Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1004731
Scripture Name( English ): Gyatadharmakatha Translated Scripture Name : धर्मकथांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Translated Chapter :

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Section : Translated Section :
Sutra Number : 31 Category : Ang-06
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। एयमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वयहं। नवरि देवानुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तओ पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइस्सामि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से मेहे कुमारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जेणामेव चाउग्घंटे आसरहे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ, महया भड-चडगर-पहकरेणं रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं जेणामेव सए भवणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटाओ आसरहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणामेव अम्मापियरो तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अम्मापिऊणं पायवडणं करेइ, करेत्ता एवं वयासी–एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तए णं तस्स मेहस्स अम्मापियरो एवं वयासी–धन्नोसि तुमं जाया! संपुण्णो सि तुमं जाया! कयत्थो सि तुमं जाया! कयलक्खणो सि तुमं जाया! जन्नं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तए णं से मेहे कुमारे अम्मापियरो दोच्चंपि एवं वयासी–एवं खलु अम्मयाओ! मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते, से वि य मे धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। तं इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। तए णं सा धारिणी देवी तं अणिट्ठं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुयपुव्वं फरुसं गिरं सोच्चा निसम्म इमेणं एयारूवेणं मणोमाणसिएणं महया पुत्तदुक्खेणं अभिभूया समाणी सेयागय-रोमकूवपगलंत-चिलिणगाया सोयभर-पवेवियंगी नित्तेया दीन-विमन-वयणा करयलमलिय व्व कमलमाला तक्खणओ-लुग्गदुब्बलसरीर-लावण्णसुन्न-निच्छाय-गयसिरीया-पसिढिल-भूसण-पडंत खुम्मिय-संचण्णियधवलवलय-पब्भट्ठउत्तरिज्जा सूमाल-विकिण्ण-केसहत्था मुच्छावस-नट्ठचेय-गरुई परसुनियत्त व्व चंप-गलया निव्वत्तमहे व्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि सव्वंगेहिं धसत्ति पडिया। तए णं सा धारिणी देवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिंगारमुहविणिग्गय-सीयलजल-विमलधाराए परिसिंचमाण-निव्वावियगायलट्ठी उक्खेवय-तालविंट-बीयणग-जणियवाएणं सफुसि-एणं अंतेउर-परिजणेणं आसासिया समाणी मुत्तावलि-सन्निगास-पवडंत-अंसुधाराहिं सिंचमाणी पओहरे, कलुण-विमन-दीणा रोयमाणी कंदमाणी तिप्पमाणी सोयमाणी विलवमाणी मेहं कुमारं एवं वयासी–
Sutra Meaning : तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर के पास मेघकुमारने धर्म श्रवण करके, उसे हृदयमें धारण करके, हृष्ट – तुष्ट होकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की। प्रदक्षिणा करके वन्दन – नमस्कार किया। इस प्रकार कहा – भगवन्‌ ! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करता हूँ, उसे सर्वोत्तम स्वीकार करता हूँ, मैं उस पर प्रतीति करता हूँ। मुझे निर्ग्रन्थ प्रवचन रुचता है, मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन को अंगीकार करना चाहता हूँ, पुनः पुनः ईच्छा की है, भगवन्‌ ! यह ईच्छित और पुनः पुनः ईच्छित है। यह वैसा ही है जैसा आप कहते हैं। विशेष बात यह है कि हे देवानुप्रिय ! मैं अपने माता – पिता की आज्ञा ले लूँ, तत्पश्चात्‌ मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करूँगा। भगवान ने कहा – ‘देवानुप्रिय ! जिससे तुझे सुख उपजे वह कर, उसमें विलम्ब न करना।’ तत्पश्चात्‌ मेघकुमार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन किया, नमस्कार किया, वन्दन – नमस्कार करके जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहाँ आया। आकर चार घंटाओं वाले अश्व – रथ पर आरूढ़ हुआ। आरूढ़ होकर महान सुभटों और बड़े समूह वाले परिवारके साथ राजगृह के बीचों – बीच होकर अपने घर आया। चार घंटाओं वाले अश्व – रथ से ऊतरा। उतरकर जहाँ उसके माता – पिता थे, वहीं पहुँचा। पहुँचकर माता – पिता के पैरों में प्रणाम किया। प्रणाम करके उसने इस प्रकार कहा – ‘हे माता – पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर के समीप धर्म श्रवण किया है और मैंने उस धर्म की ईच्छा की है, बार – बार ईच्छा की है। वह मुझे रुचा है।’ तब मेघकुमार के माता – पिता इस प्रकार बोले – ‘पुत्र! तुम धन्य हो, पुत्र! तुम पूरे पुण्यवान हो, हे पुत्र! तुम कृतार्थ हो कि तुमने श्रमण भगवान महावीर के निकट धर्म श्रवण किया है और वह धर्म तुम्हें इष्ट, पुनः पुनः इष्ट और रुचिकर भी हुआ है।’ तत्पश्चात्‌ मेघकुमार माता – पिता से दूसरी बार और तीसरी बार इस प्रकार कहने लगा ‘हे माता – पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर से धर्म श्रवण किया है। उस धर्म की मैंने ईच्छा की है, बार – बार ईच्छा की है, वह मुझे रुचिकर हुआ है। अत एव है माता – पिता ! मैं आपकी अनुमति प्राप्त करके श्रमण भगवान महावीर के समीप मुण्डित होकर, गृहवास त्याग कर अनगारिता की प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ – मुनिदीक्षा लेना चाहता हूँ। तब धारिणी देवी इस अनिष्ट, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम, पहले कभी न सूनी हुई, कठोर वाणी को सूनकर और हृदय में धारण करके महान्‌ पुत्र – वियोग के मानसिक दुःख से पीड़ित हुई। उसके रोमकूपों में पसीना आकर अंगों से पसीना झरने लगा। शोक की अधिकता से उसके अंग काँपने लगे। वह निस्तेज हो गई। दीन और विमनस्क हो गई। हथेली से मली हुई कमल की माला के समान हो गई। ‘मैं प्रव्रज्या अंगीकार करना चाहता हूँ यह शब्द सूनने के क्षण में ही वह दुःखी और दुर्बल हो गई। वह लावण्यरहित हो गई, कान्तिहीन हो गई, श्रीविहीन हो गई, शरीर दुर्बल होने से उसके पहने हुए अलंकार अत्यन्त ढ़ीले हो गए, हाथों में पहने हुए उत्तम वलय खिसक कर भूमि पर जा पड़े और चूर – चूर हो गए। उसका उत्तरीय वस्त्र खिसक गया। सुकुमार केशपाश बिखर गया। मूर्च्छा के वश होने से चित्त नष्ट हो गया – वह बेहोश हो गई। परशु से काटी हुई चंपकलता के समान तथा महोत्सव सम्पन्न हो जाने के पश्चात्‌ इन्द्रध्वज के समान प्रतीत होने लगी। उसके शरीर के जोड़ ढीले पड़ गए। ऐसी अवस्था होने से वह धारिणी देवी सर्व अंगों से धस्‌ – धड़ाम से पृथ्वीतल पर गिर पड़ी। तत्पश्चात्‌ वह धारिणी देवी, संभ्रम के साथ शीघ्रता से सुवर्णकलश के मुख से नीकली हुई शीतल की निर्मल धारा से सिंचन की गई अर्थात्‌ उस पर ठंडा जल छिड़का गया। अत एव उसका शरीर शीतल हो गया। उत्क्षेपक से, तालवृन्त से तथा वीजनक से उत्पन्न हुई तथा जलकणों से युक्त वायु से अन्तःपुर के परिजनों द्वारा उसे आश्वासन दिया गया। तब वह होश में आई। अब धारिणी देवी मोतियों की लड़ी के समान अश्रुधार से अपने स्तनों को सींचने – भिगोने लगी। वह दयनीय, विमनस्क और दीन हो गई। वह रुदन करती हुई, क्रन्दन करती हुई, पसीना एवं लार टपकाती हुई, हृदयमें शोक करती हुई, विलाप करती हुई मेघकुमार से इस प्रकार कहने लगी –
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se mehe kumare samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatutthe samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi- Saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam. Pattiyami nam bhamte! Niggamtham pavayanam. Roemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam. Abbhutthemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam. Eyameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Avitahameyam bhamte! Ichchhiyameyam bhamte! Padichchhiyameyam bhamte! Ichchhiya-padichchhiyameyam bhamte! Se jaheyam tubbhe vayaham. Navari devanuppiya! Ammapiyaro apuchchhami. Tao pachchha mumde bhavitta nam agarao anagariyam pavvaissami. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se mehe kumare samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta jenameva chaugghamte asarahe tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham duruhai, mahaya bhada-chadagara-pahakarenam rayagihassa nagarassa majjhammajjhenam jenameva sae bhavane tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtao asarahao pachchoruhai, pachchoruhitta jenameva ammapiyaro tenameva uvagachchhai, uvagachchhitta ammapiunam payavadanam karei, karetta evam vayasi–evam khalu ammayao! Mae samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhamme nisamte, se vi ya me dhamme ichchhie padichchhie abhiruie. Tae nam tassa mehassa ammapiyaro evam vayasi–dhannosi tumam jaya! Sampunno si tumam jaya! Kayattho si tumam jaya! Kayalakkhano si tumam jaya! Jannam tume samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhamme nisamte, se vi ya te dhamme ichchhie padichchhie abhiruie. Tae nam se mehe kumare ammapiyaro dochchampi evam vayasi–evam khalu ammayao! Mae samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhamme nisamte, se vi ya me dhamme ichchhie padichchhie abhiruie. Tam ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae samane samanassa bhagavao mahavirassa amtie mumde bhavitta nam agarao anagariyam pavvaittae. Tae nam sa dharini devi tam anittham akamtam appiyam amanunnam amanamam asuyapuvvam pharusam giram sochcha nisamma imenam eyaruvenam manomanasienam mahaya puttadukkhenam abhibhuya samani seyagaya-romakuvapagalamta-chilinagaya soyabhara-paveviyamgi nitteya dina-vimana-vayana karayalamaliya vva kamalamala takkhanao-luggadubbalasarira-lavannasunna-nichchhaya-gayasiriya-pasidhila-bhusana-padamta khummiya-samchanniyadhavalavalaya-pabbhatthauttarijja sumala-vikinna-kesahattha muchchhavasa-natthacheya-garui parasuniyatta vva champa-galaya nivvattamahe vva imdalatthi vimukkasamdhibamdhana kottimatalamsi savvamgehim dhasatti padiya. Tae nam sa dharini devi sasambhamovattiyae turiyam kamchanabhimgaramuhaviniggaya-siyalajala-vimaladharae parisimchamana-nivvaviyagayalatthi ukkhevaya-talavimta-biyanaga-janiyavaenam saphusi-enam amteura-parijanenam asasiya samani muttavali-sannigasa-pavadamta-amsudharahim simchamani paohare, kaluna-vimana-dina royamani kamdamani tippamani soyamani vilavamani meham kumaram evam vayasi–
Sutra Meaning Transliteration : Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ke pasa meghakumarane dharma shravana karake, use hridayamem dharana karake, hrishta – tushta hokara shramana bhagavana mahavira ko tina bara dahini ora se arambha karake pradakshina ki. Pradakshina karake vandana – namaskara kiya. Isa prakara kaha – bhagavan ! Maim nirgrantha pravachana para shraddha karata hum, use sarvottama svikara karata hum, maim usa para pratiti karata hum. Mujhe nirgrantha pravachana ruchata hai, maim nirgrantha pravachana ko amgikara karana chahata hum, punah punah ichchha ki hai, bhagavan ! Yaha ichchhita aura punah punah ichchhita hai. Yaha vaisa hi hai jaisa apa kahate haim. Vishesha bata yaha hai ki he devanupriya ! Maim apane mata – pita ki ajnya le lum, tatpashchat mundita hokara diksha grahana karumga. Bhagavana ne kaha – ‘devanupriya ! Jisase tujhe sukha upaje vaha kara, usamem vilamba na karana.’ Tatpashchat meghakumara ne shramana bhagavana mahavira ko vandana kiya, namaskara kiya, vandana – namaskara karake jaham chara ghamtaom vala ashvaratha tha, vaham aya. Akara chara ghamtaom vale ashva – ratha para arurha hua. Arurha hokara mahana subhatom aura bare samuha vale parivarake satha rajagriha ke bichom – bicha hokara apane ghara aya. Chara ghamtaom vale ashva – ratha se utara. Utarakara jaham usake mata – pita the, vahim pahumcha. Pahumchakara mata – pita ke pairom mem pranama kiya. Pranama karake usane isa prakara kaha – ‘he mata – pita ! Maimne shramana bhagavana mahavira ke samipa dharma shravana kiya hai aura maimne usa dharma ki ichchha ki hai, bara – bara ichchha ki hai. Vaha mujhe rucha hai.’ taba meghakumara ke mata – pita isa prakara bole – ‘putra! Tuma dhanya ho, putra! Tuma pure punyavana ho, he putra! Tuma kritartha ho ki tumane shramana bhagavana mahavira ke nikata dharma shravana kiya hai aura vaha dharma tumhem ishta, punah punah ishta aura ruchikara bhi hua hai.’ Tatpashchat meghakumara mata – pita se dusari bara aura tisari bara isa prakara kahane laga ‘he mata – pita ! Maimne shramana bhagavana mahavira se dharma shravana kiya hai. Usa dharma ki maimne ichchha ki hai, bara – bara ichchha ki hai, vaha mujhe ruchikara hua hai. Ata eva hai mata – pita ! Maim apaki anumati prapta karake shramana bhagavana mahavira ke samipa mundita hokara, grihavasa tyaga kara anagarita ki pravrajya amgikara karana chahata hum – munidiksha lena chahata hum. Taba dharini devi isa anishta, apriya, amanojnya aura amanama, pahale kabhi na suni hui, kathora vani ko sunakara aura hridaya mem dharana karake mahan putra – viyoga ke manasika duhkha se pirita hui. Usake romakupom mem pasina akara amgom se pasina jharane laga. Shoka ki adhikata se usake amga kampane lage. Vaha nisteja ho gai. Dina aura vimanaska ho gai. Hatheli se mali hui kamala ki mala ke samana ho gai. ‘maim pravrajya amgikara karana chahata hum yaha shabda sunane ke kshana mem hi vaha duhkhi aura durbala ho gai. Vaha lavanyarahita ho gai, kantihina ho gai, shrivihina ho gai, sharira durbala hone se usake pahane hue alamkara atyanta rhile ho gae, hathom mem pahane hue uttama valaya khisaka kara bhumi para ja pare aura chura – chura ho gae. Usaka uttariya vastra khisaka gaya. Sukumara keshapasha bikhara gaya. Murchchha ke vasha hone se chitta nashta ho gaya – vaha behosha ho gai. Parashu se kati hui champakalata ke samana tatha mahotsava sampanna ho jane ke pashchat indradhvaja ke samana pratita hone lagi. Usake sharira ke jora dhile para gae. Aisi avastha hone se vaha dharini devi sarva amgom se dhas – dharama se prithvitala para gira pari. Tatpashchat vaha dharini devi, sambhrama ke satha shighrata se suvarnakalasha ke mukha se nikali hui shitala ki nirmala dhara se simchana ki gai arthat usa para thamda jala chhiraka gaya. Ata eva usaka sharira shitala ho gaya. Utkshepaka se, talavrinta se tatha vijanaka se utpanna hui tatha jalakanom se yukta vayu se antahpura ke parijanom dvara use ashvasana diya gaya. Taba vaha hosha mem ai. Aba dharini devi motiyom ki lari ke samana ashrudhara se apane stanom ko simchane – bhigone lagi. Vaha dayaniya, vimanaska aura dina ho gai. Vaha rudana karati hui, krandana karati hui, pasina evam lara tapakati hui, hridayamem shoka karati hui, vilapa karati hui meghakumara se isa prakara kahane lagi –