, वहाँ आया। वहाँ दोनों हाथ जोड़ यावत् जय – विजय शब्दों से जितशत्रु राजा का अभिनन्दन किया और फिर उस महार्थक यावत् उपहार को भेंट किया। तब जितशत्रु राजा ने चित्त सारथी द्वारा भेंट किये गये इस महार्थक यावत् उपहार को स्वीकार किया एवं चित्त सारथी का सत्कार – सम्मान किया और बिदा करके विश्राम करने के लिए राजमार्ग पर आवास स्थान दिया। तत्पश्चात् चित्त सारथी बिदाई लेकर जितशत्रु राजा के पास से नीकला और जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, चार घंटों वाला अश्वरथ खड़ा था, वहाँ आया। उस पर सवार हुआ। फिर श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच से होता हुआ राजमार्ग पर अपने ठहरने के लिए निश्चित किये गये आवास – स्थान पर आया। वहाँ घोड़ों को रोका, रथ से नीचे ऊतरा। इसके पश्चात् उसने स्नान किया, बलिकर्म किया और कौतुक, मंगल प्रायश्चित्त करके शुद्ध और उचित मांगलिक वस्त्र पहने एवं अल्प किन्तु बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। भोजन आदि करके तीसरे प्रहर गंधर्वों, नर्तकों और नाट्यकारों के संगीत, नृत्य और नाट्याभिनयों को सूनते – देखते हुए तथा इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप एवं गंधमूलक पाँच प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगते हुए विचरने लगा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam kunala namam janavae hottha–riddhatthimiyasamiddhe pasadie darisanijje abhiruve padiruve. Tattha nam kunalae janavae savatthi namam nayari hottha–riddhatthimiyasamiddha java padiruva. Tise nam savatthie nayarie bahiya uttarapuratthime disibhae kotthae namam cheie hottha–porane java pasadie. Tattha nam savatthie nayarie paesissa ranno amtevasi jiyasattu namam raya hottha–mahayahimavamta mahamta malaya mamdara mahimdasare java rajjam pasasemane viharai. Tae nam se paesi raya kayai mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam sajjavei, sajjavetta chittam sarahim saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchha nam chitta! Tumam savatthim nagarim jiyasattussa ranno imam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam uvanehi, jaim tattha rayakajjani ya rayakichchani ya rayaniio ya rayavavahara ya taim jiyasattuna saddhim sayameva pachchuvekkhamane viharahi tti kattu visajjie. Tae nam se chitte sarahi paesina ranna evam vutte samane hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunei padisunetta tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam genhai, genhitta paesissa ranno amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta seyaviyam nagarim majjhammajjhenam jeneva sae gihe teneva uvagachchhati, uvagachchhitta tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam thavei, thavetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– Khippameva bho! Devanuppiya! Sachchhattam sajjhayam saghamtam sapadagam satoranavaram sanamdighosam sakhimkhini hemajala parikhittam hemavaya chitta vichitta tinisa kanaganijjuttadaruyayam susampinaddhara-kamamdaladhuragam kalayasasukayanemijamtakammam ainnavaraturagasusampauttam kusalanarachchheyasarahisusam-pariggahiyam sarasayabattisatonaparimamdiyam sakamkadavayamsagam sachava sara paharana avarana bhariyajoha-jujjhasajjam chaugghamtam asaraham juttameva uvatthaveha, uvatthavetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa taheva padisunitta khippameva sachchhattam java juddhasajjam chaugghamtam asaraham juttameva uvatthavemti, uvatthavetta tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se chitte sarahi kodumbiyapurisanam amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamanahiyae nhae kayabalikamme kayakouya mamgala-payachchhitte sannaddha baddha vammiyakavae uppiliya sarasanapattie pinaddhagevijjavimalavarachimdhapatte gahiyauhapaharane tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam genhai, genhitta jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham duruheti, duruhetta bahuhim purisehim sannaddha baddha vammiya-kavae uppiliya sarasanapattie pinaddhagevijjavimalavarachimdhapatte gahiyauhapaharanehim saddhim samparivude sakoremtamalladamenam chhattenam dharejjamanenam-dharejjamanenam mahaya bhada chadagara rahapahakaravimdaparikkhitte sao gihao niggachchhai, seyaviyam nagarim majjhammajjhenam niggachchhai,.. ..Suhehim vasehim payarasehim naivikitthehim amtara vasehim vasamane-vasamane keyai addhassa janavayassa majjhammajjhenam jeneva kunalajanavae jeneva savatthi nayari teneva uvagachchhai, savatthie nayarie majjhammajjhenam anupavisai, jeneva jiyasattussa ranno gihe jeneva bahiriya uvatthanasala teneva uvagachchhai, turae niginhai, raham thaveti, rahao pachchoruhai, tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam ginhai, jeneva abbhimtariya uvatthanasala jeneva jiyasattu raya teneva uvagachchhai, jiyasattu rayam karayala-pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam uvanei. Tae nam se jiyasattu raya chittassa sarahissa tam mahattham mahaggham mahariham viulam rayariham pahudam padichchhai, chittam sarahim sakkarei sammanei padivisajjei, rayamaggamogadham cha se avasam dalayai. Tae nam se chitte sarahi visajjite samane jiyasattussa ranno amtiyao padinikkhamai, jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, chaugghamtam asaraham duruhai, savatthim nagarim majjhammajjhenam jeneva rayamaggamo-gadhe avase teneva uvagachchhai, turae niginhai, raham thavei, rahao pachchoruhai, nhae kayabalikamme kayakouyamamgalapayachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavaraparihite appamahagghabharanalamkie jimiyabhuttataragae vi ya nam samane puvvavaranha-kalasamayamsi gamdhavvehi ya nadagehi ya uvanachchijjamane uvagaijjamane uvalalijjamane itthe sadda pharisa rasa ruva gamdhe pamchavihe manussae kamabhoe pachchanubhavamane viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem kunala namaka janapada – desha tha. Vaha desha vaibhavasampanna, stimita – svaparachakra ke bhaya se mukta aura dhana – dhanya se samriddha tha. Usa kunala janapada mem shravasti nama ki nagari thi, jo riddha, stimita, samriddha yavat pratirupa thi. Usa shravasti nagari ke bahara uttara – purva disha mem koshthaka nama ka chaitya tha. Yaha chaitya atyanta prachina yavat pratirupa tha. Usa shravasti nagari mem pradeshi raja ka antevasi ajnyapalaka jitashatru namaka raja tha, jo mahahimavanta adi parvatom ke samana prakhyata tha. Tatpashchat kisi eka samaya pradeshi raja ne mahartha bahumulya, mahan purushom ke yogya, vipula, rajaom ko dene yogya prabhrita sajaya, chitta sarathi ko bulaya aura usase isa prakara kaha – he chitta ! Tuma shravasti nagari jao aura vaham jitashatru raja ko yaha mahartha yavat bhemta de ao tatha jitashatru raja ke satha rahakara svayam vaham ki shasana – vyavastha, raja ki dainikacharya, rajaniti aura rajavyavahara ko dekho, suno aura anubhava karo. Taba vaha chitta sarathi pradeshi raja ki isa ajnya ko sunakara harshita yavat ajnya svikara karake usa maharthaka yavat upahara ko liya aura pradeshi raja ke pasa se nikalakara seyaviya nagari ke bichom – bicha se hota hua jaham apana ghara tha, vaham aya. Usa maharthaka upahara ko eka tarapha rakha diya aura kautumbika purushom ko bulaya. Unase isa prakara kaha – Devanupriyo ! Shighra hi chhatra sahita yavat chara ghamtom vala ashvaratha jotakara taiyara kara lao yavat isa ajnya ko vapasa lautao. Tatpashchat una kautumbika purushom ne chitta sarathi ki ajnya sunakara shighra hi chhatrasahita yavat yuddha ke lie sajaye gaye chaturghatika ashvaratha ko jota kara upasthita kara diya aura ajnya vapasa lautai, kautumbika purushom ka yaha kathana sunakara chitta sarathi hrishta – tushta hua yavat vikasitahridaya hote hue usane snana kiya, balikarma kautuka mamgala – prayashchitta kiye aura phira achchhi taraha se sharira para kavacha bamdha. Dhanusha para pratyamcha charhai, gale mem graiveyaka aura apane shreshtha samketapattaka ko dharana kiya evam ayudha tatha praharanom ko grahana kara, vaha maharthaka yavat upahara lekara vaham aya jaham chaturghamta ashvaratha khara tha. Akara chaturghamta ashvaratha para arurha hua Tatpashchat sannaddha yavat ayudha evam praharanom se susajjita bahuta se purushom se parivritta ho, koramta pushpa ki malaom se vibhushita chhatra ko dharana kara, subhatom aura rathom ke samuha ke satha apane ghara se ravana hua aura seyaviya nagari ke bichombicha se nikalakara sukhapurvaka ratrivishrama, pratah kaleva, pasa – pasa antaravasa karate, aura jagaha – jagaha thaharate kekayaardha janapada ke bichombicha se hota hua jaham kunala janapada tha, jaham shravasti nagari thi, vaham pahumcha. Shravasti nagari ke madhyabhaga mem pravishta kara jitashatru raja ki bahya upasthanashala thi, vaham akara ghorom ko roka, ratha ko khara kiya aura ratha se niche utara. Tadanantara usa maharthaka yavat bhemta lekara abhyantara upasthanashala mem jaham jitashatru raja baitha tha, vaham aya. Vaham donom hatha jora yavat jaya – vijaya shabdom se jitashatru raja ka abhinandana kiya aura phira usa maharthaka yavat upahara ko bhemta kiya. Taba jitashatru raja ne chitta sarathi dvara bhemta kiye gaye isa maharthaka yavat upahara ko svikara kiya evam chitta sarathi ka satkara – sammana kiya aura bida karake vishrama karane ke lie rajamarga para avasa sthana diya. Tatpashchat chitta sarathi bidai lekara jitashatru raja ke pasa se nikala aura jaham bahya upasthanashala thi, chara ghamtom vala ashvaratha khara tha, vaham aya. Usa para savara hua. Phira shravasti nagari ke bichombicha se hota hua rajamarga para apane thaharane ke lie nishchita kiye gaye avasa – sthana para aya. Vaham ghorom ko roka, ratha se niche utara. Isake pashchat usane snana kiya, balikarma kiya aura kautuka, mamgala prayashchitta karake shuddha aura uchita mamgalika vastra pahane evam alpa kintu bahumulya abhushanom se sharira ko alamkrita kiya. Bhojana adi karake tisare prahara gamdharvom, nartakom aura natyakarom ke samgita, nritya aura natyabhinayom ko sunate – dekhate hue tatha ishta shabda, sparsha, rasa, rupa evam gamdhamulaka pamcha prakara ke manushya sambandhi kamabhogom ko bhogate hue vicharane laga. |