Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004447
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-२५

Translated Chapter :

शतक-२५

Section : उद्देशक-७ संयत Translated Section : उद्देशक-७ संयत
Sutra Number : 947 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवइया चरित्तपज्जवा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता चरित्तपज्जवा पन्नत्ता। एवं जाव अहक्खायसंजयस्स। सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयस्स सट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं किं हीने? तुल्ले? अब्भहिए? गोयमा! सिय हीने–छट्ठाणवडिए। सामाइयसंजए णं भंते! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं–पुच्छा। गोयमा! सिय हीने–छट्ठाणवडिए। एवं परिहारविसुद्धियस्स वि। सामाइयसंजए णं भंते! सुहुमसंपरागसंजयस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं–पुच्छा। गोयमा! हीने, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अनंतगुणहीने। एवं अहक्खायसंजयस्स वि। एवं छेदोवट्ठावणिए वि हेट्ठिल्लेसु तिसु वि समं छट्ठाणवडिए, उवरिल्लेसु दोसु तहेव हीने। जहा छेदोवट्ठावणिए तहा परिहारविसुद्धिए वि। सुहुमसंपरागसंजए णं भंते! सामाइयसंजयस्स परट्ठाण–पुच्छा। गोयमा! नो हीने, नो तुल्ले, अब्भहिए–अनंतगुणमब्भहिए। एवं छेओवट्ठावणिय परिहारविसुद्धिएसु वि समं। सट्ठाणे सिय हीने, नो तुल्ले, सिय अब्भहिए। जइ हीने अनंतगुणहीने, अह अब्भहिए अनंतगुणमब्भहिए। सुहुमसंपरायसंजयस्स अहक्खायसंजयस्स परट्ठाण–पुच्छा। गोयमा! हीने, नो तुल्ले, नो अब्भहिए; अनंतगुणहीने। अहक्खाए हेट्ठिल्लाणं चउण्ह वि नो हीने, नो तुल्ले, अब्भहिए–अनंतगुणमब्भहिए। सट्ठाणे नो हीने, तुल्ले, नो अब्भहिए। एएसि णं भंते! सामाइय- छेदोवट्ठावणिय- परिहारविसुद्धिय- सुहुमसंपराय- अहक्खायसंजयाणं जहन्नुक्कोसगाणं चरित्तज्जवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सामाइयसंजयस्स छेओवट्ठावणियसंजयस्स य एएसि णं जहन्नगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला सव्वत्थोवा, परिहारविसुद्धियसंजयस्स जहन्नगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा, तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा, सामाइयसंजयस्स छेओवट्ठावणियसंजयस्स य एएसि णं उक्कोसगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला अनंतगुणा, सुहुमसंपरायसंजयस्स जहन्नगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा, तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा, अहक्खायसंजयस्स अजहन्नमणुक्को-सगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा। सामाइयसंजए णं भंते! किं सजोगी होज्जा? अजोगी होज्जा? गोयमा! सजोगी जहा पुलाए। एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए। अहक्खाए जहा सिणाए। सामाइयसंजए णं भंते! किं सागारोवउत्ते होज्जा? अनागारोवउत्ते होज्जा? गोयमा! सागरोवउत्ते जहा पुलाए। एवं जाव अहक्खाए, नवरं–सुहुमसंपराए सागारोवउत्ते होज्जा, नो अनागारोवउत्ते होज्जा सामाइयसंजए णं भंते! किं सकसायी होज्जा? अकसायी होज्जा? गोयमा! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपरागसंजए–पुच्छा। गोयमा! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा। जइ सकसायी होज्जा, से णं भंते! कतिसु कसायेसु होज्जा? गोयमा! एगम्मि संजलणलोभे होज्जा। अहक्खायसंजए जहा नियंठे। सामाइयसंजए णं भंते! किं सलेस्से होज्जा? अलेस्से होज्जा? गोयमा! सलेस्से होज्जा जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपराए जहा नियंठे। अहक्खाए जहा सिणाए, नवरं–जइ सलेस्से होज्जा, एगाए सुक्कलेस्साए होज्जा
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! सामायिकसंयत के चारित्रपर्यव कितने कहे हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत तक के चारित्रपर्यव के विषय में जानना चाहिए। भगवन्‌ ! एक सामायिकसंयत, दूसरे सामायिकसंयत के स्वस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन होता है, तुल्य होता है अथवा अधिक होता है ? गौतम ! वह कदाचित्‌ हीन, कदाचित्‌ तुल्य और कदाचित्‌ अधिक होता है। वह हीनाधिकता में षट्‌स्थानपतित होता है। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनीयसंयत के परस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन, तुल्य या अधिक होता है ? गौतम ! पूर्ववत्‌। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिक संयत के विषय में जानना चाहिए। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत, सूक्ष्मसम्परायसंयत के परस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन, तुल्य या अधिक होता है ? गौतम ! वह अनन्तगुणहीन होता है। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत के विषय में जानना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत भी नीचे के तीनों संयतों के साथ षट्‌स्थानपतित और ऊपर के दो संयतों के साथ उसी प्रकार अनन्तगुणहीन होता है। परिहारविशुद्धिकसंयत को छेदोपस्थापनीयसंयत समान जानना। भगवन्‌ ! सूक्ष्मसम्परायसंयत, सामायिकसंयत के परस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा हीन, तुल्य या अधिक होता है ? गौतम ! वह अनन्तगुण अधिक होता है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धिकसंयत के साथ भी जानना। स्वस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा से कदाचित्‌ हीन और कदाचित्‌ अधिक होते हैं, यदि हीन होते हैं तो अनन्त गुण हीन और अधिक होते हैं तो अनन्तगुण अधिक होते हैं। भगवन्‌ ! सूक्ष्मसम्परायसंयत, सामायिकसंयत के परस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन, तुल्य अथवा अधिक होता है ? गौतम ! अनन्तगुण हीन होता है। यथाख्यात संयत नीचे के चार संयतों की अपेक्षा अनन्तगुण अधिक होता है। स्वस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा वह तुल्य होता है। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनीयसंयत, परिहारविशुद्धिकसंयत, सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथा – ख्यातसंयत; उनके जघन्य और उत्कृष्ट चारित्रपर्यवों में अल्पबहुत्व ? गौतम ! सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनी – यसंयत, इन दोनों के जघन्य चारित्रपर्यव परस्पर तुल्य और सबसे अल्प हैं। उनसे परिहारविशुद्धिकसंयत के जघन्य चारित्रपर्यव अनन्तगुणे उनसे परिहारविशुद्धिक संयत के उत्कृष्ट चारित्रपर्यव अनन्तगुणे उनसे सामायिकसंयत और छेदोपस्थापनीयसंयत के उत्कृष्ट चारित्रपर्यव अनन्तगुणे हैं और परस्पर तुल्य उनसे सूक्ष्मसम्परायसंयत के जघन्य चारित्रपर्यव अनन्तगुणे उनसे सूक्ष्मसम्परायसंयत के उत्कृष्ट चारित्रपर्यव अनन्तगुणे। उनसे यथाख्यातसंयत के अजघन्य – अनुत्कृष्ट चारित्रपर्यव अनन्तगुण हैं। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत सयोगी होता है अथवा अयोगी होता है ? गौतम ! वह सयोगी होता है; इत्यादि पुलाक के समान जानना। इसी प्रकार सूक्ष्मसम्परायसंयत तक समझना। यथाख्यातसंयत स्नातक के समान है। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत साकारोपयोगयुक्त होता है या अनाकारोपयोगुक्त होता है ? गौतम ! वह साकारोपयोगयुक्त होता है, इत्यादि पुलाक के समान जानना। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत – पर्यन्त कहना; किन्तु सूक्ष्मसम्पराय केवल साकारोपयोगयुक्त ही होता है। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत सकषायी होता है अथवा अकषायी ? गौतम ! वह सकषायी होता है, इत्यादि कषायकुशील के समान जानना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय भी समझना। परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक के समान है। भगवन्‌ ! सूक्ष्मसम्परायसंयत ? गौतम ! वह सकषायी होता है, भगवन्‌ ! यदि वह सकषायी होता है तो उसमें कितने कषाय होते हैं ? एकमात्र संज्वलनलोभ है। यथाख्यातसंयत निर्ग्रन्थ के समान है। भगवन्‌ ! सामायिकसंयत सलेश्य होता है अथवा अलेश्य ? गौतम ! वह सलेश्य होता है, इत्यादि कषाय – कुशील के समान जानना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में कहना। परिहारविशुद्धिकसंयत पुलाक के समान है। सूक्ष्मसम्परायसंयत निर्ग्रन्थ के समान है। यथाख्यातसंयत स्नातक के समान है। यदि वह सलेश्य होता है तो शुक्ललेश्यी होता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] samaiyasamjayassa nam bhamte! Kevaiya charittapajjava pannatta? Goyama! Anamta charittapajjava pannatta. Evam java ahakkhayasamjayassa. Samaiyasamjae nam bhamte! Samaiyasamjayassa satthanasannigasenam charittapajjavehim kim hine? Tulle? Abbhahie? Goyama! Siya hine–chhatthanavadie. Samaiyasamjae nam bhamte! Chhedovatthavaniyasamjayassa paratthanasannigasenam charittapajjavehim–puchchha. Goyama! Siya hine–chhatthanavadie. Evam pariharavisuddhiyassa vi. Samaiyasamjae nam bhamte! Suhumasamparagasamjayassa paratthanasannigasenam charittapajjavehim–puchchha. Goyama! Hine, no tulle, no abbhahie, anamtagunahine. Evam ahakkhayasamjayassa vi. Evam chhedovatthavanie vi hetthillesu tisu vi samam chhatthanavadie, uvarillesu dosu taheva hine. Jaha chhedovatthavanie taha pariharavisuddhie vi. Suhumasamparagasamjae nam bhamte! Samaiyasamjayassa paratthana–puchchha. Goyama! No hine, no tulle, abbhahie–anamtagunamabbhahie. Evam chheovatthavaniya pariharavisuddhiesu vi samam. Satthane siya hine, no tulle, siya abbhahie. Jai hine anamtagunahine, aha abbhahie anamtagunamabbhahie. Suhumasamparayasamjayassa ahakkhayasamjayassa paratthana–puchchha. Goyama! Hine, no tulle, no abbhahie; anamtagunahine. Ahakkhae hetthillanam chaunha vi no hine, no tulle, abbhahie–anamtagunamabbhahie. Satthane no hine, tulle, no abbhahie. Eesi nam bhamte! Samaiya- chhedovatthavaniya- pariharavisuddhiya- suhumasamparaya- ahakkhayasamjayanam jahannukkosaganam charittajjavanam kayare kayarehimto appa va? Bahuya va? Tulla va? Visesahiya va? Goyama! Samaiyasamjayassa chheovatthavaniyasamjayassa ya eesi nam jahannaga charittapajjava donha vi tulla savvatthova, pariharavisuddhiyasamjayassa jahannaga charittapajjava anamtaguna, tassa cheva ukkosaga charittapajjava anamtaguna, samaiyasamjayassa chheovatthavaniyasamjayassa ya eesi nam ukkosaga charittapajjava donha vi tulla anamtaguna, suhumasamparayasamjayassa jahannaga charittapajjava anamtaguna, tassa cheva ukkosaga charittapajjava anamtaguna, ahakkhayasamjayassa ajahannamanukko-saga charittapajjava anamtaguna. Samaiyasamjae nam bhamte! Kim sajogi hojja? Ajogi hojja? Goyama! Sajogi jaha pulae. Evam java suhumasamparayasamjae. Ahakkhae jaha sinae. Samaiyasamjae nam bhamte! Kim sagarovautte hojja? Anagarovautte hojja? Goyama! Sagarovautte jaha pulae. Evam java ahakkhae, navaram–suhumasamparae sagarovautte hojja, no anagarovautte hojja Samaiyasamjae nam bhamte! Kim sakasayi hojja? Akasayi hojja? Goyama! Sakasayi hojja, no akasayi hojja jaha kasayakusile. Evam chhedovatthavanie vi. Pariharavisuddhie jaha pulae. Suhumasamparagasamjae–puchchha. Goyama! Sakasayi hojja, no akasayi hojja. Jai sakasayi hojja, se nam bhamte! Katisu kasayesu hojja? Goyama! Egammi samjalanalobhe hojja. Ahakkhayasamjae jaha niyamthe. Samaiyasamjae nam bhamte! Kim salesse hojja? Alesse hojja? Goyama! Salesse hojja jaha kasayakusile. Evam chhedovatthavanie vi. Pariharavisuddhie jaha pulae. Suhumasamparae jaha niyamthe. Ahakkhae jaha sinae, navaram–jai salesse hojja, egae sukkalessae hojja
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Samayikasamyata ke charitraparyava kitane kahe haim\? Gautama ! Ananta haim. Isi prakara yathakhyatasamyata taka ke charitraparyava ke vishaya mem janana chahie. Bhagavan ! Eka samayikasamyata, dusare samayikasamyata ke svasthanasannikarsha ki apeksha kya hina hota hai, tulya hota hai athava adhika hota hai\? Gautama ! Vaha kadachit hina, kadachit tulya aura kadachit adhika hota hai. Vaha hinadhikata mem shatsthanapatita hota hai. Bhagavan ! Samayikasamyata, chhedopasthapaniyasamyata ke parasthanasannikarsha ki apeksha kya hina, tulya ya adhika hota hai\? Gautama ! Purvavat. Isi prakara pariharavishuddhika samyata ke vishaya mem janana chahie. Bhagavan ! Samayikasamyata, sukshmasamparayasamyata ke parasthanasannikarsha ki apeksha kya hina, tulya ya adhika hota hai\? Gautama ! Vaha anantagunahina hota hai. Isi prakara yathakhyatasamyata ke vishaya mem janana. Isi prakara chhedopasthapaniyasamyata bhi niche ke tinom samyatom ke satha shatsthanapatita aura upara ke do samyatom ke satha usi prakara anantagunahina hota hai. Pariharavishuddhikasamyata ko chhedopasthapaniyasamyata samana janana. Bhagavan ! Sukshmasamparayasamyata, samayikasamyata ke parasthanasannikarsha ki apeksha hina, tulya ya adhika hota hai\? Gautama ! Vaha anantaguna adhika hota hai. Isi prakara chhedopasthapaniya aura pariharavishuddhikasamyata ke satha bhi janana. Svasthanasannikarsha ki apeksha se kadachit hina aura kadachit adhika hote haim, yadi hina hote haim to ananta guna hina aura adhika hote haim to anantaguna adhika hote haim. Bhagavan ! Sukshmasamparayasamyata, samayikasamyata ke parasthanasannikarsha ki apeksha kya hina, tulya athava adhika hota hai\? Gautama ! Anantaguna hina hota hai. Yathakhyata samyata niche ke chara samyatom ki apeksha anantaguna adhika hota hai. Svasthanasannikarsha ki apeksha vaha tulya hota hai. Bhagavan ! Samayikasamyata, chhedopasthapaniyasamyata, pariharavishuddhikasamyata, sukshmasamparayasamyata aura yatha – khyatasamyata; unake jaghanya aura utkrishta charitraparyavom mem alpabahutva\? Gautama ! Samayikasamyata aura chhedopasthapani – yasamyata, ina donom ke jaghanya charitraparyava paraspara tulya aura sabase alpa haim. Unase pariharavishuddhikasamyata ke jaghanya charitraparyava anantagune unase pariharavishuddhika samyata ke utkrishta charitraparyava anantagune unase samayikasamyata aura chhedopasthapaniyasamyata ke utkrishta charitraparyava anantagune haim aura paraspara tulya unase sukshmasamparayasamyata ke jaghanya charitraparyava anantagune unase sukshmasamparayasamyata ke utkrishta charitraparyava anantagune. Unase yathakhyatasamyata ke ajaghanya – anutkrishta charitraparyava anantaguna haim. Bhagavan ! Samayikasamyata sayogi hota hai athava ayogi hota hai\? Gautama ! Vaha sayogi hota hai; ityadi pulaka ke samana janana. Isi prakara sukshmasamparayasamyata taka samajhana. Yathakhyatasamyata snataka ke samana hai. Bhagavan ! Samayikasamyata sakaropayogayukta hota hai ya anakaropayogukta hota hai\? Gautama ! Vaha sakaropayogayukta hota hai, ityadi pulaka ke samana janana. Isi prakara yathakhyatasamyata – paryanta kahana; kintu sukshmasamparaya kevala sakaropayogayukta hi hota hai. Bhagavan ! Samayikasamyata sakashayi hota hai athava akashayi\? Gautama ! Vaha sakashayi hota hai, ityadi kashayakushila ke samana janana. Isi prakara chhedopasthapaniya bhi samajhana. Pariharavishuddhikasamyata ka kathana pulaka ke samana hai. Bhagavan ! Sukshmasamparayasamyata\? Gautama ! Vaha sakashayi hota hai, bhagavan ! Yadi vaha sakashayi hota hai to usamem kitane kashaya hote haim\? Ekamatra samjvalanalobha hai. Yathakhyatasamyata nirgrantha ke samana hai. Bhagavan ! Samayikasamyata saleshya hota hai athava aleshya\? Gautama ! Vaha saleshya hota hai, ityadi kashaya – kushila ke samana janana. Isi prakara chhedopasthapaniyasamyata mem kahana. Pariharavishuddhikasamyata pulaka ke samana hai. Sukshmasamparayasamyata nirgrantha ke samana hai. Yathakhyatasamyata snataka ke samana hai. Yadi vaha saleshya hota hai to shuklaleshyi hota hai.