Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1004010
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-११

Translated Chapter :

शतक-११

Section : उद्देशक-१० लोक Translated Section : उद्देशक-१० लोक
Sutra Number : 510 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए। खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए। अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए। तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए। उड्ढलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पन्नरसविहे पन्नत्ते, तं जहा–सोहम्मकप्पउड्ढलोयखेत्तलोए ईसान-सणंकुमार-माहिंद-बंभलोय-लंतय-महासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-आरण-अच्चुयकप्पउड्ढलोयखेत्तलोए, गेवेज्ज-विमानउड्ढलोयखेत्तलोए, अनुत्तरविमानउड्ढलोयखेत्तलोए, ईसि-पब्भारपुढविउड्ढलोयखेत्तलोए। अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! तप्पागारसंठिए पन्नत्ते। तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! ज्झल्लरिसंठिए पन्नत्ते। उड्ढलोयखेत्तलोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! उड्ढमुइंगाकारसंठिए पन्नत्ते। लोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! सुपइट्ठगसंठिए पन्नत्ते, तं जहा–हेट्ठा विच्छिण्णे, मज्झे संखित्ते, उप्पिं विसाले; अहे पलियंकसंठिए, मज्झे वइवइ-रविग्गहिए, उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठिए। तंसि च णं सासयंसि लोगंसि हेट्ठा विच्छिण्णंसि जाव उप्पिं उद्धमुइंगाकारसंठियंसि उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली जीवे वि जाणइ-पासइ, अजीवे वि जाणइ-पासइ, तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ। अलोए णं भंते! किंसंठिए पन्नत्ते? गोयमा! ज्झुसिरगोलसंठिए पन्नत्ते। अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! किं १. जीवा २. जीवदेसा ३. जीवपदेसा ४. अजीवा ५. अजीवदेसा ६. अजीवपदेसा? गोयमा! जीवा वि, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवा ते नियमा एगिंदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया, अनिंदिया। जे जीवदेसा ते नियमा एगिंदियदेसा जाव अनिंदियदेसा। जे जीवपदेसा ते नियमा एगिंदियपदेसा बेइंदियपदेसा जाव अनिंदियपदेसा। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूविअजीवा य, अरूविअजीवा य। जे रूविअजीवा ते चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–खंधा, खंधदेसा, खंधपदेसा, परमाणुपोग्गला। जे अरूविअजीवा ते सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–१. नोधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे २. धम्मत्थिकायस्स पदेसा ३. नोअधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे ४. अधम्मत्थिकायस्स पदेसा ५. नोआगासत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे ६. आगासत्थि-कायस्स पदेसा ७. अद्धासमए। तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! किं जीवा? जीवदेसा? जीवपदेसा? एवं चेव। एवं उड्ढलोयखेत्तलोए वि, नवरं–अरूवी छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि। लोए णं भंते! किं जीवा? जीवदेसा? जीवपदेसा? जहा बितियसए अत्थिउद्देसए लोयागासे, नवरं–अरूवि अजीवा सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए नोधम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसा, अधम्मत्थिकाए नोअधम्मत्थि-कायस्स देसे, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा, नोआगासत्थिकाए आगासत्थिकायस्स देसे, आगासत्थि-कायस्स पदेसा, अद्धासमए, सेसं तं चेव। अलोए णं भंते! किं जीवा? जीवदेसा? जीवपदेसा? एवं जहा अत्थिकायउद्देसए अलोयागासे, तहेव निरवसेसं जाव सव्वागासे अनंतभागूणे। अहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते! एगम्मि आगासपदेसे किं १. जीवा २. जीवदेसा ३. जीवपदेसा ४. अजीवा ५. अजीवदेसा ६. अजीवपदेसा? गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं १. एगिंदियदेसा २. अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स देसे ३. अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियाण य देसा। एवं मज्झिल्लविरहिओ जाव अहवा एगिंदियदेसा य अनिंदियाण य देसा। जे जीवपदेसा ते नियमं १. एगिंदियपदेसा २. अहवा एगिंदियपदेसा य बेइंदियस्स पदेसा ३. अहवा एगिंदियपदेसा य बेइंदियाण य पदेसा, एवं आइल्लविरहिओ जाव पंचिंदि-एसु, अनिंदिएसु तियभंगो। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–रूवी अजीवा य, अरूवी अजीवा य। रूवी तहेव। जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–नोधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पदेसे, नोअधम्मत्थिकाए अधम्मत्थिकायस्स देसे, अधम्म-त्थिकायस्स पदेसे, अद्धासमए। तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते! एगम्मि आगासपदेसे किं जीवा? एवं जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स तहेव, एवं उड्ढलोगखेत्तलोगस्स वि, नवरं–अद्धासमयो नत्थि। अरूवी चउव्विहा। लोगस्स णं भंते! एगम्मि आगासपदेसे किं जीवा? जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स एगम्मि आगासपदेसे। अलोगस्स णं भंते! एगम्मि आगासपदेसे–पुच्छा। गोयमा! नो जीवा, नो जीवदेसा, नो जीवप्पदेसा; नो अजीवा नो अजीव देसा, नो अजीवप्पदेसा; एगे अजीवदव्वदेसे अगरुयलहुए अनंतेहिं अगरुयलहुयगुणेहिं संजुते सव्वागासस्स अनंतभागूणे। दव्वओ णं अहेलोगखेत्तलोए अनंता जीवदव्वा, अनंता अजीवदव्वा, अनंता जीवाजीवदव्वा। एवं तिरियलोय-खेत्तलोए वि, एवं उड्ढलोयखेत्तलोए वि एवं लोए वि। दव्वओ णं अलोए नेवत्थि जीवदव्वा, नेवत्थि अजीवदव्वा, नेवत्थि जीवाजीवदव्वा, एगे अजीवदव्वदेसे अगरुयलहुए अनंतेहिं अगरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासस्स अनंतभागूणे। कालओ णं अहेलोयखेत्तलोए न कयाइ नासि, न कयाइ न भवइ, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवइ य, भविस्सइ य–धुवे नियए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए निच्चे, एवं तिरियलोय-खेत्तलोए, एवं उड्ढलोयखेत्तलोए, एवं लोए एवं अलोए। भावओ णं अहेलोयखेत्तलोए अनंता वण्णपज्जवा, अनंता गंधपज्जवा, अनंता रसपज्जवा, अनंता फासपज्जवा, अनंता संठाणपज्जवा, अनंता गरुयलहुयपज्जवा, अनंता अगरुयलहुय-पज्जवा, एवं तिरियलोयखेत्तलोए, एवं उड्ढलोयखेत्तलोए, एवं लोए। भावओ णं अलोए नेवत्थि वण्णपज्जवा, नेवत्थि गंधपज्जवा, नेवत्थि रसपज्जवा, नेवत्थि फासपज्जवा, नेवत्थि संठाण-पज्जवा नेवत्थि गरुयलहुयपज्जवा, एगे अजीवदव्वदेसे अगरुयलहुए अनंतेहिं अगरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सव्वागासस्स अनंतभागूणे।
Sutra Meaning : राजगृह नगर में यावत्‌ पूछा – भगवन्‌ ! लोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का है। यथा – द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। भगवन्‌ ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा – अधोलोक – क्षेत्रलोक, तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक और ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक। भगवन्‌ ! अधोलोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! सात प्रकार का यथा – रत्नप्रभापृथ्वी – अधोलोक – क्षेत्रलोक, यावत्‌ अधःसप्तमपृथ्वी – अधोलोक – क्षेत्रलोक। भगवन्‌ ! तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! असंख्यात प्रकार का यथा – जम्बूद्वीप – तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक, यावत्‌ स्वय – म्भूरमणसमुद्र – तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक। भगवन्‌ ! ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार का है यथा – सौधर्मकल्प – ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक, यावत्‌ अच्युतकल्प – ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक, ग्रैवेयक विमान – ऊर्ध्व – लोक – क्षेत्रलोक, अनुत्तरविमान – ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक और ईषत्‌प्राग्भारपृथ्वी – ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक। भगवन्‌ ! अधोलोक – क्षेत्रलोक का किस प्रकार का संस्थान है ? गौतम ! त्रपा के आकार का है। भगवन्‌ ! तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! झालर के आकार का है। भगवन्‌ ! ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक किस प्रकार के संस्थान का है ? गौतम ! ऊर्ध्वमृदंग के आकार का है। भगवन्‌ ! लोक का संस्थान किस प्रकार का है ? गौतम ! सुप्रतिष्ठक के आकार का। यथा – वह नीचे विस्तीर्ण है, मध्य में संक्षिप्त है, इत्यादि सातवें शतक में कहे अनुसार जानना। यावत्‌ – उस लोक को उत्पन्न ज्ञान – दर्शन – धारक केवलज्ञानी जानते हैं, इसके पश्चात्‌ वे सिद्ध होते हैं, यावत्‌ समस्त दुःखों का अन्त करते हैं। भगवन्‌ ! अलोक का असंस्थान कैसा है ? गौतम ! अलोक का संस्थान पोले गोले के समान है। भगवन्‌ ! अधोलोक – क्षेत्रलोक में क्या जीव हैं, जीव का देश हैं, जीव के प्रदेश हैं ? अजीव हैं, अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! दसवें शतक के ऐन्द्री दिशा समान कहना। यावत्‌ – अद्धा – समय रूप है। भगवन्‌ ! क्या तिर्यग्लोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! पूर्ववत्‌ जानना। इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक के विषय में भी जानना, इतना विशेष है कि ऊर्ध्वलोक में अरूपी के छह भेद ही हैं, क्योंकि वहाँ अद्धासमय नहीं है। भगवन्‌ ! क्या लोक में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! दूसरे शतक के अस्ति उद्देशकके लोकाकाश के विषय में जीवादि के कथन समान, विशेष इतना है कि यहाँ अरूपी के सात भेद कहने चाहिए, यावत्‌ अधर्मास्ति – काय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धा – समय। शेष पूर्ववत्‌। भगवन्‌ ! क्या अलोक में जीव हैं ? गौतम ! दूसरे शतक के दसवें अस्तिकाय उद्देशक में अलोकाकाश के विषय अनुसार जानना; यावत्‌ वह आकाश के अनन्तवें भाग न्यून हैं। भगवन्‌ ! अधोलोक – क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में क्या जीव हैं; जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं या अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! (वहाँ) जीव नहीं, किन्तु जीवों के देश हैं, जीवों के प्रदेश भी हैं, यथा अजीव हैं, अजीवों के देश हैं और अजीवों के प्रदेश भी हैं। इनमें जो जीवों के देश हैं, वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के देश हैं, अथवा एकेन्द्रियों के देश और द्वीन्द्रिय जीव का एक देश है, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और द्वीन्द्रिय जीव के देश हैं; इसी प्रकार मध्यम भंग – रहित, शेष भंग, यावत्‌ अनिन्द्रिय तक जानना, यावत्‌ अथवा एकेन्द्रिय जीवों के देश और अनिन्द्रिय जीवों के देश हैं। इनमें जो जीवों के प्रदेश हैं, वे नियम से एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों के प्रदेश और एक द्वीन्द्रिय जीव के प्रदेश हैं, अथवा एकेन्द्रिय जीवों का प्रदेश और द्वीन्द्रिय जीवों के प्रदेश हैं। इसी प्रकार यावत्‌ पंचेन्द्रिय तक प्रथम भंग को छोड़कर दो – दो भंग कहना, अनिन्द्रिय में तीनों भंग कहना। उनमें जो अजीव हैं, वे दो प्रकार के हैं यथा – रूपी अजीव और अरूपी अजीव। रूपी अजीवों का वर्णन पूर्ववत्‌। अरूपी अजीव पाँच प्रकार हैं – यथा धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश और अद्धा – समय। भगवन्‌ ! क्या तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं; इत्यादि प्रश्न। गौतम ! अधोलोक – क्षेत्रलोक के समान तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक के विषय में समझ लेना। इस प्रकार ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी जानना। विशेष इतना है कि वहाँ अद्धा – समय नहीं है, (इस कारण) वहाँ चार प्रकार के अरूपी अजीव हैं। लोक के एक आकाशप्रदेश के विषय में भी अधोलोक – क्षेत्रलोक के आकाशप्रदेश के कथन के समान जानना। भगवन्‌ ! क्या अलोक के एक आकाशप्रदेश में जीव हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वहाँ जीव नहीं है, जीवों के देश नहीं है, इत्यादि पूर्ववत्‌; यावत्‌ अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणों से संयुक्त है और सर्वाकाश के अनन्तवे भाग न्यून है। द्रव्य से – अधोलोक – क्षेत्रलोक में अनन्त जीवद्रव्य हैं, अनन्त अजीवद्रव्य हैं और अनन्त जीवाजीवद्रव्य हैं। इसी प्रकार तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक में भी जानना। इसी प्रकार ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक में भी जानना। द्रव्य से अलोक में जीवद्रव्य नहीं, अजीवद्रव्य नहीं और जीवाजीवद्रव्य भी नहीं, किन्तु अजीवद्रव्य का एक देश है, यावत्‌ सर्वाकाश के अनन्तवे भाग न्यून है। काल से – अधोलोक – क्षेत्रलोक किसी समय नहीं था – ऐसा नहीं; यावत्‌ वह नित्य है। इसी प्रकार यावत्‌ अलोक के विषय में भी कहना। भाव से – अधोलोक – क्षेत्रलोक में ‘अनन्तवर्णपर्याय’ है, इत्यादि, द्वीतिय शतक में वर्णित स्कन्दक – प्रकरण अनुसार जानना, यावत्‌ अनन्त अगुरुलघु – पर्याय हैं। इसी प्रकार यावत्‌ लोक तक जानना भाव से – अलोक में वर्ण – पर्याय नहीं, यावत्‌ अगुरुलघु – पर्याय नहीं है, परन्तु एक अजीवद्रव्य का देश है, यावत्‌ वह सर्वाकाश के अनन्तवे भाग कम है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] rayagihe java evam vayasi–kativihe nam bhamte! Loe pannatte? Goyama! Chauvvihe loe pannatte, tam jaha–davvaloe, khettaloe, kalaloe, bhavaloe. Khettaloe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Tivihe pannatte, tam jaha–aheloyakhettaloe, tiriyaloyakhettaloe, uddhaloyakhettaloe. Aheloyakhettaloe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Sattavihe pannatte, tam jaha–rayanappabhapudhaviaheloyakhettaloe java ahesattamapudhavi-aheloyakhettaloe. Tiriyaloyakhettaloe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Asamkhejjavihe pannatte, tam jaha–jambuddive dive tiriyaloyakhettaloe java sayambhuramanasamudde tiriyaloyakhettaloe. Uddhaloyakhettaloe nam bhamte! Kativihe pannatte? Goyama! Pannarasavihe pannatte, tam jaha–sohammakappauddhaloyakhettaloe isana-sanamkumara-mahimda-bambhaloya-lamtaya-mahasukka-sahassara-anaya-panaya-arana-achchuyakappauddhaloyakhettaloe, gevejja-vimanauddhaloyakhettaloe, anuttaravimanauddhaloyakhettaloe, isi-pabbharapudhaviuddhaloyakhettaloe. Aheloyakhettaloe nam bhamte! Kimsamthie pannatte? Goyama! Tappagarasamthie pannatte. Tiriyaloyakhettaloe nam bhamte! Kimsamthie pannatte? Goyama! Jjhallarisamthie pannatte. Uddhaloyakhettaloe nam bhamte! Kimsamthie pannatte? Goyama! Uddhamuimgakarasamthie pannatte. Loe nam bhamte! Kimsamthie pannatte? Goyama! Supaitthagasamthie pannatte, tam jaha–hettha vichchhinne, majjhe samkhitte, uppim visale; ahe paliyamkasamthie, majjhe vaivai-raviggahie, uppim uddhamuimgakarasamthie. Tamsi cha nam sasayamsi logamsi hettha vichchhinnamsi java uppim uddhamuimgakarasamthiyamsi uppannanana-damsanadhare araha jine kevali jive vi janai-pasai, ajive vi janai-pasai, tao pachchha sijjhai bujjhai muchchai parinivvai savvadukkhanam amtam karei. Aloe nam bhamte! Kimsamthie pannatte? Goyama! Jjhusiragolasamthie pannatte. Aheloyakhettaloe nam bhamte! Kim 1. Jiva 2. Jivadesa 3. Jivapadesa 4. Ajiva 5. Ajivadesa 6. Ajivapadesa? Goyama! Jiva vi, jivadesa vi, jivapadesa vi, ajiva vi, ajivadesa vi, ajivapadesa vi. Je jiva te niyama egimdiya beimdiya teimdiya chaurimdiya pamchimdiya, animdiya. Je jivadesa te niyama egimdiyadesa java animdiyadesa. Je jivapadesa te niyama egimdiyapadesa beimdiyapadesa java animdiyapadesa. Je ajiva te duviha pannatta, tam jaha–ruviajiva ya, aruviajiva ya. Je ruviajiva te chauvviha pannatta, tam jaha–khamdha, khamdhadesa, khamdhapadesa, paramanupoggala. Je aruviajiva te sattaviha pannatta, tam jaha–1. Nodhammatthikae dhammatthikayassa dese 2. Dhammatthikayassa padesa 3. Noadhammatthikae adhammatthikayassa dese 4. Adhammatthikayassa padesa 5. Noagasatthikae agasatthikayassa dese 6. Agasatthi-kayassa padesa 7. Addhasamae. Tiriyaloyakhettaloe nam bhamte! Kim jiva? Jivadesa? Jivapadesa? Evam cheva. Evam uddhaloyakhettaloe vi, navaram–aruvi chhavviha, addhasamayo natthi. Loe nam bhamte! Kim jiva? Jivadesa? Jivapadesa? Jaha bitiyasae atthiuddesae loyagase, navaram–aruvi ajiva sattaviha pannatta, tam jaha–dhammatthikae nodhammatthikayassa dese, dhammatthikayassa padesa, adhammatthikae noadhammatthi-kayassa dese, adhammatthikayassa padesa, noagasatthikae agasatthikayassa dese, agasatthi-kayassa padesa, addhasamae, sesam tam cheva. Aloe nam bhamte! Kim jiva? Jivadesa? Jivapadesa? Evam jaha atthikayauddesae aloyagase, taheva niravasesam java savvagase anamtabhagune. Ahelogakhettalogassa nam bhamte! Egammi agasapadese kim 1. Jiva 2. Jivadesa 3. Jivapadesa 4. Ajiva 5. Ajivadesa 6. Ajivapadesa? Goyama! No jiva, jivadesa vi, jivapadesa vi, ajiva vi, ajivadesa vi, ajivapadesa vi. Je jivadesa te niyamam 1. Egimdiyadesa 2. Ahava egimdiyadesa ya beimdiyassa dese 3. Ahava egimdiyadesa ya beimdiyana ya desa. Evam majjhillavirahio java ahava egimdiyadesa ya animdiyana ya desa. Je jivapadesa te niyamam 1. Egimdiyapadesa 2. Ahava egimdiyapadesa ya beimdiyassa padesa 3. Ahava egimdiyapadesa ya beimdiyana ya padesa, evam aillavirahio java pamchimdi-esu, animdiesu tiyabhamgo. Je ajiva te duviha pannatta, tam jaha–ruvi ajiva ya, aruvi ajiva ya. Ruvi taheva. Je aruvi ajiva te pamchaviha pannatta, tam jaha–nodhammatthikae dhammatthikayassa dese, dhammatthikayassa padese, noadhammatthikae adhammatthikayassa dese, adhamma-tthikayassa padese, addhasamae. Tiriyalogakhettalogassa nam bhamte! Egammi agasapadese kim jiva? Evam jaha ahelogakhettalogassa taheva, evam uddhalogakhettalogassa vi, navaram–addhasamayo natthi. Aruvi chauvviha. Logassa nam bhamte! Egammi agasapadese kim jiva? Jaha ahelogakhettalogassa egammi agasapadese. Alogassa nam bhamte! Egammi agasapadese–puchchha. Goyama! No jiva, no jivadesa, no jivappadesa; no ajiva no ajiva desa, no ajivappadesa; ege ajivadavvadese agaruyalahue anamtehim agaruyalahuyagunehim samjute savvagasassa anamtabhagune. Davvao nam ahelogakhettaloe anamta jivadavva, anamta ajivadavva, anamta jivajivadavva. Evam tiriyaloya-khettaloe vi, evam uddhaloyakhettaloe vi evam loe vi. Davvao nam aloe nevatthi jivadavva, nevatthi ajivadavva, nevatthi jivajivadavva, ege ajivadavvadese agaruyalahue anamtehim agaruyalahuyagunehim samjutte savvagasassa anamtabhagune. Kalao nam aheloyakhettaloe na kayai nasi, na kayai na bhavai, na kayai na bhavissai–bhavimsu ya, bhavai ya, bhavissai ya–dhuve niyae sasae akkhae avvae avatthie nichche, evam tiriyaloya-khettaloe, evam uddhaloyakhettaloe, evam loe evam aloe. Bhavao nam aheloyakhettaloe anamta vannapajjava, anamta gamdhapajjava, anamta rasapajjava, anamta phasapajjava, anamta samthanapajjava, anamta garuyalahuyapajjava, anamta agaruyalahuya-pajjava, evam tiriyaloyakhettaloe, evam uddhaloyakhettaloe, evam loe. Bhavao nam aloe nevatthi vannapajjava, nevatthi gamdhapajjava, nevatthi rasapajjava, nevatthi phasapajjava, nevatthi samthana-pajjava nevatthi garuyalahuyapajjava, ege ajivadavvadese agaruyalahue anamtehim agaruyalahuyagunehim samjutte savvagasassa anamtabhagune.
Sutra Meaning Transliteration : Rajagriha nagara mem yavat puchha – bhagavan ! Loka kitane prakara ka hai\? Gautama ! Chara prakara ka hai. Yatha – dravyaloka, kshetraloka, kalaloka aura bhavaloka. Bhagavan ! Kshetraloka kitane prakara ka hai\? Gautama ! Tina prakara ka. Yatha – adholoka – kshetraloka, tiryagloka – kshetraloka aura urdhvaloka – kshetraloka. Bhagavan ! Adholoka – kshetraloka kitane prakara ka hai\? Gautama ! Sata prakara ka yatha – ratnaprabhaprithvi – adholoka – kshetraloka, yavat adhahsaptamaprithvi – adholoka – kshetraloka. Bhagavan ! Tiryagloka – kshetraloka kitane prakara ka hai\? Gautama ! Asamkhyata prakara ka yatha – jambudvipa – tiryagloka – kshetraloka, yavat svaya – mbhuramanasamudra – tiryagloka – kshetraloka. Bhagavan ! Urdhvaloka – kshetraloka kitane prakara ka hai\? Gautama ! Pandraha prakara ka hai yatha – saudharmakalpa – urdhvaloka – kshetraloka, yavat achyutakalpa – urdhvaloka – kshetraloka, graiveyaka vimana – urdhva – loka – kshetraloka, anuttaravimana – urdhvaloka – kshetraloka aura ishatpragbharaprithvi – urdhvaloka – kshetraloka. Bhagavan ! Adholoka – kshetraloka ka kisa prakara ka samsthana hai\? Gautama ! Trapa ke akara ka hai. Bhagavan ! Tiryagloka – kshetraloka ka samsthana kisa prakara ka hai\? Gautama ! Jhalara ke akara ka hai. Bhagavan ! Urdhvaloka – kshetraloka kisa prakara ke samsthana ka hai\? Gautama ! Urdhvamridamga ke akara ka hai. Bhagavan ! Loka ka samsthana kisa prakara ka hai\? Gautama ! Supratishthaka ke akara ka. Yatha – vaha niche vistirna hai, madhya mem samkshipta hai, ityadi satavem shataka mem kahe anusara janana. Yavat – usa loka ko utpanna jnyana – darshana – dharaka kevalajnyani janate haim, isake pashchat ve siddha hote haim, yavat samasta duhkhom ka anta karate haim. Bhagavan ! Aloka ka asamsthana kaisa hai\? Gautama ! Aloka ka samsthana pole gole ke samana hai. Bhagavan ! Adholoka – kshetraloka mem kya jiva haim, jiva ka desha haim, jiva ke pradesha haim\? Ajiva haim, ajiva ke pradesha haim\? Gautama ! Dasavem shataka ke aindri disha samana kahana. Yavat – addha – samaya rupa hai. Bhagavan ! Kya tiryagloka mem jiva haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Purvavat janana. Isi prakara urdhvaloka – kshetraloka ke vishaya mem bhi janana, itana vishesha hai ki urdhvaloka mem arupi ke chhaha bheda hi haim, kyomki vaham addhasamaya nahim hai. Bhagavan ! Kya loka mem jiva haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Dusare shataka ke asti uddeshakake lokakasha ke vishaya mem jivadi ke kathana samana, vishesha itana hai ki yaham arupi ke sata bheda kahane chahie, yavat adharmasti – kaya ke pradesha, akashastikaya ka desha, akashastikaya ke pradesha aura addha – samaya. Shesha purvavat. Bhagavan ! Kya aloka mem jiva haim\? Gautama ! Dusare shataka ke dasavem astikaya uddeshaka mem alokakasha ke vishaya anusara janana; yavat vaha akasha ke anantavem bhaga nyuna haim. Bhagavan ! Adholoka – kshetraloka ke eka akashapradesha mem kya jiva haim; jiva ke desha haim, jiva ke pradesha haim, ajiva haim, ajiva ke desha haim ya ajiva ke pradesha haim\? Gautama ! (vaham) jiva nahim, kintu jivom ke desha haim, jivom ke pradesha bhi haim, yatha ajiva haim, ajivom ke desha haim aura ajivom ke pradesha bhi haim. Inamem jo jivom ke desha haim, ve niyama se ekendriya jivom ke desha haim, athava ekendriyom ke desha aura dvindriya jiva ka eka desha hai, athava ekendriya jivom ke desha aura dvindriya jiva ke desha haim; isi prakara madhyama bhamga – rahita, shesha bhamga, yavat anindriya taka janana, yavat athava ekendriya jivom ke desha aura anindriya jivom ke desha haim. Inamem jo jivom ke pradesha haim, ve niyama se ekendriya jivom ke pradesha haim, athava ekendriya jivom ke pradesha aura eka dvindriya jiva ke pradesha haim, athava ekendriya jivom ka pradesha aura dvindriya jivom ke pradesha haim. Isi prakara yavat pamchendriya taka prathama bhamga ko chhorakara do – do bhamga kahana, anindriya mem tinom bhamga kahana. Unamem jo ajiva haim, ve do prakara ke haim yatha – rupi ajiva aura arupi ajiva. Rupi ajivom ka varnana purvavat. Arupi ajiva pamcha prakara haim – yatha dharmastikaya ka desha, dharmastikaya ka pradesha, adharmastikaya ka desha, adharmastikaya ka pradesha aura addha – samaya. Bhagavan ! Kya tiryagloka – kshetraloka ke eka akashapradesha mem jiva haim; ityadi prashna. Gautama ! Adholoka – kshetraloka ke samana tiryagloka – kshetraloka ke vishaya mem samajha lena. Isa prakara urdhvaloka – kshetraloka ke eka akashapradesha ke vishaya mem bhi janana. Vishesha itana hai ki vaham addha – samaya nahim hai, (isa karana) vaham chara prakara ke arupi ajiva haim. Loka ke eka akashapradesha ke vishaya mem bhi adholoka – kshetraloka ke akashapradesha ke kathana ke samana janana. Bhagavan ! Kya aloka ke eka akashapradesha mem jiva haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Vaham jiva nahim hai, jivom ke desha nahim hai, ityadi purvavat; yavat aloka ananta agurulaghugunom se samyukta hai aura sarvakasha ke anantave bhaga nyuna hai. Dravya se – adholoka – kshetraloka mem ananta jivadravya haim, ananta ajivadravya haim aura ananta jivajivadravya haim. Isi prakara tiryagloka – kshetraloka mem bhi janana. Isi prakara urdhvaloka – kshetraloka mem bhi janana. Dravya se aloka mem jivadravya nahim, ajivadravya nahim aura jivajivadravya bhi nahim, kintu ajivadravya ka eka desha hai, yavat sarvakasha ke anantave bhaga nyuna hai. Kala se – adholoka – kshetraloka kisi samaya nahim tha – aisa nahim; yavat vaha nitya hai. Isi prakara yavat aloka ke vishaya mem bhi kahana. Bhava se – adholoka – kshetraloka mem ‘anantavarnaparyaya’ hai, ityadi, dvitiya shataka mem varnita skandaka – prakarana anusara janana, yavat ananta agurulaghu – paryaya haim. Isi prakara yavat loka taka janana bhava se – aloka mem varna – paryaya nahim, yavat agurulaghu – paryaya nahim hai, parantu eka ajivadravya ka desha hai, yavat vaha sarvakasha ke anantave bhaga kama hai.