Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003763
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-५

Translated Chapter :

शतक-५

Section : उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र Translated Section : उद्देशक-८ निर्ग्रंथी पुत्र
Sutra Number : 263 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] भंतेत्ति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जीवा णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! जीवा नो वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया। नेरइया णं भंते! किं वड्ढंति? हायंति? अवट्ठिया? गोयमा! नेरइया वड्ढंति वि, हायंति वि, अवट्ठिया वि। जहा नेरइया एवं जाव वेमाणिया। सिद्धा णं भंते! पुच्छा। गोयमा! सिद्धा वड्ढंति, नो हायंति, अवट्ठिया वि। जीवा णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा! सव्वद्धं। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं वड्ढंति? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। एवं हायंति वि। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं अवट्ठिया? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउवीसं मुहुत्ता। एवं सत्तसु वि पुढवीसु वड्ढंति, हायंति भाणियव्वं, नवरं–अवट्ठिएसु इमं नाणत्तं, तं जहा–रयणप्पभाए पुढवीए अडयालीसं मुहुत्ता, सक्करप्पभाए चोद्दस राइंदिया, वालुयप्पभाए मासं, पंकप्पभाए दो मासा, धूमप्पभाए चत्तारि मासा, तमाए अट्ठ मासा, तमतमाए बारस मासा। असुरकुमारा वि वड्ढंति, हायंति जहा नेरइया। अवट्ठिया जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठचत्तालीस मुहुत्ता। एवं दसविहा वि। एगिंदिया वड्ढंति वि, हायंति वि अवट्ठिया वि। एएहिं तिहि वि जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। बेइंदिया वड्ढंति, हायंति तहेव, अवट्ठिया जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं दो अंतोमुहुत्ता। एवं जाव चउरिंदिया। अवसेसा सव्वे वड्ढंति, हायंति तहेव, अवट्ठियाणं नाणत्तं इमं, तं जहा– संमुच्छिमपंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणियाणं दो अंतोमुहुत्ता, गब्भवक्कंतियाणं चउव्वीसं मुहुत्ता, संमुच्छिममनुस्साणं अट्ठचत्तालीसं मुहुत्ता, गब्भवक्कंतियमनुस्साणं चउवीसं मुहुत्ता, वाणमंतर-जोतिसिय-सोहम्मीसानेसु अट्ठचत्ता-लीसं मुहुत्ता, सणंकुमारे अट्ठारस राइंदियाइं चत्तालीस य मुहुत्ता, माहिंदे चउवीसं रइंदियाइं, वीस य मुहुत्ता, बंभलोए पंचचत्तालीसं राइंदियाइं, लंतए नउइं राइंदियाइं, महासुक्के सट्ठिं राइंदियसयं, सहस्सारे दो राइंदियसयाइं, आणयपाणयाणं संखेज्जा मासा, आरणच्चुयाणं संखेज्जाइं वासाइं, एवं गेवेज्जदेवाणं, विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियाणं असंखेज्जाइं वाससहस्साइं, सव्वट्ठसिद्धे पलि-ओवमस्स संखेज्जइभागो। एवं भाणियव्वं–वड्ढंति, हायंति जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइ-भागं, अवट्ठियाणं जं भणियं। सिद्धा णं भंते! केवइलं कालं वड्ढंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अट्ठ समया। केवइयं कालं अवट्ठिया? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। जीवा णं भंते! किं सोवचया? सावचया? सोवचय-सावचया? निरुवचय-निरवचया? गोयमा! जीवा नो सोवचया, नो सावचया, नो सोवचय-सावचया, निरुवचय-निरवचया। एगिंदिया ततियपदे, सेसा जीवा चउहिं वि पदेहिं भाणियव्वा। सिद्धा णं भंते! पुच्छा। गोयमा! सिद्धा सोवचया, नो सावचया, नो सोवचय-सावचया, निरुवचय-निरवचया। जीवा णं भंते! केवतियं कालं निरुवचय-निरवचया? गोयमा! सव्वद्धं। नेरइया णं भंते! केवतियं कालं सोवचया? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। केवतियं कालं सावचया? एवं चेव। केवतियं कालं सोवचय-सावचया? एवं चेव। केवतियं कालं निरुवचय-निरवचया? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता। एगिंदिया सव्वे सोवचय-सावचया सव्वद्धं। सेसा सव्वे सोवचया वि, सावचया वि, सोवचय-सावचया वि, जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं। अवट्ठिएहिं वक्कंतिकालो भाणियव्वो। सिद्धा णं भंते! केवतियं कालं सोवचया? गोयमा! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अट्ठ समया। केवतियं कालं निरुवचय-निरवचया? जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छ मासा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
Sutra Meaning : ‘भगवन्‌ !’ यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, पर अवस्थित रहते हैं भगवन्‌ ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा, इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। भगवन्‌ ! सिद्धों के विषय में मेरी पृच्छा है (कि वे बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ?) गौतम ! सिद्ध बढ़ते हैं, घटते नहीं, वे अवस्थित भी रहते हैं। भगवन्‌ ! जीव कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! सब काल में। भगवन्‌ ! नैरयिक कितने काल तक बढ़ते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्यात भाग तक बढ़ते हैं। जिस प्रकार बढ़ने का काल कहा है, उसी प्रकार घटने का काल भी कहना चाहिए। भगवन्‌ ! नैरयिक कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! (नैरयिक जीव) जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः चौबीस मुहूर्त्त तक (अवस्थित रहते हैं) इसी प्रकार सातों नरक – पृथ्वीयों के जीव बढ़ते हैं, घटते हैं, किन्तु अवस्थित रहने के काल में इस प्रकार भिन्नता है। यथा – रत्नप्रभापृथ्वी में ४८ मुहूर्त्त का, शर्कराप्रभापृथ्वी में चौबीस अहोरात्रि का, वालुकाप्रभापृथ्वी में एक मास का, पंकप्रभा में दो मास का, धूमप्रभा में चार मास का, तमःप्रभा में आठ मास का और तमस्तमःप्रभा में बारह मास का अवस्थान – काल है। जिस प्रकार नैरयिक जीवों की वृद्धि – हानि के विषय में कहा है, उसी प्रकार असुरकुमार देवों की वृद्धि – हानि के सम्बन्ध में समझना चाहिए। असुरकुमार देव जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट ४८ मुहूर्त्त तक अवस्थित रहते हैं। इसी प्रकार दस ही प्रकार के भवनपतिदेवों की वृद्धि, हानि और अवस्थिति का कथन करना चाहिए। एकेन्द्रिय जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं। इन तीनों का काल जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः आवलिका का असंख्यातवा भाग (समझना चाहिए) द्वीन्द्रिय जीव भी इसी प्रकार बढ़ते – घटते हैं। इनके अवस्थान – काल में भिन्नता इस प्रकार है – ये जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः दो अन्तर्मुहूर्त्त तक अवस्थित रहते हैं। द्वीन्द्रिय की तरह त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों तक (का वृद्धि – हानि – अवस्थिति – काल) कहना। शेष सब जीव, बढ़ते – घटते हैं, यह पहले की तरह ही कहना चाहिए। किन्तु उनके अवस्थान – काल में इस प्रकार भिन्नता है, तथा – सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का दो अन्तर्मुहूर्त्त का; गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यग्यो – निकों का चौबीस मुहूर्त्त का, सम्मूर्च्छिम मनुष्यों का ४८ मुहूर्त्त का, गर्भज मनुष्यों का चौबीस मुहूर्त्त का, वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और सौधर्म, ईशान देवों का ४८ मुहूर्त्त का, सनत्कुमार देव का अठारह अहोरात्रि तथा चालीस मुहूर्त्त का, माहेन्द्र देवलोक के देवों का चौबीस रात्रिदिन और बीस मुहूर्त्त का, ब्रह्मलोकवर्ती देवों का ४५ रात्रिदिवस का, लान्तक देवों का ९० रात्रिदिवस का, महाशुक्र – देवलोकस्थ देवों का १६० अहोरात्रि का, सहस्रारदेवों का दो सौ रात्रिदिन का, आनत और प्राणत देवलोक के देवों का संख्येय मास का, आरण और अच्युत देवलोक के देवों का संख्येय वर्षों का अवस्थान – काल है। इसी प्रकार नौ ग्रैवेयक देवों के विषय में जान लेना चाहिए। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानवासी देवों का अवस्थानकाल असंख्येय हजार वर्षों का है। तथा सर्वार्थसिद्ध – विमानवासी देवों का अवस्थानकाल पल्योपम का संख्यातवा भाग है। और ये सब जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवे भाग तक बढ़ते – घटते हैं; और इनका अवस्थानकाल जो ऊपर कहा गया है, वही है। भगवन्‌ ! सिद्ध कितने काल तक बढ़ते हैं ? गौतम ! जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः आठ समय तक सिद्ध बढ़ते हैं। भगवन्‌ ! सिद्ध कितने काल तक अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक सिद्ध अवस्थित रहते हैं। भगवन्‌ ! क्या जीव सोपचय (उपचयसहित) हैं, सापचय (अपचयसहित) हैं, सोपचय – सापचय हैं या निरु – पचय (उपचयरहित) – निरपचय(अपचयरहित) हैं ? गौतम ! जीव न सोपचय हैं, और न ही सापचय हैं, और न सोपचय – सापचय हैं, किन्तु निरुपचय – निरपचय हैं। एकेन्द्रिय जीवों में तीसरा पद (विकल्प – सोपचय – सापचय) कहना चाहिए। शेष सब जीवों में चारों ही पद (विकल्प) कहने चाहिए। भगवन्‌ ! क्या सिद्ध भगवान सोपचय हैं, सापचय हैं, सोपचय – सापचय हैं या निरुपचय – निरपचय हैं ? गौतम ! सिद्ध भगवान सोपचय हैं, सापचय नहीं हैं, सोपचय – सापचय भी नहीं हैं, किन्तु निरुपचय – निरपचय हैं। भगवन्‌ ! जीव कितने काल तक निरुपचय – निरपचय रहते हैं ? गौतम ! जीव सर्वकाल तक निरुपचय – निरपचय रहते हैं। भगवन्‌ ! नैरयिक कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक। भगवन्‌ ! नैरयिक कितने काल तक सापचय रहते हैं ? (गौतम !) सोपचय के पूर्वोक्त कालमानानुसार सापचय का काल जानना। और वे सोपचय – सापचय कितने काल तक रहते हैं ? (गौतम!) सोपचय का जितना काल कहा है, उतना ही सोपचय – सापचय का काल जानना। नैरयिक कितने काल तक निरुपचय – निरपचय रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक जीव जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक निरुपचय – निरपचय रहते हैं। सभी एकेन्द्रिय जीव सर्व काल (सर्वदा) सोपचय – सापचय रहते हैं। शेष सभी जीव सोपचय भी हैं, सापचय भी हैं, सोपचय – सापचय भी हैं और निरुपचय – निरपचय भी हैं। इन चारों का काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट, आवलिका का असंख्यातवा भाग है। अवस्थितों (निरुपचय – निरपचय) में व्युत्क्रान्तिकाल (विरहकाल) के अनुसार कहना चाहिए। भगवन्‌ ! सिद्ध भगवान कितने काल तक सोपचय रहते हैं ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आठ समय तक। और सिद्ध भगवान, निरुपचय – निरपचय कितने काल तक रहते हैं ? (गौतम !) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है, भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] bhamtetti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–jiva nam bhamte! Kim vaddhamti? Hayamti? Avatthiya? Goyama! Jiva no vaddhamti, no hayamti, avatthiya. Neraiya nam bhamte! Kim vaddhamti? Hayamti? Avatthiya? Goyama! Neraiya vaddhamti vi, hayamti vi, avatthiya vi. Jaha neraiya evam java vemaniya. Siddha nam bhamte! Puchchha. Goyama! Siddha vaddhamti, no hayamti, avatthiya vi. Jiva nam bhamte! Kevatiyam kalam avatthiya? Goyama! Savvaddham. Neraiya nam bhamte! Kevatiyam kalam vaddhamti? Goyama! Jahannenam egam samayam, ukkosenam avaliyae asamkhejjaibhagam. Evam hayamti vi. Neraiya nam bhamte! Kevatiyam kalam avatthiya? Goyama! Jahannenam egam samayam, ukkosenam chauvisam muhutta. Evam sattasu vi pudhavisu vaddhamti, hayamti bhaniyavvam, navaram–avatthiesu imam nanattam, tam jaha–rayanappabhae pudhavie adayalisam muhutta, sakkarappabhae choddasa raimdiya, valuyappabhae masam, pamkappabhae do masa, dhumappabhae chattari masa, tamae attha masa, tamatamae barasa masa. Asurakumara vi vaddhamti, hayamti jaha neraiya. Avatthiya jahannenam ekkam samayam, ukkosenam atthachattalisa muhutta. Evam dasaviha vi. Egimdiya vaddhamti vi, hayamti vi avatthiya vi. Eehim tihi vi jahannenam ekkam samayam, ukkosenam avaliyae asamkhejjaibhagam. Beimdiya vaddhamti, hayamti taheva, avatthiya jahannenam ekkam samayam, ukkosenam do amtomuhutta. Evam java chaurimdiya. Avasesa savve vaddhamti, hayamti taheva, avatthiyanam nanattam imam, tam jaha– sammuchchhimapamchimdiya-tirikkha-joniyanam do amtomuhutta, gabbhavakkamtiyanam chauvvisam muhutta, sammuchchhimamanussanam atthachattalisam muhutta, gabbhavakkamtiyamanussanam chauvisam muhutta, vanamamtara-jotisiya-sohammisanesu atthachatta-lisam muhutta, sanamkumare attharasa raimdiyaim chattalisa ya muhutta, mahimde chauvisam raimdiyaim, visa ya muhutta, bambhaloe pamchachattalisam raimdiyaim, lamtae nauim raimdiyaim, mahasukke satthim raimdiyasayam, sahassare do raimdiyasayaim, anayapanayanam samkhejja masa, aranachchuyanam samkhejjaim vasaim, evam gevejjadevanam, vijaya-vejayamta-jayamta-aparajiyanam asamkhejjaim vasasahassaim, savvatthasiddhe pali-ovamassa samkhejjaibhago. Evam bhaniyavvam–vaddhamti, hayamti jahannenam ekkam samayam, ukkosenam avaliyae asamkhejjai-bhagam, avatthiyanam jam bhaniyam. Siddha nam bhamte! Kevailam kalam vaddhamti? Goyama! Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam attha samaya. Kevaiyam kalam avatthiya? Goyama! Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam chhammasa. Jiva nam bhamte! Kim sovachaya? Savachaya? Sovachaya-savachaya? Niruvachaya-niravachaya? Goyama! Jiva no sovachaya, no savachaya, no sovachaya-savachaya, niruvachaya-niravachaya. Egimdiya tatiyapade, sesa jiva chauhim vi padehim bhaniyavva. Siddha nam bhamte! Puchchha. Goyama! Siddha sovachaya, no savachaya, no sovachaya-savachaya, niruvachaya-niravachaya. Jiva nam bhamte! Kevatiyam kalam niruvachaya-niravachaya? Goyama! Savvaddham. Neraiya nam bhamte! Kevatiyam kalam sovachaya? Goyama! Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam avaliyae asamkhejjaibhagam. Kevatiyam kalam savachaya? Evam cheva. Kevatiyam kalam sovachaya-savachaya? Evam cheva. Kevatiyam kalam niruvachaya-niravachaya? Goyama! Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam barasa muhutta. Egimdiya savve sovachaya-savachaya savvaddham. Sesa savve sovachaya vi, savachaya vi, sovachaya-savachaya vi, jahannenam ekkam samayam, ukkosenam avaliyae asamkhejjaibhagam. Avatthiehim vakkamtikalo bhaniyavvo. Siddha nam bhamte! Kevatiyam kalam sovachaya? Goyama! Jahannenam egam samayam, ukkosenam attha samaya. Kevatiyam kalam niruvachaya-niravachaya? Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam chha masa. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti.
Sutra Meaning Transliteration : ‘bhagavan !’ yom kahakara bhagavana gautama svami ne shramana bhagavana mahavira svami se yavat isa prakara puchha – bhagavan ! Kya jiva barhate haim, ghatate haim ya avasthita rahate haim\? Gautama ! Jiva na barhate haim, na ghatate haim, para avasthita rahate haim Bhagavan ! Kya nairayika barhate haim, athava avasthita rahate haim\? Gautama ! Nairayika barhate bhi haim, ghatate bhi haim aura avasthita bhi rahate haim. Jisa prakara nairayikom ke vishaya mem kaha, isi prakara vaimanika paryanta kahana chahie. Bhagavan ! Siddhom ke vishaya mem meri prichchha hai (ki ve barhate haim, ghatate haim ya avasthita rahate haim\?) gautama ! Siddha barhate haim, ghatate nahim, ve avasthita bhi rahate haim. Bhagavan ! Jiva kitane kala taka avasthita rahate haim\? Gautama ! Saba kala mem. Bhagavan ! Nairayika kitane kala taka barhate haim\? Gautama ! Nairayika jiva jaghanyatah eka samaya taka aura utkrishtatah avalika ke asamkhyata bhaga taka barhate haim. Jisa prakara barhane ka kala kaha hai, usi prakara ghatane ka kala bhi kahana chahie. Bhagavan ! Nairayika kitane kala taka avasthita rahate haim\? Gautama ! (nairayika jiva) jaghanyatah eka samaya taka aura utkrishtatah chaubisa muhurtta taka (avasthita rahate haim) isi prakara satom naraka – prithviyom ke jiva barhate haim, ghatate haim, kintu avasthita rahane ke kala mem isa prakara bhinnata hai. Yatha – ratnaprabhaprithvi mem 48 muhurtta ka, sharkaraprabhaprithvi mem chaubisa ahoratri ka, valukaprabhaprithvi mem eka masa ka, pamkaprabha mem do masa ka, dhumaprabha mem chara masa ka, tamahprabha mem atha masa ka aura tamastamahprabha mem baraha masa ka avasthana – kala hai. Jisa prakara nairayika jivom ki vriddhi – hani ke vishaya mem kaha hai, usi prakara asurakumara devom ki vriddhi – hani ke sambandha mem samajhana chahie. Asurakumara deva jaghanya eka samaya taka aura utkrishta 48 muhurtta taka avasthita rahate haim. Isi prakara dasa hi prakara ke bhavanapatidevom ki vriddhi, hani aura avasthiti ka kathana karana chahie. Ekendriya jiva barhate bhi haim, ghatate bhi haim aura avasthita bhi rahate haim. Ina tinom ka kala jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah avalika ka asamkhyatava bhaga (samajhana chahie) dvindriya jiva bhi isi prakara barhate – ghatate haim. Inake avasthana – kala mem bhinnata isa prakara hai – ye jaghanyatah eka samaya taka aura utkrishtatah do antarmuhurtta taka avasthita rahate haim. Dvindriya ki taraha trindriya aura chaturindriya jivom taka (ka vriddhi – hani – avasthiti – kala) kahana. Shesha saba jiva, barhate – ghatate haim, yaha pahale ki taraha hi kahana chahie. Kintu unake avasthana – kala mem isa prakara bhinnata hai, tatha – sammurchchhima pamchendriya tiryagyonika jivom ka do antarmuhurtta ka; garbhaja pamchendriya tiryagyo – nikom ka chaubisa muhurtta ka, sammurchchhima manushyom ka 48 muhurtta ka, garbhaja manushyom ka chaubisa muhurtta ka, vanavyantara jyotishka aura saudharma, ishana devom ka 48 muhurtta ka, sanatkumara deva ka atharaha ahoratri tatha chalisa muhurtta ka, mahendra devaloka ke devom ka chaubisa ratridina aura bisa muhurtta ka, brahmalokavarti devom ka 45 ratridivasa ka, lantaka devom ka 90 ratridivasa ka, mahashukra – devalokastha devom ka 160 ahoratri ka, sahasraradevom ka do sau ratridina ka, anata aura pranata devaloka ke devom ka samkhyeya masa ka, arana aura achyuta devaloka ke devom ka samkhyeya varshom ka avasthana – kala hai. Isi prakara nau graiveyaka devom ke vishaya mem jana lena chahie. Vijaya, vaijayanta, jayanta aura aparajita vimanavasi devom ka avasthanakala asamkhyeya hajara varshom ka hai. Tatha sarvarthasiddha – vimanavasi devom ka avasthanakala palyopama ka samkhyatava bhaga hai. Aura ye saba jaghanya eka samaya taka aura utkrishta avalika ke asamkhyatave bhaga taka barhate – ghatate haim; aura inaka avasthanakala jo upara kaha gaya hai, vahi hai. Bhagavan ! Siddha kitane kala taka barhate haim\? Gautama ! Jaghanyatah eka samaya aura utkrishtatah atha samaya taka siddha barhate haim. Bhagavan ! Siddha kitane kala taka avasthita rahate haim\? Gautama ! Jaghanya eka samaya aura utkrishta chhaha masa taka siddha avasthita rahate haim. Bhagavan ! Kya jiva sopachaya (upachayasahita) haim, sapachaya (apachayasahita) haim, sopachaya – sapachaya haim ya niru – pachaya (upachayarahita) – nirapachaya(apachayarahita) haim\? Gautama ! Jiva na sopachaya haim, aura na hi sapachaya haim, aura na sopachaya – sapachaya haim, kintu nirupachaya – nirapachaya haim. Ekendriya jivom mem tisara pada (vikalpa – sopachaya – sapachaya) kahana chahie. Shesha saba jivom mem charom hi pada (vikalpa) kahane chahie. Bhagavan ! Kya siddha bhagavana sopachaya haim, sapachaya haim, sopachaya – sapachaya haim ya nirupachaya – nirapachaya haim\? Gautama ! Siddha bhagavana sopachaya haim, sapachaya nahim haim, sopachaya – sapachaya bhi nahim haim, kintu nirupachaya – nirapachaya haim. Bhagavan ! Jiva kitane kala taka nirupachaya – nirapachaya rahate haim\? Gautama ! Jiva sarvakala taka nirupachaya – nirapachaya rahate haim. Bhagavan ! Nairayika kitane kala taka sopachaya rahate haim\? Gautama ! Jaghanya eka samaya aura utkrishta avalika ke asamkhyeya bhaga taka. Bhagavan ! Nairayika kitane kala taka sapachaya rahate haim\? (gautama !) sopachaya ke purvokta kalamananusara sapachaya ka kala janana. Aura ve sopachaya – sapachaya kitane kala taka rahate haim\? (gautama!) sopachaya ka jitana kala kaha hai, utana hi sopachaya – sapachaya ka kala janana. Nairayika kitane kala taka nirupachaya – nirapachaya rahate haim\? Gautama ! Nairayika jiva jaghanya eka samaya aura utkrishta baraha muhurtta taka nirupachaya – nirapachaya rahate haim. Sabhi ekendriya jiva sarva kala (sarvada) sopachaya – sapachaya rahate haim. Shesha sabhi jiva sopachaya bhi haim, sapachaya bhi haim, sopachaya – sapachaya bhi haim aura nirupachaya – nirapachaya bhi haim. Ina charom ka kala jaghanya eka samaya aura utkrishta, avalika ka asamkhyatava bhaga hai. Avasthitom (nirupachaya – nirapachaya) mem vyutkrantikala (virahakala) ke anusara kahana chahie. Bhagavan ! Siddha bhagavana kitane kala taka sopachaya rahate haim\? Gautama ! Jaghanya eka samaya aura utkrishta atha samaya taka. Aura siddha bhagavana, nirupachaya – nirapachaya kitane kala taka rahate haim\? (gautama !) jaghanya eka samaya aura utkrishta chhaha masa taka. He bhagavan ! Yaha isi prakara hai, bhagavan ! Yaha isi prakara hai.