Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004224 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-१८ |
Translated Chapter : |
शतक-१८ |
Section : | उद्देशक-१ प्रथम | Translated Section : | उद्देशक-१ प्रथम |
Sutra Number : | 724 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवभावेण किं चरिमे? अचरिमे? गोयमा! नो चरिमे, अचरिमे। नेरइए णं भंते! नेरइयभावेणं–पुच्छा। गोयमा! सिय चरिमे, सिय अचरिमे। एवं जाव वेमाणिए। सिद्धे जहा जीवे। जीवा णं–पुच्छा। गोयमा! नो चरिमा, अचरिमा।नेरइया चरिमा वि, अचरिमा वि।एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा जहा जीवा आहारए सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे, सिय अचरिमे; पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि। अनाहारओ जीवो सिद्धो य एगत्तेण वि पुहत्तेण वि नो चरिमो, अचरिमो। सेसट्ठाणेसु एगत्त-पुहत्तेणं जहा आहारओ। भवसिद्धीओ जीवपदे एगत्त-पुहत्तेणं चरिमे, नो अचरिमे। सेसट्ठाणेसु जहा आहारओ। अभवसिद्धीओ सव्वत्थ एगत्त-पुहत्तेणं नो चरिमे, अचरिमे। नोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीयजीवा सिद्धा य एगत्त-पुहत्तेणं जहा अभवसिद्धीओ। सण्णी जहा आहारओ, एवं असण्णी वि। नोसण्णी-नोअसण्णी जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमे, मनुस्सपदे चरिमे एगत्त-पुहत्तेणं। सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ, नवरं–जस्स जा अत्थि। अलेस्सो जहा नोसण्णी-नोअसण्णी। सम्मदिट्ठी जहा अनाहारओ। मिच्छादिट्ठी जहा आहारओ। सम्मामिच्छदिट्ठी एगिंदिय-विगलिंदियवज्जं सिय चरिमे, सिय अचरिमे। पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि। संजमो जीवो मनुस्सो य जहा आहारओ। अस्संजओ वि तहेव। संजयासंजए वि तहेव, नवरं–जस्स जं अत्थि। नोसंजय-नोअसंजय-नोसंजयासंजओ जहा नोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीओ। सकसायी जाव लोभकसायी सव्वट्ठाणेसु जहा आहारओ। अकसायी जीवपदे सिद्धे य नो चरिमे, अचरिमे। मनुस्सपदे सिय चरिमे, सिय अचरिमे। नाणी जहा सम्मद्दिट्ठी सव्वत्थ। आभिनिबोहियनाणी जाव मनपज्जवनाणी जहा आहारओ, नवरं–जस्स जं अत्थि। केवलनाणी जहा नोसण्णी-नोअसण्णी। अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा आहारओ। सजोगी जाव कायजोगी जहा आहारओ, जस्स जो जोगो अत्थि। अजोगी जहा नोसण्णी-नोअसण्णी। सागारोवउत्तो अनागारोवउत्तो य जहा अनाहारओ। सवेदओ जाव नपुंसगवेदओ जहा आहारओ। अवेदओ जहा अकसायी। ससरीरी जाव कम्मगसरीरी जहा आहारओ, नवरं–जस्स जं अत्थि। असरीरी जहा नोभवसिद्धीय-नोअभवसिद्धीओ पंचहिं पज्जत्तीहिं पंचहिं अपज्जत्तीहिं जहा आहारओ, सव्वत्थ एगत्त-पुहत्तेणं दंडगा भाणियव्वा। इमा लक्खणगाहा | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! जीव, जीवभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! चरम नहीं, अचरम है। भगवन् ! नैरयिक जीव, नैरयिकभाव की अपेक्षा से चरम है या अचरम है ? गौतम ! वह कदाचित् चरम है, और कदाचित् अचरम है। इसी प्रकार वैमानिक तक जानना चाहिए। सिद्ध का कथन जीव के समान जानना चाहिए। अनेक जीवों के विषय में चरम – अचरम – सम्बन्धी प्रश्न। गौतम ! वे चरम नहीं, अचरम हैं। नैरयिकजीव, नैरयिकभाव से चरम भी हैं, अचरम भी हैं। इसी प्रकार वैमानिक तक समझना चाहिए। सिद्धों का कथन जीवों के समान है। आहारकजीव सर्वत्र एकवचन से कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम होता है। बहुवचन से आहारक चरम भी होते हैं और अचरम भी होते हैं। अनाहारक जीव और सिद्ध भी चरम नहीं हैं, अचरम हैं। शेष स्थानों में (अनाहारक) आहारक जीव के समान जानना। भवसिद्धिकजीव, जीवपद में, चरम हैं, अचरम नहीं हैं। शेष स्थानों में आहारक के समान हैं। अभवसिद्धिक सर्वत्र चरम नहीं, अचरम हैं। नोभवसिद्धिक – नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्ध, अभवसिद्धिक के समान हैं। संज्ञी जीव आहारक जीव के समान है। इसी प्रकार असंज्ञी भी (आहारक के समान हैं)। नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी जीवपद और सिद्धपद में अचरम हैं, मनुष्यपद में चरम हैं। सलेश्यी, यावत् शुक्ललेश्यी की वक्तव्यता आहारकजीव के समान है। विशेष यह है कि जिसके जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिए। अलेश्यी, नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी के समान हैं। सम्यग्दृष्टि, अनाहारक समान हैं। मिथ्यादृष्टि, आहारक समान हैं। सम्यग्मिथ्यादृष्टि, एकेन्द्रिय और विकले – न्द्रिय को छोड़कर (एकवचन से) कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम हैं। बहुवचन से वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं। संयत जीव और मनुष्य, आहारक के समान हैं। असंयत भी उसी प्रकार है। संयतासंयत भी उसी प्रकार है। विशेष यह है कि जिसका जो भाव हो, वह कहना चाहिए। नोसंयत – नोअसंयत – नोसंयतासंयत नोभव – सिद्धिक – नोअभवसिद्धिक के समान जानना चाहिए। सकषायी यावत् लोभकषायी, इन सभी स्थानों में, आहारक के समान हैं अकषायी, जीवपद और सिद्धपदमें, चरम नहीं अचरम हैं। मनुष्यपदमें कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम होता है ज्ञानी सर्वत्र सम्यग्दृष्टि के समान है। आभिनिबोधिक ज्ञानी यावत् मनःपर्यवज्ञानी आहारक के समान है। विशेष यह है कि जिसके जो ज्ञान हो, वह कहना चाहिए। केवलज्ञानी नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी के समान हैं। अज्ञानी, यावत् विभंगज्ञानी आहारक के समान हैं। सयोगी, यावत् काययोगी, आहारक के समान हैं। विशेष – जिसके जो योग हो, वह कहना चाहिए। अयोगी, नोसंज्ञी – नोअसंज्ञी के समान है। साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी अनाहारक के समान हैं। सवेदक, यावत् नपुंसकवेदक आहारक के समान है। अवेदक अकषायी के समान हैं। सशरीरी यावत् कार्मणशरीरी, आहारक के समान हैं। विशेष यह है कि जिसके जो शरीर हो, वह कहना चाहिए। अशरीरी के विषय में नोभवसिद्धिक – नोअभवसिद्धिक के समान (कहना चाहिए)। पाँच पर्याप्तियों से पर्याप्तक और पाँच अपर्याप्तियों से अपर्याप्तक के विषय में आहारक के समान कहना चाहिए। सर्वत्र दण्डक, एकवचन और बहुवचन से कहने। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jive nam bhamte! Jivabhavena kim charime? Acharime? Goyama! No charime, acharime. Neraie nam bhamte! Neraiyabhavenam–puchchha. Goyama! Siya charime, siya acharime. Evam java vemanie. Siddhe jaha jive. Jiva nam–puchchha. Goyama! No charima, acharimA.Neraiya charima vi, acharima vI.Evam java vemaniya. Siddha jaha jiva Aharae savvattha egattenam siya charime, siya acharime; puhattenam charima vi, acharima vi. Anaharao jivo siddho ya egattena vi puhattena vi no charimo, acharimo. Sesatthanesu egatta-puhattenam jaha aharao. Bhavasiddhio jivapade egatta-puhattenam charime, no acharime. Sesatthanesu jaha aharao. Abhavasiddhio savvattha egatta-puhattenam no charime, acharime. Nobhavasiddhiya-noabhavasiddhiyajiva siddha ya egatta-puhattenam jaha abhavasiddhio. Sanni jaha aharao, evam asanni vi. Nosanni-noasanni jivapade siddhapade ya acharime, manussapade charime egatta-puhattenam. Salesso java sukkalesso jaha aharao, navaram–jassa ja atthi. Alesso jaha nosanni-noasanni. Sammaditthi jaha anaharao. Michchhaditthi jaha aharao. Sammamichchhaditthi egimdiya-vigalimdiyavajjam siya charime, siya acharime. Puhattenam charima vi, acharima vi. Samjamo jivo manusso ya jaha aharao. Assamjao vi taheva. Samjayasamjae vi taheva, navaram–jassa jam atthi. Nosamjaya-noasamjaya-nosamjayasamjao jaha nobhavasiddhiya-noabhavasiddhio. Sakasayi java lobhakasayi savvatthanesu jaha aharao. Akasayi jivapade siddhe ya no charime, acharime. Manussapade siya charime, siya acharime. Nani jaha sammadditthi savvattha. Abhinibohiyanani java manapajjavanani jaha aharao, navaram–jassa jam atthi. Kevalanani jaha nosanni-noasanni. Annani java vibhamganani jaha aharao. Sajogi java kayajogi jaha aharao, jassa jo jogo atthi. Ajogi jaha nosanni-noasanni. Sagarovautto anagarovautto ya jaha anaharao. Savedao java napumsagavedao jaha aharao. Avedao jaha akasayi. Sasariri java kammagasariri jaha aharao, navaram–jassa jam atthi. Asariri jaha nobhavasiddhiya-noabhavasiddhio Pamchahim pajjattihim pamchahim apajjattihim jaha aharao, savvattha egatta-puhattenam damdaga bhaniyavva. Ima lakkhanagaha | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Jiva, jivabhava ki apeksha se charama hai ya acharama hai\? Gautama ! Charama nahim, acharama hai. Bhagavan ! Nairayika jiva, nairayikabhava ki apeksha se charama hai ya acharama hai\? Gautama ! Vaha kadachit charama hai, aura kadachit acharama hai. Isi prakara vaimanika taka janana chahie. Siddha ka kathana jiva ke samana janana chahie. Aneka jivom ke vishaya mem charama – acharama – sambandhi prashna. Gautama ! Ve charama nahim, acharama haim. Nairayikajiva, nairayikabhava se charama bhi haim, acharama bhi haim. Isi prakara vaimanika taka samajhana chahie. Siddhom ka kathana jivom ke samana hai. Aharakajiva sarvatra ekavachana se kadachit charama aura kadachit acharama hota hai. Bahuvachana se aharaka charama bhi hote haim aura acharama bhi hote haim. Anaharaka jiva aura siddha bhi charama nahim haim, acharama haim. Shesha sthanom mem (anaharaka) aharaka jiva ke samana janana. Bhavasiddhikajiva, jivapada mem, charama haim, acharama nahim haim. Shesha sthanom mem aharaka ke samana haim. Abhavasiddhika sarvatra charama nahim, acharama haim. Nobhavasiddhika – noabhavasiddhika jiva aura siddha, abhavasiddhika ke samana haim. Samjnyi jiva aharaka jiva ke samana hai. Isi prakara asamjnyi bhi (aharaka ke samana haim). Nosamjnyi – noasamjnyi jivapada aura siddhapada mem acharama haim, manushyapada mem charama haim. Saleshyi, yavat shuklaleshyi ki vaktavyata aharakajiva ke samana hai. Vishesha yaha hai ki jisake jo leshya ho, vahi kahani chahie. Aleshyi, nosamjnyi – noasamjnyi ke samana haim. Samyagdrishti, anaharaka samana haim. Mithyadrishti, aharaka samana haim. Samyagmithyadrishti, ekendriya aura vikale – ndriya ko chhorakara (ekavachana se) kadachit charama aura kadachit acharama haim. Bahuvachana se ve charama bhi haim aura acharama bhi haim. Samyata jiva aura manushya, aharaka ke samana haim. Asamyata bhi usi prakara hai. Samyatasamyata bhi usi prakara hai. Vishesha yaha hai ki jisaka jo bhava ho, vaha kahana chahie. Nosamyata – noasamyata – nosamyatasamyata nobhava – siddhika – noabhavasiddhika ke samana janana chahie. Sakashayi yavat lobhakashayi, ina sabhi sthanom mem, aharaka ke samana haim akashayi, jivapada aura siddhapadamem, charama nahim acharama haim. Manushyapadamem kadachit charama aura kadachit acharama hota hai Jnyani sarvatra samyagdrishti ke samana hai. Abhinibodhika jnyani yavat manahparyavajnyani aharaka ke samana hai. Vishesha yaha hai ki jisake jo jnyana ho, vaha kahana chahie. Kevalajnyani nosamjnyi – noasamjnyi ke samana haim. Ajnyani, yavat vibhamgajnyani aharaka ke samana haim. Sayogi, yavat kayayogi, aharaka ke samana haim. Vishesha – jisake jo yoga ho, vaha kahana chahie. Ayogi, nosamjnyi – noasamjnyi ke samana hai. Sakaropayogi aura anakaropayogi anaharaka ke samana haim. Savedaka, yavat napumsakavedaka aharaka ke samana hai. Avedaka akashayi ke samana haim. Sashariri yavat karmanashariri, aharaka ke samana haim. Vishesha yaha hai ki jisake jo sharira ho, vaha kahana chahie. Ashariri ke vishaya mem nobhavasiddhika – noabhavasiddhika ke samana (kahana chahie). Pamcha paryaptiyom se paryaptaka aura pamcha aparyaptiyom se aparyaptaka ke vishaya mem aharaka ke samana kahana chahie. Sarvatra dandaka, ekavachana aura bahuvachana se kahane. |