Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003871 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-७ |
Translated Chapter : |
शतक-७ |
Section : | उद्देशक-९ असंवृत्त | Translated Section : | उद्देशक-९ असंवृत्त |
Sutra Number : | 371 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगवण्णं एगरूवं विउव्वित्तए? हंता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ? गोयमा! इहगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ, नो तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ, नो अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता विकुव्वइ। एवं २ एगवण्णं अनेगरूवं ३. अनेगवण्णं एगरूवं ४. अनेगवण्णं अनेगरूवं–चउभंगो। असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू कालगं पोग्गलं नीलगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए? नीलगं पोग्गलं वा कालगपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। परियाइत्ता पभू जाव– असंवुडे णं भंते! अनगारे बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू निद्धपोग्गलं लुक्खपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए? लुक्खपोग्गलं वा निद्धपोग्गलत्ताए परिणामेत्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। परियाइत्ता पभू। से णं भंते! किं इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति? तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति? अन्नत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति? गोयमा! इहगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति, नो तत्थगए पोग्गले परियाइत्ता परिणामेति, नो अन्नत्थगए पोग्गले परिया-इत्ता परिणामेति। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! क्या असंवृत अनगार बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना एक वर्ण वाले, एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! क्या असंवृत अनगार बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके एक वर्ण वाले एक रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? हाँ, गौतम ! वह ऐसा करने में समर्थ हैं। भगवन् ! वह असंवृत अनगार यहाँ (मनुष्य – लोक में) रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है, या वहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है, अथवा अन्यत्र रहे पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है ? गौतम ! वह यहाँ (मनुष्यलोक में) रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है, किन्तु न तो वहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है और न ही अन्यत्र रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है। इस प्रकार एकवर्ण, एकरूप, एकवर्ण अनेकरूप, अनेकवर्ण एकरूप और अनेकवर्ण अनेकरूप, यों चौंभगी का कथन जिस प्रकार छठे शतक के नौंवे उद्देशक में किया गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। किन्तु इतना विशेष है कि यहाँ रहा हुआ मुनि यहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके विकुर्वणा करता है। शेष सारा वर्णन पूर्ववत् यावत् ‘भगवन् ! क्या रूक्ष पुद्गलों को स्निग्ध पुद्गलों के रूप में परिणित करने में समर्थ है ?’ (उ.) हाँ, गौतम ! समर्थ है। (प्र.) भगवन् ! क्या वह यहाँ रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण करके यावत् अन्यत्र रहे हुए पुद्गलों को ग्रहण किए बिना विकुर्वणा करता है ? तक कहना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] asamvude nam bhamte! Anagare bahirae poggale apariyaitta pabhu egavannam egaruvam viuvvittae? No inatthe samatthe. Asamvude nam bhamte! Anagare bahirae poggale pariyaitta pabhu egavannam egaruvam viuvvittae? Hamta pabhu. Se nam bhamte! Kim ihagae poggale pariyaitta vikuvvai? Tatthagae poggale pariyaitta vikuvvai? Annatthagae poggale pariyaitta vikuvvai? Goyama! Ihagae poggale pariyaitta vikuvvai, no tatthagae poggale pariyaitta vikuvvai, no annatthagae poggale pariyaitta vikuvvai. Evam 2 egavannam anegaruvam 3. Anegavannam egaruvam 4. Anegavannam anegaruvam–chaubhamgo. Asamvude nam bhamte! Anagare bahirae poggale apariyaitta pabhu kalagam poggalam nilagapoggalattae parinamettae? Nilagam poggalam va kalagapoggalattae parinamettae? Goyama! No inatthe samatthe. Pariyaitta pabhu java– Asamvude nam bhamte! Anagare bahirae poggale apariyaitta pabhu niddhapoggalam lukkhapoggalattae parinamettae? Lukkhapoggalam va niddhapoggalattae parinamettae? Goyama! No inatthe samatthe. Pariyaitta pabhu. Se nam bhamte! Kim ihagae poggale pariyaitta parinameti? Tatthagae poggale pariyaitta parinameti? Annatthagae poggale pariyaitta parinameti? Goyama! Ihagae poggale pariyaitta parinameti, no tatthagae poggale pariyaitta parinameti, no annatthagae poggale pariya-itta parinameti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Kya asamvrita anagara bahara ke pudgalom ko grahana kiye bina eka varna vale, eka rupa ki vikurvana karane mem samartha haim\? Yaha artha samartha nahim hai. Bhagavan ! Kya asamvrita anagara bahara ke pudgalom ko grahana karake eka varna vale eka rupa ki vikurvana karane mem samartha haim\? Ham, gautama ! Vaha aisa karane mem samartha haim. Bhagavan ! Vaha asamvrita anagara yaham (manushya – loka mem) rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai, ya vaham rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai, athava anyatra rahe pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai\? Gautama ! Vaha yaham (manushyaloka mem) rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai, kintu na to vaham rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai aura na hi anyatra rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai. Isa prakara ekavarna, ekarupa, ekavarna anekarupa, anekavarna ekarupa aura anekavarna anekarupa, yom chaumbhagi ka kathana jisa prakara chhathe shataka ke naumve uddeshaka mem kiya gaya hai, usi prakara yaham bhi kahana chahie. Kintu itana vishesha hai ki yaham raha hua muni yaham rahe hue pudgalom ko grahana karake vikurvana karata hai. Shesha sara varnana purvavat yavat ‘bhagavan ! Kya ruksha pudgalom ko snigdha pudgalom ke rupa mem parinita karane mem samartha hai\?’ (u.) ham, gautama ! Samartha hai. (pra.) bhagavan ! Kya vaha yaham rahe hue pudgalom ko grahana karake yavat anyatra rahe hue pudgalom ko grahana kie bina vikurvana karata hai\? Taka kahana. |