Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005632 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Translated Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 32 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभि-णंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी–जयजय णंदा! जयजय भद्दा! भद्दं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि। इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूइं वासाइं बहूइं वाससयाइं बहूइं वाससहस्साइं बहूइं वाससयसहस्साइं अणहसमग्गो हट्ठतुट्ठो परमाउं पालियाहिं इट्ठजणसंपरिवुडो चंपाए नयरीए अन्नेसिं च बहूणं गामागर नयर खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टण आसम निगम संवाह संणिवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा ईसर सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय नट्ट गीय बाइय तंती तल ताल तुडिय धण मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहराहि ति कट्टु जय-जय सद्दं पउंजंति। तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते नयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे-पेच्छिज्जमाणे हिययमालासहस्सेहिं अभिनंदिज्जमाणे-अभिनंदिज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे-विच्छिप्पमाणे वयणमालासहस्सेहिं अभिथुव्वमाणे-अभिथुव्वमाणे कंतिसोहग्गगुणेहिं पत्थिज्ज- माणे-पत्थिज्जमाणे बहूणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साइं पडिच्छमाणे-पडिच्छमाणे मंजुमंजुणा घोसेणं आपडिपुच्छमाणे-आपडिपुच्छमाणे भवनपंति सहस्साइं समइच्छमाणे-समइच्छमाणे चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, ... ...निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूर-सामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ, पासित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयणं ठवेइ, ठवेत्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता अवहट्टु पंच रायकउहाइं, तं जहा–खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीयणयं, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा–सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए अचित्ताणं दव्वाणं अविओसरणयाए एगसाडियं-उत्तरासंगकरणेणं चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तिभावकरणेणं। समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ निग्गंइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ। तं जहा–काइयाए वाइयाए माणसियाए। काइयाए–ताव संकुइयग्गहत्थपाए सुस्सूसमाणे निग्गंमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। वाइयाए–जं जं भगवं वागरेइ एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वदह अपडिकूलमाण पज्जुवासइ। माणसियाए–महयासंवेगं जण-इत्ता तिव्वधम्मानुरागरत्ते पज्जुवासइ। | ||
Sutra Meaning : | जब राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीच से गुजर रहा था, बहुत से अभ्यर्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्बिषिक, कापालिक, करबाधित, शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, वर्धमान, पूष्यमानव, खंडिक – गण, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, मनोभिराम, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाली वाणी से एवं जय विजय आदि सैकड़ों मांगलिक शब्दों से राजा का अनवरत अभिनन्दन करते हुए, अभिस्तवन करते हुए इस प्रकार बोले – जन – जन को आनन्द देने वाले राजन् ! आपकी जय हो, आपकी जय हो। जन – जन के लिए कल्याण – स्वरूप राजन् ! आप सदा जयशील हो। आपका कल्याण हो। जिन्हें नहीं जीता है, उन पर आप विजय प्राप्त करें। जिनको जीत लिया है उनका पालन करें। उनके बीच निवास करें। देवों में इन्द्र की तरह, असुरों में चमरेन्द्र की तरह, नागों में धरणेन्द्र की तरह, तारों में चन्द्रमा की तरह, मनुष्यों में चक्रवर्ती भरत की तरह आप अनेक वर्षों तक, अनेक शतवर्षों तक, अनेह सहस्रवर्षों तक, अनेक लक्ष वर्षों तक अनघसमग्र सर्वथा सम्पन्न, हृष्ट, तुष्ट रहें, उत्कृष्ट आयु प्राप्त करें। आप अपने प्रियजन सहित चम्पानगरीके तथा अन्य बहुत से ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोण – मुख, मडंब, पत्तन, आश्रम, निगम, संवाह, सन्निवेश, इन सबका आधिपत्य, पौरोवृत्य, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरत्व, आज्ञेश्वरत्व – सेनापतित्व – इन सबका सर्वाधिकृत रूप में पालन करते हुए निर्बाध अविच्छिन्न रूप में नृत्य, गीत, वाद्य, वीणा, करताल, तूर्य एवं घनमृदंग के निपुणतापूर्ण प्रयोग द्वारा नीकलती सुन्दर ध्वनियों से आनन्दित होते हुए, विपुल अत्यधिक भोग भोगते हुए सुखी रहें, यों कहकर उन्होंने जय – घोष किया। भंभसार के पुत्र राजा कूणिक का सहस्रों नर – नारी अपने नेत्रों से बार – बार दर्शन कर रहे थे, हृदय से उसका बार – बार अभिनन्दन कर रहे थे, अपने शुभ मनोरथ लिये हुए थे, उसका बार – बार अभिस्तवन कर रहे थे, उसकी कान्ति, उत्तम सौभाग्य आदि गुणों के कारण – ये स्वामी हमें सदा प्राप्त रहें, बार – बार ऐसी अभिलाषा करते थे। नर – नारियों द्वारा अपने हजारों हाथों से उपस्थापित अंजलिमाला को अपना दाहिना हाथ ऊंचा उठाकर बार – बार स्वीकार करता हुआ, अत्यन्त कोमल वाणी से उनका कुशल पूछता हुआ, घरों की हजारों पंक्तियों को लांघता हुआ राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीच से नीकला। जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आया। भगवान के न अधिक दूर न अधिक निकट रुका। तीर्थंकरों के छत्र आदि अतिशयों को देखा। देखकर अपनी सवारी के प्रमुख उत्तम हाथी को ठहराया, हाथी से नीचे उतरा, तलवार, छत्र, मुकूट, चंवर – इन राजचिह्नों को अलग किया, जूते उतारे। भगवान महावीर जहाँ थे, वहाँ आया। आकर, सचित्त का व्युत्सर्जन, अचित्त का अव्युत्सर्जन, अखण्ड वस्त्र का उत्तरासंग, दृष्टि पड़ते ही हाथ जोड़ना, मन को एकाग्र करना – इन पाँच नियमों के अनुपालनपूर्वक राजा कूणिक भगवान के सम्मुख आया। भगवान को तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा कर वन्दना की, नमस्कार किया। कायिक, वाचिक, मानसिक रूप से पर्युपासना की। कायिक पर्युपासना के रूप में हाथों – पैरों को संकुचित किये हुए शुश्रूषा करते हुए, नमन करते हुए भगवान की ओर मुँह किये, विनय से हाथ जोड़े हुए स्थित रहा। वाचिक पर्युपासना के रूप में – जो – जो भगवान बोलते थे, उसके लिए ‘‘यह ऐसा ही है भन्ते ! यही तथ्य है भगवन् ! यही सत्य है प्रभो ! यही सन्देह – रहित है स्वामी ! यही ईच्छित है भन्ते ! यही प्रतीच्छित है, प्रभो ! यही ईच्छित – प्रतीच्छित है, भन्ते ! जैसा आप कह रहे हैं।’’ इस प्रकार अनुकूल वचन बोलता, मानसिक पर्युपासना के रूप में अपने में अत्यन्त संवेग उत्पन्न करता हुआ तीव्र धर्मानुराग से अनुरक्त रहा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tassa kuniyassa ranno champae nayarie majjhammajjhenam niggachchhamanassa bahave atthatthiya kamatthiya bhogatthiya labhatthiya kivvisiya karodiya karavahiya samkhiya chakkiya namgaliya muhamamgaliya vaddhamana pusamanaya khamdiyagana tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim manabhiramahim hiyayamanijjahim vagguhim jayavijayamamgalasaehim anavarayam abhi-namdamta ya abhitthunamta ya evam vayasi–jayajaya namda! Jayajaya bhadda! Bhaddam te, ajiyam jinahi jiyam palayahi, jiyamajjhe vasahi. Imdo iva devanam chamaro iva asuranam dharano iva naganam chamdo iva taranam bharaho iva manuyanam bahuim vasaim bahuim vasasayaim bahuim vasasahassaim bahuim vasasayasahassaim anahasamaggo hatthatuttho paramaum paliyahim itthajanasamparivudo champae nayarie annesim cha bahunam gamagara nayara kheda kabbada donamuha madamba pattana asama nigama samvaha samnivesanam ahevachcham porevachcham samittam bhattittam mahattaragatam ana isara senavachcham karemane palemane mahayahaya natta giya baiya tamti tala tala tudiya dhana muimgapaduppavaiyaravenam viulaim bhogabhogaim bhumjamane viharahi ti kattu jaya-jaya saddam paumjamti. Tae nam se kunie raya bhimbhasaraputte nayanamalasahassehim pechchhijjamane-pechchhijjamane hiyayamalasahassehim abhinamdijjamane-abhinamdijjamane manorahamalasahassehim vichchhippamane-vichchhippamane vayanamalasahassehim abhithuvvamane-abhithuvvamane kamtisohaggagunehim patthijja- Mane-patthijjamane bahunam naranarisahassanam dahinahatthenam amjalimalasahassaim padichchhamane-padichchhamane mamjumamjuna ghosenam apadipuchchhamane-apadipuchchhamane bhavanapamti sahassaim samaichchhamane-samaichchhamane champae nayarie majjhammajjhenam niggachchhai,.. ..Niggachchhitta jeneva punnabhadde cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adura-samamte chhattaie titthayaraisese pasai, pasitta abhisekkam hatthirayanam thavei, thavetta abhisekkao hatthirayanao pachchoruhai, pachchoruhitta avahattu pamcha rayakauhaim, tam jaha–khaggam chhattam upphesam vahanao valaviyanayam, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram pamchavihenam abhigamenam abhigachchhai, tam jaha–sachittanam davvanam viosaranayae achittanam davvanam aviosaranayae egasadiyam-uttarasamgakaranenam chakkhupphase amjalipaggahenam manaso egattibhavakaranenam. Samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai niggami, vamditta namamsitta tivihae pajjuvasanae pajjuvasai. Tam jaha–kaiyae vaiyae manasiyae. Kaiyae–tava samkuiyaggahatthapae sussusamane niggammane abhimuhe vinaenam pamjaliude pajjuvasai. Vaiyae–jam jam bhagavam vagarei evameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Avitahameyam bhamte! Asamdiddhameyam bhamte! Ichchhiyameyam bhamte! Padichchhiyameyam bhamte! Ichchhiyapadichchhiyameyam bhamte! Se jaheyam tubbhe vadaha apadikulamana pajjuvasai. Manasiyae–mahayasamvegam jana-itta tivvadhammanuragaratte pajjuvasai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jaba raja kunika champa nagari ke bicha se gujara raha tha, bahuta se abhyarthi, kamarthi, bhogarthi, labharthi, kilbishika, kapalika, karabadhita, shamkhika, chakrika, lamgalika, mukhamamgalika, vardhamana, pushyamanava, khamdika – gana, ishta, kanta, priya, manojnya, manama, manobhirama, hridaya mem ananda utpanna karane vali vani se evam jaya vijaya adi saikarom mamgalika shabdom se raja ka anavarata abhinandana karate hue, abhistavana karate hue isa prakara bole – jana – jana ko ananda dene vale rajan ! Apaki jaya ho, apaki jaya ho. Jana – jana ke lie kalyana – svarupa rajan ! Apa sada jayashila ho. Apaka kalyana ho. Jinhem nahim jita hai, una para apa vijaya prapta karem. Jinako jita liya hai unaka palana karem. Unake bicha nivasa karem. Devom mem indra ki taraha, asurom mem chamarendra ki taraha, nagom mem dharanendra ki taraha, tarom mem chandrama ki taraha, manushyom mem chakravarti bharata ki taraha apa aneka varshom taka, aneka shatavarshom taka, aneha sahasravarshom taka, aneka laksha varshom taka anaghasamagra sarvatha sampanna, hrishta, tushta rahem, utkrishta ayu prapta karem. Apa apane priyajana sahita champanagarike tatha anya bahuta se grama, akara, nagara, kheta, karbata, drona – mukha, madamba, pattana, ashrama, nigama, samvaha, sannivesha, ina sabaka adhipatya, paurovritya, svamitva, bhartritva, mahattaratva, ajnyeshvaratva – senapatitva – ina sabaka sarvadhikrita rupa mem palana karate hue nirbadha avichchhinna rupa mem nritya, gita, vadya, vina, karatala, turya evam ghanamridamga ke nipunatapurna prayoga dvara nikalati sundara dhvaniyom se anandita hote hue, vipula atyadhika bhoga bhogate hue sukhi rahem, yom kahakara unhomne jaya – ghosha kiya. Bhambhasara ke putra raja kunika ka sahasrom nara – nari apane netrom se bara – bara darshana kara rahe the, hridaya se usaka bara – bara abhinandana kara rahe the, apane shubha manoratha liye hue the, usaka bara – bara abhistavana kara rahe the, usaki kanti, uttama saubhagya adi gunom ke karana – ye svami hamem sada prapta rahem, bara – bara aisi abhilasha karate the. Nara – nariyom dvara apane hajarom hathom se upasthapita amjalimala ko apana dahina hatha umcha uthakara bara – bara svikara karata hua, atyanta komala vani se unaka kushala puchhata hua, gharom ki hajarom pamktiyom ko lamghata hua raja kunika champa nagari ke bicha se nikala. Jaham purnabhadra chaitya tha, vaham aya. Bhagavana ke na adhika dura na adhika nikata ruka. Tirthamkarom ke chhatra adi atishayom ko dekha. Dekhakara apani savari ke pramukha uttama hathi ko thaharaya, hathi se niche utara, talavara, chhatra, mukuta, chamvara – ina rajachihnom ko alaga kiya, jute utare. Bhagavana mahavira jaham the, vaham aya. Akara, sachitta ka vyutsarjana, achitta ka avyutsarjana, akhanda vastra ka uttarasamga, drishti parate hi hatha jorana, mana ko ekagra karana – ina pamcha niyamom ke anupalanapurvaka raja kunika bhagavana ke sammukha aya. Bhagavana ko tina bara adakshina – pradakshina kara vandana ki, namaskara kiya. Kayika, vachika, manasika rupa se paryupasana ki. Kayika paryupasana ke rupa mem hathom – pairom ko samkuchita kiye hue shushrusha karate hue, namana karate hue bhagavana ki ora mumha kiye, vinaya se hatha jore hue sthita raha. Vachika paryupasana ke rupa mem – jo – jo bhagavana bolate the, usake lie ‘‘yaha aisa hi hai bhante ! Yahi tathya hai bhagavan ! Yahi satya hai prabho ! Yahi sandeha – rahita hai svami ! Yahi ichchhita hai bhante ! Yahi pratichchhita hai, prabho ! Yahi ichchhita – pratichchhita hai, bhante ! Jaisa apa kaha rahe haim.’’ isa prakara anukula vachana bolata, manasika paryupasana ke rupa mem apane mem atyanta samvega utpanna karata hua tivra dharmanuraga se anurakta raha. |