Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )

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Sr No : 1005630
Scripture Name( English ): Auppatik Translated Scripture Name : औपपातिक उपांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवसरण वर्णन

Translated Chapter :

समवसरण वर्णन

Section : Translated Section :
Sutra Number : 30 Category : Upang-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से बलवाउए कूणिएणं रन्नाएवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमट्ठं सोच्चा आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहिं सुनिउणेहिं उज्जल नेवत्थि हव्व परिवच्छियं सुसज्जं धम्मिय वम्मिय सन्नद्ध बद्धकवइयउ-प्पीलिय कच्छवच्छ गेवेज्जबद्धगल वरभूसणविरायंतं अहियतेयजुत्तं सललियवरकण्णपूरविराइयं पलंबओचूल महुयरकयंधयारं चित्तपरिच्छेयपच्छयं पहरणावरण भरिय जुद्धसज्जं सच्छत्तं सज्झयं सघंटं पंचामेलय परिमंडियाभिरामं ओसारिय जमलजुयलघंटं विज्जुपिणद्धं व कालमेहं उप्पाइयपव्वयं व चंकमंतं मत्तं गुलगुलंतं मण पवण जइणवेगं भीमं संगामियाओज्झं आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेइ, पडिकप्पेत्ता हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेइ, सण्णहेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से बलवाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क पाडियक्काइं जत्ताभिमुहाइं जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठवेहिं, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमट्ठं आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाणाइं पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता जाणाइं संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता जाणाइं संवट्टेइ, संवट्टेत्ता जाणाइं नीणेइ, नीणेत्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता जाणाइं समलंकरेइ, समलंकरेत्ता जाणाइं वरभंडग मंडियाइं करेइ, करेत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता वाहणाइं पच्चुवेक्खेइ, पच्चुवेक्खेत्ता वाहणाइं संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता वाहणाइं नीणेइ, नीणेत्ता वाहणाइं अप्फालेइ, अप्फालेत्ता दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता वाहणाइं सम-लंकरेइ, समलंकरेत्ता वाहणाइं वरभंडग मंडियाइं करेइ, करेत्ता वाहणाइं जाणाइं जोएइ, जोएत्ता पओयलट्ठिं पओयधरए य समं आडहइ, आडहित्ता वट्टमग्गं गाहेइ, गाहेत्ता जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से बलवाउए नयरगुत्तियं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! चंपं नयरिं सब्भिंतरबाहिरियं आसित्त सम्मज्जिओवलित्तं जाव कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं सेन बलवाउयस्स एयमट्ठं आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता चंपं णयरिं सब्भिंतरबाहिरियं आसित्त सम्मज्जिओवलित्तं जाव कारवेत्ता य जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से बलवाउए कोणियस्स रन्नो भिंभसार पुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ, हय गय रह पवरजोह कलियं चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहियं पासइ, सुभद्दापमुहाण य देवीणं पडिजाणाइं उवट्ठवियाइं पासइ, चंपं नयरिं सब्भिंतर बाहिरियं जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाण हियए जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी– कप्पिए णं देवानुप्पियाणं आभिसेक्के हत्थिरयणे, हय गय रह पवरजोहकलिया य चाउरं-गिणी सेणा सन्नाहिया, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क पाडियक्काइं जत्ताभिमुहाइं जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठावियाइं, चंपानयरी सब्भिंतर बाहिरिया आसित्त सम्मज्जि-ओवलित्ता जाव गंधवट्टिभूया कया, तं निज्जंतु णं देवानुप्पिया! समणं भगवं महावीरं अभिवंदया।
Sutra Meaning : राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया – महाराज की जैसी आज्ञा। सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति – व्यापृत को बुलाया। उससे कहा – देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक के लिए प्रधान, उत्तम हाथी सजाकर शीघ्र तैयार करो। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना के तैयार होने की व्यवस्था कराओ। फिर मुझे आज्ञा – पालन हो जाने की सूचना करो। महावत ने सेनानायक का कथन सूना, उसका आदेश विनय – सहित स्वीकार किया। उस महावत ने, कलाचार्य से शिक्षा प्राप्त करने से जिसकी बुद्धि विविध कल्पनाओं तथा सर्जनाओं में अत्यन्त निपुण थी, उस उत्तम हाथी को उज्ज्वल नेपथ्य, वेषभूषा आदि द्वारा शीघ्र सजा दिया। उस सुसज्ज हाथी का धार्मिक उत्सव के अनुरूप शृंगार किया, कवच लगाया, कक्षा को उसके वक्षःस्थल से कसा, गले में हार तथा उत्तम आभूषण पहनाये, इस प्रकार उसे सुशोभित किया। वह बड़ा तेजोमय दीखने लगा। सुललित कर्णपूरों द्वारा उसे सुसज्जित किया। लटकते हुए लम्बे झूलों तथा मद की गंध से एकत्र हुए भौंरों के कारण वहाँ अंधकार जैसा प्रतीत होता था। झूल पर बेल बूँटे कढ़ा प्रच्छद वस्त्र डाला गया। शस्त्र तथा कवचयुक्त वह हाथी युद्धार्थ सज्जित जैसा प्रतीत होता था। उसके छत्र, ध्वजा, घंटा तथा पताका – ये सब यथास्थान योजित किये गये। मस्तक को पाँच कलंगियों से विभूषित कर उसे सुन्दर बनाया। उसके दोनों ओर दो घंटियाँ लटकाई। वह हाथी बिजली सहित काले बादल जैसा दिखाई देता था। वह अपने बड़े डीलडौल के कारण ऐसा लगता था, मानो अकस्मात्‌ कोई चलता – फिरता पर्वत उत्पन्न हो गया हो। वह मदोन्मत्त था। बड़े मेघ की तरह वह गुलगुल शब्द द्वारा अपने स्वर में मानों गरजता था। उसकी गति मन तथा वायु के वेग को भी पराभूत करने वाली थी। विशाल देह तथा प्रचंड शक्ति के कारण वह भीम प्रतीत होता था। उस संग्राम योग्य आभिषेक्य हस्तिरत्न को महावत ने सन्नद्ध किया उसे तैयार कर घोड़े, हाथी, रथ तथा उत्तम योद्धाओं से परिगठित सेना को तैयार कराया। फिर वह महावत, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया और आज्ञा – पालन किये जा चूकने की सूचना दी। तदनन्तर सेनानायक ने यानशालिक को बुलाया। उससे कहा – सुभद्रा आदि रानियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जुते हुए यान बाहरी सभा – भवन के निकट उपस्थित करो। हाजिर कर आज्ञा – पालन किये जा चूकने की सूचना दो। यानशालिक ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया। वह, जहाँ यानशाला थी, वहाँ आया। यानों का निरीक्षण किया। उनका प्रमार्जन किया। उन्हें वहाँ से हटाया। बाहर नीकाला। उन पर लगी खोलियाँ दूर की। यानों को सजाया। उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया। वह जहाँ वाहनशाला थी, आया। वाहनशाला में प्रविष्ट हुआ। वाहनों का निरीक्षण किया। उन्हें संप्रमार्जित किया – वाहन – शाला से बाहर नीकाला। उनकी पीठ थपथपाई। उन पर लगे आच्छादक वस्त्र हटाये। वाहनों को सजाया। उत्तम आभरणों से विभूषित किया। उन्हें यानों में जोता। प्रतोत्रयष्टिकाएं, तथा प्रतोत्रधर को प्रस्थापित किया – उन्हें यष्टिकाएं देकर यान – चालन का कार्य सौंपा। यानों को राजमार्ग पकड़वाया। वह, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया। आकर सेनानायक को आज्ञा – पालन किये जा चूकने की सूचना दी। फिर सेनानायक ने नगरगुप्तिक नगररक्षक को बुलाकर कहा – देवानुप्रिय ! चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग – इन सबकी सफाई कराओ। वहाँ पानी का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ यावत्‌ नगरी के वातावरण को उत्कृष्ट सौरभमय करवा दो। यह सब करवाकर मुझे सूचित करो कि आज्ञा का अनुपालन हो गया है। नगरपाल ने सेनानायक का आदेश विनय – पूर्वक स्वीकार किया। चम्पानगरी की बाहर से, भीतर से सफाई, पानी का छिड़काव आदि करवाकर, वह जहाँ सेनानायक था, वहाँ आकर आज्ञापालन किये जा चूकने की सूचना दी। तदनन्तर सेनानायक ने भंभसार के पुत्र राजा कूणिक के प्रधान हाथी को सजा हुआ देखा। चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध देखा। सुभद्रा आदि रानियों के उपस्थापित यान देखे। चम्पानगरी की भीतर और बाहर से सफाई देखी। वह सुगंध से महक रही है। यह सब देखकर वह मन में हर्षित, परितुष्ट, आनन्दित एवं प्रसन्न हुआ। भंभसार का पुत्र राजा कूणिक जहाँ था, वह वहाँ आया। आकर हाथ जोड़े, राजा से निवेदन किया – देवानुप्रिय ! आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार है, घोड़े हाथी, रथ, उत्तम योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध है। सुभद्रा आदि रानियों के लिए, प्रत्येक के लिए अलग – अलग जुते हुए यात्राभिमुख यान बाहरी सभा – भवन के निकट उपस्थापित हैं। चम्पानगरी की भीतर और बाहर से सफाई करवा दी गई है, पानी का छिड़काव करवा दिया गया है, वह सुगंध से महक रही है। देवानुप्रिय ! श्रमण भगवान महावीर के अभिवन्दन हेतु आप पधारें।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se balavaue kunienam rannaevam vutte samane hatthatuttha chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasavisappamana hiyae karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam sami! Tti anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta hatthivauyam amamtei, amamtetta evam vayasi– Khippameva bho devanuppiya! Kuniyassa ranno bhimbhasaraputtassa abhisekkam hatthirayanam padikappehi, haya gaya raha pavarajohakaliyam chauramginim senam sannahehi, sannahetta eyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam se hatthivaue balavauyassa eyamattham sochcha anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta chheyayariya uvaesa mai kappana vikappehim suniunehim ujjala nevatthi havva parivachchhiyam susajjam dhammiya vammiya sannaddha baddhakavaiyau-ppiliya kachchhavachchha gevejjabaddhagala varabhusanavirayamtam ahiyateyajuttam salaliyavarakannapuraviraiyam palambaochula mahuyarakayamdhayaram chittaparichchheyapachchhayam paharanavarana bhariya juddhasajjam sachchhattam sajjhayam saghamtam pamchamelaya parimamdiyabhiramam osariya jamalajuyalaghamtam vijjupinaddham va kalameham uppaiyapavvayam va chamkamamtam mattam gulagulamtam mana pavana jainavegam bhimam samgamiyaojjham abhisekkam hatthirayanam padikappei, padikappetta haya gaya raha pavarajohakaliyam chauramginim senam sannahei, sannahetta jeneva balavaue teneva uvagachchhai, uvagachchhitta eyamanattiyam pachchappinai. Tae nam se balavaue janasaliyam saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Subhaddapamuhanam devinam bahiriyae uvatthanasalae padiyakka padiyakkaim jattabhimuhaim juttaim janaim uvatthavehim, uvatthavetta eyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam se janasalie balavauyassa eyamattham anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta jeneva janasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta janaim pachchuvekkhei, pachchuvekkhetta janaim sampamajjei, sampamajjetta janaim samvattei, samvattetta janaim ninei, ninetta jananam duse pavinei, pavinetta janaim samalamkarei, samalamkaretta janaim varabhamdaga mamdiyaim karei, karetta jeneva vahanasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta vahanasalam anupavisai, anupavisitta vahanaim pachchuvekkhei, pachchuvekkhetta vahanaim sampamajjei, sampamajjetta vahanaim ninei, ninetta vahanaim apphalei, apphaletta duse pavinei, pavinetta vahanaim sama-lamkarei, samalamkaretta vahanaim varabhamdaga mamdiyaim karei, karetta vahanaim janaim joei, joetta paoyalatthim paoyadharae ya samam adahai, adahitta vattamaggam gahei, gahetta jeneva balavaue teneva uvagachchhai, uvagachchhitta balavauyassa eyamanattiyam pachchappinai. Tae nam se balavaue nayaraguttiyam amamtei, amamtetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Champam nayarim sabbhimtarabahiriyam asitta sammajjiovalittam java karavetta ya eyamanattiyam pachchappinahi. Tae nam sena balavauyassa eyamattham anae vinaenam vayanam padisunei, padisunetta champam nayarim sabbhimtarabahiriyam asitta sammajjiovalittam java karavetta ya jeneva balavaue teneva uvagachchhai, uvagachchhitta eyamanattiyam pachchappinai. Tae nam se balavaue koniyassa ranno bhimbhasara puttassa abhisekkam hatthirayanam padikappiyam pasai, haya gaya raha pavarajoha kaliyam chauramginim senam sannahiyam pasai, subhaddapamuhana ya devinam padijanaim uvatthaviyaim pasai, champam nayarim sabbhimtara bahiriyam java gamdhavattibhuyam kayam pasai, pasitta hatthatuttha chittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa visappamana hiyae jeneva kunie raya bhimbhasaraputte teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam baddhavei, baddhavetta evam vayasi– Kappie nam devanuppiyanam abhisekke hatthirayane, haya gaya raha pavarajohakaliya ya chauram-gini sena sannahiya, subhaddapamuhana ya devinam bahiriyae uvatthanasalae padiyakka padiyakkaim jattabhimuhaim juttaim janaim uvatthaviyaim, champanayari sabbhimtara bahiriya asitta sammajji-ovalitta java gamdhavattibhuya kaya, tam nijjamtu nam devanuppiya! Samanam bhagavam mahaviram abhivamdaya.
Sutra Meaning Transliteration : Raja kunika dvara yom kahe jane para usa senanayaka ne harsha evam prasannatapurvaka hatha jore, amjali ko mastaka se lagaya tatha vinayapurvaka raja ka adesha svikara karate hue nivedana kiya – maharaja ki jaisi ajnya. Senanayaka ne yom rajajnya svikara kara hasti – vyaprita ko bulaya. Usase kaha – devanupriya ! Bhambhasara ke putra maharaja kunika ke lie pradhana, uttama hathi sajakara shighra taiyara karo. Ghore, hathi, ratha tatha shreshtha yoddhaom se parigathita chaturamgini sena ke taiyara hone ki vyavastha karao. Phira mujhe ajnya – palana ho jane ki suchana karo. Mahavata ne senanayaka ka kathana suna, usaka adesha vinaya – sahita svikara kiya. Usa mahavata ne, kalacharya se shiksha prapta karane se jisaki buddhi vividha kalpanaom tatha sarjanaom mem atyanta nipuna thi, usa uttama hathi ko ujjvala nepathya, veshabhusha adi dvara shighra saja diya. Usa susajja hathi ka dharmika utsava ke anurupa shrimgara kiya, kavacha lagaya, kaksha ko usake vakshahsthala se kasa, gale mem hara tatha uttama abhushana pahanaye, isa prakara use sushobhita kiya. Vaha bara tejomaya dikhane laga. Sulalita karnapurom dvara use susajjita kiya. Latakate hue lambe jhulom tatha mada ki gamdha se ekatra hue bhaumrom ke karana vaham amdhakara jaisa pratita hota tha. Jhula para bela bumte karha prachchhada vastra dala gaya. Shastra tatha kavachayukta vaha hathi yuddhartha sajjita jaisa pratita hota tha. Usake chhatra, dhvaja, ghamta tatha pataka – ye saba yathasthana yojita kiye gaye. Mastaka ko pamcha kalamgiyom se vibhushita kara use sundara banaya. Usake donom ora do ghamtiyam latakai. Vaha hathi bijali sahita kale badala jaisa dikhai deta tha. Vaha apane bare diladaula ke karana aisa lagata tha, mano akasmat koi chalata – phirata parvata utpanna ho gaya ho. Vaha madonmatta tha. Bare megha ki taraha vaha gulagula shabda dvara apane svara mem manom garajata tha. Usaki gati mana tatha vayu ke vega ko bhi parabhuta karane vali thi. Vishala deha tatha prachamda shakti ke karana vaha bhima pratita hota tha. Usa samgrama yogya abhishekya hastiratna ko mahavata ne sannaddha kiya use taiyara kara ghore, hathi, ratha tatha uttama yoddhaom se parigathita sena ko taiyara karaya. Phira vaha mahavata, jaham senanayaka tha, vaham aya aura ajnya – palana kiye ja chukane ki suchana di. Tadanantara senanayaka ne yanashalika ko bulaya. Usase kaha – subhadra adi raniyom ke lie, unamem se pratyeka ke lie yatrabhimukha, jute hue yana bahari sabha – bhavana ke nikata upasthita karo. Hajira kara ajnya – palana kiye ja chukane ki suchana do. Yanashalika ne senanayaka ka adesha vinayapurvaka svikara kiya. Vaha, jaham yanashala thi, vaham aya. Yanom ka nirikshana kiya. Unaka pramarjana kiya. Unhem vaham se hataya. Bahara nikala. Una para lagi kholiyam dura ki. Yanom ko sajaya. Unhem uttama abharanom se vibhushita kiya. Vaha jaham vahanashala thi, aya. Vahanashala mem pravishta hua. Vahanom ka nirikshana kiya. Unhem sampramarjita kiya – vahana – shala se bahara nikala. Unaki pitha thapathapai. Una para lage achchhadaka vastra hataye. Vahanom ko sajaya. Uttama abharanom se vibhushita kiya. Unhem yanom mem jota. Pratotrayashtikaem, tatha pratotradhara ko prasthapita kiya – unhem yashtikaem dekara yana – chalana ka karya saumpa. Yanom ko rajamarga pakaravaya. Vaha, jaham senanayaka tha, vaham aya. Akara senanayaka ko ajnya – palana kiye ja chukane ki suchana di. Phira senanayaka ne nagaraguptika nagararakshaka ko bulakara kaha – devanupriya ! Champa nagari ke bahara aura bhitara, usake samghataka, trika, chatushka, chatvara, chaturmukha, rajamarga – ina sabaki saphai karao. Vaham pani ka chhirakava karao, gobara adi ka lepa karao yavat nagari ke vatavarana ko utkrishta saurabhamaya karava do. Yaha saba karavakara mujhe suchita karo ki ajnya ka anupalana ho gaya hai. Nagarapala ne senanayaka ka adesha vinaya – purvaka svikara kiya. Champanagari ki bahara se, bhitara se saphai, pani ka chhirakava adi karavakara, vaha jaham senanayaka tha, vaham akara ajnyapalana kiye ja chukane ki suchana di. Tadanantara senanayaka ne bhambhasara ke putra raja kunika ke pradhana hathi ko saja hua dekha. Chaturamgini sena ko sannaddha dekha. Subhadra adi raniyom ke upasthapita yana dekhe. Champanagari ki bhitara aura bahara se saphai dekhi. Vaha sugamdha se mahaka rahi hai. Yaha saba dekhakara vaha mana mem harshita, paritushta, anandita evam prasanna hua. Bhambhasara ka putra raja kunika jaham tha, vaha vaham aya. Akara hatha jore, raja se nivedana kiya – devanupriya ! Abhishekya hastiratna taiyara hai, ghore hathi, ratha, uttama yoddhaom se parigathita chaturamgini sena sannaddha hai. Subhadra adi raniyom ke lie, pratyeka ke lie alaga – alaga jute hue yatrabhimukha yana bahari sabha – bhavana ke nikata upasthapita haim. Champanagari ki bhitara aura bahara se saphai karava di gai hai, pani ka chhirakava karava diya gaya hai, vaha sugamdha se mahaka rahi hai. Devanupriya ! Shramana bhagavana mahavira ke abhivandana hetu apa padharem.