Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005631 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Translated Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 31 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अब्भिंगण परिमद्दणुव्वलण करण गणनिम्माएहिं अट्ठिसुहाए मंस-सुहाए तयासुहाए रोमसुहाए– चउव्विहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे अवगय खेय परिस्समे अट्टणसालाओ पडिनिक्खमइ, ... ...पडिनिक्खमित्ता जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता समत्तजालाउलाभिरामे विचित्त मणिरयण कुट्टिमतले रमणिज्जे ण्हाण-मंडवंसि नानामणि रयण भत्तिचित्तंसि ण्हाणपीढंसि सुहणिसण्णे सुहोदएहिं गंधोदएहिं पुप्फोदएहिं सुद्धोदएहिं पुणो पुणो कल्लाणग पवर मज्जणविहीए मज्जिए तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमज्जणावसाणे पम्हल सुकुमाल गंध कासाइ लूहियंगे सरस सुरहि गोसीस चंदणानुलित्तगत्ते अहय सुमहग्घ-दूसरयण सुसंवुए सुइमाला वण्णग विलेवणे य आविद्धमणिसुवण्णे कप्पियहारद्धहार तिसरय पालंब पलंबमाण कडिसुत्त सुकयसोभे पिणद्ध गेवेज्जग अंगुलिज्जग ललियंगय ललियकयाभरणे वरकडग तुडिय थंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए मुद्दियपिंगलंगुलीए कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारोत्थय सुकय रइयवच्छे पालंब पलंबमाण पड सुकय-उत्तरिज्जे नानामणिकनग रयण विमल महरिह निउणोविय मिसिमिसंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ लट्ठ आविद्ध वीरवलए, किं बहुणा? कप्परुक्खए चेव अलंकियबिभूसिए नरवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवालवीइयंगे मंगल जयसद्द कयालोए मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अनेगगणनायग दंडनायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह दूय संधिवाल-सद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेहणिग्गए इव गहगण दिप्पंत रिक्ख तारागणाण मज्झे ससिव्व पिअदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अंजनगिरिकूडसन्निभं गयवइं नरवई दुरूढे। तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठट्ठ मंगलया पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया, तं जहा– सोवत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्धमाणग भद्दासण कलस मच्छ दप्पणया। तयानंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा दंसण रइय आलोय दरिस-णिज्जा वाउद्धुय विजयवेजयंती य ऊसिया गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तयानंतरं च णं वेरुलिय भिसंत विमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसियं विमलं आयवत्तं पवरं सीहासनं वरमणिरयणपादपीढं सपाउयाजोयसमाउत्तं बहुकिंकर कम्मकर पुरिस पायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठियं। तयानंतरं च णं बहवे लट्ठिग्गाहा कुंतग्गाहा चामरग्गाहा पासग्गाहा चावग्गाहा पोत्थयग्गाहा फलग्गाहा पीढग्गाहा वीण-ग्गाहा कूवग्गाहा हडप्पग्गाहा पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। तयानंतरं च णं बहवे दंडिणो मुंडिणो सिहंडिणो जडिणो पिंछिणो हासकरा डमरकरा दवकारा चाडुकरा कंदप्पिया कोक्कुइया किड्डकरा य वायंता य गायंता य णच्चंता य हसंता य भासंता य सासंता य सावेंता य रक्खंता य आलोयं च करेमाणा जयजय-सद्दं पउंजमाणा पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठिया। असिलट्ठिकुंतचावे चामरपासे य फलगपोत्थे य । वीणा कूयग्गहे तत्तो हडप्पग्गाहे ॥ दंडी मुंडिसिहंडी पिंछी जडिणो य हासिकिड्डा य । दवकार चडुकारा कंदप्पिय-कुक्कुइ गायए ॥ गायंता वायंता नच्चंता तए हसंतहासेत्ता । सावेंत्ता रावेंता आलोयजयं पउंजंता ॥ तयानंतरं च णं जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं थासग अहिलाण चामर गंड परिमंडियकडीणं किंकरवतरुणपरिग्गहियाणं अट्ठसयं वरतुरगाणं पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठियं। तयानंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्ताणं ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंगविसाल धवलदंताणं कंचनकोसी पविट्ठदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाणं वरपुरिसारोहगसंपउत्ताणं अट्ठसयं गयाणं पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठियं। तयानंतरं च णं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सघंटाणं सपडागाणं सतोरणवराणं सनंदि घोसाणं सखिंखिणीजाल परिक्खित्ताणं हेमवय चित्त तिणिस कनग णिज्जुत्त दारुयाणं कालायससुकयणेमि जंतकम्माणं सुसिलिट्ठवत्तमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसुसंपउत्ताणं कुसलनरच्छेयसारहिसुसंपग्ग-हियाणं बत्तीसतोणपरिमंडीयाणं सक्कंडवडेंसगाणं सचावसरपहरणावरणभरिय जुद्धसज्जाणं अट्ठसयं रहाणं पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठियं। तयानंतरं च णं असि सत्ति कुंत तोमर सूल लउल भिंडिमाल धणुपाणिसज्जं पायत्ताणीयं पुरओ अहानुपुव्वीए संपट्ठियं। तए णं से कूणिए राया हारोत्थय सुकय रइयवच्छे कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए णरसीहे नरवई णरिंदे नरवसहे मणुयरायवसभकप्पे अब्भहियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे हत्थिक्खंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं उद्धुव्वमाणीहिं वेसमणे विव नरवई अमरवइसन्निभाए इड्ढीए पहियकित्ती हय गय रह पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए समणुगम्ममाणमग्गे जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स पुरओ महं आसा आसधरा, उभओ पासिं नागा नागधरा, पिट्ठओ रहसंगेल्लि। तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते अब्भुग्गयभिंगारे पग्गहियतालियंटे ऊसवियसेयच्छत्ते पवीइयवालवीयणीए सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबलेणं सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सव्वविभूईए सव्वविभूसाए सव्वसंभमेणं सव्वपुप्फगंधमल्लालंकारेणं सव्व तुडिय सद्दसन्निणाएणं महया इड्ढीए महया जुईए महया बलेणं महया समुदएणं महया वरतुडिय जमगसमग प्पवाइएणं संख पणव पडह भेरि झल्लरि खरमुहि हुडुक्क मुरय मुइंग दुंदुहि णिग्घोसणाइयरवेणं चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ। | ||
Sutra Meaning : | भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त किया, फिर प्रीणनीय रस, रक्त आदि धातुओं में समता – निष्पादक, दर्पणीय, मदनीय, बृंहणीय, आह्लाद – जनक, शतपाक, सहस्रपाक सुगंधित तैलों, अभ्यंगों आदि द्वारा शरीर को मसलवाया। फिर तैलचर्म पर, तैल मालिश किये हुए पुरुष को जिस पर बिठाकर संवाहन किया जाता है, देहचंपी की जाती है, स्थित होकर ऐसे पुरुषों द्वारा, जिनके हाथों और पैरों के तलुए अत्यन्त सुकुमार तथा कोमल थे, जो छेक, कलाविद, दक्ष, प्राप्तार्थ, कुशल, मेधावी, संवाहन – कला में निपुण, अभ्यंगन, उबटन आदि के मर्दन, परिमर्दन, उद्धलन, हड्डियों के लिए सुखप्रद, माँस के लिए सुखप्रद, चमड़ी के लिए सुखप्रद तथा रोओं के लिए सुखप्रद – यों चार प्रकार से मालिश व देहचंपी करवाई, शरीर को दबवाया। इस प्रकार थकावट, व्यायामजनित परिश्रान्ति दूर कर राजा व्यायामशाला से बाहर नीकला। जहाँ स्नान – घर था, वहाँ आया। स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। वह मोतियों से बनी जालियों द्वारा सुन्दर लगता था। उसका प्रांगण तरह – तरह की मणि, रत्नों से खचित था। उसमें रमणीय स्नान – मंडप था। उसकी भीतों पर अनेक प्रकार की मणियों तथा रत्नों को चित्रात्मक रूप में जड़ा गया था। ऐसे स्नानघर में प्रविष्ट होकर राजा वहाँ स्नान हेतु अव – स्थापित चौकी पर सुखपूर्वक बैठा। शुद्ध, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों के रस से मिश्रित, पुष्परस – मिश्रित सुखप्रद – न ज्यादा उष्ण, न ज्यादा शीतल जल से आनन्दप्रद, अतीव उत्तम स्नान – विधि द्वारा पुनः पुनः – अच्छी तरह स्नान किया। स्नान के अनन्तर राजा ने दृष्टिदोष, नजर आदि के निवारण हेतु रक्षाबन्धन आदि के रूप में अनेक, सैकड़ों विधि – विधान संपादित किए। तत्पश्चात् रोएंदार, सुकोमल, काषायित वस्त्र से शरीर को पोंछा। सरस, सुगन्धित गोरोचन तथा चन्दन का देह पर लेप किया। अदूषित, चूहों आदि द्वारा नहीं कतरे हुए, निर्मल, दूष्यरत्न भली भाँति पहने। पवित्र माला धारण की। केसर आदि का विलेपन किया। मणियों से जड़े सोने के आभूषण पहने। हार, अर्धहार तथा तीन लड़ों के हार और लम्बे, लटकते कटिसूत्र से अपने को सुशोभित किया। गले के आभरण धारण किए। अंगुलियों में अंगुठियाँ पहनीं। इस प्रकार अपने सुन्दर अंगों को सुन्दर आभूषणों से विभूषित किया। उत्तम कंकणों तथा त्रुटितों – भुजबंधों द्वारा भुजाओं को स्तम्भित किया। यों राजा की शोभा अधक बढ़ गई। मुद्रिकाओं के कारण राजा की अंगुठियाँ पीली लग रही थी। कुंडलों से मुख उद्योतित था। मुकूट से मस्तक दीप्त था। हारों से ढका हुआ उसका वक्षःस्थल सुन्दर प्रतीत हो रहा था। राजा ने एक लम्बे, लटकते हुए वस्त्र को उत्तरीय के रूप में धारण किया। सुयोग्य शिल्पियों द्वारा मणि, स्वर्ण, रत्न – इनके योग से सुरचित विमल, महार्ह, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, प्रशस्त, वीरवलय धारण किया। अधिक क्या कहें, इस प्रकार अलंकृत, विभूषित, विशिष्ट सज्जायुक्त राजा ऐसा लगता था, मानों कल्पवृक्ष हो। अपने ऊपर लगाये गये कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र, दोनों ओर डुलाये जाते चार चंवर, देखते ही लोगों द्वारा किये गये मंगलमय जय शब्द के साथ राजा स्नान – गृह से बाहर नीकला। अनेक गणनायक, दण्डनायक, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत, सन्धिपाल, इन सबसे घिरा हुआ वह राजा धवल महामेघ विशाल बादल से नीकले नक्षत्रों, आकाश को देदीप्यमान करते तारों के मध्यवर्ती चन्द्र के सदृश देखने में बड़ा प्रिय लगता था। वह, जहाँ बाहरी सभा – भवन था, प्रधान हाथी था, वहाँ आया। वहाँ आकर अंजनगिरि के शिखर के समान विशाल, उच्च गजपति पर वह नरपति आरूढ़ हुआ। तब भंभसार के पुत्र राजा कूणिक के प्रधान हाथी पर सवार हो जाने पर सबसे पहले स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, वर्द्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य तथा दर्पण – ये आठ मंगल क्रमशः चले। उसके बाद जल से परिपूर्ण कलश, झारियाँ, दिव्य छत्र, पताका, चंवर तथा दर्शन – रचित – राजा के दृष्टिपथ में अवस्थित, दर्शनीय, हवा से फहराती, उच्छित, मानो आकाश को छूती हुई सी विजय – वैजयन्ती – विजय – ध्वजा लिये राजपुरुष चले। तदनन्तर वैडूर्य से देदीप्यमान उज्ज्वल दंडयुक्त, लटकती हुई कोरंट पुरुषों की मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमंडल के सदृश आभामय, समुर्च्छित, आतपत्र, छत्र, अति उत्तम सिंहासन, श्रेष्ठ मणि – रत्नों से विभूषित, जिस पर राजा की पादुकाओं की जोड़ी रखी थी, वह पादपीठ, चौकी, जो किङ्करों, विभिन्न कार्यों में नियुक्त भृत्यों तथा पदातियों से घिरे हुए थे, क्रमशः आगे रवाना हुए। बहुत से लष्टिग्राह, कुन्तग्राह, चाचग्राह, चमरग्राह, पाशग्राह, पुस्तकग्राह, फलकग्राह, पीठग्राह, वीणाग्राह, कूप्यग्राह, हडप्पयग्राह, यथाक्रम आगे रवाना हुए। उसके बाद बहुत से दण्डी, मुण्डी, शिखण्डी, जटी, पिच्छी, हासकर, विदूषक, डमरकर, चाटुकर, वादकर, कन्दर्पकर, दवकर, कौत्कुचिक, क्रीड़ाकर, इनमें से कतिपय बजाते हुए, गाते हुए, हँसते हुए, नाचते हुए, बोलते हुए, सूनाते हुए, रक्षा करते हुए, अवलोकन करते हुए, तथा जय शब्द का प्रयोग करते हुए – यथाक्रम आगे बढ़े। तदनन्तर जात्य, एक सौ आठ घोड़े यथाक्रम रवाना किये गये। वे वेग, शक्ति और स्फूर्तिमय वय में स्थित थे। हरिमेला नामक वृक्ष की कली तथा मल्लिका जैसी उनकी आँखें थीं। तोते की चोंच की तरह वक्र पैर उठाकर वे शान से चल रहे थे। वे चपल, चंचल चाल लिये हुए थे। गड्ढे आदि लांघना, ऊंचा कूदना, तेजी से सीधा दौड़ना, चतुराई से दौड़ना, भूमि पर तीन पैर टिकाना, जयिनी संज्ञक सर्वातिशयिनी तेज गति से दौड़ना, चलना इत्यादि विशिष्ट गतिक्रम वे सीखे हुए थे। उनके गले में पहने हुए, श्रेष्ठ आभूषण लटक रहे थे। मुख के आभूषण अवचूलक, दर्पण की आकृतियुक्त विशेष अलंकार, अभिलान बड़े सुन्दर दिखाई देते थे। उनके कटिभाग चामर – दंड़ से सुशोभित थे। सुन्दर, तरुण सेवक उन्हें थामे हुए थे। तत्पश्चात् यथाक्रम एक सौ आठ हाथी रवाना किये गये। वे कुछ कुछ मत्त – एवं उन्नत थे। उनके दाँत कुछ कुछ बाहर नीकले हुए थे। दाँतों के पीछले भाग कुछ विशाल थे, धवल थे। उन पर सोने के खोल चढ़े थे। वे हाथी स्वर्ण, मणि तथा रत्नों से शोभित थे। उत्तम, सुयोग्य महावत उन्हें चला रहे थे। उसके बाद एक सौ आठ रथ यथाक्रम रवाना किये गये। वे छत्र, ध्वज, पताका, घण्टे, सुन्दर तोरण, नन्दिघोष से युक्त थे। छोटी छोटी घंटियों से युक्त जाल उन पर फैलाये हुए थे। हिमालय पर्वत पर उत्पन्न तिनिश का काठ, जो स्वर्ण – खचित था, उन रथों में लगा था। रथों के पहियों के घेरों पर लोहे के पट्टे चढ़ाये हुए थे। पहियों की धुराएं गोल थी, सुन्दर, सुदृढ़ बनी थीं। उनमें छंटे हुए, उत्तम श्रेणी के घोड़े जुते थे। सुयोग्य, सुशिक्षित सारथियों ने उनकी बागडोर सम्हाल रखी थी। वे बत्तीस तरकशों से सुशोभित थे। कवच, शिरस्राण, धनुष, बाण तथा अन्यान्य शस्त्र रखे थे। इस प्रकार वे युद्ध – सामग्री से सुसज्जित थे। तदनन्तर हाथों में तलवारें, शक्तियाँ, कुन्त, तोमर, शूल, लट्ठियाँ, भिन्दिमाल तथा धनुष धारण किये हुए सैनिक क्रमशः रवाना हुए। तब नरसिंह, नरपति, परिपालक, नरेन्द्र, परम ऐश्वर्यशाली अधिपति, नरवृषभ, मनुजराजवृषभ, उत्तर भारत के आधे भाग को साधने में संप्रवृत्त, भंभसारपुत्र राजा कूणिक ने जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ जाने का विचार किया, प्रस्थान किया। अश्व, हस्ती, रथ एवं पैदल – इस प्रकार चतुरंगिणी सेना उसके पीछे – पीछे चल रही थी। राजा का वक्षःस्थल हारों से व्याप्त, सुशोभित तथा प्रीतिकार था। उसका मुख कुण्डलों से उद्योतित था। मस्तक मुकूट से देदीप्यमान था। राजोचित तेजस्वितारूप लक्ष्मी से वह अत्यन्त दीप्तिमय था। वह उत्तम हाथी पर आरूढ़ हुआ। कोरंट के पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र उस पर तना था। श्रेष्ठ, श्वेत चंवर डुलाये जा रहे थे। वैश्रमण, नरपति, अमरपति के तुल्य उसकी समृद्धि सुप्रशस्त थी, जिससे उसकी कीर्ति विश्रुत थी। भंभसार के पुत्र राजा कूणिक के आगे बड़े बड़े घोड़े और घुड़सवार थे। दोनों ओर हाथी तथा हाथियों पर सवार पुरुष थे। पीछे रथ – समुदाय था। तदनन्तर भंभसार का पुत्र राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीचोंबीच होता हुआ आगे बढ़ा। उसके आगे आगे जल से भरी झारियाँ लिये पुरुष चल रहे थे। सेवक दोनों ओर पंखे झल रहे थे। ऊपर सफेद छत्र तना था। चंवर ढोले जा रहे थे। वह सब प्रकार की समृद्धि, सब प्रकार की द्युति, सब प्रकार के सैन्य, सभी परिजन, समादरपूर्ण प्रयत्न, सर्व विभूति, सर्वविभूषा, सर्वसम्भ्रम, सर्व – पुष्प गन्धमाल्यालंकार, सर्व तूर्य शब्द सन्निपात, महाऋद्धि, महाद्युति, महाबल, अपने विशिष्ट पारिवारिक जन – समुदाय से सुशोभित था तथा शंख, पणव, पटह, छोटे ढोल, भेरी, झालर, खरमुही, हुडुक्क, मुरज, मृदंग तथा दुन्दुभि एक साथ विशेष रूप से बजाए जा रहे थे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se kunie raya bhimbhasaraputte balavauyassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamanahiyae jeneva attanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta attanasalam anupavisai, anupavisitta anegavayama jogga vaggana vamaddana mallajuddha-karanehim samte parissamte sayapaga sahassapagehim sugamdhatellamaihim pinanijjehim dappanijjehim mayanijjehim vihanijjehim savvimdiyagayapalhayanijjehim abbhimgehim abbhimgie samane tella-chammamsi padipunna pani paya suumala komalatalehim purisehim chheehim dakkhehim pattatthehim kusalehim mehavihim niunasippovagaehim abbhimgana parimaddanuvvalana karana gananimmaehim atthisuhae mamsa-suhae tayasuhae romasuhae– chauvvihae sambahanae sambahie samane avagaya kheya parissame attanasalao padinikkhamai,.. ..Padinikkhamitta jeneva majjanaghare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta majjanagharam anupavisai, anupavisitta samattajalaulabhirame vichitta manirayana kuttimatale ramanijje nhana-mamdavamsi nanamani rayana bhattichittamsi nhanapidhamsi suhanisanne suhodaehim gamdhodaehim pupphodaehim suddhodaehim puno puno kallanaga pavara majjanavihie majjie tattha kouyasaehim bahuvihehim kallanagapavaramajjanavasane pamhala sukumala gamdha kasai luhiyamge sarasa surahi gosisa chamdananulittagatte ahaya sumahaggha-dusarayana susamvue suimala vannaga vilevane ya aviddhamanisuvanne kappiyaharaddhahara tisaraya palamba palambamana kadisutta sukayasobhe pinaddha gevejjaga amgulijjaga laliyamgaya laliyakayabharane varakadaga tudiya thambhiyabhue ahiyaruvasassirie muddiyapimgalamgulie kumdalaujjoviyanane maudadittasirae harotthaya sukaya raiyavachchhe palamba palambamana pada sukaya-uttarijje nanamanikanaga rayana vimala mahariha niunoviya misimisamta viraiya susilittha visittha lattha aviddha viravalae, kim bahuna? Kapparukkhae cheva alamkiyabibhusie naravai sakoramtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam chauchamaravalaviiyamge mamgala jayasadda kayaloe majjanagharao padinikkhamai, padinikkhamitta anegagananayaga damdanayaga raisara talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavaha duya samdhivala-saddhim samparivude dhavalamahamehaniggae iva gahagana dippamta rikkha taraganana majjhe sasivva piadamsane naravai jeneva bahiriya uvatthanasala jeneva abhisekke hatthirayane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta amjanagirikudasannibham gayavaim naravai durudhe. Tae nam tassa kuniyassa ranno bhimbhasaraputtassa abhisekkam hatthirayanam durudhassa samanassa tappadhamayae ime atthattha mamgalaya purao ahanupuvvie sampatthiya, tam jaha– sovatthiya sirivachchha namdiyavatta vaddhamanaga bhaddasana kalasa machchha dappanaya. Tayanamtaram cha nam punnakalasabhimgaram divva ya chhattapadaga sachamara damsana raiya aloya darisa-nijja vauddhuya vijayavejayamti ya usiya gaganatalamanulihamti purao ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam veruliya bhisamta vimaladamdam palambakoramtamalladamovasobhiyam chamdamamdalanibham samusiyam vimalam ayavattam pavaram sihasanam varamanirayanapadapidham sapauyajoyasamauttam bahukimkara kammakara purisa payattaparikkhittam purao ahanupuvvie sampatthiyam. Tayanamtaram cha nam bahave latthiggaha kumtaggaha chamaraggaha pasaggaha chavaggaha potthayaggaha phalaggaha pidhaggaha vina-ggaha kuvaggaha hadappaggaha purao ahanupuvvie sampatthiya. Tayanamtaram cha nam bahave damdino mumdino sihamdino jadino pimchhino hasakara damarakara davakara chadukara kamdappiya kokkuiya kiddakara ya vayamta ya gayamta ya nachchamta ya hasamta ya bhasamta ya sasamta ya savemta ya rakkhamta ya aloyam cha karemana jayajaya-saddam paumjamana purao ahanupuvvie sampatthiya. Asilatthikumtachave chamarapase ya phalagapotthe ya. Vina kuyaggahe tatto hadappaggahe. Damdi mumdisihamdi pimchhi jadino ya hasikidda ya. Davakara chadukara kamdappiya-kukkui gayae. Gayamta vayamta nachchamta tae hasamtahasetta. Savemtta ravemta aloyajayam paumjamta. Tayanamtaram cha nam jachchanam taramallihayananam thasaga ahilana chamara gamda parimamdiyakadinam kimkaravatarunapariggahiyanam atthasayam varaturaganam purao ahanupuvvie sampatthiyam. Tayanamtaram cha nam isidamtanam isimattanam isitumganam isiuchchhamgavisala dhavaladamtanam kamchanakosi pavitthadamtanam kamchanamanirayanabhusiyanam varapurisarohagasampauttanam atthasayam gayanam purao ahanupuvvie sampatthiyam. Tayanamtaram cha nam sachchhattanam sajjhayanam saghamtanam sapadaganam satoranavaranam sanamdi ghosanam sakhimkhinijala parikkhittanam hemavaya chitta tinisa kanaga nijjutta daruyanam kalayasasukayanemi jamtakammanam susilitthavattamamdaladhuranam ainnavaraturagasusampauttanam kusalanarachchheyasarahisusampagga-hiyanam battisatonaparimamdiyanam sakkamdavademsaganam sachavasarapaharanavaranabhariya juddhasajjanam atthasayam rahanam purao ahanupuvvie sampatthiyam. Tayanamtaram cha nam asi satti kumta tomara sula laula bhimdimala dhanupanisajjam payattaniyam purao ahanupuvvie sampatthiyam. Tae nam se kunie raya harotthaya sukaya raiyavachchhe kumdalaujjoviyanane maudadittasirae narasihe naravai narimde naravasahe manuyarayavasabhakappe abbhahiyam rayateyalachchhie dippamane hatthikkhamdhavaragae sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim uddhuvvamanihim uddhuvvamanihim vesamane viva naravai amaravaisannibhae iddhie pahiyakitti haya gaya raha pavara-johakaliyae chauramginie senae samanugammamanamagge jeneva punnabhadde cheie teneva paharettha gamanae. Tae nam tassa kuniyassa ranno bhimbhasaraputtassa purao maham asa asadhara, ubhao pasim naga nagadhara, pitthao rahasamgelli. Tae nam se kunie raya bhimbhasaraputte abbhuggayabhimgare paggahiyataliyamte usaviyaseyachchhatte paviiyavalaviyanie savviddhie savvajutie savvabalenam savvasamudaenam savvadarenam savvavibhuie savvavibhusae savvasambhamenam savvapupphagamdhamallalamkarenam savva tudiya saddasanninaenam mahaya iddhie mahaya juie mahaya balenam mahaya samudaenam mahaya varatudiya jamagasamaga ppavaienam samkha panava padaha bheri jhallari kharamuhi hudukka muraya muimga dumduhi nigghosanaiyaravenam champae nayarie majjhammajjhenam niggachchhai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhambhasara ke putra raja kunika ne senanayaka se yaha suna. Vaha prasanna evam paritushta hua. Jaham vyayama – shala thi, vaham aya. Vyayamashala mem pravesha kiya. Aneka prakara se vyayama kiya. Amgom ko khimchana, uchhalana – kudana, amgom ko morana, kushti larana, vyayama ke upakarana adi ghumana – ityadi dvara apane ko shranta, pari – shranta kiya, phira prinaniya rasa, rakta adi dhatuom mem samata – nishpadaka, darpaniya, madaniya, brimhaniya, ahlada – janaka, shatapaka, sahasrapaka sugamdhita tailom, abhyamgom adi dvara sharira ko masalavaya. Phira tailacharma para, taila malisha kiye hue purusha ko jisa para bithakara samvahana kiya jata hai, dehachampi ki jati hai, sthita hokara aise purushom dvara, jinake hathom aura pairom ke talue atyanta sukumara tatha komala the, jo chheka, kalavida, daksha, praptartha, kushala, medhavi, samvahana – kala mem nipuna, abhyamgana, ubatana adi ke mardana, parimardana, uddhalana, haddiyom ke lie sukhaprada, mamsa ke lie sukhaprada, chamari ke lie sukhaprada tatha room ke lie sukhaprada – yom chara prakara se malisha va dehachampi karavai, sharira ko dabavaya. Isa prakara thakavata, vyayamajanita parishranti dura kara raja vyayamashala se bahara nikala. Jaham snana – ghara tha, vaham aya. Snanaghara mem pravishta hua. Vaha motiyom se bani jaliyom dvara sundara lagata tha. Usaka pramgana taraha – taraha ki mani, ratnom se khachita tha. Usamem ramaniya snana – mamdapa tha. Usaki bhitom para aneka prakara ki maniyom tatha ratnom ko chitratmaka rupa mem jara gaya tha. Aise snanaghara mem pravishta hokara raja vaham snana hetu ava – sthapita chauki para sukhapurvaka baitha. Shuddha, chandana adi sugandhita padarthom ke rasa se mishrita, pushparasa – mishrita sukhaprada – na jyada ushna, na jyada shitala jala se anandaprada, ativa uttama snana – vidhi dvara punah punah – achchhi taraha snana kiya. Snana ke anantara raja ne drishtidosha, najara adi ke nivarana hetu rakshabandhana adi ke rupa mem aneka, saikarom vidhi – vidhana sampadita kie. Tatpashchat roemdara, sukomala, kashayita vastra se sharira ko pomchha. Sarasa, sugandhita gorochana tatha chandana ka deha para lepa kiya. Adushita, chuhom adi dvara nahim katare hue, nirmala, dushyaratna bhali bhamti pahane. Pavitra mala dharana ki. Kesara adi ka vilepana kiya. Maniyom se jare sone ke abhushana pahane. Hara, ardhahara tatha tina larom ke hara aura lambe, latakate katisutra se apane ko sushobhita kiya. Gale ke abharana dharana kie. Amguliyom mem amguthiyam pahanim. Isa prakara apane sundara amgom ko sundara abhushanom se vibhushita kiya. Uttama kamkanom tatha trutitom – bhujabamdhom dvara bhujaom ko stambhita kiya. Yom raja ki shobha adhaka barha gai. Mudrikaom ke karana raja ki amguthiyam pili laga rahi thi. Kumdalom se mukha udyotita tha. Mukuta se mastaka dipta tha. Harom se dhaka hua usaka vakshahsthala sundara pratita ho raha tha. Raja ne eka lambe, latakate hue vastra ko uttariya ke rupa mem dharana kiya. Suyogya shilpiyom dvara mani, svarna, ratna – inake yoga se surachita vimala, maharha, sushlishta, vishishta, prashasta, viravalaya dharana kiya. Adhika kya kahem, isa prakara alamkrita, vibhushita, vishishta sajjayukta raja aisa lagata tha, manom kalpavriksha ho. Apane upara lagaye gaye koramta pushpom ki malaom se yukta chhatra, donom ora dulaye jate chara chamvara, dekhate hi logom dvara kiye gaye mamgalamaya jaya shabda ke satha raja snana – griha se bahara nikala. Aneka gananayaka, dandanayaka, raja, ishvara, talavara, madambika, kautumbika, ibhya, shreshthi, senapati, sarthavaha, duta, sandhipala, ina sabase ghira hua vaha raja dhavala mahamegha vishala badala se nikale nakshatrom, akasha ko dedipyamana karate tarom ke madhyavarti chandra ke sadrisha dekhane mem bara priya lagata tha. Vaha, jaham bahari sabha – bhavana tha, pradhana hathi tha, vaham aya. Vaham akara amjanagiri ke shikhara ke samana vishala, uchcha gajapati para vaha narapati arurha hua. Taba bhambhasara ke putra raja kunika ke pradhana hathi para savara ho jane para sabase pahale svastika, shrivatsa, nandyavarta, varddhamanaka, bhadrasana, kalasha, matsya tatha darpana – ye atha mamgala kramashah chale. Usake bada jala se paripurna kalasha, jhariyam, divya chhatra, pataka, chamvara tatha darshana – rachita – raja ke drishtipatha mem avasthita, darshaniya, hava se phaharati, uchchhita, mano akasha ko chhuti hui si vijaya – vaijayanti – vijaya – dhvaja liye rajapurusha chale. Tadanantara vaidurya se dedipyamana ujjvala damdayukta, latakati hui koramta purushom ki malaom se sushobhita, chandramamdala ke sadrisha abhamaya, samurchchhita, atapatra, chhatra, ati uttama simhasana, shreshtha mani – ratnom se vibhushita, jisa para raja ki padukaom ki jori rakhi thi, vaha padapitha, chauki, jo kinkarom, vibhinna karyom mem niyukta bhrityom tatha padatiyom se ghire hue the, kramashah age ravana hue. Bahuta se lashtigraha, kuntagraha, chachagraha, chamaragraha, pashagraha, pustakagraha, phalakagraha, pithagraha, vinagraha, kupyagraha, hadappayagraha, yathakrama age ravana hue. Usake bada bahuta se dandi, mundi, shikhandi, jati, pichchhi, hasakara, vidushaka, damarakara, chatukara, vadakara, kandarpakara, davakara, kautkuchika, krirakara, inamem se katipaya bajate hue, gate hue, hamsate hue, nachate hue, bolate hue, sunate hue, raksha karate hue, avalokana karate hue, tatha jaya shabda ka prayoga karate hue – yathakrama age barhe. Tadanantara jatya, eka sau atha ghore yathakrama ravana kiye gaye. Ve vega, shakti aura sphurtimaya vaya mem sthita the. Harimela namaka vriksha ki kali tatha mallika jaisi unaki amkhem thim. Tote ki chomcha ki taraha vakra paira uthakara ve shana se chala rahe the. Ve chapala, chamchala chala liye hue the. Gaddhe adi lamghana, umcha kudana, teji se sidha daurana, chaturai se daurana, bhumi para tina paira tikana, jayini samjnyaka sarvatishayini teja gati se daurana, chalana ityadi vishishta gatikrama ve sikhe hue the. Unake gale mem pahane hue, shreshtha abhushana lataka rahe the. Mukha ke abhushana avachulaka, darpana ki akritiyukta vishesha alamkara, abhilana bare sundara dikhai dete the. Unake katibhaga chamara – damra se sushobhita the. Sundara, taruna sevaka unhem thame hue the. Tatpashchat yathakrama eka sau atha hathi ravana kiye gaye. Ve kuchha kuchha matta – evam unnata the. Unake damta kuchha kuchha bahara nikale hue the. Damtom ke pichhale bhaga kuchha vishala the, dhavala the. Una para sone ke khola charhe the. Ve hathi svarna, mani tatha ratnom se shobhita the. Uttama, suyogya mahavata unhem chala rahe the. Usake bada eka sau atha ratha yathakrama ravana kiye gaye. Ve chhatra, dhvaja, pataka, ghante, sundara torana, nandighosha se yukta the. Chhoti chhoti ghamtiyom se yukta jala una para phailaye hue the. Himalaya parvata para utpanna tinisha ka katha, jo svarna – khachita tha, una rathom mem laga tha. Rathom ke pahiyom ke gherom para lohe ke patte charhaye hue the. Pahiyom ki dhuraem gola thi, sundara, sudrirha bani thim. Unamem chhamte hue, uttama shreni ke ghore jute the. Suyogya, sushikshita sarathiyom ne unaki bagadora samhala rakhi thi. Ve battisa tarakashom se sushobhita the. Kavacha, shirasrana, dhanusha, bana tatha anyanya shastra rakhe the. Isa prakara ve yuddha – samagri se susajjita the. Tadanantara hathom mem talavarem, shaktiyam, kunta, tomara, shula, latthiyam, bhindimala tatha dhanusha dharana kiye hue sainika kramashah ravana hue. Taba narasimha, narapati, paripalaka, narendra, parama aishvaryashali adhipati, naravrishabha, manujarajavrishabha, uttara bharata ke adhe bhaga ko sadhane mem sampravritta, bhambhasaraputra raja kunika ne jaham purnabhadra chaitya tha, vaham jane ka vichara kiya, prasthana kiya. Ashva, hasti, ratha evam paidala – isa prakara chaturamgini sena usake pichhe – pichhe chala rahi thi. Raja ka vakshahsthala harom se vyapta, sushobhita tatha pritikara tha. Usaka mukha kundalom se udyotita tha. Mastaka mukuta se dedipyamana tha. Rajochita tejasvitarupa lakshmi se vaha atyanta diptimaya tha. Vaha uttama hathi para arurha hua. Koramta ke pushpom ki malaom se yukta chhatra usa para tana tha. Shreshtha, shveta chamvara dulaye ja rahe the. Vaishramana, narapati, amarapati ke tulya usaki samriddhi suprashasta thi, jisase usaki kirti vishruta thi. Bhambhasara ke putra raja kunika ke age bare bare ghore aura ghurasavara the. Donom ora hathi tatha hathiyom para savara purusha the. Pichhe ratha – samudaya tha. Tadanantara bhambhasara ka putra raja kunika champa nagari ke bichombicha hota hua age barha. Usake age age jala se bhari jhariyam liye purusha chala rahe the. Sevaka donom ora pamkhe jhala rahe the. Upara sapheda chhatra tana tha. Chamvara dhole ja rahe the. Vaha saba prakara ki samriddhi, saba prakara ki dyuti, saba prakara ke sainya, sabhi parijana, samadarapurna prayatna, sarva vibhuti, sarvavibhusha, sarvasambhrama, sarva – pushpa gandhamalyalamkara, sarva turya shabda sannipata, mahariddhi, mahadyuti, mahabala, apane vishishta parivarika jana – samudaya se sushobhita tha tatha shamkha, panava, pataha, chhote dhola, bheri, jhalara, kharamuhi, hudukka, muraja, mridamga tatha dundubhi eka satha vishesha rupa se bajae ja rahe the. |