Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004006 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-११ |
Translated Chapter : |
शतक-११ |
Section : | उद्देशक-९ शिवराजर्षि | Translated Section : | उद्देशक-९ शिवराजर्षि |
Sutra Number : | 506 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं सहसंबवने नामं उज्जाणे होत्था–सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे रम्मे नंदनवनसन्निभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मनोरमे सादुप्फले अकंटए, पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए अत्तए सिवभद्दे नामं कुमारे होत्था–सुकुमालपाणिपाए, जहा सूरियकंते जाव रज्जं च रट्ठं च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठारं च पुरं च अंतेउरं च सय-मेव पच्चुवेक्खमाणे-पच्चुवेक्खमाणे विहरइ। तए णं तस्स सिवस्स रन्नो अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि रज्जधुरं चिंतेमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं कल्लाणफलवित्तिविसेसे, जेणाहं हिरण्णेणं वड्ढामि सुवण्णेणं वड्ढामि, धनेनं वड्ढामि, धण्णेणं वड्ढामि, पुत्तेहिं वड्ढामि, पसूहिं वड्ढामि, रज्जेणं वड्ढामि, एवं रट्ठेणं बलेणं वाहणेणं कोसेनं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं वड्ढामि, विपुलधण-कनग-रयण-मणि-मोत्तिय-संखसिल-प्पवाल-रत्तरयण-संतसारसावएज्जेणं अतीव-अतीव अभि-वड्ढामि, तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं सुभाणं कल्लाणाणं कडाणं कम्माणं एगंतसो खयं उवेहमाणे विहरामि? तं जाव ताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि जाव अतीव-अतीव अभिवड्ढामि जाव मे सामंतरायाणो वि वसे वट्टंति, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं घडावेत्ता सिवभद्दं कुमारं रज्जे ठावेत्ता तं सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकुले वाणपत्था तावसा भवंति, [तं जहा– होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जहा ओववाइए जाव आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति]। तत्थ णं जे ते दिसापोक्खो तावसा तेसिं अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइत्तए, पव्वइते वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हिस्सामि– कप्पइ मे जावज्जीवाए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवोकम्मेणं उड्ढं वाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स विहरित्तए, त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते सुबहुं लोही-लोहं कडाह-कडच्छुयं तंबियं तावसभंडगं घडावेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! हत्थिणापुरं नगरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से सिवे राया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! सिवभद्दस्स कुमारस्स महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव उवट्ठवेंति। तए णं से सिवे राया अनेगगणनायग-दंडनायग राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाह-दूय-संधिपाल-सद्धिं संपरिवुडे सिवभद्दं कुमारं सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहं, निसियावेइ, निसियावेत्ता अट्ठसएणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसएणं भोमेज्जाणं कलसाणं सव्विड्ढीए जाव दुंदुहि-णिग्घोसणाइयरवेणं महया-महया रायाभिसेगेणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेनं गोसीसचंदणेणं गायाइं अणुलिंपति एवं जहेव जमालिस्स अलंकारो तहेव जाव कप्परुक्खगं पिव अलंकिय-विभूसियं करेइ, करेत्ता करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु सिवभद्दं कुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता ताहिं इट्ठाहिं कंताहि पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरा-माहिं हिययगमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभिणंदंतो य अभित्थुणंतो य एवं वयासी– जय-जय नंदा! जय-जय भद्दा! भद्दं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि। इंदो इव देवाणं, चमरो इव असुराणं, धरणो इव नागाणं, चंदो इव ताराणं, भरहो इव मनुयाणं बहूइं वासाइं बहूइं वाससयाइं बहूइं वाससहस्साइं बहूइं वाससयसहस्साइं अणहसमग्गो हट्ठतुट्ठो परमाउं पालयाहि, इट्ठजणसंपरिवुडे हत्थिणापुरस्स नगरस्स, अन्नेसिं च बहूणं गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह -मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संवाह-सन्निवेसाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-धण-मुइंग-पडुप्पवाइयरवेणं विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहराहि ति कट्टु जयजयसद्दं पउंजति। तए णं से सिवभद्दे कुमारे राया जाते–महया हिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे, वण्णओ जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। तए णं से सिवे राया अन्नया कयाइ सोभणंसि तिहि-करण-दिवस-मुहुत्त-नक्खत्तंसि विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं रायाणो य खत्तिए य आमंतेति, आमंतेत्ता तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकिय सरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं राएहि य खत्तिएहि सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइम आसादेमाणे वीसादेमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ। जिमियभुत्तुरागए वि य णं समाण आयंते चोक्खे परमसुइब्भूए तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विउलेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि- परिजणं रायाणो य खत्तिए य सिवभद्दं च रायाणं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सुबहुं लोही-लोहकडाह-कडच्छुयं तंबियं तावस भंडगं गहाय जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति, तं चेव जाव तेसिं अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पव्वइए, पव्वइए वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हति–कप्पइ मे जावज्जीवाए छट्ठं छट्ठेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं तवो-कम्मेणं उड्ढं वाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय विहरित्तए–अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता पढमं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसी पढमछट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता पुरत्थिमं दिसं पोक्खेइ, पुरत्थिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि अणुजाणउ त्ति कट्टु पुरत्थिमं दिसं पसरइ, पसरित्ता जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि य ताइं गेण्हइ, ... ... गेण्हित्ता किढिण-संकाइयगं भरेइ, भरेत्ता दब्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोडं च गिण्हइ, गिण्हित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं ठवेइ, ठवेत्ता वेदिं वड्ढेइ, वड्ढेत्ता उवलेवण संमज्जणं करेइ, करेत्ता दब्भकलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गंगं महानदिं ओगाहेइ, ... ... ओगाहेत्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता जलकीडं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवय-पिति-कयकज्जे दब्भकलसाहत्थगए गंगाओ महानदीओ पच्चुत्तरइ, पच्चुत्तरित्ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेदिं रएति, रएत्ता सरएणं अरणिं महेइ, महेत्ता अग्गिं पाडेइ, पाडेत्ता अग्गिं संधुक्केइ, संधुक्केत्ता समिहाकट्ठाइं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अग्गिं उज्जालेइ, उज्जालेत्ता अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाइं समादहे, [तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था। उस हस्तिनापुर नगर के बाहर ईशानकोण में सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध था। रम्य था, नन्दनवन के समान सुशोभित था। उसकी छाया सुखद और शीतल थी। वह मनोरम, स्वादिष्ट फलयुक्त, कण्टकरहित प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत् प्रतिरूप था। उस हस्तिनापुर नगर में शिव राजा था। वह महाहिमवान् पर्वत के समान श्रेष्ठ था, इत्यादि। शिव राजा की धारिणी देवी थी। उसके हाथ – पैर अतिसुकुमाल थे, इत्यादि। शिव राजा का पुत्र और धारिणी रानी का अंगजात ‘शिवभद्र’ कुमार था। उसके हाथ – पैर अत्यन्त सुकुमाल थे। कुमार का वर्णन राज – प्रश्नीय सूत्र में कथित सूर्यकान्त राजकुमार के समान यावत् वह राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोश, कठोर, पुर, अन्तः पुर और जनपद का स्वयमेव निरीक्षण करता हुआ रहता था। तदनन्तर एक दिन राजा शिव को रात्रि के पीछले प्रहर में राज्य की धूरा – का विचार करते हुए ऐसा अध्य – वसाय उत्पन्न हुआ कि यह मेरे पूर्व – पुण्यों का प्रभाव है, इत्यादि तामलि – तापस के वृत्तान्त के अनुसार विचार हुआ – यावत् मैं पुत्र, पशु, राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोष, कोष्ठागार, पूर और अन्तःपुर इत्यादि से वृद्धि को प्राप्त हो रहा हूँ। प्रचुर धन, कनक, रत्न यावत् सारभूत द्रव्य द्वारा अतीव अभिवृद्धि पा रहा हूँ। तो क्या मैं पूर्वपुण्यों के फल – स्वरूप यावत् एकान्तसुख का उपयोग करता हुआ विचरण करूँ ? अतः जब मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि जब तक मैं हिरण्य आदि से वृद्धि को प्राप्त हो रहा हूँ, यावत् जब तक सामान्त राजा आदि भी मेरे वश में हैं तब तक कल प्रभात होते ही जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मैं बहुत – सी लोढ़ी, लोहे की कड़ाही, कुड़छी और ताम्बे के बहुत से तापसोचित उपकरण बनवाऊं और शिवभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित करके और पूर्वोक्त बहुत – से लोहे एवं ताम्बे के तापसोचित भांड – उपकरण लेकर, उन तापसों के पास जाऊं जो ये गंगातट पर वानप्रस्थ तापस हैं; जैसे कि – अग्निहोत्री, पोतिक कौत्रिक याज्ञिक, श्राद्धी, खप्परधारी, कुण्डिकाधारी श्रमण, दन्त – प्रक्षालक, उन्मज्जक, सम्मज्जक, निमज्जक, सम्प्रक्षालक, ऊर्ध्वकण्डुक, अधःकण्डुक, दक्षिणकूलक, उत्तरकूलक, शंखधमक, कूलधमक, मृगलुब्धक, हस्तीतापस, जल से स्नान किये बिना भोजन नहीं करने वाले, पानी में रहने वाले, वायु में रहने वाले, पट – मण्डप में रहने वाले, बिलवासी, वृक्षमूलवासी, जलभक्षक, वायुभक्षक, शैवालभक्षक, मूलाहारी, कन्दाहारी, त्वचाहारी, पत्राहारी, पुष्पाहारी, फलाहारी, बीजाहारी, सड़कर टूटे या गिरे हुए कन्द, मूल, छाल, पत्ते, फूल और फल खाने वाले, दण्ड ऊंचा रखकर चलने वाले, वृक्षमूलनिवासी, मांडलिक, वनवासी, दिशाप्रोक्षी, आतापना से पंचाग्नि ताप तपने वाले इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् अपने शरीर को काष्ठ – सा बना देते हैं। उनमें से जो तापस दिशाप्रोक्षक हैं, उनके पास मुण्डित होकर मैं दिक्प्रोक्षक – तापस – रूप प्रव्रज्या अंगीकार करूँ। प्रव्रजित होने पर इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण करूँ कि यावज्जीवन निरन्तर छठ – छठ की तपस्या द्वारा दिक्चक्रवाल तपःकर्म करके दोनों भुजाएं ऊंची रखकर रहना मेरे लिए कल्पनीय है। फिर दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर अनेक प्रकार की लोढ़ियाँ, लोहे की कड़ाही आदि तापसोचित भण्डोपकरण तैयार कराके कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही हस्तिनापुर नगर के बाहर औ भीतर जल का छिड़काव करके स्वच्छ कराओ, इत्यादि; यावत् कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा की आज्ञानुसार कार्य करवा कर निवेदन किया। उसके पश्चात् उस शिव राजा ने दूसरी बार भी कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और फिर उनसे कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! शिवभद्रकुमार के महार्थ, महामूल्यवान और महोत्सव योग्य विपुल राज्याभिषेक की शीघ्र तैयारी करो।’ तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने राजा के आदेशानुसार राज्याभिषेक की तैयारी की। यह हो जाने पर शिव राजा ने अनेक गणनायक, दण्डनायक यावत् सन्धिपाल आदि राज्यपुरुष – परिवार से युक्त होकर शिवभद्रकुमार को पूर्व दिशा की ओर मुख करके श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन किया। फिर एक सौ आठ सोने के कलशों से, यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से, समस्त ऋद्धि के साथ यावत् बाजों के महानिनाद के साथ राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया। तदनन्तर अत्यन्त कोमल सुगन्धित गन्धकाषायवस्त्र से उसके शरीर को पोंछा। फिर सरस गोशीर्षचन्दन का लेप किया; इत्यादि, जिस प्रकार जमालि को अलंकार से विभूषित करने का वर्णन है, उसी प्रकार शिवभद्र कुमार को भी यावत् कल्पवृक्ष के समान अलंकृत और विभूषित किया। इसके पश्चात् हाथ जोड़कर यावत् शिव – भद्रकुमार को जयविजय शब्दों से बधाया और औपपातिक सूत्र में वर्णित कोणिक राजा के प्रकरणानुसार – इष्ट, कान्त एवं प्रिय शब्दों द्वारा आशीर्वाद दिया, यावत् कहा कि तुम परम आयुष्मान् हो और इष्ट जनों से युक्त होकर हस्तिनापुर नगर तथा अन्य बहुत – से ग्राम, आकर, नगर आदि के, यावत् परिवार, राज्य और राष्ट्र आदि के स्वामित्व का उपभोग करते हुए विचरो; इत्यादि कहकर जय – जय शब्द का प्रयोग किया। अब वह शिवभद्रकुमार राजा बन गया। वह महाहिमवान् पर्वत के समान राजाओं में प्रधान होकर विचरण करने लगा। तदनन्तर किसी समय शिव राजा ने प्रसस्त तिथि, करण, नक्षत्र और दिवस एवं शुभ मुहूर्त्त में विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करवाया और मित्र, ज्ञातिजन, स्वजन, परिजन, राजाओं एवं क्षत्रियों आदि को आमंत्रित किया। तत्पश्चात् स्वयं ने स्नानादि किया, यावत् शरीर पर (चंदनादि का लेप किया)। (फिर) भोजन के समय भोजनमण्डप में उत्तम सुखासन पर बैठा और उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन यावत् परिजन, राजाओं और क्षत्रियों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का भोजन किया। फिर तामली तापस के अनुसार, यावत् उनका सत्कार – सम्मान किया। तत्पश्चात् उन मित्र, ज्ञातिजन आदि सभी की तथा शिवभद्र राजा की अनुमति लेकर लोढ़ी – लोहकटाह, कुड़छी आदि बहुत से तापसोचित भण्डोपकरण ग्रहण किए और गंगातट निवासी जो वानप्रस्थ तापस थे, वहाँ जाकर, यावत् दिशाप्रोक्षक तापसों के पास मुण्डित होकर दिशाप्रोक्षक – तापस के रूप में प्रव्रजित हो गया। प्रव्रज्या ग्रहण करते ही शिवराजर्षि ने इस प्रकार का अभिग्रह धारण किया – आज से जीवन पर्यन्त मुझे बेले – बेले करते हुए विचरना कल्पनीय है; इत्यादि पूर्ववत् यावत् अभिग्रह धारण करके प्रथम छट्ठ तप अंगीकार करके विचरने लगा। तत्पश्चात् वह शिवराजर्षि प्रथम छट्ठ (बेले) के पारणे के दिन आतापना भूमि से नीचे उतरे, फिर उन्होंने वल्कलवस्त्र पहने और जहाँ अपनी कुटी थी, वहाँ आए। वहाँ से किढीण (बाँस का पात्र) और कावड़ को लेकर पूर्व दिशा का पूजन किया। हे पूर्व दिशा के (लोकपाल) सोम महाराज ! प्रस्थान में प्रस्थित हुए मुझ शिवराजर्षि की रक्षा करें, और यहाँ (पूर्वदिशा में) जो भी कन्द, मूल, छाल, पत्ते, पुष्प, फल, बीज और हरी वनस्पति है, उन्हें लेने की अनुज्ञा दें; यों कहकर शिवराजर्षि ने पूर्वदिशा का अवलोकन किया और वहाँ जो भी कन्द, मूल, यावत् हरी वनस्पति मिली, उसे ग्रहण की और कावड़ में लगी हुई बाँस की छबड़ी में भर ली। फिर दर्भ, कुश, समिधा और वृक्ष की शाखा को मोड़कर तोड़े हुए पत्ते लिए और जहाँ अपनी कुटी थी, वहाँ आए। कावड़ सहित छबड़ी नीचे रखी, फिर वेदिका का प्रमार्जन किया, उसे लीपकर शुद्ध किया। तत्पश्चात् डाभ और कलश हाथ में लेकर जहाँ गंगा महानदी थी, वहाँ आए। गंगा महानदी में अवगाहन किया और उसके जल से देह शुद्ध की। फिर जलक्रीड़ा की, पानी अपने देह पर सींचा, जल का आचमन आदि करके स्वच्छ और परम पवित्र होकर देव और पितरों का कार्य सम्पन्न करके कलश में डाभ डालकर उसे हाथ में लिए हुए गंगा महानदी से बाहर नीकले और जहाँ अपनी कुटी थी, वहाँ आए। कुटी में उन्होंने डाभ, कुश और बालू से वेदी बनाई। फिर मथनकाष्ठ से अरणि की लकड़ी घिसी और आग सुलगाई। अग्नि जब धधकने लगी तो उसमें समिधा की लकड़ी डाली और आग अधिक प्रज्वलित की। फिर अग्नि के दाहिनी ओर ये सात वस्तुएं रखीं, यथा – सकथा, वल्कल, स्थान, शय्याभाण्ड, कमण्डलु, लकड़ी का डंडा और शरीर। सूत्र – ५०६, ५०७ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam hatthinapure namam nagare hottha–vannao. Tassa nam hatthinapurassa nagarassa bahiya uttarapuratthime disibhage, ettha nam sahasambavane namam ujjane hottha–savvouya-puppha-phalasamiddhe ramme namdanavanasannibhappagase suhasitalachchhae manorame sadupphale akamtae, pasadie darisanijje abhiruve padiruve. Tattha nam hatthinapure nagare sive namam raya hottha–mahayahimavamta-mahamta-malaya-mamdara-mahimdasare–vannao. Tassa nam sivassa ranno dharini namam devi hottha–sukumalapanipaya–vannao. Tassa nam sivassa ranno putte dharinie attae sivabhadde namam kumare hottha–sukumalapanipae, jaha suriyakamte java rajjam cha rattham cha balam cha vahanam cha kosam cha kottharam cha puram cha amteuram cha saya-meva pachchuvekkhamane-pachchuvekkhamane viharai. Tae nam tassa sivassa ranno annaya kayai puvvarattavarattakalasamayamsi rajjadhuram chimtemanassa ayameyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–atthi ta me pura porananam suchinnanam suparakkamtanam subhanam kallananam kadanam kammanam kallanaphalavittivisese, jenaham hirannenam vaddhami suvannenam vaddhami, dhanenam vaddhami, dhannenam vaddhami, puttehim vaddhami, pasuhim vaddhami, rajjenam vaddhami, evam ratthenam balenam vahanenam kosenam kotthagarenam purenam amteurenam vaddhami, vipuladhana-kanaga-rayana-mani-mottiya-samkhasila-ppavala-rattarayana-samtasarasavaejjenam ativa-ativa abhi-vaddhami, tam kim nam aham pura porananam suchinnanam suparakkamtanam subhanam kallananam kadanam kammanam egamtaso khayam uvehamane viharami? Tam java tava aham hirannenam vaddhami java ativa-ativa abhivaddhami java me samamtarayano vi vase vattamti, tavata me seyam kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte subahum lohi-lohakadaha-kadachchhuyam tambiyam tavasabhamdagam ghadavetta sivabhaddam kumaram rajje thavetta tam subahum lohi-lohakadaha-kadachchhuyam tambiyam tavasabhamdagam gahaya je ime gamgakule vanapattha tavasa bhavamti, [tam jaha– hottiya pottiya kottiya jaha ovavaie java ayavanahim pamchaggitavehim imgalasolliyam kamdusolliyam katthasolliyam piva appanam karemana viharamti]. Tattha nam je te disapokkho tavasa tesim amtiyam mumde bhavitta disapokkhiyatavasattae pavvaittae, pavvaite vi ya nam samane ayameyaruvam abhiggaham abhiginhissami– kappai me javajjivae chhatthamchhatthenam anikkhittenam disachakkavalenam tavokammenam uddham vahao pagijjhiya-pagijjhiya surabhimuhassa ayavanabhumie ayavemanassa viharittae, tti kattu evam sampehei, sampehetta kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte subahum lohi-loham kadaha-kadachchhuyam tambiyam tavasabhamdagam ghadavetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho! Devanuppiya! Hatthinapuram nagaram sabbhimtarabahiriyam asiya-sammajjiovalittam java sugamdhavaragamdhagamdhiyam gamdhavattibhuyam kareha ya karaveha ya, karetta ya karavetta ya eyamanattiyam pachchappinaha. Te vi tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se sive raya dochcham pi kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho! Devanuppiya! Sivabhaddassa kumarassa mahattham mahaggham mahariham viulam rayabhiseyam uvatthaveha. Tae nam te kodumbiyapurisa taheva uvatthavemti. Tae nam se sive raya anegagananayaga-damdanayaga raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavaha-duya-samdhipala-saddhim samparivude sivabhaddam kumaram sihasanavaramsi puratthabhimuham, nisiyavei, nisiyavetta atthasaenam sovanniyanam kalasanam java atthasaenam bhomejjanam kalasanam savviddhie java dumduhi-nigghosanaiyaravenam mahaya-mahaya rayabhisegenam abhisimchai, abhisimchitta pamhalasukumalae surabhie gamdhakasaie gayaim luheti, luhetta sarasenam gosisachamdanenam gayaim anulimpati evam jaheva jamalissa alamkaro taheva java kapparukkhagam piva alamkiya-vibhusiyam karei, karetta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu sivabhaddam kumaram jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta tahim itthahim kamtahi piyahim manunnahim manamahim manabhira-mahim hiyayagamanijjahim vagguhim jayavijayamamgalasaehim anavarayam abhinamdamto ya abhitthunamto ya evam vayasi– Jaya-jaya namda! Jaya-jaya bhadda! Bhaddam te, ajiyam jinahi jiyam palayahi, jiyamajjhe vasahi. Imdo iva devanam, chamaro iva asuranam, dharano iva naganam, chamdo iva taranam, bharaho iva manuyanam bahuim vasaim bahuim vasasayaim bahuim vasasahassaim bahuim vasasayasahassaim anahasamaggo hatthatuttho paramaum palayahi, itthajanasamparivude hatthinapurassa nagarassa, annesim cha bahunam gamagara-nagara-kheda-kabbada-donamuha -madamba-pattana-asama-nigama-samvaha-sannivesanam ahevachcham porevachcham samittam bhattittam mahattaragatam ana-isara-senavachcham karemane palemane mahayahaya-natta-giya-vaiya-tamti-tala-tala-tudiya-dhana-muimga-paduppavaiyaravenam viulaim bhogabhogaim bhumjamane viharahi ti kattu jayajayasaddam paumjati. Tae nam se sivabhadde kumare raya jate–mahaya himavamta-mahamta-malaya-mamdara-mahimdasare, vannao java rajjam pasasemane viharai. Tae nam se sive raya annaya kayai sobhanamsi tihi-karana-divasa-muhutta-nakkhattamsi vipulam asana-pana-khaima-saimam uvakkhadaveti, uvakkhadavetta mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam rayano ya khattie ya amamteti, amamtetta tao pachchha nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala-payachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie appamahagghabharanalamkiya sarire bhoyanavelae bhoyanamamdavamsi suhasanavaragae tenam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanenam raehi ya khattiehi saddhim vipulam asana-pana-khaima-saima asademane visademane paribhaemane paribhumjemane viharai. Jimiyabhutturagae vi ya nam samana ayamte chokkhe paramasuibbhue tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam viulenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-gamdha-mallalamkarena ya sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta tam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi- parijanam rayano ya khattie ya sivabhaddam cha rayanam apuchchhai, apuchchhitta subahum lohi-lohakadaha-kadachchhuyam tambiyam tavasa bhamdagam gahaya je ime gamgakulaga vanapattha tavasa bhavamti, tam cheva java tesim amtiyam mumde bhavitta disapokkhiyatavasattae pavvaie, pavvaie vi ya nam samane ayameyaruvam abhiggaham abhiginhati–kappai me javajjivae chhattham chhatthenam anikkhittenam disachakkavalenam tavo-kammenam uddham vahao pagijjhiya-pagijjhiya viharittae–ayameyaruvam abhiggaham abhiginhitta padhamam chhatthakkhamanam uvasampajjittanam viharai. Tae nam se sive rayarisi padhamachhatthakkhamanaparanagamsi ayavanabhumio pachchoruhai, pachchoruhitta vagalavatthaniyatthe jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhina-samkaiyagam ginhai, ginhitta puratthimam disam pokkhei, puratthimae disae some maharaya patthane patthiyam abhirakkhau sivam rayarisim abhirakkhau sivam rayarisim, jani ya tattha kamdani ya mulani ya tayani ya pattani ya pupphani ya phalani ya biyani ya hariyani ya tani anujanau tti kattu puratthimam disam pasarai, pasaritta jani ya tattha kamdani ya java hariyani ya taim genhai,.. .. Genhitta kidhina-samkaiyagam bharei, bharetta dabbhe ya kuse ya samihao ya pattamodam cha ginhai, ginhitta jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta kidhina-samkaiyagam thavei, thavetta vedim vaddhei, vaddhetta uvalevana sammajjanam karei, karetta dabbhakalasahatthagae jeneva gamga mahanadi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta gamgam mahanadim ogahei,.. .. Ogahetta jalamajjanam karei, karetta jalakidam karei, karetta jalabhiseyam karei, karetta ayamte chokkhe paramasuibhue devaya-piti-kayakajje dabbhakalasahatthagae gamgao mahanadio pachchuttarai, pachchuttaritta jeneva sae udae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dabbhehi ya kusehi ya valuyaehi ya vedim raeti, raetta saraenam aranim mahei, mahetta aggim padei, padetta aggim samdhukkei, samdhukketta samihakatthaim pakkhivai, pakkhivitta aggim ujjalei, ujjaletta aggissa dahine pase, sattamgaim samadahe, [tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem hastinapura nama ka nagara tha. Usa hastinapura nagara ke bahara ishanakona mem sahasramravana namaka udyana tha. Vaha sabhi rituom ke pushpom aura phalom se samriddha tha. Ramya tha, nandanavana ke samana sushobhita tha. Usaki chhaya sukhada aura shitala thi. Vaha manorama, svadishta phalayukta, kantakarahita prasannata utpanna karane vala yavat pratirupa tha. Usa hastinapura nagara mem shiva raja tha. Vaha mahahimavan parvata ke samana shreshtha tha, ityadi. Shiva raja ki dharini devi thi. Usake hatha – paira atisukumala the, ityadi. Shiva raja ka putra aura dharini rani ka amgajata ‘shivabhadra’ kumara tha. Usake hatha – paira atyanta sukumala the. Kumara ka varnana raja – prashniya sutra mem kathita suryakanta rajakumara ke samana yavat vaha rajya, rashtra, bala, vahana, kosha, kathora, pura, antah pura aura janapada ka svayameva nirikshana karata hua rahata tha. Tadanantara eka dina raja shiva ko ratri ke pichhale prahara mem rajya ki dhura – ka vichara karate hue aisa adhya – vasaya utpanna hua ki yaha mere purva – punyom ka prabhava hai, ityadi tamali – tapasa ke vrittanta ke anusara vichara hua – yavat maim putra, pashu, rajya, rashtra, bala, vahana, kosha, koshthagara, pura aura antahpura ityadi se vriddhi ko prapta ho raha hum. Prachura dhana, kanaka, ratna yavat sarabhuta dravya dvara ativa abhivriddhi pa raha hum. To kya maim purvapunyom ke phala – svarupa yavat ekantasukha ka upayoga karata hua vicharana karum\? Atah jaba mere lie yahi shreyaskara hai ki jaba taka maim hiranya adi se vriddhi ko prapta ho raha hum, yavat jaba taka samanta raja adi bhi mere vasha mem haim taba taka kala prabhata hote hi jajvalyamana suryodaya hone para maim bahuta – si lorhi, lohe ki karahi, kurachhi aura tambe ke bahuta se tapasochita upakarana banavaum aura shivabhadra kumara ko rajya para sthapita karake aura purvokta bahuta – se lohe evam tambe ke tapasochita bhamda – upakarana lekara, una tapasom ke pasa jaum jo ye gamgatata para vanaprastha tapasa haim; jaise ki – agnihotri, potika kautrika yajnyika, shraddhi, khapparadhari, kundikadhari shramana, danta – prakshalaka, unmajjaka, sammajjaka, nimajjaka, samprakshalaka, urdhvakanduka, adhahkanduka, dakshinakulaka, uttarakulaka, shamkhadhamaka, kuladhamaka, mrigalubdhaka, hastitapasa, jala se snana kiye bina bhojana nahim karane vale, pani mem rahane vale, vayu mem rahane vale, pata – mandapa mem rahane vale, bilavasi, vrikshamulavasi, jalabhakshaka, vayubhakshaka, shaivalabhakshaka, mulahari, kandahari, tvachahari, patrahari, pushpahari, phalahari, bijahari, sarakara tute ya gire hue kanda, mula, chhala, patte, phula aura phala khane vale, danda umcha rakhakara chalane vale, vrikshamulanivasi, mamdalika, vanavasi, dishaprokshi, atapana se pamchagni tapa tapane vale ityadi aupapatika sutra anusara yavat apane sharira ko kashtha – sa bana dete haim. Unamem se jo tapasa dishaprokshaka haim, unake pasa mundita hokara maim dikprokshaka – tapasa – rupa pravrajya amgikara karum. Pravrajita hone para isa prakara ka abhigraha grahana karum ki yavajjivana nirantara chhatha – chhatha ki tapasya dvara dikchakravala tapahkarma karake donom bhujaem umchi rakhakara rahana mere lie kalpaniya hai. Phira dusare dina pratahkala suryodaya hone para aneka prakara ki lorhiyam, lohe ki karahi adi tapasochita bhandopakarana taiyara karake kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – shighra hi hastinapura nagara ke bahara au bhitara jala ka chhirakava karake svachchha karao, ityadi; yavat kautumbika purushom ne raja ki ajnyanusara karya karava kara nivedana kiya. Usake pashchat usa shiva raja ne dusari bara bhi kautumbika purushom ko bulaya aura phira unase kaha – ‘he devanupriyo ! Shivabhadrakumara ke mahartha, mahamulyavana aura mahotsava yogya vipula rajyabhisheka ki shighra taiyari karo.’ tadanantara una kautumbika purushom ne raja ke adeshanusara rajyabhisheka ki taiyari ki. Yaha ho jane para shiva raja ne aneka gananayaka, dandanayaka yavat sandhipala adi rajyapurusha – parivara se yukta hokara shivabhadrakumara ko purva disha ki ora mukha karake shreshtha simhasana para asina kiya. Phira eka sau atha sone ke kalashom se, yavat eka sau atha mitti ke kalashom se, samasta riddhi ke satha yavat bajom ke mahaninada ke satha rajyabhisheka se abhishikta kiya. Tadanantara atyanta komala sugandhita gandhakashayavastra se usake sharira ko pomchha. Phira sarasa goshirshachandana ka lepa kiya; ityadi, jisa prakara jamali ko alamkara se vibhushita karane ka varnana hai, usi prakara shivabhadra kumara ko bhi yavat kalpavriksha ke samana alamkrita aura vibhushita kiya. Isake pashchat hatha jorakara yavat shiva – bhadrakumara ko jayavijaya shabdom se badhaya aura aupapatika sutra mem varnita konika raja ke prakarananusara – ishta, kanta evam priya shabdom dvara ashirvada diya, yavat kaha ki tuma parama ayushman ho aura ishta janom se yukta hokara hastinapura nagara tatha anya bahuta – se grama, akara, nagara adi ke, yavat parivara, rajya aura rashtra adi ke svamitva ka upabhoga karate hue vicharo; ityadi kahakara jaya – jaya shabda ka prayoga kiya. Aba vaha shivabhadrakumara raja bana gaya. Vaha mahahimavan parvata ke samana rajaom mem pradhana hokara vicharana karane laga. Tadanantara kisi samaya shiva raja ne prasasta tithi, karana, nakshatra aura divasa evam shubha muhurtta mem vipula ashana, pana, khadima aura svadima taiyara karavaya aura mitra, jnyatijana, svajana, parijana, rajaom evam kshatriyom adi ko amamtrita kiya. Tatpashchat svayam ne snanadi kiya, yavat sharira para (chamdanadi ka lepa kiya). (phira) bhojana ke samaya bhojanamandapa mem uttama sukhasana para baitha aura una mitra, jnyati, nijaka, svajana yavat parijana, rajaom aura kshatriyom ke satha vipula ashana, pana, khadima aura svadima ka bhojana kiya. Phira tamali tapasa ke anusara, yavat unaka satkara – sammana kiya. Tatpashchat una mitra, jnyatijana adi sabhi ki tatha shivabhadra raja ki anumati lekara lorhi – lohakataha, kurachhi adi bahuta se tapasochita bhandopakarana grahana kie aura gamgatata nivasi jo vanaprastha tapasa the, vaham jakara, yavat dishaprokshaka tapasom ke pasa mundita hokara dishaprokshaka – tapasa ke rupa mem pravrajita ho gaya. Pravrajya grahana karate hi shivarajarshi ne isa prakara ka abhigraha dharana kiya – aja se jivana paryanta mujhe bele – bele karate hue vicharana kalpaniya hai; ityadi purvavat yavat abhigraha dharana karake prathama chhattha tapa amgikara karake vicharane laga. Tatpashchat vaha shivarajarshi prathama chhattha (bele) ke parane ke dina atapana bhumi se niche utare, phira unhomne valkalavastra pahane aura jaham apani kuti thi, vaham ae. Vaham se kidhina (bamsa ka patra) aura kavara ko lekara purva disha ka pujana kiya. He purva disha ke (lokapala) soma maharaja ! Prasthana mem prasthita hue mujha shivarajarshi ki raksha karem, aura yaham (purvadisha mem) jo bhi kanda, mula, chhala, patte, pushpa, phala, bija aura hari vanaspati hai, unhem lene ki anujnya dem; yom kahakara shivarajarshi ne purvadisha ka avalokana kiya aura vaham jo bhi kanda, mula, yavat hari vanaspati mili, use grahana ki aura kavara mem lagi hui bamsa ki chhabari mem bhara li. Phira darbha, kusha, samidha aura vriksha ki shakha ko morakara tore hue patte lie aura jaham apani kuti thi, vaham ae. Kavara sahita chhabari niche rakhi, phira vedika ka pramarjana kiya, use lipakara shuddha kiya. Tatpashchat dabha aura kalasha hatha mem lekara jaham gamga mahanadi thi, vaham ae. Gamga mahanadi mem avagahana kiya aura usake jala se deha shuddha ki. Phira jalakrira ki, pani apane deha para simcha, jala ka achamana adi karake svachchha aura parama pavitra hokara deva aura pitarom ka karya sampanna karake kalasha mem dabha dalakara use hatha mem lie hue gamga mahanadi se bahara nikale aura jaham apani kuti thi, vaham ae. Kuti mem unhomne dabha, kusha aura balu se vedi banai. Phira mathanakashtha se arani ki lakari ghisi aura aga sulagai. Agni jaba dhadhakane lagi to usamem samidha ki lakari dali aura aga adhika prajvalita ki. Phira agni ke dahini ora ye sata vastuem rakhim, yatha – sakatha, valkala, sthana, shayyabhanda, kamandalu, lakari ka damda aura sharira. Sutra – 506, 507 |