Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004028 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-११ |
Translated Chapter : |
शतक-११ |
Section : | उद्देशक-१२ आलभिका | Translated Section : | उद्देशक-१२ आलभिका |
Sutra Number : | 528 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाइ आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तत्थ णं संखवने नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तस्स णं संखवणस्स चेइयस्स अदूरसामंते पोग्गले नामं परिव्वायए–रिउव्वेद-जजुव्वेद जाव बंभण्णएसु परिव्वायएसु य नएसु सुपरिनिट्ठिए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे विहरइ तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपयणुकोहमाणमायालोभाए मिउमद्दवसंपन्नयाए अल्लीणयाए विणीययाए अन्नया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूह-मग्गण-गवेसणं करेमाणस्स विब्भंगे नामं नाणे समुप्पन्ने। से णं तेणं विब्भंगेणं नाणेणं समुप्पन्नेणं बंभलोए कप्पे देवाणं ठितिं जाणइ-पासइ। तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि णं ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव आलभिया नगरी, जेणेव परिव्वायगावसहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता आलभियाए नगरीए सिंघा-डग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया, जाव असंखेज्ज समयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य। तए णं पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आलभियाए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर -चउम्मुह-महापह-पहेसुबहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! पोग्गले परिव्वायए एवमाइ-क्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दसवास-सहस्साइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य। से कहमेयं मन्ने एवं? सामी समोसढे, परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया। भगवं गोयमे तहेव भिक्खायरियाए तहेव बहुजणसद्दं निसामेइ, निसामेत्ता तहेव सव्वं भाणियव्वं जाव अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, एवं भासामि जाव परूवेमि–देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य। अत्थि णं भंते! सोहम्मे कप्पे दव्वाइं–सवण्णाइं पि अवण्णाइं पि, सगंधाइं पि अगंधाइं पि, सरसाइं पि अरसाइं पि, सफासाइं पि अफासाइं पि अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाइं अन्नमन्नबद्धपुट्ठाइं अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि। एवं ईसाने वि, एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेज्जविमानेसु, अनुत्तरविमानेसु वि, ईसिपब्भाराए वि जाव? हंता अत्थि। तए णं सा महतिमहालिया परिसा जाव जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं आलभियाए नगरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ जण्णं देवानुप्पिया! पोग्गले परिव्वायए एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्ज-समयाहिया, उक्कोसेणं दससागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य। तं नो इणट्ठे समट्ठे। समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ जाव देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता, तेण परं समयाहिया, दुसमयाहिया जाव असंखेज्जसमयाहिया, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तेण परं वोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य। तए णं से पोग्गले परिव्वायए बहुजनस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था। तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स संकियस्स कंखियस्स वितिगिच्छियस्स भेदसमावन्नस्स कलुससमावन्नस्स से विभंगे नाणे खिप्पामेव पडिवडिए। तए णं तस्स पोग्गलस्स परिव्वायगस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव संखवने चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तं महप्फलं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सव-णयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि जाव पज्जुवासामि, एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव परिव्वायगावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता परिव्वायगावसहं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य गेण्हइ, गेण्हित्ता परिव्वायगावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पडिवडियविब्भंगे आलभियं नगरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्ग-च्छित्ता जेणेव संखवने चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिकडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे पोग्गलस्स परिव्वायगस्स तीसे य महतिमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ जाव आणाए आराहए भवइ। तए णं से पोग्गले परिव्वायए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म जहा खंदओ जाव उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता तिदंडं च कुंडियं च जाव धाउरत्ताओ य एगंते एडेइ, एडेत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं जहेव उसभदत्तो तहेव पव्वइओ, तहेव एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, तहेव सव्वं जाव सव्वदुक्खप्पहीने। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! सिज्झ माणस्स कयरम्मि संघयणे सिज्झंति? गोयमा! वइरोसभणारायसंघयणे सिज्झंति, एवं जहेव ओववाइए तहेव। संघयणं संठाणं, उच्चत्तं आउयं च परिवसणा। एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियव्वा जाव– अव्वाबाहं सोक्खं, अणुभवंति सासयं सिद्धा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | पश्चात् किसी समय श्रमण भगवान महावीर भी आलभिका नगरी के शंखवन उद्यान से नीकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे। उस काल और उस समय में आलभिका नामकी नगरी थी। वहाँ शंखवन नामक उद्यान था। उस शंखवन उद्यान के न अति दूर और न अति निकट मुद्गल परिव्राजक रहता था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि शास्त्रों यावत् बहुत – से ब्राह्मण – विषयक नयों में सम्यक् निष्णात था। वह लगातार बेले – बेले का तपःकर्म करता हुआ तथा आतापनाभूमि में दोनों भुजाएं ऊंची करके यावत् आतापना लेता हुआ विचरण करता था। इस प्रकार से बेले – बेले का तपश्चरण करते हुए मुद्गल परिव्राजक को प्रकृति की भद्रता आदि के कारण शिवराजर्षि के समान विभंगज्ञान उत्पन्न हुआ। उस समुत्पन्न विभंगज्ञान के कारण पंचम ब्रह्मलोक रूप कल्पमें रहे हुए देवों की स्थिति तक जानने – देखने लगा तत्पश्चात् उस मुद्गल परिव्राजक को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ कि – ‘मुझे अतिशय – ज्ञान – दर्शन उत्पन्न हुआ है, जिससे मैं जानता हूँ कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है, उसके उपरांत एक समय अधिक, दो समय अधिक, यावत् असंख्यात समय अधिक, इस प्रकार बढ़ते – बढ़ते उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है उससे आगे देव और देवलोक विच्छिन्न हैं।’ इस प्रकार उसने ऐसा निश्चय कर लिया। फिर वह आतापनाभूमि से नीचे ऊतरा और त्रिदण्ड, कुण्डिका, यावत् गैरिक वस्त्रों को लेकर आलभिका नगरी में जहाँ तापसों का मठ था, वहाँ आया वहाँ उसने अपने भण्डोपकरण रखे और आलभिका नगरी के शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् राजमार्ग पर एक – दूसरे से इस प्रकार कहने और प्ररूपणा करने लगा – ‘हे देवानुप्रियो ! मुझे अतिशय ज्ञान – दर्शन उत्पन्न हुआ है, जिससे मैं यह जानता – देखता हूँ कि देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति यावत् (दस सागरोपम की है)। इससे आगे देवों और देवलोकों का अभाव है।’ इस बात को सूनकर आलभिका नगरी के लोग परस्पर शिवराजर्षि के अभिलाप के समान कहने लगे यावत् – ‘हे देवानुप्रियो ! उनकी यह बात कैसे मानी जाए ?’ भगवान महावीर स्वामी का वहाँ पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् वापस लौटी। गौतमस्वामी उसी प्रकार नगरी में भिक्षाचर्या के लिए पधारे तथा बहुत – से लोगोंमें परस्पर चर्चा होती हुई सूनी। शेष पूर्ववत्, यावत् (भगवान ने कहा – ) गौतम ! मुद्गल परिव्राजक का कथन असत्य है। मैं इस प्रकार प्ररूपणा करता हूँ, इस प्रकार प्रतिपादन करता हूँ यावत् इस प्रकार कथन करता हूँ – ‘देवलोकों में देवों की जघन्य स्थिति १०००० वर्ष की है। किन्तु इसके उपरांत एक समय अधिक, दो समय अधिक, यावत् उत्कृष्ट स्थिति तैंतीस सागरोपम है। इससे आगे देव और देवलोक विच्छिन्न हो गए हैं।’’भगवन् ! क्या सौधर्म – देवलोक में वर्णसहित और वर्णरहित द्रव्य अन्योऽन्यबद्ध यावत् सम्बद्ध हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। हाँ, गौतम ! हैं। इसी प्रकार क्या ईशान देवलोक में यावत् अच्युत देवलोक में तथा ग्रैवेयकविमानों में और ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में भी वर्णादिसहित और वर्णादिरहित द्रव्य है ? हाँ, गौतम ! है। तदनन्तर वह महती परीषद् (धर्मोपदेश सूनकर) यावत् वापस लौट गई। तत्पश्चात् आलभिका नगरी में शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत – से लोगों से यावत् मुद्गल परि – व्राजक ने भगवान द्वारा दिया अपनी मान्यता के मिथ्या होने का निर्णय सूनकर इत्यादि सब वर्णन शिवराजर्षि के समान कहना, यावत् सर्वदुःखों से रहित होकर विचरते हैं; मुद्गल परिव्राजक ने भी अपने त्रिदण्ड, कुण्डिका आदि उपकरण लिए, भगवा वस्त्र पहने और वे आलभिका नगरी के मध्य में होकर नीकले, यावत् उनकी पर्युपासना की। भगवान द्वारा अपनी शंका का समाधान हो जाने पर मुद्गल परिव्राजक भी यावत् उत्तरपूर्वदिशा में गए और स्कन्दक की तरह त्रिदण्ड, कुण्डिका एवं भगवा वस्त्र एकान्त में छोड़कर यावत् प्रव्रजित हो गए। यावत् वे सिद्ध अव्याबाध शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं यहाँ तक कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam samane bhagavam mahavire annaya kayai alabhiyao nagario samkhavanao cheiyao padinikkhamai, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai. Tenam kalenam tenam samaenam alabhiya namam nagari hottha–vannao. Tattha nam samkhavane namam cheie hottha–vannao. Tassa nam samkhavanassa cheiyassa adurasamamte poggale namam parivvayae–riuvveda-jajuvveda java bambhannaesu parivvayaesu ya naesu suparinitthie chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhe ayavanabhumie ayavemane viharai Tae nam tassa poggalassa parivvayagassa chhatthamchhatthenam anikkhittenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhe ayavanabhumie ayavemanassa pagaibhaddayae pagaiuvasamtayae pagaipayanukohamanamayalobhae miumaddavasampannayae allinayae viniyayae annaya kayai tayavaranijjanam kammanam khaovasamenam ihapuha-maggana-gavesanam karemanassa vibbhamge namam nane samuppanne. Se nam tenam vibbhamgenam nanenam samuppannenam bambhaloe kappe devanam thitim janai-pasai. Tae nam tassa poggalassa parivvayagassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–atthi nam mamam atisese nanadamsane samuppanne, devaloesu nam devanam jahannenam dasa vasasahassaim thiti pannatta, tena param samayahiya, dusamayahiya java asamkhejjasamayahiya, ukkosenam dasasagarovamaim thiti pannatta. Tena param vochchhinna deva ya devaloga ya–evam sampehei, sampehetta ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta tidamdam cha kumdiyam cha java dhaurattao ya genhai, genhitta jeneva alabhiya nagari, jeneva parivvayagavasahe, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhamdanikkhevam karei, karetta alabhiyae nagarie simgha-daga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu annamannassa evamaikkhai java paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, devaloesu nam devanam jahannenam dasavasasahassaim thiti pannatta, tena param samayahiya, dusamayahiya, java asamkhejja samayahiya, ukkosenam dasasagarovamaim thiti pannatta. Tena param vochchhinna deva ya devaloga ya. Tae nam poggalassa parivvayagassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma alabhiyae nagarie simghadaga-tiga-chaukka-chachchara -chaummuha-mahapaha-pahesubahujano annamannassa evamaikkhai java paruvei–evam khalu devanuppiya! Poggale parivvayae evamai-kkhai java paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu devaloesu nam devanam jahannenam dasavasa-sahassaim thiti pannatta, tena param samayahiya, dusamayahiya java asamkhejjasamayahiya, ukkosenam dasasagarovamaim thiti pannatta. Tena param vochchhinna deva ya devaloga ya. Se kahameyam manne evam? Sami samosadhe, parisa niggaya. Dhammo kahio, parisa padigaya. Bhagavam goyame taheva bhikkhayariyae taheva bahujanasaddam nisamei, nisametta taheva savvam bhaniyavvam java aham puna goyama! Evamaikkhami, evam bhasami java paruvemi–devaloesu nam devanam jahannenam dasa vasasahassaim thiti pannatta, tena param samayahiya, dusamayahiya java asamkhejjasamayahiya, ukkosenam tettisam sagarovamaim thiti pannatta. Tena param vochchhinna deva ya devaloga ya. Atthi nam bhamte! Sohamme kappe davvaim–savannaim pi avannaim pi, sagamdhaim pi agamdhaim pi, sarasaim pi arasaim pi, saphasaim pi aphasaim pi annamannabaddhaim annamannaputthaim annamannabaddhaputthaim annamannaghadattae chitthamti? Hamta atthi. Evam isane vi, evam java achchue, evam gevejjavimanesu, anuttaravimanesu vi, isipabbharae vi java? Hamta atthi. Tae nam sa mahatimahaliya parisa java jameva disim paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam alabhiyae nagarie simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujano annamannassa evamaikkhai java paruvei jannam devanuppiya! Poggale parivvayae evamaikkhai java paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu devaloesu nam devanam jahannenam dasa vasasahassaim thiti pannatta, tena param samayahiya, dusamayahiya java asamkhejja-samayahiya, ukkosenam dasasagarovamaim thiti pannatta. Tena param vochchhinna deva ya devaloga ya. Tam no inatthe samatthe. Samane bhagavam mahavire evamaikkhai java devaloesu nam devanam jahannenam dasa vasasahassaim thiti pannatta, tena param samayahiya, dusamayahiya java asamkhejjasamayahiya, ukkosenam tettisam sagarovamaim thiti pannatta. Tena param vochchhinna deva ya devaloga ya. Tae nam se poggale parivvayae bahujanassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma samkie kamkhie vitigichchhie bhedasamavanne kalusasamavanne jae yavi hottha. Tae nam tassa poggalassa parivvayagassa samkiyassa kamkhiyassa vitigichchhiyassa bhedasamavannassa kalusasamavannassa se vibhamge nane khippameva padivadie. Tae nam tassa poggalassa parivvayagassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu samane bhagavam mahavire adigare titthagare java savvannu savvadarisi agasagaenam chakkenam java samkhavane cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai, tam mahapphalam khalu taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae, kimamga puna abhigamana-vamdana-namamsana-padipuchchhana-pajjuvasanayae? Egassa vi ariyassa dhammiyassa suvayanassa sava-nayae, kimamga puna viulassa atthassa gahanayae? Tam gachchhami nam samanam bhagavam mahaviram vamdami java pajjuvasami, eyam ne ihabhave ya parabhave ya hiyae suhae khamae nisseyasae anugamiyattae bhavissai tti kattu evam sampehei, sampehetta jeneva parivvayagavasahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta parivvayagavasaham anuppavisai, anuppavisitta tidamdam cha kumdiyam cha java dhaurattao ya genhai, genhitta parivvayagavasahao padinikkhamai, padinikkhamitta padivadiyavibbhamge alabhiyam nagarim majjhammajjhenam niggachchhai, nigga-chchhitta jeneva samkhavane cheie, jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne natidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjalikade pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire poggalassa parivvayagassa tise ya mahatimahaliyae parisae dhammam parikahei java anae arahae bhavai. Tae nam se poggale parivvayae samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammam sochcha nisamma jaha khamdao java uttarapuratthimam disibhagam avakkamai, avakkamitta tidamdam cha kumdiyam cha java dhaurattao ya egamte edei, edetta sayameva pamchamutthiyam loyam karei, karetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam jaheva usabhadatto taheva pavvaio, taheva ekkarasa amgaim ahijjai, taheva savvam java savvadukkhappahine. Bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–jiva nam bhamte! Sijjha manassa kayarammi samghayane sijjhamti? Goyama! Vairosabhanarayasamghayane sijjhamti, evam jaheva ovavaie taheva. Samghayanam samthanam, uchchattam auyam cha parivasana. Evam siddhigamdiya niravasesa bhaniyavva java– Avvabaham sokkham, anubhavamti sasayam siddha. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pashchat kisi samaya shramana bhagavana mahavira bhi alabhika nagari ke shamkhavana udyana se nikalakara bahara janapadom mem vihara karane lage. Usa kala aura usa samaya mem alabhika namaki nagari thi. Vaham shamkhavana namaka udyana tha. Usa shamkhavana udyana ke na ati dura aura na ati nikata mudgala parivrajaka rahata tha. Vaha rigveda, yajurveda adi shastrom yavat bahuta – se brahmana – vishayaka nayom mem samyak nishnata tha. Vaha lagatara bele – bele ka tapahkarma karata hua tatha atapanabhumi mem donom bhujaem umchi karake yavat atapana leta hua vicharana karata tha. Isa prakara se bele – bele ka tapashcharana karate hue mudgala parivrajaka ko prakriti ki bhadrata adi ke karana shivarajarshi ke samana vibhamgajnyana utpanna hua. Usa samutpanna vibhamgajnyana ke karana pamchama brahmaloka rupa kalpamem rahe hue devom ki sthiti taka janane – dekhane laga Tatpashchat usa mudgala parivrajaka ko isa prakara ka vichara utpanna hua ki – ‘mujhe atishaya – jnyana – darshana utpanna hua hai, jisase maim janata hum ki devalokom mem devom ki jaghanya sthiti dasa hajara varsha ki hai, usake uparamta eka samaya adhika, do samaya adhika, yavat asamkhyata samaya adhika, isa prakara barhate – barhate utkrishta sthiti dasa sagaropama ki hai usase age deva aura devaloka vichchhinna haim.’ isa prakara usane aisa nishchaya kara liya. Phira vaha atapanabhumi se niche utara aura tridanda, kundika, yavat gairika vastrom ko lekara alabhika nagari mem jaham tapasom ka matha tha, vaham aya vaham usane apane bhandopakarana rakhe aura alabhika nagari ke shrimgataka, trika, chatushka yavat rajamarga para eka – dusare se isa prakara kahane aura prarupana karane laga – ‘he devanupriyo ! Mujhe atishaya jnyana – darshana utpanna hua hai, jisase maim yaha janata – dekhata hum ki devalokom mem devom ki jaghanya sthiti dasa hajara varsha hai aura utkrishta sthiti yavat (dasa sagaropama ki hai). Isase age devom aura devalokom ka abhava hai.’ isa bata ko sunakara alabhika nagari ke loga paraspara shivarajarshi ke abhilapa ke samana kahane lage yavat – ‘he devanupriyo ! Unaki yaha bata kaise mani jae\?’ Bhagavana mahavira svami ka vaham padarpana hua, yavat parishad vapasa lauti. Gautamasvami usi prakara nagari mem bhikshacharya ke lie padhare tatha bahuta – se logommem paraspara charcha hoti hui suni. Shesha purvavat, yavat (bhagavana ne kaha – ) gautama ! Mudgala parivrajaka ka kathana asatya hai. Maim isa prakara prarupana karata hum, isa prakara pratipadana karata hum yavat isa prakara kathana karata hum – ‘devalokom mem devom ki jaghanya sthiti 10000 varsha ki hai. Kintu isake uparamta eka samaya adhika, do samaya adhika, yavat utkrishta sthiti taimtisa sagaropama hai. Isase age deva aura devaloka vichchhinna ho gae haim.’’bhagavan ! Kya saudharma – devaloka mem varnasahita aura varnarahita dravya anyonyabaddha yavat sambaddha haim\? Ityadi purvavat prashna. Ham, gautama ! Haim. Isi prakara kya ishana devaloka mem yavat achyuta devaloka mem tatha graiveyakavimanom mem aura ishatpragbhara prithvi mem bhi varnadisahita aura varnadirahita dravya hai\? Ham, gautama ! Hai. Tadanantara vaha mahati parishad (dharmopadesha sunakara) yavat vapasa lauta gai. Tatpashchat alabhika nagari mem shrimgataka, trika yavat rajamargom para bahuta – se logom se yavat mudgala pari – vrajaka ne bhagavana dvara diya apani manyata ke mithya hone ka nirnaya sunakara ityadi saba varnana shivarajarshi ke samana kahana, yavat sarvaduhkhom se rahita hokara vicharate haim; mudgala parivrajaka ne bhi apane tridanda, kundika adi upakarana lie, bhagava vastra pahane aura ve alabhika nagari ke madhya mem hokara nikale, yavat unaki paryupasana ki. Bhagavana dvara apani shamka ka samadhana ho jane para mudgala parivrajaka bhi yavat uttarapurvadisha mem gae aura skandaka ki taraha tridanda, kundika evam bhagava vastra ekanta mem chhorakara yavat pravrajita ho gae. Yavat ve siddha avyabadha shashvata sukha ka anubhava karate haim yaham taka kahana chahie. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |