Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1004031
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-१२

Translated Chapter :

शतक-१२

Section : उद्देशक-१ शंख Translated Section : उद्देशक-१ शंख
Sutra Number : 531 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं से संखे समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह। तए णं अम्हे तं विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो। तए णं ते समणोवासगा संखस्स समणोवासगस्स एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेंति। तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु मे सेयं तं विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणस्स विस्साएमाणस्स परिभाएमाणस्स परिभुंजेमाणस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, सेयं खलु मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स ओमुक्कमणि-सुवण्णस्स ववगयमाला-वण्णग-विलेवणस्स निक्खित्तसत्थमुसलस्स एगस्स अबिइयस्स दब्भसंथारोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव सावत्थी नगरी, जेणेव सए गिहे, जेणेव उप्पला समणोवासिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उप्पलं समणोवासियं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं अनुपविस्सइ, अनुप-विस्सित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी ओमुक्कमणि-सुवण्णे ववगयमाला-वण्णगविलेवने निक्खित्तसत्थ-मुसले एगे अबिइए दब्भसथारोवगए पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं ते समणोवासगा जेणेव सावत्थी नगरी जेणेव साइं-साइं गिहाइं, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेंति, उवक्खडावेत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असन-पान-खाइम-साइमे उवक्खडाविए, संखे य णं समणोवासए नो हव्वमागच्छइ, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं संखं समणोवासगं सद्दावेत्तए। तए णं से पोक्खली समणोवासए ते समणोवासए एवं वयासी–अच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! सुनिव्वुय-वीसत्था, अहण्णं संखं समणोवासगं सद्दावेमि त्ति कट्टु तेसिं समणोवासगाणं अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सावत्थीए नगरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव संखस्स समणोवासगस्स गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता संखस्स समणोवासगस्स गिहं अनुपविट्ठे। तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलिं समणोवासयं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठा आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता सत्तट्ठ पयाइं अनुगच्छइ, अनुगच्छित्ता पोक्खलिं समणोवासगं वंदंति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतेत्ता एवं वयासी– संदिसत्तु णं देवानुप्पिया! किमागमणप्पयोयणं? तए णं से पोक्खली समणोवासए उप्पलं समणोवासियं एवं वयासी–कहिण्णं देवानुप्पिया! संखे समणोवासए? तए णं सा उप्पला समणोवासिया पोक्खलिं समणोवासयं एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी ओमुक्कमणि-सुवण्णे ववगयमाला-वण्णग-विलेवने निक्खत्तसत्थ-मुसले एगे अबिइए दब्भसंथारोवगए पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरइ। तए णं से पोक्खली समणोवासए जेणेव पोसहसाला, जेणेव संखे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गमणागमणाए पडिक्कमइ, पडिक्कमित्ता संखं समणोवासगं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हेहिं से विउले असन-पान-खाइम-साइमे उवक्खडाविए, तं गच्छामो णं देवानुप्पिया! तं विउलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरामो। तए णं से संखे समणोवासए पोक्खलिं समणोवासगं एवं वयासी–नो खलु कप्पइ देवानुप्पिया! तं विउलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणसस विस्साएमाणस्स परिभाएमाणस्स परिभुंजेमाणस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, कप्पइ मे पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स ओमुक्कमणि-सुवण्णस्स ववगयमाला-वण्णग-विलेवणस्स निक्खत्तसत्थ-मुसलस्स एगस्स अबिइयस्स दब्भसंथारोवगयस्स पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणस्स विहरित्तए, तं छंदेणं देवानुप्पिया! तुब्भे तं विउलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरह। तए णं से पोक्खली समणोवासए संखस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख-मित्ता सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव ते समणोवासगा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते समणोवासए एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! संखे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए जाव विहरइ, तं छंदेणं देवानुप्पिया! तुब्भे विउलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरह, संखे णं समणोवासए नो हव्वमागच्छइ। तए णं ते समणोवासगा तं विउलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा जाव विहरंति। तए णं तस्स संखस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झ-त्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासित्ता तओ पडिनियत्तस्स पक्खियं पोसहं पारित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते पोसहसा-लाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख-मित्ता पायविहारचारेणं सावत्थिं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवास-णाए पज्जुवासति। तए णं ते समणोवासगा कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते ण्हाया कयवलिकम्मा जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा सएहिं-सएहिं गिहे-हिंतो पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता एगयओ मेलायंति, मेलायित्ता पायविहारचारेणं सावत्थीए नगरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति। तए णं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ जाव आणाए आराहए भवइ। तए णं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा उट्ठाए उट्ठेंति, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता संखं समणो-वासयं एवं वयासी–तुमं णं देवानुप्पिया! हिज्जो अम्हे अप्पणा चेव एवं वयासी–तुम्हे णं देवानुप्पिया! विउलं असनं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेह। तए णं अम्हे तं विपुलं असनं पाणं खाइमं साइमं अस्साएमाणा विस्साएमाणा परिभाएमाणा परिभुंजेमाणा पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणा विहरिस्सामो। तए णं तुमं पोसहसालाए पोसहिए बंभचारी ओमुक्कमणिसुवण्णे ववगयमाला-वण्णग-विलेवने निक्खत्तसत्थ-मुसले एगे अबिइए दब्भसंथारोवगए पक्खियं पोसहं पडिजागरमाणे विहरिए, तं सुट्ठु णं तुमं देवा-णुप्पिया! अम्हे हीलसि। अज्जोति! समणे भगवं महावीरे ते समणोवासए एवं वयासी–मा णं अज्जो! तुब्भे संखं समणोवासगं हीलह निंदह खिंसह गरहह अवमण्णह। संखे णं समणोवासए पियधम्मे चेव, दढधम्मे चेव, सुदक्खुजागरियं जागरिए।
Sutra Meaning : उस शंख श्रमणोपासक ने दूसरे श्रमणोपासकों से कहा – देवानुप्रियो ! तुम विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार कराओ। फिर हम उस प्रचुर अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन करते हुए, विस्वादन करते हुए, एक दूसरे को देते हुए भोजन करते हुए पाक्षिक पौषध का अनुपालन करते हुए अहोरात्र – यापन करेंगे। इस पर उन श्रमणोपासकों ने शंख श्रमणोपासक की इस बात को विनयपूर्वक स्वीकार किया। तदनन्तर उस शंख श्रमणोपासक को एक ऐसा अध्यवसाय यावत्‌ उत्पन्न हुआ – ‘उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का आस्वादन, विस्वादन, परिभाग और परिभोग करते हुए पाक्षिक पौषध (करके) धर्मजागरणा करना मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं प्रत्युत अपनी पौषध – शाला में, ब्रह्मचर्यपूर्वक, मणि, सुवर्ण आदि के त्यागरूप तथा माला, वर्णक एवं विलेपन से रहित, और शस्त्र – मूसल आदि के त्यागरूप पौषध का ग्रहण करके दर्भ के संस्तारक पर बैठकर अकेले को ही पाक्षिक पौषध के रूप में धर्मजागरणा करते हुए विचरण करना श्रेयस्कर है।’ इस प्रकार विचार करके वह श्रावस्ती नगरी में जहाँ अपना घर था, वहाँ आया, (और अपनी धर्मपत्नी) उत्पला श्रमणोपासिका से पूछा। फिर पौषधशाला में प्रवेश किया। पौषधशाला का प्रमार्जन किया; उच्चारण – प्रस्रवण की भूमि का प्रति – लेखन किया। डाभ का संस्तारक बिछाया और उस पर बैठा। फिर पौषधशाला में उसने ब्रह्मचर्य यावत्‌ पाक्षिक पौषध पालन करते हुए, (अहोरात्र) यापन किया। तत्पश्चात्‌ वे श्रमणोपासक श्रावस्ती नगरी में अपने – अपने घर पहुँचे। और उन्होंने पुष्कल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवाया। एक दूसरे को बुलाया और परस्पर कहने लगे – देवानुप्रियो ! हमने तो पुष्कल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा लिया; परन्तु शंख श्रमणोपासक अभी तक नहीं आए, देवानुप्रियो ! हमे शंख श्रमणोपासक को बुला लाना श्रेयस्कर है। इसके बाद उस पुष्कली श्रमणोपासक ने कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम सब अच्छी तरह स्वस्थ और विश्वस्त होकर बैठो, मैं शंख श्रमणोपासक को बुलाकर लाता हूँ।’ यों कहकर वह श्रावस्ती नगरी में जहाँ शंख श्रमणोपासक का घर था, वहाँ आकर उसने शंख श्रमणोपासक के घर में प्रवेश किया। पुष्कली श्रमणोपासक को आते देखकर, वह उत्पला श्रमणोपासिका हर्षित और सन्तुष्ट हुई। वह अपने आसन से उठी और सात – आठ कदम सामने गई। पुष्कली श्रमणोपासक को वन्दन – नमस्कार किया, और आसन पर बैठने को कहा। फिर पूछा – ‘कहिए, देवानुप्रिय ! आपके आने का क्या प्रयोजन है ?’ पुष्कली श्रमणोपासक ने, उत्पला श्रमणोपासिका से कहा – ‘देवानुप्रिये ! शंख श्रमणोपासक कहाँ है ?’ उत्पला – ‘देवानुप्रिय ! बात ऐसी है कि वह पौषधशाला में पौषध ग्रहण करके ब्रह्मचर्ययुक्त होकर यावत्‌ (धर्मजागरणा कर) रहे हैं। तब वह पुष्कली श्रमणोपासक, जिस पौषधशाला में शंख श्रमणोपासक था, वहाँ उसके पास आया और उसने गमनागमन का प्रतिक्रमण किया। फिर शंख श्रमणोपासक को वन्दन – नमस्कार करके बोला – ‘देवानुप्रिय ! हमने वह विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार तैयार करा लिया है। अतः देवानुप्रिय ! अपन चलें और वह विपुल अशनादि आहार एक दूसरे को देते और उपभोगादि करते हुए पौषध करके रहें। शंख श्रमणोपासक ने पुष्कली श्रमणो – पासक से कहा – ‘देवानुप्रिय ! मेरे लिए उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का उपभोग आदि करते हुए पौषध करना कल्पनीय नहीं है। मेरे लिए पौषधशाला में पौषध अंगीकार करके यावत्‌ धर्मजागरणा करते हुए रहना कल्पनीय है। अतः हे देवानुप्रिय ! तुम सब अपनी ईच्छानुसार उस विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य आहार का उपभोग आदि करते हुए यावत्‌ पौषध का अनुपालन करो। तदनन्तर वह पुष्कली श्रमणोपासक, शंख श्रमणोपासक की पौषधशाला से लौटा और श्रावस्ती नगरी के मध्य में से होकर, जहाँ वे (साथी) श्रमणोपासक थे, वहाँ आया। फिर उन श्रमणोपासकों से बोला – शंख श्रमणो – पासक निराहार – पौषधव्रत अंगीकार करके स्थित है। उसने कह दिया कि ‘देवानुप्रियो ! तुम सब स्वेच्छानुसार उस विपुल अशनादि आहार को परस्पर देते हुए यावत्‌ उपभोग करते हुए पौषध का अनुपालन करो। शंख श्रमणो – पासक अब नहीं आएगा।’ यह सूनकर उन श्रमणोपासकों ने उस विपुल अशन – पान – खाद्य – स्वाद्यरूप आहार को खाते – पीते हुए यावत्‌ पौषध करके धर्मजागरणा की। इधर उस शंख श्रमणोपासक को पूर्वरात्रि व्यतीत होने पर, पिछली रात्रि के समय में धर्मजागरिकापूर्वक जागरणा करते हुए इस प्रकार का अध्यवसाय यावत्‌ उत्पन्न हुआ – ‘कल प्रातःकाल यावत्‌ जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मेरे लिए यह श्रेयस्कर है कि श्रमण भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार करके यावत्‌ उनकी पर्युपासना करके वहाँ से लौट कर पाक्षिक पौषध पारित करूँ। प्रातःकाल सूर्योदय होने पर अपनी पौषधशाला से बाहर नीकला। शुद्ध एवं सभा में प्रवेश करने योग्य मंगल वस्त्र ठीक तरह से पहने, और अपने घर से चला। वह पैदल चलता हुआ श्रावस्ती नगरी के मध्य में होकर भगवान की सेवा में पहुँचा, यावत्‌ उनकी पर्युपासना करने लगा। वहाँ अभिगम नहीं (कहना चाहिए)। तदनन्तर वे सब श्रमणोपासक, (दूसरे दिन) प्रातःकाल यावत्‌ सूर्योदय होने पर स्नानादि (नित्यकृत्य) करके यावत्‌ शरीर को अलंकृत करके अपने – अपने घरों से नीकले और एक स्थान पर मिले। फिर सब मिलकर पूर्ववत्‌ भगवान की सेवा में पहुँचे, यावत्‌ पर्युपासना करने लगे। भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों और उस महती महापरीषद्‌ को यावत्‌ – धर्मदेशना दी। बाद वे सभी श्रमणोपासक श्रमण भगवान महावीर से धर्म श्रवण कर और हृदय में अवधारणा करके हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। फिर उन्होंने खड़े होकर श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। तदनन्तर वे शंख श्रमणोपासक के पास आए और कहने लगे – देवानुप्रिय! कल आपने ही हमें कहा था कि ‘‘देवानुप्रियो ! तुम प्रचूर अशनादि तैयार करवाओ, हम आहार देते हुए यावत्‌ उपभोग करते हुए पौषध का अनुपालन करेंगे। किन्तु फिर आप आए नहीं और आपने अकेले ही पौषधशाला में यावत्‌ निराहार पौषध कर लिया। अतः देवानुप्रिय ! आपने हमारी अच्छी अवहेलना की!’’ भगवान महावीर ने उन श्रमणोपासकों से कहा – ‘आर्यो ! तुम श्रमणोपासक शंख की हीलना, निन्दा, कोसना, गर्हा और अवमानना मत करो। क्योंकि शंख श्रमणोपासक प्रियधर्मा और दृढ़धर्मा है। इसने सुदर्शन नामक जागरिका की है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam se samkhe samanovasae te samanovasae evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadaveha. Tae nam amhe tam vipulam asanam panam khaimam saimam assaemana vissaemana paribhaemana paribhumjemana pakkhiyam posaham padijagaramana viharissamo. Tae nam te samanovasaga samkhassa samanovasagassa eyamattham vinaenam padisunemti. Tae nam tassa samkhassa samanovasagassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–no khalu me seyam tam vipulam asanam panam khaimam saimam assaemanassa vissaemanassa paribhaemanassa paribhumjemanassa pakkhiyam posaham padijagaramanassa viharittae, seyam khalu me posahasalae posahiyassa bambhacharissa omukkamani-suvannassa vavagayamala-vannaga-vilevanassa nikkhittasatthamusalassa egassa abiiyassa dabbhasamtharovagayassa pakkhiyam posaham padijagaramanassa viharittae tti kattu evam sampehei, sampehetta jeneva savatthi nagari, jeneva sae gihe, jeneva uppala samanovasiya, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta uppalam samanovasiyam apuchchhai, apuchchhitta jeneva posahasala teneva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam anupavissai, anupa-vissitta posahasalam pamajjai, pamajjitta uchcharapasavanabhumim padilehei, padilehetta dabbhasatharagam samtharai, samtharitta dabbhasamtharagam duruhai, duruhitta posahasalae posahie bambhachari omukkamani-suvanne vavagayamala-vannagavilevane nikkhittasattha-musale ege abiie dabbhasatharovagae pakkhiyam posaham padijagaramane viharai. Tae nam te samanovasaga jeneva savatthi nagari jeneva saim-saim gihaim, teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta vipulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadavemti, uvakkhadavetta annamannam saddavemti, saddavetta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhehim se viule asana-pana-khaima-saime uvakkhadavie, samkhe ya nam samanovasae no havvamagachchhai, tam seyam khalu devanuppiya! Amham samkham samanovasagam saddavettae. Tae nam se pokkhali samanovasae te samanovasae evam vayasi–achchhaha nam tubbhe devanuppiya! Sunivvuya-visattha, ahannam samkham samanovasagam saddavemi tti kattu tesim samanovasaganam amtiyao padinikkhamai, padinikkhamitta savatthie nagarie majjhammajjhenam jeneva samkhassa samanovasagassa gihe, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samkhassa samanovasagassa giham anupavitthe. Tae nam sa uppala samanovasiya pokkhalim samanovasayam ejjamanam pasai, pasitta hatthatuttha asanao abbhutthei, abbhutthetta sattattha payaim anugachchhai, anugachchhitta pokkhalim samanovasagam vamdamti namamsati, vamditta namamsitta asanenam uvanimamtei, uvanimamtetta evam vayasi– samdisattu nam devanuppiya! Kimagamanappayoyanam? Tae nam se pokkhali samanovasae uppalam samanovasiyam evam vayasi–kahinnam devanuppiya! Samkhe samanovasae? Tae nam sa uppala samanovasiya pokkhalim samanovasayam evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Samkhe samanovasae posahasalae posahie bambhachari omukkamani-suvanne vavagayamala-vannaga-vilevane nikkhattasattha-musale ege abiie dabbhasamtharovagae pakkhiyam posaham padijagaramane viharai. Tae nam se pokkhali samanovasae jeneva posahasala, jeneva samkhe samanovasae, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta gamanagamanae padikkamai, padikkamitta samkham samanovasagam vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Amhehim se viule asana-pana-khaima-saime uvakkhadavie, tam gachchhamo nam devanuppiya! Tam viulam asanam panam khaimam saimam assaemana vissaemana paribhaemana paribhumjemana pakkhiyam posaham padijagaramana viharamo. Tae nam se samkhe samanovasae pokkhalim samanovasagam evam vayasi–no khalu kappai devanuppiya! Tam viulam asanam panam khaimam saimam assaemanasasa vissaemanassa paribhaemanassa paribhumjemanassa pakkhiyam posaham padijagaramanassa viharittae, kappai me posahasalae posahiyassa bambhacharissa omukkamani-suvannassa vavagayamala-vannaga-vilevanassa nikkhattasattha-musalassa egassa abiiyassa dabbhasamtharovagayassa pakkhiyam posaham padijagaramanassa viharittae, tam chhamdenam devanuppiya! Tubbhe tam viulam asanam panam khaimam saimam assaemana vissaemana paribhaemana paribhumjemana pakkhiyam posaham padijagaramana viharaha. Tae nam se pokkhali samanovasae samkhassa samanovasagassa amtiyao posahasalao padinikkhamai, padinikkha-mitta savatthim nagarim majjhammajjhenam jeneva te samanovasaga teneva uvagachchhai, uvagachchhitta te samanovasae evam vayasi–evam khalu devanuppiya! Samkhe samanovasae posahasalae posahie java viharai, tam chhamdenam devanuppiya! Tubbhe viulam asanam panam khaimam saimam assaemana vissaemana paribhaemana paribhumjemana pakkhiyam posaham padijagaramana viharaha, samkhe nam samanovasae no havvamagachchhai. Tae nam te samanovasaga tam viulam asanam panam khaimam saimam assaemana java viharamti. Tae nam tassa samkhassa samanovasagassa puvvarattavarattakalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa ayameyaruve ajjha-tthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–seyam khalu me kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte samanam bhagavam mahaviram vamditta namamsitta java pajjuvasitta tao padiniyattassa pakkhiyam posaham parittae tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte posahasa-lao padinikkhamai, padinikkhamitta suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie sao gihao padinikkhamai, padinikkha-mitta payaviharacharenam savatthim nagarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva kotthae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta tivihae pajjuvasa-nae pajjuvasati. Tae nam te samanovasaga kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte nhaya kayavalikamma java appamahagghabharanalamkiyasarira saehim-saehim gihe-himto padinikkhamamti, padinikkhamitta egayao melayamti, melayitta payaviharacharenam savatthie nagarie majjhammajjhenam niggachchhamti, niggachchhitta jeneva kotthae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram java tivihae pajjuvasanae pajjuvasamti. Tae nam samane bhagavam mahavire tesim samanovasaganam tise ya mahatimahaliyae parisae dhammam parikahei java anae arahae bhavai. Tae nam te samanovasaga samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammam sochcha nisamma hatthatuttha utthae utthemti, utthetta samanam bhagavam mahaviram vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta jeneva samkhe samanovasae, teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta samkham samano-vasayam evam vayasi–tumam nam devanuppiya! Hijjo amhe appana cheva evam vayasi–tumhe nam devanuppiya! Viulam asanam panam khaimam saimam uvakkhadaveha. Tae nam amhe tam vipulam asanam panam khaimam saimam assaemana vissaemana paribhaemana paribhumjemana pakkhiyam posaham padijagaramana viharissamo. Tae nam tumam posahasalae posahie bambhachari omukkamanisuvanne vavagayamala-vannaga-vilevane nikkhattasattha-musale ege abiie dabbhasamtharovagae pakkhiyam posaham padijagaramane viharie, tam sutthu nam tumam deva-nuppiya! Amhe hilasi. Ajjoti! Samane bhagavam mahavire te samanovasae evam vayasi–ma nam ajjo! Tubbhe samkham samanovasagam hilaha nimdaha khimsaha garahaha avamannaha. Samkhe nam samanovasae piyadhamme cheva, dadhadhamme cheva, sudakkhujagariyam jagarie.
Sutra Meaning Transliteration : Usa shamkha shramanopasaka ne dusare shramanopasakom se kaha – devanupriyo ! Tuma vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karao. Phira hama usa prachura ashana, pana, khadya aura svadya ka asvadana karate hue, visvadana karate hue, eka dusare ko dete hue bhojana karate hue pakshika paushadha ka anupalana karate hue ahoratra – yapana karemge. Isa para una shramanopasakom ne shamkha shramanopasaka ki isa bata ko vinayapurvaka svikara kiya. Tadanantara usa shamkha shramanopasaka ko eka aisa adhyavasaya yavat utpanna hua – ‘usa vipula ashana, pana, khadya aura svadya ka asvadana, visvadana, paribhaga aura paribhoga karate hue pakshika paushadha (karake) dharmajagarana karana mere lie shreyaskara nahim pratyuta apani paushadha – shala mem, brahmacharyapurvaka, mani, suvarna adi ke tyagarupa tatha mala, varnaka evam vilepana se rahita, aura shastra – musala adi ke tyagarupa paushadha ka grahana karake darbha ke samstaraka para baithakara akele ko hi pakshika paushadha ke rupa mem dharmajagarana karate hue vicharana karana shreyaskara hai.’ isa prakara vichara karake vaha shravasti nagari mem jaham apana ghara tha, vaham aya, (aura apani dharmapatni) utpala shramanopasika se puchha. Phira paushadhashala mem pravesha kiya. Paushadhashala ka pramarjana kiya; uchcharana – prasravana ki bhumi ka prati – lekhana kiya. Dabha ka samstaraka bichhaya aura usa para baitha. Phira paushadhashala mem usane brahmacharya yavat pakshika paushadha palana karate hue, (ahoratra) yapana kiya. Tatpashchat ve shramanopasaka shravasti nagari mem apane – apane ghara pahumche. Aura unhomne pushkala ashana, pana, khadya aura svadya taiyara karavaya. Eka dusare ko bulaya aura paraspara kahane lage – devanupriyo ! Hamane to pushkala ashana, pana, khadya aura svadya taiyara karava liya; parantu shamkha shramanopasaka abhi taka nahim ae, devanupriyo ! Hame shamkha shramanopasaka ko bula lana shreyaskara hai. Isake bada usa pushkali shramanopasaka ne kaha – ‘devanupriyo ! Tuma saba achchhi taraha svastha aura vishvasta hokara baitho, maim shamkha shramanopasaka ko bulakara lata hum.’ yom kahakara vaha shravasti nagari mem jaham shamkha shramanopasaka ka ghara tha, vaham akara usane shamkha shramanopasaka ke ghara mem pravesha kiya. Pushkali shramanopasaka ko ate dekhakara, vaha utpala shramanopasika harshita aura santushta hui. Vaha apane asana se uthi aura sata – atha kadama samane gai. Pushkali shramanopasaka ko vandana – namaskara kiya, aura asana para baithane ko kaha. Phira puchha – ‘kahie, devanupriya ! Apake ane ka kya prayojana hai\?’ pushkali shramanopasaka ne, utpala shramanopasika se kaha – ‘devanupriye ! Shamkha shramanopasaka kaham hai\?’ utpala – ‘devanupriya ! Bata aisi hai ki vaha paushadhashala mem paushadha grahana karake brahmacharyayukta hokara yavat (dharmajagarana kara) rahe haim. Taba vaha pushkali shramanopasaka, jisa paushadhashala mem shamkha shramanopasaka tha, vaham usake pasa aya aura usane gamanagamana ka pratikramana kiya. Phira shamkha shramanopasaka ko vandana – namaskara karake bola – ‘devanupriya ! Hamane vaha vipula ashana, pana, khadima aura svadima ahara taiyara kara liya hai. Atah devanupriya ! Apana chalem aura vaha vipula ashanadi ahara eka dusare ko dete aura upabhogadi karate hue paushadha karake rahem. Shamkha shramanopasaka ne pushkali shramano – pasaka se kaha – ‘devanupriya ! Mere lie usa vipula ashana, pana, khadya aura svadya ka upabhoga adi karate hue paushadha karana kalpaniya nahim hai. Mere lie paushadhashala mem paushadha amgikara karake yavat dharmajagarana karate hue rahana kalpaniya hai. Atah he devanupriya ! Tuma saba apani ichchhanusara usa vipula ashana, pana, khadya aura svadya ahara ka upabhoga adi karate hue yavat paushadha ka anupalana karo. Tadanantara vaha pushkali shramanopasaka, shamkha shramanopasaka ki paushadhashala se lauta aura shravasti nagari ke madhya mem se hokara, jaham ve (sathi) shramanopasaka the, vaham aya. Phira una shramanopasakom se bola – shamkha shramano – pasaka nirahara – paushadhavrata amgikara karake sthita hai. Usane kaha diya ki ‘devanupriyo ! Tuma saba svechchhanusara usa vipula ashanadi ahara ko paraspara dete hue yavat upabhoga karate hue paushadha ka anupalana karo. Shamkha shramano – pasaka aba nahim aega.’ yaha sunakara una shramanopasakom ne usa vipula ashana – pana – khadya – svadyarupa ahara ko khate – pite hue yavat paushadha karake dharmajagarana ki. Idhara usa shamkha shramanopasaka ko purvaratri vyatita hone para, pichhali ratri ke samaya mem dharmajagarikapurvaka jagarana karate hue isa prakara ka adhyavasaya yavat utpanna hua – ‘kala pratahkala yavat jajvalyamana suryodaya hone para mere lie yaha shreyaskara hai ki shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake yavat unaki paryupasana karake vaham se lauta kara pakshika paushadha parita karum. Pratahkala suryodaya hone para apani paushadhashala se bahara nikala. Shuddha evam sabha mem pravesha karane yogya mamgala vastra thika taraha se pahane, aura apane ghara se chala. Vaha paidala chalata hua shravasti nagari ke madhya mem hokara bhagavana ki seva mem pahumcha, yavat unaki paryupasana karane laga. Vaham abhigama nahim (kahana chahie). Tadanantara ve saba shramanopasaka, (dusare dina) pratahkala yavat suryodaya hone para snanadi (nityakritya) karake yavat sharira ko alamkrita karake apane – apane gharom se nikale aura eka sthana para mile. Phira saba milakara purvavat bhagavana ki seva mem pahumche, yavat paryupasana karane lage. Bhagavana mahavira ne una shramanopasakom aura usa mahati mahaparishad ko yavat – dharmadeshana di. Bada ve sabhi shramanopasaka shramana bhagavana mahavira se dharma shravana kara aura hridaya mem avadharana karake harshita evam santushta hue. Phira unhomne khare hokara shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Tadanantara ve shamkha shramanopasaka ke pasa ae aura kahane lage – devanupriya! Kala apane hi hamem kaha tha ki ‘‘devanupriyo ! Tuma prachura ashanadi taiyara karavao, hama ahara dete hue yavat upabhoga karate hue paushadha ka anupalana karemge. Kintu phira apa ae nahim aura apane akele hi paushadhashala mem yavat nirahara paushadha kara liya. Atah devanupriya ! Apane hamari achchhi avahelana ki!’’ bhagavana mahavira ne una shramanopasakom se kaha – ‘aryo ! Tuma shramanopasaka shamkha ki hilana, ninda, kosana, garha aura avamanana mata karo. Kyomki shamkha shramanopasaka priyadharma aura drirhadharma hai. Isane sudarshana namaka jagarika ki hai.