Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1005123 | ||
Scripture Name( English ): | Upasakdashang | Translated Scripture Name : | उपासक दशांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-२ कामदेव |
Translated Chapter : |
अध्ययन-२ कामदेव |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 23 | Category : | Ang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्ग अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख-मित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ–सत्तंगपइट्ठियं सम्मं संठियं सुजातं पुरतो उदग्गं पिट्ठतो वराहं अयाकुच्छिं अलंबकुच्छिं पलंब-लंबोदराधरकरं अब्भुग्गय- मउल- मल्लिया- विमल- धवलदंतं कंचनकोसी- पविट्ठदंतं आणामिय- चाव- ललिय-संवेल्लियग्गसोंडं कुम्म-पडिपुण्णचलणं वीसतिनखं अल्लीण-पमाणजुत्तपुच्छं मत्तं मेहमिव गुलु-गुलेंतं मन-पवन-जइणवेगं–दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! कामदेवा! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपु-ण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया! मोक्खकंखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवानुप्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि तो तं अहं अज्ज सोंडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालाओ नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहासं उव्विहामि, उव्विहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अनुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! कामदेवा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं सोंडाए गेण्हामि, गेण्हेत्ता पोसहसालाओ नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहासं उव्विहामि, उव्विहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छेत्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ। तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसि मिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं सोंडाए गेण्हेति, गेण्हित्ता उड्ढं वेहासं उव्विहइ, उव्विहित्ता तिक्खेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ। | ||
Sutra Meaning : | जब पिशाच रूपधारी उस देव ने श्रमणोपासक को निर्भय भाव से उपासना – रत देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ, उसके ललाट में त्रिबलिक – चढ़ी भृकुटि तन गई। उसने तलवार से कामदेव पर वार किया और उसके टुकड़े – टुकड़े कर डाले। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र तथा दुःसह वेदना को सहनशीलता पूर्वक झेला। जब पिशाच रूपधारी देव ने देखा, श्रमणोपासक कामदेव निर्भीक भाव से उपासना में रत है, वह श्रमणोपासक कामदेव को निर्ग्रन्थ प्रवचन – से विचलित, क्षुभित, विपरिणामित – नहीं कर सका है, उसके मनोभावों को नहीं बदल सका है, तो वह श्रान्त, क्लान्त और खिन्न होकर धीरे – धीरे पीछे हटा। पीछे हटकर पौषधशाला से बाहर नीकला। देवमायाजन्य पिशाच – रूप का त्याग किया। एक विशालकाय, हाथी का रूप धारण किया। वह हाथी सुपुष्ट सात अंगों से युक्त था। उसकी देह – रचना सुन्दर और सुगठित थी। वह आगे से उदग्र – पीछे से सूअर के समान झुका हुआ था। उसकी कुक्षि – बकरी की कुक्षि की तरह सटी हुई थी। उसका नीचे का होठ और सूँड़ लम्बे थे। मुँह से बाहर नीकले हुए दाँत उजले और सफेद थे। वे सोने की म्यान में प्रविष्ट थे। उसकी सूँड़ का अगला भाग कुछ खींचे हुए धनुष की तरह सुन्दर रूप में मुड़ा हुआ था। उसके पैर कछुए के समान प्रतिपूर्ण और चपटे थे। उसके बीस नाखून थे। उसकी पूँछ देह से सटी हुई थी। वह हाथी मद से उन्मत्त था। बादल की तरह गरज रहा था। उसका वेग मन और वचन के वेग को जीतने वाला था। ऐसे हाथी के रूप की विक्रिया करके पूर्वोक्त देव जहाँ पोषधशाला थी, जहाँ श्रमणोपासक कामदेव था, वहाँ आया। श्रमणोपासक कामदेव से पूर्व वर्णित पिशाच की तरह बोला – यदि तुम अपने व्रतों का भंग नहीं करते हो तो मैं तुमको अपनी सूँड़ से पकड़ लूँगा। पोषधशाला से बाहर ले जाऊंगा। ऊपर आकाश में ऊछालूँगा। उछालकर अपने तीखे और मूसल जैसे दाँतों से झेलूँगा। नीचे पृथ्वी पर तीन बार पैरों से रौदूँगा, जिससे तुम आर्त्त ध्यान होकर विकट दुःख से पीड़ित होते हुए असमय में ही जीवन से पृथक् हो जाओगे – हाथी का रूप धारण किए हुए देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक कामदेव निर्भय भाव से उपासना – रत रहा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se divve pisayaruve kamadevam samanovasayam abhiyam atattham anuvvigga akhubhiyam achaliyam asambhamtam tusiniyam dhammajjhanovagayam viharamanam pasai, pasitta jahe no samchaei kamadevam samanovasayam niggamthao pavayanao chalittae va khobhittae va viparinamittae va, tahe samte tamte paritamte saniyam-saniyam pachchosakkai, pachchosakkitta posahasalao padinikkhamai, padinikkha-mitta divvam pisayaruvam vippajahai, vippajahitta egam maham divvam hatthiruvam viuvvai–sattamgapaitthiyam sammam samthiyam sujatam purato udaggam pitthato varaham ayakuchchhim alambakuchchhim palamba-lambodaradharakaram abbhuggaya- maula- malliya- vimala- dhavaladamtam kamchanakosi- pavitthadamtam anamiya- chava- laliya-samvelliyaggasomdam kumma-padipunnachalanam visatinakham allina-pamanajuttapuchchham mattam mehamiva gulu-gulemtam mana-pavana-jainavegam–divvam hatthiruvam viuvvitta jeneva posahasala, jeneva kamadeve samanovasae, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kamadevam samanovasayam evam vayasi– Hambho! Kamadeva! Samanovasaya! Appatthiyapatthiya! Duramta-pamta-lakkhana! Hinapu-nnachauddasiya! Siri-hiri-dhii-kitti-parivajjiya! Dhammakamaya! Punnakamaya! Saggakamaya! Mokkhakamaya! Dhammakamkhiya! Punnakamkhiya! Saggakamkhiya! Mokkhakamkhiya! Dhammapivasiya! Punnapivasiya! Saggapivasiya! Mokkhapivasiya! No khalu kappai tava devanuppiya! Silaim vayaim veramanaim pachchakkhanaim posahovavasaim chalittae va khobhittae va khamdittae va bhamjittae va ujjhittae va parichchaittae va, tam jai nam tumam ajja silaim vayaim veramanaim pachchakkhanaim posahovavasaim na chhaddesi na bhamjesi to tam aham ajja somdae genhami, genhitta posahasalao ninemi, ninetta uddham vehasam uvvihami, uvvihitta tikkhehim damtamusalehim padichchhami, padichchhitta ahe dharanitalamsi tikkhutto paesu lolemi, jaha nam tumam devanuppiya! Atta-duhatta-vasatte akale cheva jiviyao vavarovijjasi. Tae nam se kamadeve samanovasae tenam divvenam hatthiruvenam evam vutte samane abhie atatthe anuvvigge akhubhie achalie asambhamte tusinie dhammajjhanovagae viharai. Tae nam se divve hatthiruve kamadevam samanovasayam abhiyam atattham anuvviggam akhubhiyam achaliyam asambhamtam tusiniyam dhammajjhanovagayam viharamanam pasai, pasitta dochcham pi tachcham pi kamadevam samanovasayam evam vayasi– hambho! Kamadeva! Samanovasaya! Java jai nam tumam ajja silaim vayaim veramanaim pachchakkhanaim posahovavasaim na chhaddesi na bhamjesi, to tam ajja aham somdae genhami, genhetta posahasalao ninemi, ninetta uddham vehasam uvvihami, uvvihitta tikkhehim damtamusalehim padichchhami, padichchhetta ahe dharanitalamsi tikkhutto paesu lolemi, jaha nam tumam devanuppiya! Atta-duhatta-vasatte akale cheva jiviyao vavarovijjasi. Tae nam se kamadeve samanovasae tenam divvenam hatthiruvenam dochcham pi tachcham pi evam vutte samane abhie java viharai. Tae nam se divve hatthiruve kamadevam samanovasayam abhiyam java pasai, pasitta asuratte rutthe kuvie chamdikkie misi misiyamane kamadevam samanovasayam somdae genheti, genhitta uddham vehasam uvvihai, uvvihitta tikkhehim damtamusalehim padichchhai, padichchhitta ahe dharanitalamsi tikkhutto paesu lolei. Tae nam se kamadeve samanovasae tam ujjalam viulam kakkasam pagadham chamdam dukkham durahiyasam veyanam sammam sahai khamai titikkhai ahiyasei. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jaba pishacha rupadhari usa deva ne shramanopasaka ko nirbhaya bhava se upasana – rata dekha to vaha atyanta kruddha hua, usake lalata mem tribalika – charhi bhrikuti tana gai. Usane talavara se kamadeva para vara kiya aura usake tukare – tukare kara dale. Shramanopasaka kamadeva ne usa tivra tatha duhsaha vedana ko sahanashilata purvaka jhela. Jaba pishacha rupadhari deva ne dekha, shramanopasaka kamadeva nirbhika bhava se upasana mem rata hai, vaha shramanopasaka kamadeva ko nirgrantha pravachana – se vichalita, kshubhita, viparinamita – nahim kara saka hai, usake manobhavom ko nahim badala saka hai, to vaha shranta, klanta aura khinna hokara dhire – dhire pichhe hata. Pichhe hatakara paushadhashala se bahara nikala. Devamayajanya pishacha – rupa ka tyaga kiya. Eka vishalakaya, hathi ka rupa dharana kiya. Vaha hathi supushta sata amgom se yukta tha. Usaki deha – rachana sundara aura sugathita thi. Vaha age se udagra – pichhe se suara ke samana jhuka hua tha. Usaki kukshi – bakari ki kukshi ki taraha sati hui thi. Usaka niche ka hotha aura sumra lambe the. Mumha se bahara nikale hue damta ujale aura sapheda the. Ve sone ki myana mem pravishta the. Usaki sumra ka agala bhaga kuchha khimche hue dhanusha ki taraha sundara rupa mem mura hua tha. Usake paira kachhue ke samana pratipurna aura chapate the. Usake bisa nakhuna the. Usaki pumchha deha se sati hui thi. Vaha hathi mada se unmatta tha. Badala ki taraha garaja raha tha. Usaka vega mana aura vachana ke vega ko jitane vala tha. Aise hathi ke rupa ki vikriya karake purvokta deva jaham poshadhashala thi, jaham shramanopasaka kamadeva tha, vaham aya. Shramanopasaka kamadeva se purva varnita pishacha ki taraha bola – yadi tuma apane vratom ka bhamga nahim karate ho to maim tumako apani sumra se pakara lumga. Poshadhashala se bahara le jaumga. Upara akasha mem uchhalumga. Uchhalakara apane tikhe aura musala jaise damtom se jhelumga. Niche prithvi para tina bara pairom se raudumga, jisase tuma artta dhyana hokara vikata duhkha se pirita hote hue asamaya mem hi jivana se prithak ho jaoge – hathi ka rupa dharana kie hue deva dvara yom kahe jane para bhi shramanopasaka kamadeva nirbhaya bhava se upasana – rata raha. |