Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004280 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२० |
Translated Chapter : |
शतक-२० |
Section : | उद्देशक-१ बेईन्द्रिय | Translated Section : | उद्देशक-१ बेईन्द्रिय |
Sutra Number : | 780 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–सिय भंते! जाव चत्तारि पंच बेंदिया एगयओ साहरणसरीर बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति? नो इणट्ठे समट्ठे। बेंदिया णं पत्तेयाहारा पत्तेयपरिणामा पत्तेयसरीरं बंधंति, बंधित्ता तओ पच्छा आहारेंति वा परिणामेंति वा सरीरं वा बंधंति। तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेस्सा, नीललेस्सा, काउलेस्सा। एवं जहा एगूण-वीसतिमे सए तेउक्काइयाणं जाव उव्वट्टंति, नवरं–सम्मदिट्ठी वि मिच्छदिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छदिट्ठी, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं, नो मणजोगी, वइजोगी वि कायजोगी वि, आहारो नियमं छद्दिसि। तेसि णं भंते! जीवाणं एवं सण्णाति वा पण्णाति वा मणेति वा वईति वा–अम्हे णं इट्ठानिट्ठे रसे, इट्ठानिट्ठे फासे पडिसंवेदेमो? नो इणट्ठे समट्ठे, पडिसंवेदेति पुण ते। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं, सेसं तं चेव। एवं तेइंदिया वि, एवं चउरिंदिया वि, नाणत्तं इंदिएसु ठितीए य, सेसं तं चेव, ठिती जहा पन्नवणाए। सिय भंते! जाव चत्तारि पंच पंचिंदिया एगयओ साहरणसरीरं बंधंति? एवं जहा बेंदियाणं, नवरं–छल्लेसा, दिट्ठी तिविहा वि, चत्तारि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए, तिविहो जोगो। तेसि णं भंते! जीवाणं एवं सण्णाति वा पण्णाति वा मणेति वा वईति वा–अम्हे णं आहार-माहारेमो? गोयमा! अत्थेगतियाणं एवं सण्णाति वा पण्णाति वा मणेति वा वईति वा–अम्हे णं आहारमाहारेमो। अत्थेगतियाणं नो एवं सण्णाति वा जाव वईति वा–अम्हे णं आहारमाहारेमो, आहारेंति पुण ते। तेसि णं भंते! जीवाणं एवं सण्णाति वा जाव वईति वा–अम्हे णं इट्ठानिट्ठे सद्दे, इट्ठानिट्ठे रूवे, इट्ठानिट्ठे गंधे, इट्ठानिट्ठे रसे, इट्ठानिट्ठे फासे पडिसंवेदेमो? गोयमा! अत्थेगतियाणं एवं सण्णाति वा जाव वईति वा–अम्हे णं इट्ठानिट्ठे सद्दे जाव इट्ठानिट्ठे फासे पडिसंवेदेमो। अत्थेगति-याणं नो एवं सण्णाति वा जाव वईति वा–अम्हे णं इट्ठानिट्ठे सद्दे जाव इट्ठानिट्ठे फासे पडिसंवेदेमो, पडिसंवेदेति पुण ते। ते णं भंते! जीवा किं पाणाइवाए उवक्खाइज्जंति–पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतिया पाणातिवाए वि उवक्खाइज्जंति जाव मिच्छादंसणसल्ले वि उव-क्खाइज्जंति अत्थेगतिया नो पाणाइवाए उवक्खाइज्जंति, नो मुसावाए जाव नो मिच्छादंसणसल्ले उवक्खाइज्जंति। जेसिं पि णं जीवाणं ते जीवा एवमाहिज्जंति तेसिं पि णं जीवाणं अत्थेगतियाणं विण्णाए नाणत्ते। अत्थेगतियाणं नो विण्णाए नाणत्ते। उववाओ सव्वओ जाव सव्वट्ठसिद्धाओ। ठिती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। छस्समुग्घाया केवलिवज्जा, उव्वट्टणा सव्वत्थ गच्छंति जाव सव्वट्ठसिद्धं ति, सेसं जहा बेंदियाणं। एएसि णं भंते! बेइंदियाणं जाव पंचिंदियाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिंदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | ‘भगवन् !’ राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! क्या कदाचित् दो, तीन, चार या पाँच द्वीन्द्रिय जीव मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं, इसके पश्चात् आहार करते हैं ? अथवा आहार को परिणमाते हैं, फिर विशिष्ट शरीर को बाँधते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है, क्योंकि द्वीन्द्रिय जीव पृथक् – पृथक् आहार करने वाले और उसका पृथक् – पृथक् परिणमन करने वाले होते हैं। इसलिए वे पृथक् – पृथक् शरीर बाँधते हैं, फिर आहार करते हैं तथा उसका परिणमन करते हैं और विशिष्ट शरीर बाँधते हैं। भगवन् ! उन जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! तीन, यथा – कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोत – लेश्या। इस प्रकार समग्र वर्णन, उन्नीसवें शतक में अग्निकायिक जीवों के समान उद्वर्तीत होते हैं, तक कहना। विशेष यह है कि ये द्वीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं, पर सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते हैं। उनके नियमतः दो ज्ञान या दो अज्ञान होते हैं। वे मनोयोगी नहीं होते, वे वचनयोगी भी होते हैं और काययोगी भी होते हैं। वे नियमतः छह दिशा का आहार लेते – हैं। क्या उन जीवों को – ‘हम इष्ट और अनिष्ट रस तथा इष्ट – अनिष्ट स्पर्श का प्रतिसंवेदन करते हैं,’ ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वे रसादि का संवेदन करते हैं। उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीवों में भी समझना। किन्तु इनकी इन्द्रियों में और स्थिति में अन्तर है। स्थिति प्रज्ञापना – सूत्र के अनुसार जानना। भगवन् ! क्या कदाचित् दो, तीन, चार या पाँच आदि पंचेन्द्रिय मिलकर एक साधारण शरीर बाँधते हैं? गौतम! पूर्ववत् द्वीन्द्रियजीवों के समान है। विशेष यह कि इनके छहों लेश्याएं और तीनों दृष्टियाँ होती हैं। इनमें चार ज्ञान अथवा तीन अज्ञान भजना से होते हैं। तीनों योग होते हैं। भगवन् ! क्या उन (पंचेन्द्रिय) जीवों को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि ‘हम आहार ग्रहण करते हैं ?’ गौतम ! कितने ही (संज्ञी) जीवों को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है और कईं (असंज्ञी) जीवों को ऐसी संज्ञा यावत् वचन नहीं होता कि, ‘हम आहार ग्रहण करते हैं,’ परन्तु वे आहार तो करते ही हैं। भगवन् ! क्या उन (पंचेन्द्रिय) जीवों को ऐसी संज्ञा, प्रज्ञा, मन अथवा वचन होता है कि हम इष्ट या अनिष्ट शब्द, रूप, गन्ध, रस अथवा स्पर्श का अनुभव करते हैं ? गौतम ! कतिपय (संज्ञी) जीवों को ऐसी संज्ञा, यावत् वचन होता है और किसी – (असंज्ञी) को ऐसी संज्ञा यावत् वचन नहीं होता है। परन्तु वे संवेदन तो करते ही हैं। भगवन् ! क्या ऐसा कहा जाता है कि वे (पंचेन्द्रिय) जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं ? गौतम ! उनमें से कईं (पंचेन्द्रिय) जीव प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में रहे हुए हैं, ऐसा कहा जाता है और कईं जीव नहीं रहे हुए हैं, ऐसा कहा जाता है। जिन जीवों के प्रति वे प्राणातिपात आदि करते हैं, उन जीवों में से कईं जीवों को – ‘हम मारे जाते हैं, और ये हमें मारने वाले हैं’ इस प्रकार का विज्ञान होता है और कईं जीवों को इस प्रकार का ज्ञान नहीं होता। उन जीवों का उत्पाद सर्व जीवों से यावत् सर्वार्थसिद्ध से भी होता है। उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की होती है। उनमें केवलीसमुद्घात को छोड़कर (शेष) छह समुद्घात होते हैं। वे मरकर सर्वत्र सर्वार्थसिद्ध तक जाते हैं। शेष सब बातें द्वीन्द्रियजीवों के समान है। भगवन् ! इन द्वीन्द्रिय यावत् पंचेन्द्रिय जीवों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक है ? सबसे अल्प पंचेन्द्रिय जीव हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे त्रीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं, उनसे द्वीन्द्रिय जीव विशेषाधिक हैं। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] rayagihe java evam vayasi–siya bhamte! Java chattari pamcha bemdiya egayao saharanasarira bamdhamti, bamdhitta tao pachchha aharemti va parinamemti va sariram va bamdhamti? No inatthe samatthe. Bemdiya nam patteyahara patteyaparinama patteyasariram bamdhamti, bamdhitta tao pachchha aharemti va parinamemti va sariram va bamdhamti. Tesi nam bhamte! Jivanam kati lessao pannattao? Goyama! Tao lessao pannattao, tam jaha–kanhalessa, nilalessa, kaulessa. Evam jaha eguna-visatime sae teukkaiyanam java uvvattamti, navaram–sammaditthi vi michchhaditthi vi, no sammamichchhaditthi, do nana do annana niyamam, no manajogi, vaijogi vi kayajogi vi, aharo niyamam chhaddisi. Tesi nam bhamte! Jivanam evam sannati va pannati va maneti va vaiti va–amhe nam itthanitthe rase, itthanitthe phase padisamvedemo? No inatthe samatthe, padisamvedeti puna te. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam barasa samvachchharaim, sesam tam cheva. Evam teimdiya vi, evam chaurimdiya vi, nanattam imdiesu thitie ya, sesam tam cheva, thiti jaha pannavanae. Siya bhamte! Java chattari pamcha pamchimdiya egayao saharanasariram bamdhamti? Evam jaha bemdiyanam, navaram–chhallesa, ditthi tiviha vi, chattari nana tinni annana bhayanae, tiviho jogo. Tesi nam bhamte! Jivanam evam sannati va pannati va maneti va vaiti va–amhe nam ahara-maharemo? Goyama! Atthegatiyanam evam sannati va pannati va maneti va vaiti va–amhe nam aharamaharemo. Atthegatiyanam no evam sannati va java vaiti va–amhe nam aharamaharemo, aharemti puna te. Tesi nam bhamte! Jivanam evam sannati va java vaiti va–amhe nam itthanitthe sadde, itthanitthe ruve, itthanitthe gamdhe, itthanitthe rase, itthanitthe phase padisamvedemo? Goyama! Atthegatiyanam evam sannati va java vaiti va–amhe nam itthanitthe sadde java itthanitthe phase padisamvedemo. Atthegati-yanam no evam sannati va java vaiti va–amhe nam itthanitthe sadde java itthanitthe phase padisamvedemo, padisamvedeti puna te. Te nam bhamte! Jiva kim panaivae uvakkhaijjamti–puchchha. Goyama! Atthegatiya panativae vi uvakkhaijjamti java michchhadamsanasalle vi uva-kkhaijjamti atthegatiya no panaivae uvakkhaijjamti, no musavae java no michchhadamsanasalle uvakkhaijjamti. Jesim pi nam jivanam te jiva evamahijjamti tesim pi nam jivanam atthegatiyanam vinnae nanatte. Atthegatiyanam no vinnae nanatte. Uvavao savvao java savvatthasiddhao. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tettisam sagarovamaim. Chhassamugghaya kevalivajja, uvvattana savvattha gachchhamti java savvatthasiddham ti, sesam jaha bemdiyanam. Eesi nam bhamte! Beimdiyanam java pamchimdiyanam ya kayare kayarehimto appa va? Bahuya va? Tulla va? Visesahiya va? Goyama! Savvatthova pamchimdiya, chaurimdiya visesahiya, teimdiya visesahiya, beimdiya visesahiya. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti java viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ‘bhagavan !’ rajagriha nagara mem gautama svami ne yavat isa prakara puchha – bhagavan ! Kya kadachit do, tina, chara ya pamcha dvindriya jiva milakara eka sadharana sharira bamdhate haim, isake pashchat ahara karate haim\? Athava ahara ko parinamate haim, phira vishishta sharira ko bamdhate haim\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai, kyomki dvindriya jiva prithak – prithak ahara karane vale aura usaka prithak – prithak parinamana karane vale hote haim. Isalie ve prithak – prithak sharira bamdhate haim, phira ahara karate haim tatha usaka parinamana karate haim aura vishishta sharira bamdhate haim. Bhagavan ! Una jivom ke kitani leshyaem haim\? Gautama ! Tina, yatha – krishnaleshya, nilaleshya aura kapota – leshya. Isa prakara samagra varnana, unnisavem shataka mem agnikayika jivom ke samana udvartita hote haim, taka kahana. Vishesha yaha hai ki ye dvindriya jiva samyagdrishti bhi hote haim, mithyadrishti bhi hote haim, para samyagmithyadrishti nahim hote haim. Unake niyamatah do jnyana ya do ajnyana hote haim. Ve manoyogi nahim hote, ve vachanayogi bhi hote haim aura kayayogi bhi hote haim. Ve niyamatah chhaha disha ka ahara lete – haim. Kya una jivom ko – ‘hama ishta aura anishta rasa tatha ishta – anishta sparsha ka pratisamvedana karate haim,’ aisi samjnya, prajnya, mana athava vachana hota hai\? Gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Ve rasadi ka samvedana karate haim. Unaki sthiti jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta baraha varsha ki hoti hai. Isi prakara trindriya tatha chaturindriya jivom mem bhi samajhana. Kintu inaki indriyom mem aura sthiti mem antara hai. Sthiti prajnyapana – sutra ke anusara janana. Bhagavan ! Kya kadachit do, tina, chara ya pamcha adi pamchendriya milakara eka sadharana sharira bamdhate haim? Gautama! Purvavat dvindriyajivom ke samana hai. Vishesha yaha ki inake chhahom leshyaem aura tinom drishtiyam hoti haim. Inamem chara jnyana athava tina ajnyana bhajana se hote haim. Tinom yoga hote haim. Bhagavan ! Kya una (pamchendriya) jivom ko aisi samjnya, prajnya, mana athava vachana hota hai ki ‘hama ahara grahana karate haim\?’ gautama ! Kitane hi (samjnyi) jivom ko aisi samjnya, prajnya, mana athava vachana hota hai aura kaim (asamjnyi) jivom ko aisi samjnya yavat vachana nahim hota ki, ‘hama ahara grahana karate haim,’ parantu ve ahara to karate hi haim. Bhagavan ! Kya una (pamchendriya) jivom ko aisi samjnya, prajnya, mana athava vachana hota hai ki hama ishta ya anishta shabda, rupa, gandha, rasa athava sparsha ka anubhava karate haim\? Gautama ! Katipaya (samjnyi) jivom ko aisi samjnya, yavat vachana hota hai aura kisi – (asamjnyi) ko aisi samjnya yavat vachana nahim hota hai. Parantu ve samvedana to karate hi haim. Bhagavan ! Kya aisa kaha jata hai ki ve (pamchendriya) jiva pranatipata yavat mithyadarshanashalya mem rahe hue haim\? Gautama ! Unamem se kaim (pamchendriya) jiva pranatipata yavat mithyadarshanashalya mem rahe hue haim, aisa kaha jata hai aura kaim jiva nahim rahe hue haim, aisa kaha jata hai. Jina jivom ke prati ve pranatipata adi karate haim, una jivom mem se kaim jivom ko – ‘hama mare jate haim, aura ye hamem marane vale haim’ isa prakara ka vijnyana hota hai aura kaim jivom ko isa prakara ka jnyana nahim hota. Una jivom ka utpada sarva jivom se yavat sarvarthasiddha se bhi hota hai. Unaki sthiti jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta taimtisa sagaropama ki hoti hai. Unamem kevalisamudghata ko chhorakara (shesha) chhaha samudghata hote haim. Ve marakara sarvatra sarvarthasiddha taka jate haim. Shesha saba batem dvindriyajivom ke samana hai. Bhagavan ! Ina dvindriya yavat pamchendriya jivom mem kauna kisase yavat visheshadhika hai\? Sabase alpa pamchendriya jiva haim. Unase chaturindriya jiva visheshadhika haim, unase trindriya jiva visheshadhika haim, unase dvindriya jiva visheshadhika haim. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |