Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004008 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-११ |
Translated Chapter : |
शतक-११ |
Section : | उद्देशक-९ शिवराजर्षि | Translated Section : | उद्देशक-९ शिवराजर्षि |
Sutra Number : | 508 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणगं दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ। तए णं से सिवे रायरिसी तच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसि तच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता पच्चत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पच्चत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ। तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थे छट्ठक्खमण पारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता उत्तरदिसं पोक्खेइ, उत्तराए दिसाए वेसमणे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपयणुकोहमाणमायालोभयाए मिउ-मद्दवसंपन्नयाए अल्लीणयाए विणीययाए अन्नया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स विब्भंगे नामं नाणे समुप्पन्ने। से णं तेणं विब्भंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति अस्सिं लोए सत्त दीवे सत्त समुद्दे, तेण परं न जाणइ, न पासइ। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि णं ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुय तंबियं तावस भंडगं किढिण-संकाइयगं च गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव तावसाव-सहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता हत्थिणापुरे नगरे सिंधाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हत्थिणापुरे नगरे सिंधाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। से कहमेयं मन्ने एवं? तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे, परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जहा बितियसए नियंठुद्देसए जाव घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजनसद्दं निसामेइ, बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! सिवे रायरिसि एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। से कहमेयं मन्ने एवं? तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म जायसड्ढे जाव समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी–एवं खलु भंते! अहं तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे हत्थिणापुरे नयरे उच्चनीय-मज्झिमाणि कुलाणि घरसमुदानस्स भिक्खायरियाए अडमाणे बहुजणसद्दं निसामेमि– एवं खलु देवानुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–जण्णं गोयमा! एवं खलु एयस्स सिवस्स रायरिसिस्स छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खितेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए पगइउवसंतयाए पगइपयणुकोहमाणमायालोभयाए मिउमद्दवसंपन्नयाए अल्लीणयाए विणीययाए अन्नया कयाइ तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापूहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स विब्भंगे नामं नाणे समुप्पन्ने। तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव भंड-निक्खेवं करेइ, करेत्ता हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महा-पह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ– अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, तण्णं मिच्छा। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा, लवणादीया समुद्दा संठाणओ एगविहिविहाणा, वित्थारओ अनेगविहिविहाणा एवं जहा जीवाभिगमे जाव सयंभूरमनपज्जवसाणा अस्सिं तिरियलोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा पन्नत्ता समणाउसो! अत्थि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दव्वाइं–सवण्णाइं पि, अवण्णाइं पि सगंधाइं पि अगंधाइं पि, सरसाइं पि अरसाइं पि, सफासाइं पि अफासाइं पि, अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाइं अन्नमन्नबद्धपुट्ठाइं अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! लवणसमुद्दे दव्वाइं–सवण्णाइं पि अवण्णाइं पि, सगंधाइं पि अगंधाइं पि, सरसाइं पि अरसाइं पि, सफासाइं पि अफासाइं पि अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाइं अन्नमन्नबद्धपुट्ठाइं अन्नमन्न घडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि। अत्थि णं भंते! घायइसंडे दीवे दव्वाइं सवण्णाइं पि अवण्णाइं पि, सगंधाइं पि अगंधाइं पि, सरसाइं पि अरसाइं पि, सफासाइं पि अफासाइं पि अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाइं अन्नमन्नबद्धपुट्ठाइं अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि। एवं जाव– अत्थि णं भंते! सयंभूरमणसमुद्दे दव्वाइं–सवण्णाइं पि अवण्णाइं पि, सगंधाइं पि, अगंधाइं पि, सरसाइं पि अर-साइं पि, सफासाइं पि अफासाइं पि अन्नमन्नबद्धाइं अन्नमन्नपुट्ठाइं अन्नमन्नबद्धपुट्ठाइं अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठंति? हंता अत्थि। तए णं सा महतिमहालिया महच्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तए णं हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइ-क्खइ जाव परूवेइ जण्णं देवानुप्पिया! सिवे रायरिसी एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। तं नो इणट्ठे समट्ठे, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ जाव परूवेइ–एवं खलु एयस्स सिवस्स रायरिसिस्स छट्ठंछट्ठेणं तं चेव जाव भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता हत्थिणापुरे नगरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ–अत्थि णं देवानुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सिं लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म जाव तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य तण्णं मिच्छा, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्खइ– एवं खलु जंबुद्दीवादीया दीवा लवणादीया समुद्दा तं चेव जाव असंखेज्जा दीवसमुद्दा पन्नत्ता समणाउसो! तए णं से सिवे रायरिसी बहुजणस्स अंतियं एयमट्ठं सोच्चा निसम्म संकिए कंखिए वितिगिच्छिए भेदसमावन्ने कलुससमावन्ने जाए यावि होत्था। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स संकियस्स कंखियस्स वितिगिच्छियस्स भेदसमावन्नस्स कलुससमावन्नस्स से विभंगे नाणे खिप्पामेव परिवडिए। तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे भगवं महावीरे तित्थगरे आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव सहसंबवने उज्जाणे अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ, तं महप्फलं खलु तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि जाव पज्जुवासामि, एयं णे इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तावसावसहं अनुप्पविसइ अनुप्पविसित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावस-भंडगं किढिण-संकाइयगं च गेण्हइ गेण्हित्ता तावसावसहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पडिवडियविब्भंगे हत्थिणापुरं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहसंबवने उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासन्ने नातिदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिकडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे सिवस्स रायरिसिस्स तीसे य महतिसहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ जाव आणाए आराहए भवइ। तए णं से सिवे रायरिसी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म जहा खंदओ जाव उत्तरपुर-त्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं किढिण-संकाइयगं च एगंते एडेइ, एडेत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं जहेव उसभदत्तो तहेव पव्वइओ, तहेव एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, तहेव सव्वं जाव सव्वदुक्खप्पहीने। | ||
Sutra Meaning : | फिर मधु, घी और चावलों का अग्नि में हवन किया और चरु (बलिपात्र) में बलिद्रव्य लेकर बलिवैश्वदेव को अर्पण किया और तब अतिथि की पूजा की और उसके बाद शिवराजर्षि ने स्वयं आहार किया। तत्पश्चात् उन शिवराजर्षि ने दूसरी बेला अंगीकार किया और दूसरे बेले के पारणे के दिन शिवराजर्षि आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल के वस्त्र पहने, यावत् प्रथम पारणे की जो विधि की थी, उसीके अनुसार दूसरे पारणे में भी किया। इतना विशेष है कि दूसरे पारणे के दिन दक्षिण दिशा की पूजा की। हे दक्षिण दिशा के लोकपाल यम महाराज ! परलोकसाधना में प्रवृत्त मुझ शिवराजर्षि की रक्षा करें, इत्यादि शेष सब पूर्ववत् जानना चाहिए; यावत् अतिथि की पूजा करके फिर उसने स्वयं आहार किया। तदनन्तर उन शिव राजर्षि ने तृतीय बेला अंगीकार किया। उसके पारणे के दिन शिवराजर्षि ने पूर्वोक्त सारी विधि की। इसमें इतनी विशेषता है कि पश्चिमदिशा की पूजा की और प्रार्थना की – हे पश्चिम दिशा के लोकपाल वरुण महाराज ! परलोक – साधना – मार्ग में प्रवृत्त मुझ शिवराजर्षि की रक्षा करें, इत्यादि यावत् तब स्वयं आहार किया। तत्पश्चात् उन शिवराजर्षि ने चतुर्थ बेला अंगीकार किया। फिर इस चौथे बेले के तप के पारणे के दिन पूर्ववत् सारी विधि की। विशेष यह है कि उन्होंने उत्तरदिशा की पूजा की और इस प्रकार प्रार्थना की – हे उत्तर – दिशा के लोकपाल वैश्रमण महाराज ! परलोक – साधना – मार्ग में प्रवृत्त इस शिवराजर्षि की रक्षा करें, इत्यादि अवशिष्ट सभी वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् तत्पश्चात् शिवराजर्षि ने स्वयं आहार किया। इसके बाद निरन्तर बेले – बेले की तपश्चर्या के दिक्चक्रवाल का प्रोक्षण करनेसे, यावत् आतापना लेनेसे तथा प्रकृति की भद्रता यावत् विनीतता से शिवराजर्षि को किसी दिन तदावरणीय कर्मों के क्षयोपशम के कारण ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करते हुए विभंग ज्ञान उत्पन्न हुआ। उत्पन्न हुए विभंगज्ञान से वे इस लोकमें सात द्वीप, सात समुद्र देखने लगे। इससे आगे वे न जानते थे, न देखते थे। तत्पश्चात् शिवराजर्षि को इस प्रकार का विचार यावत् उत्पन्न हुआ कि, ‘‘मुझे अतिशय ज्ञान – दर्शन उत्न्न हुआ है। इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं। उससे आगे द्वीपसमुद्रों का विच्छेद है।’’ ऐसा विचार कर वे आतापना – भूमि से नीचे ऊतरे और वल्कलवस्त्र पहने, फिर जहाँ अपनी कुटी थी, वहाँ आए। वहाँ से अपने लोढ़ी, लोहे कड़ाह, कुड़छी आदि बहुत – से भण्डोपकरण तथा छबड़ी – सहित कावड़ को लेकर वे हस्तिनापुर नगर में जहाँ तापसों का आश्रम था, वहाँ आए। वहाँ उसने तापसोचित उपकरण रखे और फिर हस्तिनापुर नगर के शृंटागक, त्रिक यावत् राजमार्गों में बहुत – से मनुष्यों को इस प्रकार कहने और यावत् प्ररूपणा करने लगे – ‘हे देवानुप्रियो ! मुझे अतिशय ज्ञान – दर्शन उत्पन्न हुआ है, जिससे मैं यह जानता और देखता हूँ कि इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं तदनन्तर शिवराजर्षि से यह बात सूनकर और विचार कर हस्तिनापुर नगर के शृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत – से लोग एक – दूसरे से इस प्रकार कहने यावत् बतलाने लगे – हे देवानुप्रियो ! शिवराजर्षि जो इस प्रकार की बात कहते यावत् प्ररूपणा करते हैं कि ‘देवानुप्रियो ! मुझे अतिशय ज्ञान – दर्शन उत्पन्न हुआ है, यावत् इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र ही हैं। इससे आगे द्वीप और समुद्रों का अभाव है,’ उनकी यह बात इस प्रकार कैसे मानी जाए। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी वहाँ पधारे। परीषद् ने धर्मोपदेश सूना, यावत् वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूमि अनगार ने, दूसरे शतक के निर्ग्रन्थोद्देशक में वर्णित विधि के अनुसार यावत् भिक्षार्थ पर्यटन करते हुए, बहुत – से लोगों के शब्द सूने वे परस्पर एक – दूसरे से इस प्रकार कह रहे थे, यावत् इस प्रकार बतला रहे थे – हे देवानुप्रियो ! शिव – राजर्षि यह कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि ‘हे देवानुप्रियो ! इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र हैं, इत्यादि यावत् उससे आगे द्वीप – समुद्र नहीं हैं, तो उनकी यह बात कैसे मानी जाए ?’ बहुत – से मनुष्यों से यह बात सूनकर और विचार कर गौतम स्वामी को संदेह, कुतूहल यावत् श्रद्धा उत्पन्न हुई वे निर्ग्रन्थोद्देशक में वर्णित वर्णन के अनुसार भगवान की सेवा में आए और पूछा – ‘शिवराजर्षि जो यह कहते हैं, यावत् उससे आगे द्वीपों और समुद्रों का सर्वथा अभाव है, भगवन् ! क्या उनका ऐसा कथन यथार्थ है ?’ भगवान महावीर ने कहा – ‘हे गौतम ! जो ये बहुत – से लोग परस्पर ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं शिव – राजर्षि को विभंगज्ञान उत्पन्न होने से लेकर यावत् उन्होंने तापस – आश्रम में भण्डोपकरण रखे। हस्तिनापुर नगर में शृंगाटक, त्रिक आदि राजमार्गों पर वे कहने लगे – यावत् सात द्वीप – समुद्रों से आगे द्वीपसमुद्रों का अभाव है, इत्यादि कहना। तदनन्तर शिवराजर्षि से यह बात सूनकर बहुत से मनुष्य ऐसा कहते हैं, यावत् उससे आगे द्वीप – समुद्रों का सर्वथा अभाव है।’ वह कथन मिथ्या है। हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि वास्तव में जम्बूद्वीपादि द्वीप एवं लवणादी समुद्र एक सरीखे वृत्त होने से आकार में एक समान हैं परन्तु विस्तार में वे अनेक प्रकार के हैं, इत्यादि जीवाभिगम अनुसार जानना, यावत् ‘हे आयुष्मन् श्रमणों ! इस तिर्यक् लोक में असंख्यात द्वीप और समुद्र हैं।’ भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप नामक द्वीप में वर्णसहित और वर्णरहित, गन्धसहित और गन्धरहित, सरस और अरस, सस्पर्श और अस्पर्श द्रव्य, अन्योन्यबद्ध तथा अन्योन्यस्पृष्ट यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् क्या लवणसमुद्र में वर्णसहित और वर्णरहित, गन्धसहित और गन्धरहित, रसयुक्त और रसरहित तथा स्पर्शयुक्त और स्पर्शरहित द्रव्य, अन्योन्यबद्ध तथा अन्योन्यस्पृष्ट यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! क्या धातकीखण्डद्वीप में सवर्ण – अवर्ण आदि द्रव्य यावत् अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। इसी प्रकार यावत् स्वयम्भूरमणसमुद्र में भी यावत् द्रव्य अन्योन्यसम्बद्ध हैं ? हाँ, हैं। इसके पश्चात् वह अत्यन्त – महती विशाल परीषद् श्रमण भगवान महावीर से उपर्युक्त अर्थ सूनकर और हृदय में धारण कर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई और श्रमण भगवान महावीर को वन्दना व नमस्कार करके जिस दिशा से आई थी, उसी दिशा में लौट गई। तब हस्तिनापुर नगर में शृंगाटक यावत् मार्गों पर बहुत – से लोग परस्पर इस प्रकार कहने यावत् बतलाने लगे – हे देवानुप्रियो ! शिवराजर्षि जो यह कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि मुझे अतिशय ज्ञान दर्शन उत्पन्न हुआ है, जिससे मैं जानता – देखता हूँ कि इस लोक में सात द्वीप और सात समुद्र ही हैं, इसके आगे द्वीप – समुद्र बिलकुल नहीं हैं; उनका यह कथन मिथ्या है। श्रमण भगवान महावीर इस प्रकार कहते, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि निरन्तर बेले – बेले का तप करते हुए शिवराजर्षि को विभंगज्ञान उत्पन्न हुआ है। विभंगज्ञान उत्पन्न होने पर वे अपनी कुटी में आए यावत् वहाँ से तापस आश्रम में आकर अपने तापसोचित उपकरण रखे और हस्तिनापुर के शृंगाटक यावत् राजमार्गों पर स्वयं को अतिशय ज्ञान होने का दावा करने लगे। लोग ऐसी बात सून परस्पर तर्कवितर्क करते हैं, ‘‘क्या शिवराजर्षि का यह कथन सत्य है ? परन्तु मैं कहता हूँ कि उनका यह कथन मिथ्या है।’ श्रमण भगवान महावीर इस प्रकार कहते हैं कि वास्तव में जम्बूद्वीप आदि तथा लवणसमुद्र आदि गोल होने से एक प्रकार के लगते हैं, किन्तु वे उत्तरोत्तर द्विगुण – द्विगुण होने से अनेक प्रकार के हैं। इसलिए हे आयुष्मन् श्रमणों ! द्वीप और समुद्र असंख्यात हैं। तब शिवराजर्षि बहुत – से लोगों से यह बात सूनकर तथा हृदयंगम करके शंकित, कांक्षित, विचिकित्सक, भेद को प्राप्त, अनिश्चित एवं कलुषित भाव को प्राप्त हुए। तब शंकित, कांक्षित यावत् कालुष्ययुक्त बने हुए शिवराजर्षि का वह विभंग – अज्ञान भी शीघ्र ही पतीत हो गया। तत्पश्चात् शिवराजर्षि को इस प्रकार का विचार यावत् उत्पन्न हुआ कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी, धर्म की आदि करने वाले, तीर्थंकर यावत् सर्वज्ञ – सर्वदर्शी हैं, जिनके आगे आकाश में धर्मचक्र चलता है, यावत् वे यहाँ सहस्राम्रवन उद्यान में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचर रहे हैं। तथारूप अरहंत भगवंतों का नाम – गोत्र श्रवण करना भी महाफलदायक है, तो फिर उनके सम्मुख जाना, वन्दना करना, इत्यादि का तो कहना ही क्या ? यावत् एक भी आर्य धार्मिक सुवचन का सूनना भी महाफलदायक है, तो फिर विपुल अर्थ के ग्रहण करने का तो कहना ही क्या ! अतः मैं श्रमण भगवान महावीर – स्वामी के पास जाऊं, वन्दन – नमस्कार करूँ, यावत् पर्युपासना करूँ। यह मेरे लिए इस भवमें और परभवमें, यावत् श्रेयस्कर होगा।’ इस प्रकार विचार करके वे जहाँ तापसों का मठ था वहाँ आए, उसमें प्रवेश किया। फिर वहाँ से बहुत – से लोढ़ी, लोह – कड़ाह यावत् छबड़ी – सहित कावड़ आदि उपकरण लिए और उस तापसमठ से नीकले। वहाँ से वे शिवराजर्षि हस्तिनापुर नगर के मध्य में से होते हुए, जहाँ सहस्राम्रवन उद्यान था और जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ आए। तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, उन्हें वन्दना – नमस्कार किया और न अति दूर, न अति निकट, यावत् भगवान की उपासना करने लगे। तत्पश्चात् भगवान महावीर ने शिवराजर्षि को और उस महती परीषद् को धर्मोपदेश दिया कि यावत् – ‘’इस प्रकार पालन करने से जीव आज्ञा आराधक होते हैं।’’ तदनन्तर वे शिवराजर्षि भगवान महावीर स्वामी से धर्मोपदेश सूनकर, अवधारण कर; स्कन्दक की तरह, यावत् ईशानकोण में गए, लोढ़ी, लोह – कड़ाह यावत् छबड़ी सहित कावड़ आदि तापसोचित उपकरणों एकान्त स्थान में डाल दिया। फिर स्वयमेव पंचमुष्टि लोच किया, श्रमण भगवान महावीर के पास ऋषभदत्त की तरह प्रव्रज्या अंगीकार की; ११ अंगशास्त्रों का अध्ययन किया यावत् समस्त दुःखों से मुक्त हुए | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam se sive rayarisi dochcham chhatthakkhamanam uvasampajjittanam viharai. Tae nam se sive rayarisi dochche chhatthakkhamanaparanagamsi ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta vagalavatthaniyatthe jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhina-samkaiyagam ginhai, ginhitta dahinagam disam pokkhei, dahinae disae jame maharaya patthane patthiyam abhirakkhau sivam rayarisim, sesam tam cheva java tao pachchha appana aharamaharei. Tae nam se sive rayarisi tachcham chhatthakkhamanam uvasampajjittanam viharai. Tae nam se sive rayarisi tachche chhatthakkhamanaparanagamsi ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta vagalavatthaniyatthe jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhina-samkaiyagam ginhai, ginhitta pachchatthimam disam pokkhei, pachchatthimae disae varune maharaya patthane patthiyam abhirakkhau sivam rayarisim, sesam tam cheva java tao pachchha appana aharamaharei. Tae nam se sive rayarisi chauttham chhatthakkhamanam uvasampajjittanam viharai. Tae nam se sive rayarisi chautthe chhatthakkhamana paranagamsi ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta vagalavatthaniyatthe jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhina-samkaiyagam ginhai, ginhitta uttaradisam pokkhei, uttarae disae vesamane maharaya patthane patthiyam abhirakkhau sivam rayarisim, sesam tam cheva java tao pachchha appana aharamaharei. Tae nam tassa sivassa rayarisissa chhatthamchhatthenam anikkhittenam disachakkavalenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhassa ayavanabhumie ayavemanassa pagaibhaddayae pagaiuvasamtayae pagaipayanukohamanamayalobhayae miu-maddavasampannayae allinayae viniyayae annaya kayai tayavaranijjanam kammanam khaovasamenam ihapuhamagganagavesanam karemanassa vibbhamge namam nane samuppanne. Se nam tenam vibbhamgananenam samuppannenam pasati assim loe satta dive satta samudde, tena param na janai, na pasai. Tae nam tassa sivassa rayarisissa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–atthi nam mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya–evam sampehei, sampehetta ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta vagalavatthaniyatthe jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta subahum lohi-lohakadaha-kadachchhuya tambiyam tavasa bhamdagam kidhina-samkaiyagam cha genhai, genhitta jeneva hatthinapure nagare jeneva tavasava-sahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhamdanikkhevam karei, karetta hatthinapure nagare simdhadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujanassa evamaikkhai java evam paruvei atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Tae nam tassa sivassa rayarisissa amtiyam eyamattham sochcha nisamma hatthinapure nagare simdhadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujano annamannassa evamaikkhai java paruvei–evam khalu devanuppiya! Sive rayarisi evamaikkhai java paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Se kahameyam manne evam? Tenam kalenam tenam samaenam sami samosadhe, parisa niggaya. Dhammo kahio parisa padigaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare jaha bitiyasae niyamthuddesae java gharasamudanassa bhikkhayariyae adamane bahujanasaddam nisamei, bahujano annamannassa evamaikkhai java evam paruvei– evam khalu devanuppiya! Sive rayarisi evamaikkhai java evam paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Se kahameyam manne evam? Tae nam bhagavam goyame bahujanassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma jayasaddhe java samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vadasi–evam khalu bhamte! Aham tubbhehim abbhanunnae samane hatthinapure nayare uchchaniya-majjhimani kulani gharasamudanassa bhikkhayariyae adamane bahujanasaddam nisamemi– evam khalu devanuppiya! Sive rayarisi evamaikkhai java paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Se kahameyam bhamte! Evam? Goyamadi! Samane bhagavam mahavire bhagavam goyamam evam vayasi–jannam goyama! Evam khalu eyassa sivassa rayarisissa chhatthamchhatthenam anikkhitenam disachakkavalenam tavokammenam uddham bahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhassa ayavanabhumie ayavemanassa pagaibhaddayae pagaiuvasamtayae pagaipayanukohamanamayalobhayae miumaddavasampannayae allinayae viniyayae annaya kayai tayavaranijjanam kammanam khaovasamenam ihapuhamagganagavesanam karemanassa vibbhamge namam nane samuppanne. Tam cheva savvam bhaniyavvam java bhamda-nikkhevam karei, karetta hatthinapure nagare simghadaga-tiga-chaukka-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujanassa evamaikkhai java evam paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Tae nam tassa sivassa rayarisissa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthinapure nagare simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-maha-paha-pahesu bahujano annamannassa evamaikkhai java paruvei–evam khalu devanuppiya! Sive rayarisi evamaikkhai java paruvei– Atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya, tannam michchha. Aham puna goyama! Evamaikkhami java paruvemi–evam khalu jambuddivadiya diva, lavanadiya samudda samthanao egavihivihana, vittharao anegavihivihana evam jaha jivabhigame java sayambhuramanapajjavasana assim tiriyaloe asamkhejja divasamudda pannatta samanauso! Atthi nam bhamte! Jambuddive dive davvaim–savannaim pi, avannaim pi sagamdhaim pi agamdhaim pi, sarasaim pi arasaim pi, saphasaim pi aphasaim pi, annamannabaddhaim annamannaputthaim annamannabaddhaputthaim annamannaghadattae chitthamti? Hamta atthi. Atthi nam bhamte! Lavanasamudde davvaim–savannaim pi avannaim pi, sagamdhaim pi agamdhaim pi, sarasaim pi arasaim pi, saphasaim pi aphasaim pi annamannabaddhaim annamannaputthaim annamannabaddhaputthaim annamanna ghadattae chitthamti? Hamta atthi. Atthi nam bhamte! Ghayaisamde dive davvaim savannaim pi avannaim pi, sagamdhaim pi agamdhaim pi, sarasaim pi arasaim pi, saphasaim pi aphasaim pi annamannabaddhaim annamannaputthaim annamannabaddhaputthaim annamannaghadattae chitthamti? Hamta atthi. Evam java– Atthi nam bhamte! Sayambhuramanasamudde davvaim–savannaim pi avannaim pi, sagamdhaim pi, agamdhaim pi, sarasaim pi ara-saim pi, saphasaim pi aphasaim pi annamannabaddhaim annamannaputthaim annamannabaddhaputthaim annamannaghadattae chitthamti? Hamta atthi. Tae nam sa mahatimahaliya mahachchaparisa samanassa bhagavao mahavirassa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatuttha samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta jameva disam paubbhuya tameva disam padigaya. Tae nam hatthinapure nagare simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujano annamannassa evamai-kkhai java paruvei jannam devanuppiya! Sive rayarisi evamaikkhai java paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Tam no inatthe samatthe, samane bhagavam mahavire evamaikkhai java paruvei–evam khalu eyassa sivassa rayarisissa chhatthamchhatthenam tam cheva java bhamdanikkhevam karei, karetta hatthinapure nagare simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-pahesu bahujanassa evamaikkhai java evam paruvei–atthi nam devanuppiya! Mamam atisese nanadamsane samuppanne, evam khalu assim loe satta diva satta samudda, tena param vochchhinna diva ya samudda ya. Tae nam tassa sivassa rayarisissa amtiyam eyamattham sochcha nisamma java tena param vochchhinna diva ya samudda ya tannam michchha, samane bhagavam mahavire evamaikkhai– evam khalu jambuddivadiya diva lavanadiya samudda tam cheva java asamkhejja divasamudda pannatta samanauso! Tae nam se sive rayarisi bahujanassa amtiyam eyamattham sochcha nisamma samkie kamkhie vitigichchhie bhedasamavanne kalusasamavanne jae yavi hottha. Tae nam tassa sivassa rayarisissa samkiyassa kamkhiyassa vitigichchhiyassa bhedasamavannassa kalusasamavannassa se vibhamge nane khippameva parivadie. Tae nam tassa sivassa rayarisissa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu samane bhagavam mahavire titthagare adigare java savvannu savvadarisi agasagaenam chakkenam java sahasambavane ujjane ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai, tam mahapphalam khalu taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae, kimamga puna abhigamana-vamdana-namamsana-padipuchchhana-pajjuvasanayae? Egassa vi ariyassa dhammiyassa suvayanassa savanayae, kimamga puna viulassa atthassa gahanayae? Tam gachchhami nam samanam bhagavam mahaviram vamdami java pajjuvasami, eyam ne ihabhave ya parabhave ya hiyae suhae khamae nisseyasae anugamiyattae bhavissai tti kattu evam sampehei, sampehetta jeneva tavasavasahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta tavasavasaham anuppavisai anuppavisitta subahum lohi-lohakadaha-kadachchhuyam tambiyam tavasa-bhamdagam kidhina-samkaiyagam cha genhai genhitta tavasavasahao padinikkhamai, padinikkhamitta padivadiyavibbhamge hatthinapuram nagaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva sahasambavane ujjane, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne natidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjalikade pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire sivassa rayarisissa tise ya mahatisahaliyae parisae dhammam parikahei java anae arahae bhavai. Tae nam se sive rayarisi samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammam sochcha nisamma jaha khamdao java uttarapura-tthimam disibhagam avakkamai, avakkamitta subahum lohi-lohakadaha-kadachchhuyam tambiyam tavasabhamdagam kidhina-samkaiyagam cha egamte edei, edetta sayameva pamchamutthiyam loyam karei, karetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam jaheva usabhadatto taheva pavvaio, taheva ekkarasa amgaim ahijjai, taheva savvam java savvadukkhappahine. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Phira madhu, ghi aura chavalom ka agni mem havana kiya aura charu (balipatra) mem balidravya lekara balivaishvadeva ko arpana kiya aura taba atithi ki puja ki aura usake bada shivarajarshi ne svayam ahara kiya. Tatpashchat una shivarajarshi ne dusari bela amgikara kiya aura dusare bele ke parane ke dina shivarajarshi atapanabhumi se niche utare, valkala ke vastra pahane, yavat prathama parane ki jo vidhi ki thi, usike anusara dusare parane mem bhi kiya. Itana vishesha hai ki dusare parane ke dina dakshina disha ki puja ki. He dakshina disha ke lokapala yama maharaja ! Paralokasadhana mem pravritta mujha shivarajarshi ki raksha karem, ityadi shesha saba purvavat janana chahie; yavat atithi ki puja karake phira usane svayam ahara kiya. Tadanantara una shiva rajarshi ne tritiya bela amgikara kiya. Usake parane ke dina shivarajarshi ne purvokta sari vidhi ki. Isamem itani visheshata hai ki pashchimadisha ki puja ki aura prarthana ki – he pashchima disha ke lokapala varuna maharaja ! Paraloka – sadhana – marga mem pravritta mujha shivarajarshi ki raksha karem, ityadi yavat taba svayam ahara kiya. Tatpashchat una shivarajarshi ne chaturtha bela amgikara kiya. Phira isa chauthe bele ke tapa ke parane ke dina purvavat sari vidhi ki. Vishesha yaha hai ki unhomne uttaradisha ki puja ki aura isa prakara prarthana ki – he uttara – disha ke lokapala vaishramana maharaja ! Paraloka – sadhana – marga mem pravritta isa shivarajarshi ki raksha karem, ityadi avashishta sabhi varnana purvavat janana chahie yavat tatpashchat shivarajarshi ne svayam ahara kiya. Isake bada nirantara bele – bele ki tapashcharya ke dikchakravala ka prokshana karanese, yavat atapana lenese tatha prakriti ki bhadrata yavat vinitata se shivarajarshi ko kisi dina tadavaraniya karmom ke kshayopashama ke karana iha, apoha, margana aura gaveshana karate hue vibhamga jnyana utpanna hua. Utpanna hue vibhamgajnyana se ve isa lokamem sata dvipa, sata samudra dekhane lage. Isase age ve na janate the, na dekhate the. Tatpashchat shivarajarshi ko isa prakara ka vichara yavat utpanna hua ki, ‘‘mujhe atishaya jnyana – darshana utnna hua hai. Isa loka mem sata dvipa aura sata samudra haim. Usase age dvipasamudrom ka vichchheda hai.’’ aisa vichara kara ve atapana – bhumi se niche utare aura valkalavastra pahane, phira jaham apani kuti thi, vaham ae. Vaham se apane lorhi, lohe karaha, kurachhi adi bahuta – se bhandopakarana tatha chhabari – sahita kavara ko lekara ve hastinapura nagara mem jaham tapasom ka ashrama tha, vaham ae. Vaham usane tapasochita upakarana rakhe aura phira hastinapura nagara ke shrimtagaka, trika yavat rajamargom mem bahuta – se manushyom ko isa prakara kahane aura yavat prarupana karane lage – ‘he devanupriyo ! Mujhe atishaya jnyana – darshana utpanna hua hai, jisase maim yaha janata aura dekhata hum ki isa loka mem sata dvipa aura sata samudra haim tadanantara shivarajarshi se yaha bata sunakara aura vichara kara hastinapura nagara ke shrimgataka, trika yavat rajamargom para bahuta – se loga eka – dusare se isa prakara kahane yavat batalane lage – he devanupriyo ! Shivarajarshi jo isa prakara ki bata kahate yavat prarupana karate haim ki ‘devanupriyo ! Mujhe atishaya jnyana – darshana utpanna hua hai, yavat isa loka mem sata dvipa aura sata samudra hi haim. Isase age dvipa aura samudrom ka abhava hai,’ unaki yaha bata isa prakara kaise mani jae. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira svami vaham padhare. Parishad ne dharmopadesha suna, yavat vapasa lauta gai. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira svami ke jyeshtha antevasi indrabhumi anagara ne, dusare shataka ke nirgranthoddeshaka mem varnita vidhi ke anusara yavat bhikshartha paryatana karate hue, bahuta – se logom ke shabda sune ve paraspara eka – dusare se isa prakara kaha rahe the, yavat isa prakara batala rahe the – he devanupriyo ! Shiva – rajarshi yaha kahate haim, yavat prarupana karate haim ki ‘he devanupriyo ! Isa loka mem sata dvipa aura sata samudra haim, ityadi yavat usase age dvipa – samudra nahim haim, to unaki yaha bata kaise mani jae\?’ Bahuta – se manushyom se yaha bata sunakara aura vichara kara gautama svami ko samdeha, kutuhala yavat shraddha utpanna hui ve nirgranthoddeshaka mem varnita varnana ke anusara bhagavana ki seva mem ae aura puchha – ‘shivarajarshi jo yaha kahate haim, yavat usase age dvipom aura samudrom ka sarvatha abhava hai, bhagavan ! Kya unaka aisa kathana yathartha hai\?’ bhagavana mahavira ne kaha – ‘he gautama ! Jo ye bahuta – se loga paraspara aisa kahate haim yavat prarupana karate haim shiva – rajarshi ko vibhamgajnyana utpanna hone se lekara yavat unhomne tapasa – ashrama mem bhandopakarana rakhe. Hastinapura nagara mem shrimgataka, trika adi rajamargom para ve kahane lage – yavat sata dvipa – samudrom se age dvipasamudrom ka abhava hai, ityadi kahana. Tadanantara shivarajarshi se yaha bata sunakara bahuta se manushya aisa kahate haim, yavat usase age dvipa – samudrom ka sarvatha abhava hai.’ vaha kathana mithya hai. He gautama ! Maim isa prakara kahata hum, yavat prarupana karata hum ki vastava mem jambudvipadi dvipa evam lavanadi samudra eka sarikhe vritta hone se akara mem eka samana haim parantu vistara mem ve aneka prakara ke haim, ityadi jivabhigama anusara janana, yavat ‘he ayushman shramanom ! Isa tiryak loka mem asamkhyata dvipa aura samudra haim.’ Bhagavan ! Kya jambudvipa namaka dvipa mem varnasahita aura varnarahita, gandhasahita aura gandharahita, sarasa aura arasa, sasparsha aura asparsha dravya, anyonyabaddha tatha anyonyasprishta yavat anyonyasambaddha haim\? Ham, gautama ! Haim. Bhagavan kya lavanasamudra mem varnasahita aura varnarahita, gandhasahita aura gandharahita, rasayukta aura rasarahita tatha sparshayukta aura sparsharahita dravya, anyonyabaddha tatha anyonyasprishta yavat anyonyasambaddha haim\? Ham, gautama ! Haim. Bhagavan ! Kya dhatakikhandadvipa mem savarna – avarna adi dravya yavat anyonyasambaddha haim\? Ham, gautama ! Haim. Isi prakara yavat svayambhuramanasamudra mem bhi yavat dravya anyonyasambaddha haim\? Ham, haim. Isake pashchat vaha atyanta – mahati vishala parishad shramana bhagavana mahavira se uparyukta artha sunakara aura hridaya mem dharana kara harshita evam santushta hui aura shramana bhagavana mahavira ko vandana va namaskara karake jisa disha se ai thi, usi disha mem lauta gai. Taba hastinapura nagara mem shrimgataka yavat margom para bahuta – se loga paraspara isa prakara kahane yavat batalane lage – he devanupriyo ! Shivarajarshi jo yaha kahate haim yavat prarupana karate haim ki mujhe atishaya jnyana darshana utpanna hua hai, jisase maim janata – dekhata hum ki isa loka mem sata dvipa aura sata samudra hi haim, isake age dvipa – samudra bilakula nahim haim; unaka yaha kathana mithya hai. Shramana bhagavana mahavira isa prakara kahate, yavat prarupana karate haim ki nirantara bele – bele ka tapa karate hue shivarajarshi ko vibhamgajnyana utpanna hua hai. Vibhamgajnyana utpanna hone para ve apani kuti mem ae yavat vaham se tapasa ashrama mem akara apane tapasochita upakarana rakhe aura hastinapura ke shrimgataka yavat rajamargom para svayam ko atishaya jnyana hone ka dava karane lage. Loga aisi bata suna paraspara tarkavitarka karate haim, ‘‘kya shivarajarshi ka yaha kathana satya hai\? Parantu maim kahata hum ki unaka yaha kathana mithya hai.’ shramana bhagavana mahavira isa prakara kahate haim ki vastava mem jambudvipa adi tatha lavanasamudra adi gola hone se eka prakara ke lagate haim, kintu ve uttarottara dviguna – dviguna hone se aneka prakara ke haim. Isalie he ayushman shramanom ! Dvipa aura samudra asamkhyata haim. Taba shivarajarshi bahuta – se logom se yaha bata sunakara tatha hridayamgama karake shamkita, kamkshita, vichikitsaka, bheda ko prapta, anishchita evam kalushita bhava ko prapta hue. Taba shamkita, kamkshita yavat kalushyayukta bane hue shivarajarshi ka vaha vibhamga – ajnyana bhi shighra hi patita ho gaya. Tatpashchat shivarajarshi ko isa prakara ka vichara yavat utpanna hua ki shramana bhagavana mahavira svami, dharma ki adi karane vale, tirthamkara yavat sarvajnya – sarvadarshi haim, jinake age akasha mem dharmachakra chalata hai, yavat ve yaham sahasramravana udyana mem yathayogya avagraha grahana karake yavat vichara rahe haim. Tatharupa arahamta bhagavamtom ka nama – gotra shravana karana bhi mahaphaladayaka hai, to phira unake sammukha jana, vandana karana, ityadi ka to kahana hi kya\? Yavat eka bhi arya dharmika suvachana ka sunana bhi mahaphaladayaka hai, to phira vipula artha ke grahana karane ka to kahana hi kya ! Atah maim shramana bhagavana mahavira – svami ke pasa jaum, vandana – namaskara karum, yavat paryupasana karum. Yaha mere lie isa bhavamem aura parabhavamem, yavat shreyaskara hoga.’ isa prakara vichara karake ve jaham tapasom ka matha tha vaham ae, usamem pravesha kiya. Phira vaham se bahuta – se lorhi, loha – karaha yavat chhabari – sahita kavara adi upakarana lie aura usa tapasamatha se nikale. Vaham se ve shivarajarshi hastinapura nagara ke madhya mem se hote hue, jaham sahasramravana udyana tha aura jaham shramana bhagavana mahavira virajamana the, vaham ae. Tina bara adakshina pradakshina ki, unhem vandana – namaskara kiya aura na ati dura, na ati nikata, yavat bhagavana ki upasana karane lage. Tatpashchat bhagavana mahavira ne shivarajarshi ko aura usa mahati parishad ko dharmopadesha diya ki yavat – ‘’isa prakara palana karane se jiva ajnya aradhaka hote haim.’’ tadanantara ve shivarajarshi bhagavana mahavira svami se dharmopadesha sunakara, avadharana kara; skandaka ki taraha, yavat ishanakona mem gae, lorhi, loha – karaha yavat chhabari sahita kavara adi tapasochita upakaranom ekanta sthana mem dala diya. Phira svayameva pamchamushti locha kiya, shramana bhagavana mahavira ke pasa rishabhadatta ki taraha pravrajya amgikara ki; 11 amgashastrom ka adhyayana kiya yavat samasta duhkhom se mukta hue |