Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004793 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 93 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं छप्पि दूयगा जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलाए अग्गुज्जाणंसि पत्तेयं-पत्तेयं खंधावारनिवेसं करेंति, करेत्ता मिहिलं रायहाणिं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता पत्तेयं करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु साणं-साणं राईणं वयणाइं निवेदेंति। तए णं से कुंभए तेसिं दूयाणं अंतियं एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साहट्टु एवं वयासी–न देमि णं अहं तुब्भं मल्लिं विदेह-रायवरकन्नं ति कट्टु ते छप्पि दूए असक्कारिय असम्मानिय अवद्दारेणं निच्छुभावेइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया कुंभएणं रन्ना असक्कारिय असम्मानिय अवद्दारेणं निच्छुभाविया समाणा जेणेव सया-सया जनवया जेणेव सयाइं-सयाइं नगराइं जेणेव सया-सया रायाणो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु सामी! अम्हे जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव जेणेव मिहिला तेणेव उवागया जाव अवद्दारेणं निच्छुभावेइ। तं न देइ णं सामी! कुंभए मल्लिं विदेहरायवरकन्नं साणं-साणं राईणं एयमट्ठं निवेदेंति। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसिमिसेमाणा अन्नमन्नस्स दूयसंपेसणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं छण्हं राईणं दूया जमगसमगं चेव मिहिला तेणेव उवागया जाव अवद्दारेणं निच्छूढा। तं सेयं खलु देवानुप्पिया! कुंभगस्स जत्तं गेण्हित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता ण्हाया सण्णद्धा हत्थिखंधवरगया सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्ज-माणेणं सेयवर-चामराहिं वीइज्जमाणा महया हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडा सव्विड्ढीए जाव दुंदुभि-नाइय-रवेणं सएहिंतो-सएहिंतो नगरेहिंतो निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता एगयओ मिलायंति, जेणेव महिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं कुंभए राया इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि सेवि जाव पच्चप्पिणति। तए णं कुंभए राया ण्हाए सन्नद्धे हत्थिखंधवरगए सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्जमाणे महया हय-गय-रह-पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे सव्विड्ढीए जाव दुंदुभिनाइयरवेणं मिहिलं मज्झंमज्झेणं निज्जाइ, निज्जावेत्ता विदेह-जनवयं मज्झंमज्झेणं जेणेव देसग्गं तेणेव खंधावारनिवेसं करेइ, करेत्ता जियसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो पडिवालेमाणे जुज्झसज्जे पडिचिट्ठइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पिं रायाणो जेणेव कुंभए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता कुंभएण रन्ना सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कुंभयं रायं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागं किच्छोवगयपानं दिसोदिसिं पडिसेहेति। तए णं से कुंभए जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-धय-पडागे किच्छो-वगयपाणे दिसोदिसिं पडिसेहिए समाणे अत्थामे अबले अवीरिए अपुरिसक्कार-परक्कमे अधारणिज्जमिति कट्टु सिग्घं तुरियं चवलं चंडं जइणं वेइयं जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मिहिलं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता मिहिलाए दुवाराइं पिहेइ, पिहेत्ता रोहसज्जे चिट्ठइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मिहिलं रायहाणिं निस्संचारं निरुच्चारं सव्वओ समंता ओरुंभित्ता णं चिट्ठंति। तए णं से कुंभए राया मिहिलं रायहाणिं ओरुद्धं जाणित्ता अब्भिंतरियाए उवट्ठाणसालाए सीहासनवरगए तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य मम्माणि य अलभमाणे बहूहिं आएहिं य उवाएहिं य, उप्पत्तियाहि य वेणइयाहि य कम्मयाहि य पारिणामियाहि य– बुद्धोहिं परिणामेमाणे-परिणामेमाणे किंचि आयं वा उवायं वा अलभमाणे ओहयमनसंकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए ज्झियायइ। इमं च णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ण्हाया कयवलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सव्वालंकार-विभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं संपरिवुडा जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कुंभगस्स पायग्गहणं करेइ। तए णं कुंभए मल्लिं विदेहरायवरकन्नं नो आढाइ नो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं एवं वयासी–तुब्भे णं ताओ! अन्नया ममं एज्जमाणिं पासित्ता आढाह परियाणाह अंके निवेसेह। इयाणिं ताओ! तुब्भे ममं नो आढाह नो परियाणाह नो अंके निवेसेह। किण्णं तुब्भं अज्ज ओहय मनसंकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया ज्झियायह? तए णं कुंभए मल्लिं विदेहरायवरकन्नं एवं वयासी–एवं खलु पुत्ता! तव कज्जे जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं दूया संपेसिया। ते णं मए असक्कारिय असम्मानिय अवद्दारेणं निच्छूढा। तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेसिं दूयाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिलं रायहाणिं निस्संचारं निरुच्चारं सव्वओ समंता ओरुंभित्ता णं चिट्ठंति। तए णं अहं पुत्ता तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि [य छिद्दाणि य विवराणि य मम्माणि य?] अलभमाणे जाव अट्टज्झा-णोवगए ज्झियामि। तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना कुंभगं रायं एवं वयासी–माणं तुब्भे ताओ! ओहयमन-संकप्पा करतलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया ज्झियायह। तुब्भे णं ताओ! तेसिं जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं रहस्सिए दूयसंपेसे करेह, एगमेगं एवं वयह–तव देमि मल्लिं विदेहरायवरकन्नं ति कट्टु संज्झकालसमयंसि पविरल-मणूसंसि निसंत-पडिनिसंतंसि पत्तेयं-पत्तेयं मिहिलं रायहाणिं अनुप्पवेसेह, अनुप्पवेसेत्ता गब्भधरएसु अनुप्पवेसेह, अनुप्पवेसेत्ता मिहिलाए रायहाणीए दुवाराइं पिहेह, पिहेत्ता रोहासज्जा चिट्ठह। तए णं कुंभए तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं-पत्तेयं रहस्सिए दूयसंपेसे करेइ जाव रोहासज्जे चिट्ठइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जालंतरेहिं कनगमइं मत्थयछिड्डं पउमुप्पल-पिहाणं पडिमं पासंति–एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्नत्ति कट्टु मल्लीए रायवरकन्नाए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य मुच्छिया गिद्धा गडिया अज्झोववण्णा अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणा-पेहमाणा चिट्ठंति। तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना ण्हाया कयवलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता सव्वालंकारविभूसिया बहूहिं खुज्जाहिं जाव परिक्खित्ता जेणेव जालधरए जेणेव कनगमई मत्थय-छिड्डा पउमुप्पल-पिहाणा पडिमा तेणेव उवागच्छइ, उवा गच्छित्ता तीसे कनगमईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल-पीहाणाए पडिमाए मत्थयाओ तं पउमुप्पल-पिहाणं अवणेइ। तओ णं गंधे निद्धावेइ, से जहानामए–अहिमडे इ वा जाव एत्तो असुभतराए चेव। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो तेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं-सएहिं उत्तरिज्जेहिं आसाइं पिहेंति, पिहेत्ता परम्मुहा चिट्ठंति। तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी–किण्णं तुब्भे देवानुप्पिया! सएहिं-सएहिं उत्तरिज्जेहिं आसाइं पिहेत्ता परम्मुहा चिट्ठह? तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा मल्लिं विदेहरायवरकन्नं एवं वयंति–एवं खलु देवानुप्पिए! अम्हे इमेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं-सएहिं उत्तरिज्जेहिं आसाइं पिहेत्ता चिट्ठामो। तए णं मल्ली विदेहरायवरकन्ना ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी–जइ ताव देवानुप्पिया! इमीसे कनगमईए मत्थयछिड्डाए पउमुप्पल-पिहाणाए पडिमाए कल्लाकल्लिं ताओ मणुण्णाओ असन-पान-खाइम-साइमाओ एगमेगे पिंडे पक्खिप्पमाणे-पक्खिप्पमाणे इमेयारूवे असुभे पोग्गल-परिणामे, इमस्स पुण ओरालियसरीरस्स खेलासवस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्का सवस्स सोणिय-पूयासवस्स दुरुय-ऊसास-नीसासस्स दुरुय-मुत्त-पूइय-पुरीस-पुण्णस्स सडण-पडण-छेयण-विद्धंसण-धम्मस्स केरिसए य परिणामे भविस्सइ? तं मानं तुब्भे देवानुप्पिया! मानुस्सएसु कामभोगेसु सज्जह रज्जह गिज्झह मुज्झह अज्झोववज्जह एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हे इमाओ तच्चे भवग्गहणे अवरविदेहवासे सलिलावतिंसि विजए वीयसोगाए रायहाणीए महब्बलपामोक्खा सत्तवि य बालवयंसया रायाणो होत्था–सहजाया जाव पव्वइया। तए णं अहं देवानुप्पिया! इमेणं कारणेणं इत्थीनामगोयं कम्मं निव्वत्तेमि– जइ णं तुब्भे चउत्थं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तए णं अहं छट्ठं उवसंपज्जित्ता णं विहरामि सेसं तहेव सव्वं। तए णं तुब्भे देवानुप्पिया! कालमासे कालं किच्चा जयंते विमाणे उववन्ना। तत्थ णं तुब्भं देसूणाइं बत्तीसं सागरोवमाइं ठिई। तए णं तुब्भे ताओ देवलोगाओ अनंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे जाव साइं-साइं रज्जाइं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं अहं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव दारियत्ताए पच्चायाया। | ||
Sutra Meaning : | इस प्रकार उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं के दूत, जहाँ मिथिला नगरी थी वहाँ जाने के लिए रवाना हो गए। छहों दूत जहाँ मिथिला थी, वहाँ आए। मिथिला के प्रधान उद्यान में सब ने अलग – अलग पड़ाव डाले। फिर मिथिला राजधानी में प्रवेश करके कुम्भ राजा के पास आए। प्रत्येक – प्रत्येक ने दोनों हाथ जोड़े और अपने – अपने राजाओं के वचन निवेदन किए। कुम्भ राजा उन दूतों से यह बात सूनकर एकदम क्रुद्ध हो गया। यावत् ललाट पर तीन सल डालकर उसने कहा – ‘मैं तुम्हें विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली नहीं देता।’ छहों का सत्कार – सम्मान न करके उन्हें पीछे के द्वार से नीकाल दिया। कुम्भ राजा के द्वारा असत्कारित, असम्मानित और अपद्वार से निष्कासित वे छहों राजाओं के दूत जहाँ अपने – अपने जनपद थे, जहाँ अपने – अपने नगर थे और जहाँ अपने – अपने राजा थे, वहाँ पहुँचकर हाथ जोड़कर एवं मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहने लगे – ‘इस प्रकार हे स्वामिन् ! हम जितशत्रु वगैरह छह राजाओं के दूत एक साथ ही जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ पहुँचे। मगर यावत् राजा कुम्भ ने सत्कार – सम्मान न करके हमें अपद्वार से नीकाल दिया। सो हे स्वामिन् ! कुम्भ राजा विदेहराजवरकन्या मल्ली आप को नहीं देता।’ दूतों ने अपने – अपने राजाओं से यह अर्थ – वृत्तान्त निवेदन किया। तत्पश्चात् वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा उन दूतों से इस अर्थ को सूनकर कुपित हुए। उन्होंने एक दूसरे के पास दूत भेजे और इस प्रकार कहलवाया – ‘हे देवानुप्रिय ! हम छहों राजाओं के दूत एक साथ ही यावत् नीकाल दिये गए। अत एव हे देवानुप्रिय ! हम लोगों को कुम्भ राजा की और प्रयाण करना चाहिए।’ इस प्रकार कहकर उन्होंने एक दूसरे की बात स्वीकार की। स्वीकार करके स्नान किया सन्नद्ध हुए। हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ हुए। कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाला छत्र धारण किया। श्वेत चामर उन पर ढ़ोरे जाने लगे। बड़े – बड़े घोड़ों, हाथियों, रथों और उत्तम योद्धाओं सहित चतुरंगिणी सेना से परिवृत्त होकर, सर्व ऋद्धि के साथ, यावत् दुंदुभि की ध्वनि के साथ अपने – अपने नगरों से नीकले। एक जगह इकट्ठे होकर जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ जाने के लिए तैयार हुए। तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने इस कथा का अर्थ जानकर अपने सेनापति को बुलाकर कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही घोड़ों, हाथियों, रथों और उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगी सेना तैयार करो।’ यावत् सेनापति ने सेना को तैयार करके आज्ञा वापिस लौटाई। तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने स्नान किया। कवच धारण करके सन्नद्ध हुआ। श्रेष्ठ हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ हुआ। कोरंट के फूलों की माला वाला छत्र धारण किया। उसके ऊपर श्रेष्ठ और श्वेत चामर ढ़ोरे जाने लगे। यावत् मिथिला राजधानी के मध्य में होकर नीकला। विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ अपने देश का अन्त था, वहाँ आया। वहाँ पड़ाव डाला। जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं की प्रतीक्षा करता हुआ युद्ध के लिए सज्ज होकर ठहर गया। तत्पश्चात् वे जितशत्रु प्रभृति छहों राजा, जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आकर कुम्भ राजा के साथ युद्ध करने में प्रवृत्त हो गए। तत्पश्चात् उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं ने कुम्भ राजा के सेन्य का हनन किया, मंथन किया, उसके अत्युत्तम योद्धाओं का घात किया, उसकी चिह्न रूप ध्वजा और पताका को छिन्न – भिन्न करके नीचे गिरा दिया। उसके प्राण संकट में पड़ गए। उसकी सेना चारों दिशाओं में भाग नीकली। तब वह कुम्भ राजा जितशत्रु आदि छह राजाओं के द्वारा हत, मानमर्दित यावत् जिसकी सेना चारों ओर भाग खड़ी हुई है ऐसा होकर, सामर्थ्यहीन, बलहीन, पुरुषार्थ – पराक्रमहीन, त्वरा के साथ, यावत् वेग के साथ जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ आया। मिथिला नगरी में प्रविष्ट होकर उसने मिथिला के द्वार बन्द कर लिए। किले का रोध करने में सज्ज होकर ठहरा। जितशत्रु प्रभृति छहों नरेश जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ आए। मिथिला राजधानी को मनुष्यों के गमनागमन से रहित कर दिया, यहाँ तक कि कोट के ऊपर से भी आवागमन रोक दिया अथवा मल त्यागने के लिए भी आना – जाना रोक दिया। उन्होंने नगरी को चारों ओर से घेर लिया। कुम्भ राजा मिथिला राजधानी को घिरी जानकर आभ्यन्तर उप – स्थानशाला में श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठा। वह जितशत्रु आदि छहों राजाओं के छिद्रों को, विवरों को और मर्म को पा नहीं सका। अत एव बहुत से आयों से, उपायों से तथा औत्पत्तिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धि से विचार करते – करते कोई भी आय या उपाय न पा सका। तब उसके मन का संकल्प क्षीण हो गया, यावत् वह हथेली पर मुख रखकर आर्त्तध्यान करने लगा – चिन्ता में डूब गया। इधर विदेहराजवरकन्या मल्ली ने स्नान किया, यावत् बहुत – सी कुब्जा आदि दासियों से परिवृत्त होकर जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आई। आकर उसने कुम्भ राजा का चरण ग्रहण किया – पैर छुए। तब कुम्भ राजा ने विदेहराजवरकन्या मल्ली का आदर नहीं किया, अत्यन्त गहरी चिन्ता में व्यग्र होने के कारण उसे उसका आना भी मालूम नहीं हुआ, अत एव वह मौन ही रहा। तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने राजा कुंभ से इस प्रकार कहा – ‘हे तात ! दूसरे समय मुझे आती देखकर आप यावत् मेरा आदर करते थे, प्रसन्न होते थे, गोद में बिठाते थे, परन्तु क्या कारण है कि आज आप अवहत मानसिक संकल्प वाले होकर चिन्ता कर रहे हैं ?’ तब राजा कुम्भ ने विदेह – राजवरकन्या मल्ली से इस प्रकार कहा – ‘हे पुत्री ! इस प्रकार तुम्हारे लिए जितशत्रु प्रभृति छह राजाओं ने दूत भेजे थे। मैंने उन दूतों को अपमानित करके यावत् नीकलवा दिया। तब वे कुपित हो गए। उन्होंने मिथिला राजधानी को गमनागमनहीन बना दिया है, यावत् चारों ओर घेरा डालकर बैठे हैं। अत एव हे पुत्री ! मैं उन जितशत्रु प्रभृति नरेशों के अन्तर – छिद्र आदि न पाता हुआ यावत् चिन्ता में डूबा हूँ।’ तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने राजा कुम्भ से इस प्रकार कहा – तात ! आप अवहत मानसिक संकल्प वाले होकर चिन्ता न कीजिए। हे तात ! आप उन जितशत्रु आदि छहों राजाओं में से प्रत्येक के पास गुप्त रूप से दूत भेज दीजिए और प्रत्येक को यह कहला दीजिए कि ‘मैं विदेहराजवरकन्या तुम्हें देता हूँ।’ ऐसा कहकर सन्ध्याकाल के अवसर पर जब बिरले मनुष्य गमनागमन करते हों और विश्राम के लिए अपने – अपने घरों में मनुष्य बैठे हों; उस समय अलग – अलग राजा का मिथिला राजधानी के भीतर प्रवेश कराइए। उन्हें गर्भगृह के अन्दर ले जाइए। फिर मिथिला राजधानी के द्वार बन्द करा दीजिए और नगरों के रोध में सज्ज होकर ठहरीए। तत्पश्चात् राजा कुम्भ ने इसी प्रकार किया। यावत् छहों राजाओं को प्रवेश कराया। वह नगरी के रोध में सज्ज होकर ठहरा। तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजा दूसरे दिन प्रातःकाल जालियों में से स्वर्णमयी, मस्तक पर छिद्र वाली और कमल के ढक्कन वाली मल्ली की प्रतिमा को देखने लगे। ‘यही विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली है’ ऐसा जानकर विदेहराजवरकन्या मल्ली के रूप यौवन और लावण्य में मूर्च्छित, गृद्ध यावत् अत्यन्त लालायित होकर अनिमेष दृष्टि से बार – बार उसे देखने लगे। तत्पश्चात् विदेह राजवरकन्या मल्ली ने स्नान किया, यावत् कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त किया। वह समस्त अलंकारों से विभूषित होकर बहुत – सी कुब्जा आदि दासियों से यावत् परिवृत्त होकर जहाँ जालगृह था और जहाँ स्वर्ण की वह प्रतिमा थी, वहाँ आई। आकर उस स्वर्णप्रतिमा के मस्तक से वह कमल का ढक्कन हटा दिया। ढक्कन हटाते ही उसमें से ऐसी दुर्गन्ध छूटी कि जैसे मरे साँप की दुर्गन्ध हो, यावत् उससे भी अधिक अशुभ। तत्पश्चात् जितशत्रु वगैरह ने उस अशुभ गंध से अभिभूत होकर – घबराकर अपने – अपने उत्तरीय वस्त्रों से मुँह ढँक लिया। मुँह ढँक कर वे मुख फेर कर खड़े हो गए। तब विदेहराजवरकन्या मल्ली ने उन जितशत्रु आदि से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रियो ! किस कारण आप अपने – अपने उत्तरीय वस्त्र से मुँह ढँक कर यावत् मुँह फेर कर खड़े हो गए।’ तब जितशत्रु आदि ने विदेहराजवरकन्या मल्ली से कहा – ‘देवानुप्रिये ! हम इस अशुभ गंध से घबराकर अपने – अपने यावत् उत्तरीय वस्त्र से मुख ढँक कर विमुख हुए हैं।’ तत्पश्चात् विदेहराजवरकन्या मल्ली ने उन जितशत्रु आदि राजाओं से इस प्रकार कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! इस स्वर्णमयी प्रतिमा में प्रतिदिन मनोज्ञ अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार में से एक – एक पिण्ड डालते – डालते यह ऐसा अशुभ पुद्गल का परिणमन हुआ, तो यह औदारिक शरीर को कफ को झराने वाला है, खराब उच्छ्वास और निःश्वास नीकालने वाला है, अमनोज्ञ मूत्र एवं दुर्गन्धित मल से परिपूर्ण है, सड़ना, पड़ना, नष्ट होना और विध्वस्त होना इसका स्वभाव है, तो इसका परिणमन कैसा होगा ? अत एव हे देवानुप्रियो ! आप मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों में राग मत करो, गृद्धि मत करो, मोह मत करो और अतीव आसक्त मत होओ।’ मल्ली कुमारी ने पूर्वभव का स्मरण कराते हुए आगे कहा – ‘इस प्रकार हे देवानुप्रियो ! तुम और हम इससे पहले के तीसरे भव में, पश्चिम महाविदेहवर्ष में, सलिलावती विजय में, वीतशोका नामक राजधानी में महाबल आदि सातों – मित्र राजा थे। हम सातों साथ जन्मे थे, यावत् साथ ही दीक्षित हुए थे। हे देवानुप्रियो ! उस समय इस कारण से मैंने स्त्रीनामगोत्र कर्म का उपार्जन किया था – अगर तुम लोग एक उपवास करके विचरते थे, तो मैं तुम से छिपकर बेला करती थी, इत्यादि पूर्ववत्। तत्पश्चात् हे देवानुप्रियो ! तुम कालमास में काल करके – यथासमय देह त्याग कर जयन्त विमान में उत्पन्न हुए। वहाँ तुम्हारी कुछ कम बत्तीस सागरोपम की स्थिति हुई। तत्पश्चात् तुम उस देवलोक से अनन्तर शरीर त्याग करके – चय करके – इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्पन्न हुए, यावत् अपने – अपने राज्य प्राप्त करके विचर करके – इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्पन्न हुए, यावत् अपने – अपने राज्य प्राप्त करके विचर रहे हो। मैं उस देवलोक से आयु का क्षय होने पर कन्या के रूप में आई हूँ – जन्मी हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tesim jiyasattupamokkhanam chhanham rainam duya jeneva mihila teneva paharettha gamanae. Tae nam chhappi duyaga jeneva mihila teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta mihilae aggujjanamsi patteyam-patteyam khamdhavaranivesam karemti, karetta mihilam rayahanim anuppavisamti, anuppavisitta jeneva kumbhae teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta patteyam karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu sanam-sanam rainam vayanaim nivedemti. Tae nam se kumbhae tesim duyanam amtiyam eyamattham sochcha asurutte rutthe kuvie chamdikkie misimisemane tivaliyam bhiudim nidale sahattu evam vayasi–na demi nam aham tubbham mallim videha-rayavarakannam ti kattu te chhappi due asakkariya asammaniya avaddarenam nichchhubhavei. Tae nam te jiyasattupamokkhanam chhanham rainam duya kumbhaenam ranna asakkariya asammaniya avaddarenam nichchhubhaviya samana jeneva saya-saya janavaya jeneva sayaim-sayaim nagaraim jeneva saya-saya rayano teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–evam khalu sami! Amhe jiyasattupamokkhanam chhanham rainam duya jamagasamagam cheva jeneva mihila teneva uvagaya java avaddarenam nichchhubhavei. Tam na dei nam sami! Kumbhae mallim videharayavarakannam sanam-sanam rainam eyamattham nivedemti. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappi rayano tesim duyanam amtie eyamattham sochcha nisamma asurutta ruttha kuviya chamdikkiya misimisemana annamannassa duyasampesanam karemti, karetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amham chhanham rainam duya jamagasamagam cheva mihila teneva uvagaya java avaddarenam nichchhudha. Tam seyam khalu devanuppiya! Kumbhagassa jattam genhittae tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta nhaya sannaddha hatthikhamdhavaragaya sakoremtamalladamenam chhattenam dharijja-manenam seyavara-chamarahim viijjamana mahaya haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivuda savviddhie java dumdubhi-naiya-ravenam saehimto-saehimto nagarehimto niggachchhamti, niggachchhitta egayao milayamti, jeneva mahila teneva paharettha gamanae. Tae nam kumbhae raya imise kahae laddhatthe samane balavauyam saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva haya-gaya-raha-pavarajohakaliyam chauramginim senam sannahehi, sannahetta eyamanattiyam pachchappinahi sevi java pachchappinati. Tae nam kumbhae raya nhae sannaddhe hatthikhamdhavaragae sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim viijjamane mahaya haya-gaya-raha-pavara-johakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude savviddhie java dumdubhinaiyaravenam mihilam majjhammajjhenam nijjai, nijjavetta videha-janavayam majjhammajjhenam jeneva desaggam teneva khamdhavaranivesam karei, karetta jiyasattupamokkha chhappi ya rayano padivalemane jujjhasajje padichitthai. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappim rayano jeneva kumbhae raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta kumbhaena ranna saddhim sampalagga yavi hottha. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappi rayano kumbhayam rayam haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padagam kichchhovagayapanam disodisim padiseheti. Tae nam se kumbhae jiyasattupamokkhehim chhahim raihim haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-dhaya-padage kichchho-vagayapane disodisim padisehie samane atthame abale avirie apurisakkara-parakkame adharanijjamiti kattu siggham turiyam chavalam chamdam jainam veiyam jeneva mihila teneva uvagachchhai, uvagachchhitta mihilam anupavisai, anupavisitta mihilae duvaraim pihei, pihetta rohasajje chitthai. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappi rayano jeneva mihila teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta mihilam rayahanim nissamcharam niruchcharam savvao samamta orumbhitta nam chitthamti. Tae nam se kumbhae raya mihilam rayahanim oruddham janitta abbhimtariyae uvatthanasalae sihasanavaragae tesim jiyasattupamokkhanam chhanham rainam amtarani ya chhiddani ya vivarani ya mammani ya alabhamane bahuhim aehim ya uvaehim ya, uppattiyahi ya venaiyahi ya kammayahi ya parinamiyahi ya– buddhohim parinamemane-parinamemane kimchi ayam va uvayam va alabhamane ohayamanasamkappe karatalapalhatthamuhe attajjhanovagae jjhiyayai. Imam cha nam malli videharayavarakanna nhaya kayavalikamma kayakouyamamgalapayachchhitta savvalamkara-vibhusiya bahuhim khujjahim samparivuda jeneva kumbhae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kumbhagassa payaggahanam karei. Tae nam kumbhae mallim videharayavarakannam no adhai no pariyanai tusinie samchitthai. Tae nam malli videharayavarakanna kumbhagam evam vayasi–tubbhe nam tao! Annaya mamam ejjamanim pasitta adhaha pariyanaha amke niveseha. Iyanim tao! Tubbhe mamam no adhaha no pariyanaha no amke niveseha. Kinnam tubbham ajja ohaya manasamkappa karatalapalhatthamuha attajjhanovagaya jjhiyayaha? Tae nam kumbhae mallim videharayavarakannam evam vayasi–evam khalu putta! Tava kajje jiyasattupamokkhehim chhahim raihim duya sampesiya. Te nam mae asakkariya asammaniya avaddarenam nichchhudha. Tae nam jiyasattupamokkha chhappi rayano tesim duyanam amtie eyamattham sochcha parikuviya samana mihilam rayahanim nissamcharam niruchcharam savvao samamta orumbhitta nam chitthamti. Tae nam aham putta tesim jiyasattupamokkhanam chhanham rainam amtarani [ya chhiddani ya vivarani ya mammani ya?] alabhamane java attajjha-novagae jjhiyami. Tae nam sa malli videharayavarakanna kumbhagam rayam evam vayasi–manam tubbhe tao! Ohayamana-samkappa karatalapalhatthamuha attajjhanovagaya jjhiyayaha. Tubbhe nam tao! Tesim jiyasattu-pamokkhanam chhanham rainam patteyam-patteyam rahassie duyasampese kareha, egamegam evam vayaha–tava demi mallim videharayavarakannam ti kattu samjjhakalasamayamsi pavirala-manusamsi nisamta-padinisamtamsi patteyam-patteyam mihilam rayahanim anuppaveseha, anuppavesetta gabbhadharaesu anuppaveseha, anuppavesetta mihilae rayahanie duvaraim piheha, pihetta rohasajja chitthaha. Tae nam kumbhae tesim jiyasattupamokkhanam chhanham rainam patteyam-patteyam rahassie duyasampese karei java rohasajje chitthai. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappi rayano kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jalamtarehim kanagamaim matthayachhiddam paumuppala-pihanam padimam pasamti–esa nam malli videharayavarakannatti kattu mallie rayavarakannae ruve ya jovvane ya lavanne ya muchchhiya giddha gadiya ajjhovavanna animisae ditthie pehamana-pehamana chitthamti. Tae nam sa malli videharayavarakanna nhaya kayavalikamma kayakouya-mamgala-payachchhitta savvalamkaravibhusiya bahuhim khujjahim java parikkhitta jeneva jaladharae jeneva kanagamai matthaya-chhidda paumuppala-pihana padima teneva uvagachchhai, uva gachchhitta tise kanagamaie matthayachhiddae paumuppala-pihanae padimae matthayao tam paumuppala-pihanam avanei. Tao nam gamdhe niddhavei, se jahanamae–ahimade i va java etto asubhatarae cheva. Tae nam te jiyasattupamokkha chhappi rayano tenam asubhenam gamdhenam abhibhuya samana saehim-saehim uttarijjehim asaim pihemti, pihetta parammuha chitthamti. Tae nam sa malli videharayavarakanna te jiyasattupamokkhe evam vayasi–kinnam tubbhe devanuppiya! Saehim-saehim uttarijjehim asaim pihetta parammuha chitthaha? Tae nam te jiyasattupamokkha mallim videharayavarakannam evam vayamti–evam khalu devanuppie! Amhe imenam asubhenam gamdhenam abhibhuya samana saehim-saehim uttarijjehim asaim pihetta chitthamo. Tae nam malli videharayavarakanna te jiyasattupamokkhe evam vayasi–jai tava devanuppiya! Imise kanagamaie matthayachhiddae paumuppala-pihanae padimae kallakallim tao manunnao asana-pana-khaima-saimao egamege pimde pakkhippamane-pakkhippamane imeyaruve asubhe poggala-pariname, imassa puna oraliyasarirassa khelasavassa vamtasavassa pittasavassa sukka savassa soniya-puyasavassa duruya-usasa-nisasassa duruya-mutta-puiya-purisa-punnassa sadana-padana-chheyana-viddhamsana-dhammassa kerisae ya pariname bhavissai? Tam manam tubbhe devanuppiya! Manussaesu kamabhogesu sajjaha rajjaha gijjhaha mujjhaha ajjhovavajjaha evam khalu devanuppiya! Amhe imao tachche bhavaggahane avaravidehavase salilavatimsi vijae viyasogae rayahanie mahabbalapamokkha sattavi ya balavayamsaya rayano hottha–sahajaya java pavvaiya. Tae nam aham devanuppiya! Imenam karanenam itthinamagoyam kammam nivvattemi– jai nam tubbhe chauttham uvasampajjitta nam viharai, tae nam aham chhattham uvasampajjitta nam viharami sesam taheva savvam. Tae nam tubbhe devanuppiya! Kalamase kalam kichcha jayamte vimane uvavanna. Tattha nam tubbham desunaim battisam sagarovamaim thii. Tae nam tubbhe tao devalogao anamtaram chayam chaitta iheva jambuddive dive java saim-saim rajjaim uvasampajjitta nam viharai. Tae nam aham tao devalogao aukkhaenam java dariyattae pachchayaya. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isa prakara una jitashatru prabhriti chhahom rajaom ke duta, jaham mithila nagari thi vaham jane ke lie ravana ho gae. Chhahom duta jaham mithila thi, vaham ae. Mithila ke pradhana udyana mem saba ne alaga – alaga parava dale. Phira mithila rajadhani mem pravesha karake kumbha raja ke pasa ae. Pratyeka – pratyeka ne donom hatha jore aura apane – apane rajaom ke vachana nivedana kie. Kumbha raja una dutom se yaha bata sunakara ekadama kruddha ho gaya. Yavat lalata para tina sala dalakara usane kaha – ‘maim tumhem videharaja ki uttama kanya malli nahim deta.’ chhahom ka satkara – sammana na karake unhem pichhe ke dvara se nikala diya. Kumbha raja ke dvara asatkarita, asammanita aura apadvara se nishkasita ve chhahom rajaom ke duta jaham apane – apane janapada the, jaham apane – apane nagara the aura jaham apane – apane raja the, vaham pahumchakara hatha jorakara evam mastaka para amjali karake isa prakara kahane lage – ‘isa prakara he svamin ! Hama jitashatru vagairaha chhaha rajaom ke duta eka satha hi jaham mithila nagari thi, vaham pahumche. Magara yavat raja kumbha ne satkara – sammana na karake hamem apadvara se nikala diya. So he svamin ! Kumbha raja videharajavarakanya malli apa ko nahim deta.’ dutom ne apane – apane rajaom se yaha artha – vrittanta nivedana kiya. Tatpashchat ve jitashatru vagairaha chhahom raja una dutom se isa artha ko sunakara kupita hue. Unhomne eka dusare ke pasa duta bheje aura isa prakara kahalavaya – ‘he devanupriya ! Hama chhahom rajaom ke duta eka satha hi yavat nikala diye gae. Ata eva he devanupriya ! Hama logom ko kumbha raja ki aura prayana karana chahie.’ isa prakara kahakara unhomne eka dusare ki bata svikara ki. Svikara karake snana kiya sannaddha hue. Hathi ke skandha para arurha hue. Koramta vriksha ke phulom ki mala vala chhatra dharana kiya. Shveta chamara una para rhore jane lage. Bare – bare ghorom, hathiyom, rathom aura uttama yoddhaom sahita chaturamgini sena se parivritta hokara, sarva riddhi ke satha, yavat dumdubhi ki dhvani ke satha apane – apane nagarom se nikale. Eka jagaha ikatthe hokara jaham mithila nagari thi, vaham jane ke lie taiyara hue. Tatpashchat kumbha raja ne isa katha ka artha janakara apane senapati ko bulakara kaha – ‘he devanupriya ! Shighra hi ghorom, hathiyom, rathom aura uttama yoddhaom se yukta chaturamgi sena taiyara karo.’ yavat senapati ne sena ko taiyara karake ajnya vapisa lautai. Tatpashchat kumbha raja ne snana kiya. Kavacha dharana karake sannaddha hua. Shreshtha hathi ke skandha para arurha hua. Koramta ke phulom ki mala vala chhatra dharana kiya. Usake upara shreshtha aura shveta chamara rhore jane lage. Yavat mithila rajadhani ke madhya mem hokara nikala. Videha janapada ke madhya mem hokara jaham apane desha ka anta tha, vaham aya. Vaham parava dala. Jitashatru prabhriti chhahom rajaom ki pratiksha karata hua yuddha ke lie sajja hokara thahara gaya. Tatpashchat ve jitashatru prabhriti chhahom raja, jaham kumbha raja tha, vaham akara kumbha raja ke satha yuddha karane mem pravritta ho gae. Tatpashchat una jitashatru prabhriti chhahom rajaom ne kumbha raja ke senya ka hanana kiya, mamthana kiya, usake atyuttama yoddhaom ka ghata kiya, usaki chihna rupa dhvaja aura pataka ko chhinna – bhinna karake niche gira diya. Usake prana samkata mem para gae. Usaki sena charom dishaom mem bhaga nikali. Taba vaha kumbha raja jitashatru adi chhaha rajaom ke dvara hata, manamardita yavat jisaki sena charom ora bhaga khari hui hai aisa hokara, samarthyahina, balahina, purushartha – parakramahina, tvara ke satha, yavat vega ke satha jaham mithila nagari thi, vaham aya. Mithila nagari mem pravishta hokara usane mithila ke dvara banda kara lie. Kile ka rodha karane mem sajja hokara thahara. Jitashatru prabhriti chhahom naresha jaham mithila nagari thi, vaham ae. Mithila rajadhani ko manushyom ke gamanagamana se rahita kara diya, yaham taka ki kota ke upara se bhi avagamana roka diya athava mala tyagane ke lie bhi ana – jana roka diya. Unhomne nagari ko charom ora se ghera liya. Kumbha raja mithila rajadhani ko ghiri janakara abhyantara upa – sthanashala mem shreshtha simhasana para baitha. Vaha jitashatru adi chhahom rajaom ke chhidrom ko, vivarom ko aura marma ko pa nahim saka. Ata eva bahuta se ayom se, upayom se tatha autpattiki adi charom prakara ki buddhi se vichara karate – karate koi bhi aya ya upaya na pa saka. Taba usake mana ka samkalpa kshina ho gaya, yavat vaha hatheli para mukha rakhakara arttadhyana karane laga – chinta mem duba gaya. Idhara videharajavarakanya malli ne snana kiya, yavat bahuta – si kubja adi dasiyom se parivritta hokara jaham kumbha raja tha, vaham ai. Akara usane kumbha raja ka charana grahana kiya – paira chhue. Taba kumbha raja ne videharajavarakanya malli ka adara nahim kiya, atyanta gahari chinta mem vyagra hone ke karana use usaka ana bhi maluma nahim hua, ata eva vaha mauna hi raha. Tatpashchat videharajavarakanya malli ne raja kumbha se isa prakara kaha – ‘he tata ! Dusare samaya mujhe ati dekhakara apa yavat mera adara karate the, prasanna hote the, goda mem bithate the, parantu kya karana hai ki aja apa avahata manasika samkalpa vale hokara chinta kara rahe haim\?’ taba raja kumbha ne videha – rajavarakanya malli se isa prakara kaha – ‘he putri ! Isa prakara tumhare lie jitashatru prabhriti chhaha rajaom ne duta bheje the. Maimne una dutom ko apamanita karake yavat nikalava diya. Taba ve kupita ho gae. Unhomne mithila rajadhani ko gamanagamanahina bana diya hai, yavat charom ora ghera dalakara baithe haim. Ata eva he putri ! Maim una jitashatru prabhriti nareshom ke antara – chhidra adi na pata hua yavat chinta mem duba hum.’ Tatpashchat videharajavarakanya malli ne raja kumbha se isa prakara kaha – tata ! Apa avahata manasika samkalpa vale hokara chinta na kijie. He tata ! Apa una jitashatru adi chhahom rajaom mem se pratyeka ke pasa gupta rupa se duta bheja dijie aura pratyeka ko yaha kahala dijie ki ‘maim videharajavarakanya tumhem deta hum.’ aisa kahakara sandhyakala ke avasara para jaba birale manushya gamanagamana karate hom aura vishrama ke lie apane – apane gharom mem manushya baithe hom; usa samaya alaga – alaga raja ka mithila rajadhani ke bhitara pravesha karaie. Unhem garbhagriha ke andara le jaie. Phira mithila rajadhani ke dvara banda kara dijie aura nagarom ke rodha mem sajja hokara thaharie. Tatpashchat raja kumbha ne isi prakara kiya. Yavat chhahom rajaom ko pravesha karaya. Vaha nagari ke rodha mem sajja hokara thahara. Tatpashchat jitashatru adi chhahom raja dusare dina pratahkala jaliyom mem se svarnamayi, mastaka para chhidra vali aura kamala ke dhakkana vali malli ki pratima ko dekhane lage. ‘yahi videharaja ki shreshtha kanya malli hai’ aisa janakara videharajavarakanya malli ke rupa yauvana aura lavanya mem murchchhita, griddha yavat atyanta lalayita hokara animesha drishti se bara – bara use dekhane lage. Tatpashchat videha rajavarakanya malli ne snana kiya, yavat kautuka, mamgala, prayashchitta kiya. Vaha samasta alamkarom se vibhushita hokara bahuta – si kubja adi dasiyom se yavat parivritta hokara jaham jalagriha tha aura jaham svarna ki vaha pratima thi, vaham ai. Akara usa svarnapratima ke mastaka se vaha kamala ka dhakkana hata diya. Dhakkana hatate hi usamem se aisi durgandha chhuti ki jaise mare sampa ki durgandha ho, yavat usase bhi adhika ashubha. Tatpashchat jitashatru vagairaha ne usa ashubha gamdha se abhibhuta hokara – ghabarakara apane – apane uttariya vastrom se mumha dhamka liya. Mumha dhamka kara ve mukha phera kara khare ho gae. Taba videharajavarakanya malli ne una jitashatru adi se isa prakara kaha – ‘devanupriyo ! Kisa karana apa apane – apane uttariya vastra se mumha dhamka kara yavat mumha phera kara khare ho gae.’ taba jitashatru adi ne videharajavarakanya malli se kaha – ‘devanupriye ! Hama isa ashubha gamdha se ghabarakara apane – apane yavat uttariya vastra se mukha dhamka kara vimukha hue haim.’ tatpashchat videharajavarakanya malli ne una jitashatru adi rajaom se isa prakara kaha – ‘he devanupriyo ! Isa svarnamayi pratima mem pratidina manojnya ashana, pana, khadima aura svadima ahara mem se eka – eka pinda dalate – dalate yaha aisa ashubha pudgala ka parinamana hua, to yaha audarika sharira ko kapha ko jharane vala hai, kharaba uchchhvasa aura nihshvasa nikalane vala hai, amanojnya mutra evam durgandhita mala se paripurna hai, sarana, parana, nashta hona aura vidhvasta hona isaka svabhava hai, to isaka parinamana kaisa hoga\? Ata eva he devanupriyo ! Apa manushya sambandhi kamabhogom mem raga mata karo, griddhi mata karo, moha mata karo aura ativa asakta mata hoo.’ Malli kumari ne purvabhava ka smarana karate hue age kaha – ‘isa prakara he devanupriyo ! Tuma aura hama isase pahale ke tisare bhava mem, pashchima mahavidehavarsha mem, salilavati vijaya mem, vitashoka namaka rajadhani mem mahabala adi satom – mitra raja the. Hama satom satha janme the, yavat satha hi dikshita hue the. He devanupriyo ! Usa samaya isa karana se maimne strinamagotra karma ka uparjana kiya tha – agara tuma loga eka upavasa karake vicharate the, to maim tuma se chhipakara bela karati thi, ityadi purvavat. Tatpashchat he devanupriyo ! Tuma kalamasa mem kala karake – yathasamaya deha tyaga kara jayanta vimana mem utpanna hue. Vaham tumhari kuchha kama battisa sagaropama ki sthiti hui. Tatpashchat tuma usa devaloka se anantara sharira tyaga karake – chaya karake – isi jambudvipa namaka dvipa mem utpanna hue, yavat apane – apane rajya prapta karake vichara karake – isi jambudvipa namaka dvipa mem utpanna hue, yavat apane – apane rajya prapta karake vichara rahe ho. Maim usa devaloka se ayu ka kshaya hone para kanya ke rupa mem ai hum – janmi hum. |