Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005634
Scripture Name( English ): Auppatik Translated Scripture Name : औपपातिक उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवसरण वर्णन

Translated Chapter :

समवसरण वर्णन

Section : Translated Section :
Sutra Number : 34 Category : Upang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहवले अइवले महब्बले अपरिमिय बल वीरिय तेय माहप्प कंतिजुत्ते सारय णवणत्थणिय महुरगंभीर कोंचणिग्घोस दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर सन्निवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए जोयणनीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ– अरिहा धम्मं परिकहेइ। तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्मं आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा भासा तेसिं सव्वेसिं आरियमनारियाणं अप्पणो सभासाए परिणामेणं परिणमइ, तं जहा– अत्थि लोए अत्थि अलोए, अत्थि जीवा अत्थि अजीवा अत्थि बंधे अत्थि मोक्खे अत्थि पुण्णे अत्थि पावे अत्थि आसवे अत्थि संवरे अत्थि वेयणा अत्थि निज्जरा, अत्थि अरहंता अत्थि चक्कवट्टी अत्थि बलदेवा अत्थि वासुदेवा, अत्थि नरगा अत्थि नेरइया अत्थि तिरिक्खजोणिया अत्थि तिरिक्खजोणिणीओ, अत्थि माया अत्थि पिया अत्थि रिसओ, अत्थि देवा अत्थि देवलोया, अत्थि सिद्धा अत्थि सिद्धी अत्थि परिनिव्वाणे अत्थि परिनिव्वुया, अत्थि पाणाइवाए मुसावाए अदत्तादाने मेहुणे परिग्गहे अत्थि कोहे माने माया लोभे अत्थि पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुन्ने परपरिवाए अरइरई मायामोसे मिच्छादंसणसल्ले, अत्थि पाणाइवायवेरमणे मुसावायवेरमणे अदत्तादानवेरमणे मेहुणवेरमणे परिग्गहवेरमणे अत्थि कोहविवेगे माणविवेगे मायाविवेगे लोभविवेगे पेज्जविवेगे दोसविवेगे कलहविवेगे अब्भक्खाणविवेगे पेसुन्नविवेगे परपरिवायविवेगे अरतिरतिविवेगे मायामोसविवेगे मिच्छादंसणसल्लविवेगे, सव्वं अत्थिभावं अत्थि त्ति वयइ, सव्वं नत्थिभावं नत्थि त्ति वयइ, सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति फुसइ पुण्णपावे पच्चायंति जीवा सफले कल्लाणपावए। धम्ममाइक्खइ–इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे केवलिए संसुद्धे पडिपुण्णे नेयाउए सल्लकत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे अवितहमविसंधि सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे। इत्थंठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। एगच्चा पुण एगे भयंतारो पुव्वकम्मावसेसेणं अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति–महड्ढिएसु महज्जुइएसु महब्बलेसु महायसेसु महासोक्खेसु महाणुभागेसु दूरंगइएसु चिरट्ठिइएसु। ते णं तत्थ देवा भवंति महिड्ढिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महानुभागा दूरंगइया चिरट्ठिइया हारविराइयवच्छा कडग तुडिय थंभियभुया अंगय कुंडल मट्ठगंड कण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला मउलि मउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवर-मल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा कप्पोवगा गतिकल्लाणा आगमेसिभद्दा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। तमाइक्खइ–एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवाने कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता नेरइएसु उववज्जंति, तं जहा–महारंभयाए महापरिग्गहयाए पंचिंदियवहेणं कुणिमाहारेणं। एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणियत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता तिरिक्ख-जोणिएसु उववज्जंति तं जहा–माइल्लयाए अलियवयणेण उक्कंचणयाए वंचणयाए। एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा मनुस्सत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता मनुस्सेसु उववज्जंति, तं जहा–पगइभद्दयाए पगइविणीययाए सानुक्कोसयाए अमच्छरिययाए। एवं खलु चउहिं ठाणेहिं जीवा देवत्ताए कम्मं पकरेंति, पकरेत्ता देवेसु उववज्जंति, तं जहा–सरागसंजमेणं संजमासंजमेणं अकामणिज्जराए बालतवोकम्मेणं। तमाइक्खइ–
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर ने भंभसारपुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों तथा महती परिषद्‌ को धर्मोपदेश किया। भगवान महावीर की धर्मदेशना सूनने को उपस्थित परिषद्‌ में, अतिशय ज्ञानी साधु, मुनि, यति, देवगण तथा सैकड़ों – सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। ओघबली, अतिबली, महाबली, अपरिमित बल, तेज, महत्ता तथा कांतियुक्त, शरत्‌ काल के नूतन मेघ के गर्जन, क्रौंच पक्षी के निर्घोष तथा नगारे की ध्वनि समान मधुर गंभीर स्वरयुक्त भगवान महावीर ने हृदय में विस्तृत होती हुई, कंठ में अवस्थित होती हुई तथा मूर्धा में परि – व्याप्त होती हुई सुविभक्त अक्षरों को लिए हुए, अस्पष्ट उच्चारणवर्जित या हकलाहट से रहित, सुव्यक्त अक्षर वर्णों की व्यवस्थित श्रृंखला लिए हुए, पूर्णता तथा स्वरमाधुरी युक्त, श्रोताओं की सभी भाषाओं में परिणत होने वाली, एक योजन तक पहुँचने वाले स्वर में, अर्द्धमागधी भाषा में धर्म का परिकथन किया। उपस्थित सभी आर्य – अनार्य जनों को अग्लान भाव से धर्म का व्याख्यान किया। भगवान द्वारा उद्गीर्ण अर्द्ध मागधी भाषा उन सभी आर्यों और अनार्यों की भाषाओं में परिणत हो गईं। भगवान ने जो धर्मदेशना दी, वह इस प्रकार है – लोक का अस्तित्व है, अलोक का अस्तित्व है। इसी प्रकार जीव, अजीव, बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, वेदना, निर्जरा, अर्हत्‌, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, नरक, नैरयिक, तिर्यंचयोनि, तिर्यचयोनिक जीव, माता, पिता, ऋषि, देव, देवलोक, सिद्धि, सिद्ध, परिनिर्वाण, परिनिर्वृत्त का अस्तित्व है। प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह हैं। क्रोध, मान, माया, लोभ यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्य है। प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, अदत्तादानविरमण, मैथुनविरमण, परिग्रहविरमण,क्रोध से, यावत्‌ मिथ्यादर्शनशल्यविवेक होना और त्यागना यह सब है – सभी अस्तिभाव हैं। सभी नास्तिभाव हैं। सुचीर्ण, रूपमें संपादित दान, शील, तप आदि कर्म उत्तम फल देनेवाले हैं तथा दुश्चीर्ण दुःखमय फल देनेवाले हैं। जीव पुण्य तथा पाप का स्पर्श करता है, बन्ध करता है। जीव उत्पन्न होते हैं – शुभ कर्म अशुभ कर्म फल युक्त हैं, निष्फल नहीं होते। प्रकारान्तर से भगवान धर्म का आख्यान करते हैं – यह निर्ग्रन्थप्रवचन, जिनशासन अथवा प्राणी की अन्त – र्वर्ती ग्रन्थियों को छुड़ाने वाला आत्मानुशासनमय उपदेश सत्य है, अनुत्तर है, केवल है, संशुद्ध है, प्रतिपूर्ण है, नैयायिक है – प्रमाण से अबाधित है तथा शल्य – कर्तन है, यह सिद्धि मार्ग है, मुक्ति हेतु है, निर्वाण पथ है, निर्याण – मार्ग है, अवितथ, अविसन्धि का मार्ग है। इसमें स्थित जीव सिद्धि प्राप्त करते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त हो जाते हैं, परिनिर्वृत्त होते हैं तथा सभी दुःखों का अन्त कर देते हैं। एकार्च्चा, ऐसे भदन्त हैं। वे देवलोक महर्द्धिक (अत्यन्त द्युति, बल तथा यशोमय), अत्यन्त सुखमय दूरंगतिक हैं। वहाँ देवरूप में उत्पन्न वे जीव अत्यन्त ऋद्धिसम्पन्न तथा चिरस्थितिक है। उनके वक्षःस्थल हारों से सुशोभित होते हैं। वे कल्पोपग देवलोक में देव – शय्या से युवा रूप में उत्पन्न होते हैं। वे वर्तमान में उत्तम देवगति के धारक तथा भविष्य में भद्र अवस्था को प्राप्त करने वाले हैं। असाधारण रूपवान्‌ होते हैं। भगवान ने आगे कहा – जीव चार स्थानों से – नैरयिक का आयुष्यबन्ध करते हैं, फलतः वे विभिन्न नरकों में उत्पन्न होते हैं। वे स्थान इस प्रकार हैं – १. महाआरम्भ, २. महापरिग्रह, ३. पंचेन्द्रिय – वध, ४. मांस – भक्षण। इन कारणों से जीव तिर्यंच – योनि में उत्पन्न होते हैं – १. मायापूर्ण निकृति, २. अलीक वचन, ३. उत्कंचनता, ४. वंचनता। इन कारणों से जीव मनुष्ययोनिमें उत्पन्न होते हैं – १. प्रकृति – भद्रता , २. प्रकृति – विनीतता, ३. सानुक्रोशता, ४. अमत्सरता। इन कारणों से जीव देवयोनि में उत्पन्न होते हैं – १. सरागसंयम, २. संयमासंयम, ३. अकाम – निर्जरा, ४. बाल – तप – तत्पश्चात्‌ भगवान ने बतलाया –
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam samane bhagavam mahavire kuniyassa ranno bhimbhasaraputtassa subhaddapamuhana ya devinam tise ya mahatimahaliyae isiparisae muniparisae jaiparisae devaparisae anegasayae anegasayavamdae anegasayavamdapariyalae ohavale aivale mahabbale aparimiya bala viriya teya mahappa kamtijutte saraya navanatthaniya mahuragambhira komchanigghosa dumdubhissare ure vitthadae kamthe vattiyae sire samainnae agaralae amammanae suvvattakkhara sannivaiyae punnarattae savvabhasanugaminie sarassaie joyananiharina sarenam addhamagahae bhasae bhasai– ariha dhammam parikahei. Tesim savvesim ariyamanariyanam agilae dhammam aikkhai. Savi ya nam addhamahaga bhasa tesim savvesim ariyamanariyanam appano sabhasae parinamenam parinamai, tam jaha– atthi loe atthi aloe, atthi jiva atthi ajiva atthi bamdhe atthi mokkhe atthi punne atthi pave atthi asave atthi samvare atthi veyana atthi nijjara, Atthi arahamta atthi chakkavatti atthi baladeva atthi vasudeva, atthi naraga atthi neraiya atthi tirikkhajoniya atthi tirikkhajoninio, atthi maya atthi piya atthi risao, atthi deva atthi devaloya, atthi siddha atthi siddhi atthi parinivvane atthi parinivvuya, Atthi panaivae musavae adattadane mehune pariggahe atthi kohe mane maya lobhe atthi pejje dose kalahe abbhakkhane pesunne paraparivae arairai mayamose michchhadamsanasalle, atthi panaivayaveramane musavayaveramane adattadanaveramane mehunaveramane pariggahaveramane atthi kohavivege manavivege mayavivege lobhavivege pejjavivege dosavivege kalahavivege abbhakkhanavivege pesunnavivege paraparivayavivege aratirativivege mayamosavivege michchhadamsanasallavivege, Savvam atthibhavam atthi tti vayai, savvam natthibhavam natthi tti vayai, suchinna kamma suchinnaphala bhavamti duchinna kamma duchinnaphala bhavamti phusai punnapave pachchayamti jiva saphale kallanapavae. Dhammamaikkhai–inameva niggamthe pavayane sachche anuttare kevalie samsuddhe padipunne neyaue sallakattane siddhimagge muttimagge nijjanamagge nivvanamagge avitahamavisamdhi savvadukkha-ppahinamagge. Itthamthiya jiva sijjhamti bujjhamti muchchamti parinivvayamti savvadukkhanamamtam karemti. Egachcha puna ege bhayamtaro puvvakammavasesenam annayaresu devaloesu devattae uvavattaro bhavati–mahaddhiesu mahajjuiesu mahabbalesu mahayasesu mahasokkhesu mahanubhagesu duramgaiesu chiratthiiesu. Te nam tattha deva bhavamti mahiddhiya mahajjuiya mahabbala mahayasa mahasokkha mahanubhaga duramgaiya chiratthiiya haraviraiyavachchha kadaga tudiya thambhiyabhuya amgaya kumdala matthagamda kannapidhadhari vichittahatthabharana vichittamala mauli mauda kallanagapavaravatthaparihiya kallanagapavara-mallanulevana bhasurabomdi palambavanamaladhara divvenam vannenam divvenam gamdhenam divvenam ruvenam divvenam phasenam divvenam samghaenam divvenam samthanenam divvae iddhie divvae juie divvae pabhae divvae chhayae divvae achchie divvenam teenam divvae lesae dasa disao ujjovemana pabhasemana kappovaga gatikallana agamesibhadda pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. Tamaikkhai–evam khalu chauhim thanehim jivane kammam pakaremti, pakaretta neraiesu uvavajjamti, tam jaha–maharambhayae mahapariggahayae pamchimdiyavahenam kunimaharenam. Evam khalu chauhim thanehim jiva tirikkhajoniyattae kammam pakaremti, pakaretta tirikkha-joniesu uvavajjamti tam jaha–maillayae aliyavayanena ukkamchanayae vamchanayae. Evam khalu chauhim thanehim jiva manussattae kammam pakaremti, pakaretta manussesu uvavajjamti, tam jaha–pagaibhaddayae pagaiviniyayae sanukkosayae amachchhariyayae. Evam khalu chauhim thanehim jiva devattae kammam pakaremti, pakaretta devesu uvavajjamti, tam jaha–saragasamjamenam samjamasamjamenam akamanijjarae balatavokammenam. Tamaikkhai–
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ne bhambhasaraputra raja kunika, subhadra adi raniyom tatha mahati parishad ko dharmopadesha kiya. Bhagavana mahavira ki dharmadeshana sunane ko upasthita parishad mem, atishaya jnyani sadhu, muni, yati, devagana tatha saikarom – saikarom shrotaom ke samuha upasthita the. Oghabali, atibali, mahabali, aparimita bala, teja, mahatta tatha kamtiyukta, sharat kala ke nutana megha ke garjana, kraumcha pakshi ke nirghosha tatha nagare ki dhvani samana madhura gambhira svarayukta bhagavana mahavira ne hridaya mem vistrita hoti hui, kamtha mem avasthita hoti hui tatha murdha mem pari – vyapta hoti hui suvibhakta aksharom ko lie hue, aspashta uchcharanavarjita ya hakalahata se rahita, suvyakta akshara varnom ki vyavasthita shrrimkhala lie hue, purnata tatha svaramadhuri yukta, shrotaom ki sabhi bhashaom mem parinata hone vali, eka yojana taka pahumchane vale svara mem, arddhamagadhi bhasha mem dharma ka parikathana kiya. Upasthita sabhi arya – anarya janom ko aglana bhava se dharma ka vyakhyana kiya. Bhagavana dvara udgirna arddha magadhi bhasha una sabhi aryom aura anaryom ki bhashaom mem parinata ho gaim. Bhagavana ne jo dharmadeshana di, vaha isa prakara hai – loka ka astitva hai, aloka ka astitva hai. Isi prakara jiva, ajiva, bandha, moksha, punya, papa, asrava, samvara, vedana, nirjara, arhat, chakravarti, baladeva, vasudeva, naraka, nairayika, tiryamchayoni, tiryachayonika jiva, mata, pita, rishi, deva, devaloka, siddhi, siddha, parinirvana, parinirvritta ka astitva hai. Pranatipata, mrishavada, adattadana, maithuna, parigraha haim. Krodha, mana, maya, lobha yavat mithyadarshanashalya hai. Pranatipataviramana, mrishavadaviramana, adattadanaviramana, maithunaviramana, parigrahaviramana,krodha se, yavat mithyadarshanashalyaviveka hona aura tyagana yaha saba hai – sabhi astibhava haim. Sabhi nastibhava haim. Suchirna, rupamem sampadita dana, shila, tapa adi karma uttama phala denevale haim tatha dushchirna duhkhamaya phala denevale haim. Jiva punya tatha papa ka sparsha karata hai, bandha karata hai. Jiva utpanna hote haim – shubha karma ashubha karma phala yukta haim, nishphala nahim hote. Prakarantara se bhagavana dharma ka akhyana karate haim – Yaha nirgranthapravachana, jinashasana athava prani ki anta – rvarti granthiyom ko chhurane vala atmanushasanamaya upadesha satya hai, anuttara hai, kevala hai, samshuddha hai, pratipurna hai, naiyayika hai – pramana se abadhita hai tatha shalya – kartana hai, yaha siddhi marga hai, mukti hetu hai, nirvana patha hai, niryana – marga hai, avitatha, avisandhi ka marga hai. Isamem sthita jiva siddhi prapta karate haim, buddha hote haim, mukta ho jate haim, parinirvritta hote haim tatha sabhi duhkhom ka anta kara dete haim. Ekarchcha, aise bhadanta haim. Ve devaloka maharddhika (atyanta dyuti, bala tatha yashomaya), atyanta sukhamaya duramgatika haim. Vaham devarupa mem utpanna ve jiva atyanta riddhisampanna tatha chirasthitika hai. Unake vakshahsthala harom se sushobhita hote haim. Ve kalpopaga devaloka mem deva – shayya se yuva rupa mem utpanna hote haim. Ve vartamana mem uttama devagati ke dharaka tatha bhavishya mem bhadra avastha ko prapta karane vale haim. Asadharana rupavan hote haim. Bhagavana ne age kaha – jiva chara sthanom se – nairayika ka ayushyabandha karate haim, phalatah ve vibhinna narakom mem utpanna hote haim. Ve sthana isa prakara haim – 1. Mahaarambha, 2. Mahaparigraha, 3. Pamchendriya – vadha, 4. Mamsa – bhakshana. Ina karanom se jiva tiryamcha – yoni mem utpanna hote haim – 1. Mayapurna nikriti, 2. Alika vachana, 3. Utkamchanata, 4. Vamchanata. Ina karanom se jiva manushyayonimem utpanna hote haim – 1. Prakriti – bhadrata, 2. Prakriti – vinitata, 3. Sanukroshata, 4. Amatsarata. Ina karanom se jiva devayoni mem utpanna hote haim – 1. Saragasamyama, 2. Samyamasamyama, 3. Akama – nirjara, 4. Bala – tapa – tatpashchat bhagavana ne batalaya –