Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1003872
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-७

Translated Chapter :

शतक-७

Section : उद्देशक-९ असंवृत्त Translated Section : उद्देशक-९ असंवृत्त
Sutra Number : 372 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] नायमेयं अरहया, सुयमेयं अरहया, विन्नाणमेयं अरहया–महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे के जइत्था? के पराजइत्था? गोयमा! वज्जी, विदेहपुत्ते जइत्था, नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो पराजइत्था। तए णं से कोणिए राया महासिलाकंटगं संगामं उवट्ठियं जाणित्ता कोडुंबियपुरिमे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेह, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सण्णाहेह, सण्णाहेत्ता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा कोणिएणं रण्णा एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामी! तहत्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता खिप्पामेव छेयायरियोवएस-मति-कप्पणा-विकप्पेहिं सुनिउणेहिं उज्जलणेवत्थ-हव्व-परिवच्छियं सुसज्जं जाव भीमं संगामियं अओज्झं उदाइं हत्थिरायं पडिकप्पेंति, हय-गय-रह-पवरजोहकलियं चाउरंगिणि सेनं सण्णाहेंति, सण्णाहेत्ता जेणेव कूणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसा-वत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु कूणियस्स रन्नो तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से कूणिए राया जेणेव मज्जणघरं तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता ण्हाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभू-सिए सण्णद्ध-बद्धवम्मियकवए उप्पीलिय-सरासणपट्टिए पिणद्धगेवेज्ज-विमलवरबद्धचिंधपट्टे गहियाउहप्पहरणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरबालबीजियंगे मंगलजय-सद्दकयालोए जाव जेणेव उदाई हत्थिराया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता उदाइं हत्थिरायं दुरूढे। तए णं से कूणिए राया हारोत्थय-सुकय-रइयवच्छे जाव सेयवरचामराहिं उद्धुव्वमाणीहिं-उद्धुव्वमाणीहिं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महयाभड-चडगरविंदपरिक्खित्ते जेणेव महासिलाकंटए संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासिलाकंटगं संगामं ओयाए। पुरओ य से सक्के देविंदे देवराया एगं महं अभेज्जकवयं वइरपडिरूवगं विउव्वित्ता णं चिट्ठइ। एवं खलु दो इंदा संगामं संगामेंति, तं जहा–देविंदे य, मनुइंदे य। एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया जइत्तए, एगहत्थिणा वि णं पभू कूणिए राया पराजिणित्तए। तए णं से कूणिए राया महासिलाकंटगं संगामं संगामेमाणे नव मल्लई, नव लेच्छई–कासी-कोसलगा अट्ठारस वि गणरायाणो हय-महिय-पवरवीर-घाइय-विवडियचिंध-द्धयपडागे किच्छ-पाणगए दिसोदिसिं पडिसेहित्था। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–महासिलाकंटए संगामे? गोयमा! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे जे तत्थ आसे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा कट्ठेण वा पत्तेण वा सक्कराए वा अभिहम्मति, सव्वे से जाणेइ महासिलाए अहं अभिहए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–महासिलाकंटए संगामे। महासिलाकंटए णं भंते! संगामे वट्टमाणे कति जणसयसाहस्सीओ वहियाओ? गोयमा! चउरासीइं जनसयसाहस्सीओ वहियाओ। ते णं भंते! मनुया निस्सीला निग्गुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा रुट्ठा परिकुविया समरवहिया अनुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया? कहिं उववन्ना? गोयमा! उस्सन्नं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववन्ना।
Sutra Meaning : अर्हन्त भगवान ने यह जाना है, अर्हन्त भगवान ने यह सूना है – तथा अर्हन्त भगवान को यह विशेष रूप से ज्ञात है कि महाशिलाकण्टक संग्राम महाशिलाकण्टक संग्राम ही है। (अतः) भगवन्‌ ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम चल रहा था, तब उसमें कौन जीता और कौन हारा ? गौतम ! वज्जी विदेहपुत्र कूणिक राजा जीते, नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी, जो कि काश और कौशलदेश के १८ गणराजा थे, वे पराजित हुए। उस समय में महाशिलाकण्टक – संग्राम उपस्थित हुआ जानकर कूणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उनसे कहा – हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही ‘उदायी’ नामक हिस्तराज को तैयार करो और अश्व, हाथी, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध करो और ये सब करके यावत्‌ शीघ्र ही मेरी आज्ञा मुझे वापिस सौंपो। तत्पश्चात्‌ कूणिक राजा द्वारा इस प्रकार कहे जान पर वे कौटुम्बिक पुरुष हृष्ट – तुष्ट हुए, यावत्‌ मस्तक पर अंजलि करके – हे स्वामिन्‌ ! ‘ऐसा ही होगा, जैसी आज्ञा’; यों कहकर उन्होंने विनयपूर्वक वचन स्वीकार किया। निपुण आचार्यों के उपदेश से प्रशिक्षित एवं तीक्ष्ण बुद्धि – कल्पना के सुनिपुण विकल्पों से युक्त तथा औपपातिकसूत्र में कहे गए विशेषणों से युक्त यावत्‌ भीम संग्राम के योग्य उदार उदायी नामक हस्तीराज को सुसज्जित किया। साथ ही घोड़े, हाथी, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना भी सुसज्जित की। जहाँ कूणिक राजा था, वहाँ उसके पास आए और करबद्ध होकर उन्होंने कूणिक राजा को आज्ञा वापिस सौंपी। तत्पश्चात्‌ कूणिक राजा जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया, उसने स्नानगृह में प्रवेश किया। फिर स्नान किया, स्नान से सम्बन्धित मर्दनादि बलिकर्म किया, फिर प्रायश्चित्तरूप कौतुक तथा मंगल किए। समस्त आभूषणों से विभूषित हुआ। सन्नद्धबद्ध हुआ, लोह – कवच को धारण किया, फिर मुड़े हुए धनुर्दण्ड को ग्रहण किया। गले के आभूषण पहने और योद्धा के योग्य उत्तमोत्तम चिह्नपट बाँधे। फिर आयुध तथा प्रहरण ग्रहण किए। फिर कोरण्टक पुष्पों की माला सहित छत्र धारण किया तथा उसके चारों ओर चार चामर ढुलाये जाने लगे। लोगों द्वारा मांगलिक एवं जय – विजय शब्द उच्चारण किये जाने लगे। इस प्रकार कूणिक राजा उववाइय में कहे अनुसार यावत्‌ उदायी नामक प्रधान हाथी पर आरूढ हुआ। इसके बाद हारों से आच्छादित वक्षःस्थल वाला कूणिक जनमन में रति – प्रीति उत्पन्न करता हुआ यावत्‌ श्वेत चामरों से बार – बार बिंजाता हुआ, अश्व, हस्ती, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से संपरिवृत्त, महान सुभटों के विशाल समूह से व्याप्त कूणिक राजा जहाँ महाशिलाकण्टक संग्राम था, वहाँ आया। वह महाशिलाकण्टक संग्राम में उतरा। उसके आगे देवराज देवेन्द्र शक्र वज्रप्रतिरूपक अभेद्य एक महान कवच की विकुर्वणा करके खड़ा हुआ। इस प्रकार संग्राम करने लगे; जैसे कि – एक देवेन्द्र और दूसरा मनुजेन्द्र (कूणिक राजा), कूणिक राजा केवल एक हाथी से भी पराजित करने में समर्थ हो गया। तत्पश्चात्‌ उस कूणिक राजा न महाशिलाकण्टक संग्राम करते हुए नौ मल्लकी और नौ लेच्छकी; जो काशी और कोशल देश के अठारह गणराजा थे, उनके प्रवरवीर योद्धाओं को नष्ट किया, घायल किया और मार डाला। उनकी चिह्नांकित ध्वजा – पताकाएं गिरा दी। उन वीरों के प्राण संकट में पड़ गए, अतः उन्हें युद्धस्थल से दसों दिशाओं में भगा दिया। भगवन्‌ ! इस ‘महाशिलाकण्टक’ संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उस संग्राम में जो भी घोड़ा, हाथी, योद्धा या सारथि आदि तृण से, काष्ठ से, पत्ते से या कंकर आदि से आहत होते, वे सब ऐसा अनुभव करते थे कि हम महाशिला (के प्रहार) से मारे गए हैं। हे गौतम ! इस कारण इस संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम कहा जाता है। भगवन्‌ ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए ? गौतम ! महाशिलाकण्टक संग्राम में चौरासी लाख मनुष्य मारे गए। भगवन्‌ ! शीलरहित यावत्‌ प्रत्याख्यान एवं पौषधोपवास से रहित, रोष में भरे हुए, परिकुपित, युद्ध में घायल हुए और अनुपशान्त वे मनुष्य मरकर कहाँ गए, कहाँ उत्पन्न हुए ? गौतम ! प्रायः नरक और तिर्यंचयोनिकों में उत्पन्न हुए हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] nayameyam arahaya, suyameyam arahaya, vinnanameyam arahaya–mahasilakamtae samgame. Mahasilakamtae nam bhamte! Samgame vattamane ke jaittha? Ke parajaittha? Goyama! Vajji, videhaputte jaittha, nava mallai, nava lechchhai–kasi-kosalaga attharasa vi ganarayano parajaittha. Tae nam se konie raya mahasilakamtagam samgamam uvatthiyam janitta kodumbiyapurime saddavei, saddavetta evam vayasi –khippameva bho devanuppiya! Udaim hatthirayam padikappeha, haya-gaya-raha-pavarajohakaliyam chauramginim senam sannaheha, sannahetta mama eyamanattiyam khippameva pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa konienam ranna evam vutta samana hatthatutthachittamanamdiya java matthae amjalim kattu evam sami! Tahatti anae vinaenam vayanam padisunamti, padisunitta khippameva chheyayariyovaesa-mati-kappana-vikappehim suniunehim ujjalanevattha-havva-parivachchhiyam susajjam java bhimam samgamiyam aojjham udaim hatthirayam padikappemti, haya-gaya-raha-pavarajohakaliyam chauramgini senam sannahemti, sannahetta jeneva kunie raya teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasa-vattam matthae amjalim kattu kuniyassa ranno tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se kunie raya jeneva majjanagharam teneva uvagachchhati, uvagachchhitta majjanagharam anuppavisai, anuppavisitta nhae kayavalikamme kayakouya-mamgala-payachchhitte savvalamkaravibhu-sie sannaddha-baddhavammiyakavae uppiliya-sarasanapattie pinaddhagevejja-vimalavarabaddhachimdhapatte gahiyauhappaharane sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam chauchamarabalabijiyamge mamgalajaya-saddakayaloe java jeneva udai hatthiraya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta udaim hatthirayam durudhe. Tae nam se kunie raya harotthaya-sukaya-raiyavachchhe java seyavarachamarahim uddhuvvamanihim-uddhuvvamanihim haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahayabhada-chadagaravimdaparikkhitte jeneva mahasilakamtae samgame teneva uvagachchhai, uvagachchhitta mahasilakamtagam samgamam oyae. Purao ya se sakke devimde devaraya egam maham abhejjakavayam vairapadiruvagam viuvvitta nam chitthai. Evam khalu do imda samgamam samgamemti, tam jaha–devimde ya, manuimde ya. Egahatthina vi nam pabhu kunie raya jaittae, egahatthina vi nam pabhu kunie raya parajinittae. Tae nam se kunie raya mahasilakamtagam samgamam samgamemane nava mallai, nava lechchhai–kasi-kosalaga attharasa vi ganarayano haya-mahiya-pavaravira-ghaiya-vivadiyachimdha-ddhayapadage kichchha-panagae disodisim padisehittha. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–mahasilakamtae samgame? Goyama! Mahasilakamtae nam samgame vattamane je tattha ase va hatthi va johe va sarahi va tanena va katthena va pattena va sakkarae va abhihammati, savve se janei mahasilae aham abhihae. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–mahasilakamtae samgame. Mahasilakamtae nam bhamte! Samgame vattamane kati janasayasahassio vahiyao? Goyama! Chaurasiim janasayasahassio vahiyao. Te nam bhamte! Manuya nissila nigguna nimmera nippachchakkhanaposahovavasa ruttha parikuviya samaravahiya anuvasamta kalamase kalam kichcha kahim gaya? Kahim uvavanna? Goyama! Ussannam naraga-tirikkhajoniesu uvavanna.
Sutra Meaning Transliteration : Arhanta bhagavana ne yaha jana hai, arhanta bhagavana ne yaha suna hai – tatha arhanta bhagavana ko yaha vishesha rupa se jnyata hai ki mahashilakantaka samgrama mahashilakantaka samgrama hi hai. (atah) bhagavan ! Jaba mahashilakantaka samgrama chala raha tha, taba usamem kauna jita aura kauna hara\? Gautama ! Vajji videhaputra kunika raja jite, nau mallaki aura nau lechchhaki, jo ki kasha aura kaushaladesha ke 18 ganaraja the, ve parajita hue. Usa samaya mem mahashilakantaka – samgrama upasthita hua janakara kunika raja ne apane kautumbika purushom ko bulaya. Unase kaha – he devanupriyo ! Shighra hi ‘udayi’ namaka histaraja ko taiyara karo aura ashva, hathi, ratha aura yoddhaom se yukta chaturamgini sena sannaddha karo aura ye saba karake yavat shighra hi meri ajnya mujhe vapisa saumpo. Tatpashchat kunika raja dvara isa prakara kahe jana para ve kautumbika purusha hrishta – tushta hue, yavat mastaka para amjali karake – he svamin ! ‘aisa hi hoga, jaisi ajnya’; yom kahakara unhomne vinayapurvaka vachana svikara kiya. Nipuna acharyom ke upadesha se prashikshita evam tikshna buddhi – kalpana ke sunipuna vikalpom se yukta tatha aupapatikasutra mem kahe gae visheshanom se yukta yavat bhima samgrama ke yogya udara udayi namaka hastiraja ko susajjita kiya. Satha hi ghore, hathi, ratha aura yoddhaom se yukta chaturamgini sena bhi susajjita ki. Jaham kunika raja tha, vaham usake pasa ae aura karabaddha hokara unhomne kunika raja ko ajnya vapisa saumpi. Tatpashchat kunika raja jaham snanagriha tha, vaham aya, usane snanagriha mem pravesha kiya. Phira snana kiya, snana se sambandhita mardanadi balikarma kiya, phira prayashchittarupa kautuka tatha mamgala kie. Samasta abhushanom se vibhushita hua. Sannaddhabaddha hua, loha – kavacha ko dharana kiya, phira mure hue dhanurdanda ko grahana kiya. Gale ke abhushana pahane aura yoddha ke yogya uttamottama chihnapata bamdhe. Phira ayudha tatha praharana grahana kie. Phira korantaka pushpom ki mala sahita chhatra dharana kiya tatha usake charom ora chara chamara dhulaye jane lage. Logom dvara mamgalika evam jaya – vijaya shabda uchcharana kiye jane lage. Isa prakara kunika raja uvavaiya mem kahe anusara yavat udayi namaka pradhana hathi para arudha hua. Isake bada harom se achchhadita vakshahsthala vala kunika janamana mem rati – priti utpanna karata hua yavat shveta chamarom se bara – bara bimjata hua, ashva, hasti, ratha aura shreshtha yoddhaom se yukta chaturamgini sena se samparivritta, mahana subhatom ke vishala samuha se vyapta kunika raja jaham mahashilakantaka samgrama tha, vaham aya. Vaha mahashilakantaka samgrama mem utara. Usake age devaraja devendra shakra vajrapratirupaka abhedya eka mahana kavacha ki vikurvana karake khara hua. Isa prakara samgrama karane lage; jaise ki – eka devendra aura dusara manujendra (kunika raja), kunika raja kevala eka hathi se bhi parajita karane mem samartha ho gaya. Tatpashchat usa kunika raja na mahashilakantaka samgrama karate hue nau mallaki aura nau lechchhaki; jo kashi aura koshala desha ke atharaha ganaraja the, unake pravaravira yoddhaom ko nashta kiya, ghayala kiya aura mara dala. Unaki chihnamkita dhvaja – patakaem gira di. Una virom ke prana samkata mem para gae, atah unhem yuddhasthala se dasom dishaom mem bhaga diya. Bhagavan ! Isa ‘mahashilakantaka’ samgrama ko mahashilakantaka samgrama kyom kaha jata hai\? Gautama ! Jaba mahashilakantaka samgrama ho raha tha, taba usa samgrama mem jo bhi ghora, hathi, yoddha ya sarathi adi trina se, kashtha se, patte se ya kamkara adi se ahata hote, ve saba aisa anubhava karate the ki hama mahashila (ke prahara) se mare gae haim. He gautama ! Isa karana isa samgrama ko mahashilakantaka samgrama kaha jata hai. Bhagavan ! Jaba mahashilakantaka samgrama ho raha tha, taba usamem kitane lakha manushya mare gae\? Gautama ! Mahashilakantaka samgrama mem chaurasi lakha manushya mare gae. Bhagavan ! Shilarahita yavat pratyakhyana evam paushadhopavasa se rahita, rosha mem bhare hue, parikupita, yuddha mem ghayala hue aura anupashanta ve manushya marakara kaham gae, kaham utpanna hue\? Gautama ! Prayah naraka aura tiryamchayonikom mem utpanna hue haim.