Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

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Sr No : 1004736
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 36 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जद्दिवसं च णं मेहे कुमारे मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तस्स णं दिवसस्स पच्चावरण्हकालसमयंसि समणाणं निग्गंथाणं अहाराइणियाए सेज्जा संथारएसु विभज्जमाणेसु मेहकुमारस्स दारमूले सेज्जा-संथारए जाए यावि होत्था। तए णं समणा निग्गंथा पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चा-रस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया मेहं कुमारं हत्थेहिं संघट्टेंति अप्पेगइया पाएहिं संघट्टेंति अप्पे गइया सीसे संघट्टेंति अप्पेटइया पीट्ठे संघट्टेंति अप्पेगइया कायंसि संघट्टेंति अप्पेगइया ओलंडेंति अप्पेगइया पोलंडेंति अप्पेगइया पाय-रय-रेणु-गुंडियं करेंति। एमहालियं च रयणिं मेहे कुमारे नो संचाएइ खणमवि अच्छिं निमीलित्तए। तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं सेणियस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए देवीए अत्तए मेहे इट्ठे कंते पिए मणुण्णे मणामे थेज्जे वेसासिए सम्मए बहुमए अनुमए भंडक-रंडगसमाणे रयणे रयणभूए जीविय-उस्सासए हियय-नंदि-जणणे उंबर-पुप्फं व दुल्लहे सवणयाए। तं जया णं अहं अगारमज्झावसामि तया णं मम समणा निग्गंथा आढायंति परियाणंति सक्कारेंति सम्माणेंति, अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं आइक्खंति, इट्ठाहिं कंताहिं वग्गूहिं आलवेंति संलवेंति। जप्पभिइं च णं अहं मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं ममं समणा निग्गंथा नो आढायंति नो परियाणंति नो सक्कारेंति नो सम्माणेंति नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं आइ-क्खंति, नो इट्ठाहिं कंताहिं वग्गूहिं आलवेंति० संलवेंती। ... ...अदुत्तरं च णं ममं समणा निग्गंथा राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणा य निग्गच्छमाणा य अप्पेगइया हत्थेहिं संघट्टेंति अप्पेगइया पाएहिं संघट्टेंति अप्पेगइया सीसे संघट्टेंति अप्पेगइया पोट्टे संघट्टेंति, अप्पेगइया कायंसि संघट्टेंति अप्पेगइया ओलंडेंति अप्पेगइया पोलंडेंति अप्पेगइया पाय-रय-रेणु-गुंडियं करेंति। एमहालियं च णं रत्तिं अहं नो संचाएमि अच्छिं निमिल्लावेत्तए। तं सेयं खलु मज्झ कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं आपुच्छित्ता पुणरवि अगारमज्झावसित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता अट्ट-दुहट्ट-वसट्ट-माण-सगए निरयपडिरूवियं च णं तं रयणिं खवेइ, खवेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए सुविमलाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ जाव पज्जुवासइ।
Sutra Meaning : जिस दिन मेघकुमार ने मुंडित होकर गृहवास त्याग कर चारित्र अंगिकार किया, उसी दिन के सन्ध्याकाल में रात्निक क्रम में अर्थात्‌ दीक्षापर्याय के अनुक्रम से, श्रमण निर्ग्रन्थों के शय्या – संस्तारकों का विभाजन करते समय मेघकुमार का शय्या – संस्तारक द्वार के समीप हुआ। तत्पश्चात्‌ श्रमण निर्ग्रन्थ अर्थात्‌ अन्य मुनि रात्रि के पहले और पीछले समय में वाचना के लिए, पृच्छना के लिए, परावर्तन के लिए, धर्म के व्याख्यान का चिन्तन करने के लिए, उच्चार के लिए एवं प्रस्रवण के लिए प्रवेश करते थे और बाहर नीकलते थे। उनमें से किसी – किसी साधु के हाथ का मेघकुमार के साथ संघट्टन हुआ, इसी प्रकार किसी के पैर की मस्तक से और किसी के पैर की पेट से टक्कर हुई। कोई – कोई मेघकुमार को लाँघ कर नीकले और किसी – किसी ने दो – तीन बार लाँघा। किसी – किसी ने अपने पैरों की रज से उसे भर दिया या पैरों के वेग से उड़ती हुई रज से वह भर गया। इस प्रकार लम्बी रात्रि में मेघकुमार क्षणभर भी आँख बन्द नहीं कर सका। तब मेघकुमार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ – ‘मैं श्रेणिक राजा का पुत्र और धारिणी देवी का आत्मज मेघकुमार हूँ। गूलर के पुष्प के समान मेरा नाम श्रवण करना भी दुर्लभ है। जब मैं घर रहता था, तब श्रमण निर्ग्रन्थ मेरा आदर करते थे, ‘यह कुमार ऐसा है’ इस प्रकार जानते थे, सत्कार – सन्मान करते थे, जीवादि पदार्थों को, उन्हें सिद्ध करने वाले हेतुओं को, प्रश्नों को, कारणों को और व्याकरणों को कहते थे और बार – बार कहते थे। इष्ट और मनोहर वाणी से मेरे साथ आलाप – संलाप करते थे। किन्तु जब से मैंने मुण्डित होकर, गृहवास से नीकलकर साधु – दीक्षा अंगीकार की है, तब से लेकर साधु मेरा आदर नहीं करते, यावत्‌ आलाप – संलाप नहीं करते। तिस पर भी वे श्रमण निर्ग्रन्थ पहली और पीछली रात्रि के समय वाचना, पृच्छना आदि के लिए आते – जाते मेरे संस्तारक को लाँघते हैं और मैं इतनी लम्बी रातभर में आँख भी न मीच सका। अत एव कल रात्रि के प्रभात रूप होने पर यावत्‌ तेज जाज्वल्यमान होने पर श्रमण भगवान महावीर से आज्ञा लेकर पुनः गृहवास में बसना ही मेरे लिए अच्छा है।’ मेघकुमार ने ऐसा विचार किया। विचार करके आर्त्तध्यान के कारण दुःख से पीड़ित और विकल्प – युक्त मानस को प्राप्त होकर मेघकुमार ने वह रात्रि नरक की भाँति व्यतीत की। रात्रि व्यतीत करके प्रभात होने पर, सूर्य के तेज से जाज्वल्यमान होने पर, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आया। आकर तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके भगवान को वन्दन किया, नमस्कार किया। वन्दन नमस्कार करके यावत्‌ भगवान की पर्युपासना करने लगा।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jaddivasam cha nam mehe kumare mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, tassa nam divasassa pachchavaranhakalasamayamsi samananam niggamthanam aharainiyae sejja samtharaesu vibhajjamanesu mehakumarassa daramule sejja-samtharae jae yavi hottha. Tae nam samana niggamtha puvvarattavarattakalasamayamsi vayanae puchchhanae pariyattanae dhammanujogachimtae ya uchcha-rassa va pasavanassa va aigachchhamana ya niggachchhamana ya appegaiya meham kumaram hatthehim samghattemti appegaiya paehim samghattemti appe gaiya sise samghattemti appetaiya pitthe samghattemti appegaiya kayamsi samghattemti appegaiya olamdemti appegaiya polamdemti appegaiya paya-raya-renu-gumdiyam karemti. Emahaliyam cha rayanim mehe kumare no samchaei khanamavi achchhim nimilittae. Tae nam tassa mehassa kumarassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham seniyassa ranno putte dharinie devie attae mehe itthe kamte pie manunne maname thejje vesasie sammae bahumae anumae bhamdaka-ramdagasamane rayane rayanabhue jiviya-ussasae hiyaya-namdi-janane umbara-puppham va dullahe savanayae. Tam jaya nam aham agaramajjhavasami taya nam mama samana niggamtha adhayamti pariyanamti sakkaremti sammanemti, atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim aikkhamti, itthahim kamtahim vagguhim alavemti samlavemti. Jappabhiim cha nam aham mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaie, tappabhiim cha nam mamam samana niggamtha no adhayamti no pariyanamti no sakkaremti no sammanemti no atthaim heuim pasinaim karanaim vagaranaim ai-kkhamti, no itthahim kamtahim vagguhim alavemti0 samlavemti.. ..Aduttaram cha nam mamam samana niggamtha rao puvvarattavarattakalasamayamsi vayanae puchchhanae pariyattanae dhammanujogachimtae ya uchcharassa va pasavanassa va aigachchhamana ya niggachchhamana ya appegaiya hatthehim samghattemti appegaiya paehim samghattemti appegaiya sise samghattemti appegaiya potte samghattemti, appegaiya kayamsi samghattemti appegaiya olamdemti appegaiya polamdemti appegaiya paya-raya-renu-gumdiyam karemti. Emahaliyam cha nam rattim aham no samchaemi achchhim nimillavettae. Tam seyam khalu majjha kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte samanam bhagavam mahaviram apuchchhitta punaravi agaramajjhavasittae tti kattu evam sampehei, sampehetta atta-duhatta-vasatta-mana-sagae nirayapadiruviyam cha nam tam rayanim khavei, khavetta kallam pauppabhayae suvimalae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai java pajjuvasai.
Sutra Meaning Transliteration : Jisa dina meghakumara ne mumdita hokara grihavasa tyaga kara charitra amgikara kiya, usi dina ke sandhyakala mem ratnika krama mem arthat dikshaparyaya ke anukrama se, shramana nirgranthom ke shayya – samstarakom ka vibhajana karate samaya meghakumara ka shayya – samstaraka dvara ke samipa hua. Tatpashchat shramana nirgrantha arthat anya muni ratri ke pahale aura pichhale samaya mem vachana ke lie, prichchhana ke lie, paravartana ke lie, dharma ke vyakhyana ka chintana karane ke lie, uchchara ke lie evam prasravana ke lie pravesha karate the aura bahara nikalate the. Unamem se kisi – kisi sadhu ke hatha ka meghakumara ke satha samghattana hua, isi prakara kisi ke paira ki mastaka se aura kisi ke paira ki peta se takkara hui. Koi – koi meghakumara ko lamgha kara nikale aura kisi – kisi ne do – tina bara lamgha. Kisi – kisi ne apane pairom ki raja se use bhara diya ya pairom ke vega se urati hui raja se vaha bhara gaya. Isa prakara lambi ratri mem meghakumara kshanabhara bhi amkha banda nahim kara saka. Taba meghakumara ke mana mem isa prakara ka adhyavasaya utpanna hua – ‘maim shrenika raja ka putra aura dharini devi ka atmaja meghakumara hum. Gulara ke pushpa ke samana mera nama shravana karana bhi durlabha hai. Jaba maim ghara rahata tha, taba shramana nirgrantha mera adara karate the, ‘yaha kumara aisa hai’ isa prakara janate the, satkara – sanmana karate the, jivadi padarthom ko, unhem siddha karane vale hetuom ko, prashnom ko, karanom ko aura vyakaranom ko kahate the aura bara – bara kahate the. Ishta aura manohara vani se mere satha alapa – samlapa karate the. Kintu jaba se maimne mundita hokara, grihavasa se nikalakara sadhu – diksha amgikara ki hai, taba se lekara sadhu mera adara nahim karate, yavat alapa – samlapa nahim karate. Tisa para bhi ve shramana nirgrantha pahali aura pichhali ratri ke samaya vachana, prichchhana adi ke lie ate – jate mere samstaraka ko lamghate haim aura maim itani lambi ratabhara mem amkha bhi na micha saka. Ata eva kala ratri ke prabhata rupa hone para yavat teja jajvalyamana hone para shramana bhagavana mahavira se ajnya lekara punah grihavasa mem basana hi mere lie achchha hai.’ meghakumara ne aisa vichara kiya. Vichara karake arttadhyana ke karana duhkha se pirita aura vikalpa – yukta manasa ko prapta hokara meghakumara ne vaha ratri naraka ki bhamti vyatita ki. Ratri vyatita karake prabhata hone para, surya ke teja se jajvalyamana hone para, jaham shramana bhagavana mahavira the, vaham aya. Akara tina bara adakshina – pradakshina ki. Pradakshina karake bhagavana ko vandana kiya, namaskara kiya. Vandana namaskara karake yavat bhagavana ki paryupasana karane laga.