Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003873 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-७ |
Translated Chapter : |
शतक-७ |
Section : | उद्देशक-९ असंवृत्त | Translated Section : | उद्देशक-९ असंवृत्त |
Sutra Number : | 373 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुवमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया–रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते, चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था; नव मल्लई, नव लेच्छई पराजइत्था। तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! भूयानंदं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोह-कलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति अणाए विनएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता खिप्पामेव छेयायरियोवएस-मति-कप्पणा-विकप्पेहिं सुनिउणेहिं उज्जलणेवत्थ-हव्वपरिवच्छियं सुसज्जं जाव भीमं संगामियं अओज्झं भूयानंदं हत्थिरायं पडिकप्पेंति, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेंति, सण्णाहेत्ता जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु कूणियस्स रन्नो तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से कूणिए राया जेणेव मज्जणघरं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभू-सिए सन्नद्ध-बद्ध-वम्मियकवए उप्पोलियसरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्ज-विमलवरबद्धचिंधपट्टे गहिया उहप्पहरणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरबालवीजियंगे, मंगलजय-सद्द-कयालोए जाव जेणेव भूयानंदे हत्थिराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भूयानंदं हत्थिरायं दुरूढे। तए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे जाव सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं-उद्धुव्वमाणीहिं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महया-भडचडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवाग-च्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाए। पुरओ य से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेज्जकवयं वइरपडिरूवगं विउव्वित्ता णं चिट्ठइ। मग्गओ य से चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया एगं महं आयसं किढिणपडिरूपगं विउव्वित्ता णं चिट्ठइ। एवं खलु तओ इंदा संगामं संगामेंति, तं जहा–देविंदे य, मणुइंदे य, असुरिंदे य। एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया जइत्तए, एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया पराजिणित्तए। तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं संगामेमाणे नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गण-रायाणो हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-द्धयपडागे किच्छपाणगए दिसोदिसिं पडिसेहित्था। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–रहमुसले संगामे? गोयमा! रहमुसले णं संगामे वट्टमाणे एगे रहे अणासए, असारहिए, अनारोहए, समुसले महया जनक्खयं, जणवहं, जनप्पमद्दं, जनसंवट्टकप्पं रुहिरकद्दमं करेमाणे सव्वओ समंता परिधावित्था। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ? गोयमा! छन्नउतिं जनसयसाहस्सीओ वहियाओ। ते णं भंते! मनुया निस्सीला निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा रुट्ठा परिकुविया समरवहिया अनुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया? कहिं उववन्ना? गोयमा! तत्थ णं दससाहस्सीओ एगाए मच्छियाए कुच्छिंसि उववन्नाओ। एगे देवलोगेसु उववन्ने। एगे सुकुले पच्चायाए। अवसेसा उस्सन्नं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववन्ना। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! अर्हन्त भगवान ने जाना है, इसे प्रत्यक्ष किया है और विशेषरूप से जाना है कि यह रथमूसल – संग्राम है। भगवन् ! यह रथमूसलसंग्राम जब हो रहा था तब कौन जीता, कौन हारा ? हे गौतम ! वज्री – इन्द्र और विदेहपुत्र (कूणिक) एवं असुरेन्द्र असुरराज चमर जीते और नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी राजा हार गए। तदनन्तर रथमूसल – संग्राम उपस्थित हुआ जानकर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। इसके बाद का सारा वर्णन महाशिलाकण्टक की तरह कहना। इतना विशेष है कि यहाँ ‘भूतानन्द’ नामक हस्तिराज है। यावत् वह कूणिक राजा रथमूसलसंग्राम में ऊतरा। उसके आगे देवेन्द्र देवराज शक्र है, यावत् पूर्ववत् सारा वर्णन कहना। उसके पीछे असुरेन्द्र असुरराज चमर लोहे के बने हुए एक महान् किठिन जैसे कवच की विकुर्वणा करके खड़ा है। इस प्रकार तीन इन्द्र संग्राम करने के लिए प्रवृत्त हुए हैं। यथा – देवेन्द्र, मनुजेन्द्र और असुरेन्द्र। अब कूणिक केवल एक हाथी से सारी शत्रु – सेना को पराजित करने में समर्थ है। यावत् पहले कहे अनुसार उसने शत्रु राजाओं को दसों दिशाओं में भगा दिया। भगवन् ! इस ‘रथमूसलसंग्राम’ को रथमूसलसंग्राम क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जिस समय रथमूसल – संग्राम हो रहा था, उस समय अश्वरहित, सारथिरहित और योद्धाओं से रहित केवल एक रथमूसल सहित अत्यन्त जनसंहार, जनवध, जन – प्रमर्दन और जनप्रलय के समान रक्त का कीचड़ करता हुआ चारों और दौड़ता था। इसी कारण उस संग्राम को ‘रथमूसलसंग्राम’ यावत् कहा गया है। भगवन् ! जब रथमूसलसंग्राम हो रहा था, तब उनमें कितने लाख मनुष्य मारे गए ? गौतम ! रथमूसलसंग्राम में छियानवे लाख मनुष्य मारे गए। भगवन् ! निःशील यावत् वे मनुष्य मृत्यु के समय मरकर कहाँ गए, कहाँ उत्पन्न हुए ? गौतम ! उनमें से दस हजार मनुष्य तो एक मछली के उदर में उत्पन्न हुए, एक मनुष्य देवलोक में उत्पन्न हुआ, एक मनुष्य उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ और शेष प्रायः नरक और तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न हुए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] nayameyam arahaya, suvameyam arahaya, vinnayameyam arahaya–rahamusale samgame. Rahamusale nam bhamte! Samgame vattamane ke jaittha? Ke parajaittha? Goyama! Vajji, videhaputte, chamare asurimde asurakumararaya jaittha; nava mallai, nava lechchhai parajaittha. Tae nam se kunie raya rahamusalam samgamam uvatthiyam janitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi– khippameva bho devanuppiya! Bhuyanamdam hatthirayam padikappeha, haya-gaya-raha-pavarajoha-kaliyam chauramginim senam sannaheha, sannahetta mama eyamanattiyam khippameva pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa konienam ranna evam vutta samana hatthatutthachittamanamdiya java matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunamti, padisunitta khippameva chheyayariyovaesa-mati-kappana-vikappehim suniunehim ujjalanevattha-havvaparivachchhiyam susajjam java bhimam samgamiyam aojjham bhuyanamdam hatthirayam padikappemti, haya-gaya-raha-pavarajohakaliyam chauramginim senam sannahemti, sannahetta jeneva kunie raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu kuniyassa ranno tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se kunie raya jeneva majjanagharam teneva uvagachchhati, uvagachchhitta majjanagharam anuppavisai, anuppavisitta nhae kayabalikamme kayakouya-mamgala-payachchhitte savvalamkaravibhu-sie sannaddha-baddha-vammiyakavae uppoliyasarasanapattie pinaddhagevejja-vimalavarabaddhachimdhapatte gahiya uhappaharane sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam chauchamarabalavijiyamge, mamgalajaya-sadda-kayaloe java jeneva bhuyanamde hatthiraya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta bhuyanamdam hatthirayam durudhe. Tae nam se kunie raya harotthaya-sukaya-raiyavachchhe java seyavarachamarahim uddhuvvamanihim-uddhuvvamanihim haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahaya-bhadachadagaravimdaparikkhitte jeneva rahamusale samgame teneva uvaga-chchhai, uvagachchhitta rahamusalam samgamam oyae. Purao ya se sakke devimde devaraya egam maham abhejjakavayam vairapadiruvagam viuvvitta nam chitthai. Maggao ya se chamare asurimde asurakumararaya egam maham ayasam kidhinapadirupagam viuvvitta nam chitthai. Evam khalu tao imda samgamam samgamemti, tam jaha–devimde ya, manuimde ya, asurimde ya. Egahatthina vi nam pabhu kunie raya jaittae, egahatthina vi nam pabhu kunie raya parajinittae. Tae nam se kunie raya rahamusalam samgamam samgamemane nava mallai, nava lechchhai–kasi-kosalaga attharasa vi gana-rayano haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-ddhayapadage kichchhapanagae disodisim padisehittha. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–rahamusale samgame? Goyama! Rahamusale nam samgame vattamane ege rahe anasae, asarahie, anarohae, samusale mahaya janakkhayam, janavaham, janappamaddam, janasamvattakappam ruhirakaddamam karemane savvao samamta paridhavittha. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–rahamusale samgame. Rahamusale nam bhamte! Samgame vattamane kati janasayasahassio vahiyao? Goyama! Chhannautim janasayasahassio vahiyao. Te nam bhamte! Manuya nissila nigguna nimmera nippachchakkhanaposahovavasa ruttha parikuviya samaravahiya anuvasamta kalamase kalam kichcha kahim gaya? Kahim uvavanna? Goyama! Tattha nam dasasahassio egae machchhiyae kuchchhimsi uvavannao. Ege devalogesu uvavanne. Ege sukule pachchayae. Avasesa ussannam naraga-tirikkhajoniesu uvavanna. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Arhanta bhagavana ne jana hai, ise pratyaksha kiya hai aura vishesharupa se jana hai ki yaha rathamusala – samgrama hai. Bhagavan ! Yaha rathamusalasamgrama jaba ho raha tha taba kauna jita, kauna hara\? He gautama ! Vajri – indra aura videhaputra (kunika) evam asurendra asuraraja chamara jite aura nau mallaki aura nau lichchhavi raja hara gae. Tadanantara rathamusala – samgrama upasthita hua janakara kunika raja ne apane kautumbika purushom ko bulaya. Isake bada ka sara varnana mahashilakantaka ki taraha kahana. Itana vishesha hai ki yaham ‘bhutananda’ namaka hastiraja hai. Yavat vaha kunika raja rathamusalasamgrama mem utara. Usake age devendra devaraja shakra hai, yavat purvavat sara varnana kahana. Usake pichhe asurendra asuraraja chamara lohe ke bane hue eka mahan kithina jaise kavacha ki vikurvana karake khara hai. Isa prakara tina indra samgrama karane ke lie pravritta hue haim. Yatha – devendra, manujendra aura asurendra. Aba kunika kevala eka hathi se sari shatru – sena ko parajita karane mem samartha hai. Yavat pahale kahe anusara usane shatru rajaom ko dasom dishaom mem bhaga diya. Bhagavan ! Isa ‘rathamusalasamgrama’ ko rathamusalasamgrama kyom kaha jata hai\? Gautama ! Jisa samaya rathamusala – samgrama ho raha tha, usa samaya ashvarahita, sarathirahita aura yoddhaom se rahita kevala eka rathamusala sahita atyanta janasamhara, janavadha, jana – pramardana aura janapralaya ke samana rakta ka kichara karata hua charom aura daurata tha. Isi karana usa samgrama ko ‘rathamusalasamgrama’ yavat kaha gaya hai. Bhagavan ! Jaba rathamusalasamgrama ho raha tha, taba unamem kitane lakha manushya mare gae\? Gautama ! Rathamusalasamgrama mem chhiyanave lakha manushya mare gae. Bhagavan ! Nihshila yavat ve manushya mrityu ke samaya marakara kaham gae, kaham utpanna hue\? Gautama ! Unamem se dasa hajara manushya to eka machhali ke udara mem utpanna hue, eka manushya devaloka mem utpanna hua, eka manushya uttama kula mem utpanna hua aura shesha prayah naraka aura tiryamchayonikom mem utpanna hue. |